भारतीय राजव्यवस्था
केंद्रीय सूचना आयोग को सशक्त करना
- 18 Dec 2025
- 79 min read
प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रपति, मुख्य सूचना आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, अर्द्ध-न्यायिक निकाय, प्रधानमंत्री, लाभ का पद, लोक सूचना अधिकारी।
मेन्स के लिये: केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के संदर्भ में मुख्य तथ्य। CIC से जुड़ी चिंताएँ और इसे सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक कदम।
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रपति ने राज कुमार गोयल को मुख्य सूचना आयुक्त और 8 नए सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया, जिससे केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को 9 वर्षों में पहली बार पूर्ण रूप से गठित किया गया।
सारांश
- RTI अधिनियम, 2005 के तहत गठित केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) नागरिकों को जानकारी तक पहुँच सुनिश्चित करती है, जिससे केंद्रीय सरकार और सार्वजनिक संस्थानों में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ती है।
- CIC को सुदृढ़ बनाने के लिये समय पर नियुक्तियाँ, डिजिटल केस प्रबंधन, कठोर कार्यान्वयन शक्तियाँ और सक्रिय सूचना प्रकटीकरण पहल आवश्यक हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) क्या है?
- परिचय: यह एक वैधानिक निकाय है, जिसे सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत गठित किया गया है। यह अर्द्ध-न्यायिक निकाय के रूप में कार्य करता है तथा जानकारी तक पहुँच से संबंधित शिकायतों और अपीलों को सॅंभालता है।
- क्षेत्राधिकार: केंद्रीय सरकार के कार्यालय, वित्तीय संस्थान, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और संघ राज्य क्षेत्र (UT) इस आयोग के दायरे में आते हैं।
- संरचना: इसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त और अधिकतम 10 सूचना आयुक्त (IC) शामिल होते हैं।
- नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिस पर निम्नलिखित समिति की सिफारिश होती है:
- प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
- केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (वर्तमान में गृहमंत्री), जिन्हें प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है।
- पात्रता मानदंड: ऐसे व्यक्ति होने चाहिये जिनकी सार्वजनिक जीवन में ख्याति हो और जिनके पास कानून, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार, प्रशासन या शासन में व्यापक ज्ञान तथा अनुभव हो।
- अयोग्यता: संसद के सदस्य या किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र की विधायिका के सदस्य नहीं हो सकते। कोई लाभकारी पद नहीं धारण कर सकते, राजनीतिक पार्टियों से जुड़े नहीं हो सकते, व्यवसाय नहीं चला सकते या कोई पेशा नहीं अपना सकते।
- कार्यकाल और सेवा शर्तें: मुख्य सूचना आयुक्त या सूचना आयुक्त (IC) उस अवधि तक पद धारण करेंगे, जो केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है, या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
- कार्यकाल पूरा होने के बाद पुनर्नियुक्ति के योग्य नहीं।
- हटाना: राष्ट्रपति द्वारा विशेष परिस्थितियों में हटाया जा सकता है।
- दुर्व्यवहार या अक्षमता के कारण हटाने के लिये राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाने से पहले सर्वोच्च न्यायालय (SC) की जाँच और अनुशंसा आवश्यक होती है।"
- शक्तियाँ और कार्य:
- शिकायतों की प्राप्ति और जाँच: RTI अधिनियम, 2005 के तहत सूचना अनुरोधों से इनकार, अपूर्ण, भ्रामक या गलत सूचना दिये जाने संबंधी नागरिकों की शिकायतों को प्राप्त करता है और उनकी जाँच करता है।
- सिविल कोर्ट के समकक्ष अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ, जिनमें व्यक्तियों को समन जारी करना तथा उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना शामिल है।
- अभिलेखों तक अप्रतिबंधित पहुँच: सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रणाधीन किसी भी अभिलेख की जाँच कर सकता है तथा जाँच के दौरान किसी भी आधार पर कोई अभिलेख रोका नहीं जा सकता।
- रिपोर्टिंग दायित्व: RTI अधिनियम, 2005 के क्रियान्वयन पर केंद्रीय सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जिसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act, 2005)
- परिचय: RTI अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- इसका उद्देश्य सरकारी निकायों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कार्यों में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देना है।
- मुख्य प्रावधान: यह अधिनियम सरकार के सभी स्तरों पर लागू होता है, जिनमें केंद्र, राज्य और स्थानीय निकाय शामिल हैं।
- धारा 8(2) के तहत, जब सार्वजनिक हित सूचना की गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो, तब सूचना के प्रकटीकरण की अनुमति दी जाती है।
- धारा 22 यह सुनिश्चित करती है कि अन्य कानूनों के साथ किसी भी असंगति की स्थिति में RTI अधिनियम, 2005 को प्रधानता प्राप्त होगी।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: RTI अधिनियम, 2005 के तहत मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया था। वर्ष 2019 के संशोधन के बाद, उनका कार्यकाल केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- मूल रूप से मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन और सेवा शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के समकक्ष थीं तथा सूचना आयुक्तों की वेतन एवं सेवा शर्तें निर्वाचन आयुक्त के समकक्ष थीं। संशोधन के बाद, CIC और IC दोनों के लिये वेतन, भत्ते तथा सेवा शर्तें केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- नियुक्ति में पारदर्शिता की कमी: सूचना आयुक्तों की चयन प्रक्रिया में मानदंडों और अभ्यर्थियों के विवरण के अपर्याप्त प्रकटीकरण को लेकर आलोचना हुई है। अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक निगरानी सुनिश्चित करने हेतु नियुक्तियों में अधिक पारदर्शिता का निर्देश दिया था।
- स्वतंत्रता के समझौते की आशंका: सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 केंद्रीय सरकार को आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने की अनुमति देता है, जिससे CIC की अर्द्ध-न्यायिक स्वायत्तता पर कार्यपालिका के प्रभाव की आशंका उत्पन्न होती है।
- अप्रभावी प्रवर्तन: यद्यपि मुख्य सूचना आयुक्त सूचना के प्रकटीकरण का आदेश दे सकता है और दंड भी लगा सकता है, परंतु उसकी शक्तियाँ पर्याप्त रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। विशेषकर तब, जब सार्वजनिक प्राधिकरण उसके निर्देशों की अनदेखी करते हैं, अनुपालन सुनिश्चित करने की क्षमता सीमित रहती है। रिपोर्टों के अनुसार, दंडात्मक प्रावधानों का उपयोग निपटाए गए मामलों में केवल लगभग 2.2% में ही किया गया।
- मामलों का लंबित रहना और देरी: नवंबर 2024 तक रिक्त पदों और कर्मचारियों की कमी के कारण केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में लगभग 22,000 मामले लंबित हैं, जिससे अपीलकर्त्ताओं को लंबे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- निर्णयन संबंधी समस्या: निर्णय अत्यधिक प्रक्रियात्मक हो जाते हैं, जिनमें तकनीकी आधार पर खारिजीकरण, बार-बार स्थगन और गोपनीयता या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपवादों का व्यापक उपयोग शामिल है। यदि इनका संतुलन सावधानीपूर्वक न किया जाए तो इससे सूचना का प्रकटीकरण घट सकता है और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में CIC की भूमिका कमज़ोर पड़ सकती है।
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) को सुदृढ़ करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- समयबद्ध और पारदर्शी नियुक्तियाँ: अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए आयुक्तों की नियुक्ति के लिये एक पूर्वानुमेय, समय-सीमाबद्ध और सहभागी प्रक्रिया स्थापित की जाए तथा रिक्त पदों को समय पर भरा जाए।
- लंबित मामलों में कमी: मामलों की संख्या के अनुपात में सूचना आयुक्तों (IC) की संख्या बढ़ाई जाए और क्षेत्र-विशेष पीठों (जैसे—रक्षा और वित्त) की स्थापना की जाए।
- मामलों के निपटान की अनिवार्य समय-सीमा लागू करें और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सहित एक व्यापक डिजिटल प्रबंधन प्रणाली स्थापित करें।
- प्रवर्तन और अनुपालन को सुदृढ़ करना: सार्वजनिक प्राधिकरणों से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये CIC को अवमानना या प्रत्यक्ष प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान की जाएँ। एक अनुपालन-निगरानी प्रणाली शुरू की जाए, जिसके तहत विभागाध्यक्ष निर्देशों पर अनुपालन की रिपोर्ट दें और जिसकी निगरानी संसदीय समितियाँ करें।
- सक्रिय प्रकटीकरण (Proactive Disclosure): अपीलों में कमी और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये RTI अधिनियम की धारा 4 के प्रभावी क्रियान्वयन को CIC द्वारा सक्रिय रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिये। CIC के प्रदर्शन से संबंधित विस्तृत आँकड़े जैसे पीठ-वार निपटान, दंड प्रवृत्तियाँ, अनुपालन दरें और तर्क/निर्णय के पैटर्न सार्वजनिक किये जाने चाहिये। जो संस्था पारदर्शिता लागू कराती है, उसे अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये स्वयं भी पारदर्शिता का पालन करना चाहिये।
- प्रशासनिक निर्भरता: यद्यपि CIC अर्द्ध-न्यायिक कार्य करता है, फिर भी वह स्टाफिंग और अवसंरचना के लिये कार्यपालिका पर प्रशासनिक रूप से निर्भर रहता है। आलोचकों का तर्क है कि यह द्वैतता प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के बिना भी संस्थागत व्यवहार को सूक्ष्म रूप से प्रभावित करती है।
निष्कर्ष
हाल ही में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का पूर्ण गठन एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता कुछ प्रमुख मुद्दों के समाधान पर निर्भर करती है जैसे कार्यपालिका के प्रभाव से वास्तविक स्वायत्तता सुनिश्चित करना, अनुपालन न करने पर रोक लगाने हेतु दंडों का प्रभावी प्रवर्तन तथा अपीलों के भारी लंबित बोझ को कम करने के लिये प्रणालीगत सुधारों को लागू करना, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों को कमज़ोर करता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. CIC की प्रवर्तन शक्तियों को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है ताकि उसके आदेशों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित हो सके तथा कम दंड और कमज़ोर अनुपालन की समस्या का समाधान किया जा सके? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) क्या है?
केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत गठित एक वैधानिक अर्धो-न्यायिक निकाय है, जो सार्वजनिक प्राधिकरणों से नागरिकों को सूचना उपलब्ध कराने से संबंधित शिकायतों और अपीलों का निपटारा करता है।
2. मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कौन करता है?
इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों पर आधारित होती है। इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी शामिल होते हैं।
3. अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का क्या महत्त्व था?
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए तथा रिक्त पदों को सक्रिय रूप से भरा जाए, ताकि केंद्रीय सूचना आयोग के कार्य में बाधा न आए और वह निष्क्रिय न हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018)
