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डेली न्यूज़

  • 16 Mar, 2023
  • 33 min read
इन्फोग्राफिक्स

संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियाँ- भाग II (UNWTO, IFAD और UPU)

UN-Specialised-Agencies-Final


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ऑस्ट्रेलिया प्रमुख खनिज निवेश साझेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

प्रमुख खनिज, क्वाड, हिंद-प्रशांत क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध, भारत-ऑस्ट्रेलिया प्रमुख खनिज निवेश साझेदारी, महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ने आपसी आपूर्ति शृंखला विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण खनिज परियोजनाओं में निवेश की दिशा में काम करने में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर तय किया है।

प्रमुख खनिज: 

  • परिचय: प्रमुख खनिज ऐसे तत्त्व हैं जो आवश्यक आधुनिक प्रौद्योगिकियों का आधार हैं और इनकी आपूर्ति शृंखला में व्यवधान का खतरा है।
  • उदाहरण: तांबा, लिथियम, निकल, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व आदि वर्तमान में तेज़ी से बढ़ती स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में उपयोग होने वाले महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जिनमें पवन टर्बाइन एवं पावर ग्रिड से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन शामिल हैं। स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी आने के साथ इन खनिजों की मांग भी बढ़ती जाएगी।
  • भारतीय नीति: भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के सहयोग से वर्ष 2016 में भारत के लिये प्रमुख खनिज रणनीति का मसौदा तैयार किया, जिसमें वर्ष 2030 तक भारत की संसाधन आवश्यकताएँ प्रमुख विषय था।
    • इंडियन क्रिटिकल मिनरल्स स्ट्रैटेजी ने 49 खनिजों की पहचान की है जो भविष्य में भारत के आर्थिक विकास के लिये अहम होंगे।

Critical-Minerals

प्रमुख बिंदु:

  • कपल्ड मॉडल अंतर तुलना परियोजना (Coupled Model Intercomparison Project- CMIP) में दो लिथियम और तीन कोबाल्ट परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • ऑस्ट्रेलिया विश्व के कुल लिथियम के लगभग आधा हिस्से का उत्पादन करता है और यह कोबाल्ट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दुर्लभ पृथ्वी तत्त्व का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • दोनों देशों के साझा निवेश का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया में संसाधित आवश्यक खनिजों द्वारा समर्थित नई आपूर्ति शृंखलाओं का निर्माण करना है, जो अपने ऊर्जा संजाल से उत्सर्जन को कम करने तथा इलेक्ट्रिक वाहनों सहित विनिर्माण के केंद्र के रूप में खुद को स्थापित करने के भारत के प्रयासों में मदद करेगा।
  • साथ ही दोनों देश उत्सर्जन में कमी, ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और आवश्यक खनिजों एवं स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिये वैश्विक बाज़ारों का विस्तार करने के लिये समर्पित हैं।

भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापार संबंध अब तक कैसे रहे हैं? 

  • सौहार्दपूर्ण संबंध: भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध हैं जो हाल के वर्षों में परिवर्तनकारी विकास से गुज़रे हैं, ये मैत्रीपूर्ण साझेदारी संबंध सकारात्मक दिशा की तरफ अग्रसर हैं। 
    • यह एक अनूठी साझेदारी है जो संसदीय लोकतंत्रों, राष्ट्रमंडल परंपराओं, आर्थिक जुड़ाव में वृद्धि, लोगों के मध्य लंबे समय से विद्यमान दीर्घकालिक संबंधों और उच्च-स्तरीय वार्ताओं में वृद्धि जैसे साझा मूल्यों द्वारा परिभाषित की गई है। 
  • भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी: इसे जून 2020 में भारत-ऑस्ट्रेलिया नेताओं के आभासी शिखर सम्मेलन के दौरान लॉन्च किया गया था और यह भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के द्विपक्षीय संबंधों की नींव है। 
  • व्यापार साझेदार: माल और सेवाओं दोनों में भारत-ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021 में 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है जिसमें बड़े पैमाने पर कच्चे माल, खनिज एवं मध्यवर्ती सामग्री शामिल हैं। 
  • अन्य: जापान के साथ भारत और ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) में भागीदार हैं, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन में सुधार लाना है।

महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति के बारे में विश्व के देश क्या कर रहे हैं?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2021 में अमेरिका ने महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं में अपनी कमज़ोरियों की समीक्षा का आदेश दिया और पाया कि महत्त्वपूर्ण खनिजों एवं सामग्रियों के लिये विदेशी स्रोतों तथा प्रतिकूल राष्ट्रों पर अत्यधिक निर्भरता ने राष्ट्रीय और आर्थिक सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न किया है।
  • भारत: इसने भारतीय घरेलू बाज़ार में महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के संयुक्त उद्यम KABIL या खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड की स्थापना की है। 
    • यह राष्ट्र की खनिज सुरक्षा सुनिश्चित करता है और आयात प्रतिस्थापन के समग्र उद्देश्य को साकार करने में भी मदद करता है।
  • अन्य देश: अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने अपने प्रमुख खनिज स्रोतों में विविधता लाने की संभावनाओं की पहचान करने में सरकारों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2020 में आवश्यक खनिज भंडार का एक इंटरेक्टिव मानचित्र प्रकाशित किया। प्रमुख खनिजों हेतु आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन को मज़बूत करने एवं आपूर्ति सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहलों को यूनाइटेड किंगडम की प्रमुख खनिज रणनीति में रेखांकित किया गया है। यूनाइटेड किंगडम इस दृष्टिकोण के माध्यम से घरेलू क्षमताओं के विकास में तेज़ी लाएगा। 

निष्कर्ष: 

  • ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच CMIP द्विपक्षीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
  • दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने हेतु मिलकर काम करना चाहिये कि गठबंधन उचित एवं पूर्ण ढंग से लागू हो, साथ ही सहयोगी अनुसंधान एवं विकास के अवसरों की जाँच करे। CMIP के परिणामस्वरूप प्रमुख खनिज उद्योग में बदलाव लाया जा सकता है, जो दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विस्तार तथा विकास में भी मदद करेगा। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे ‘दुर्लभ मृदा धातु’ कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिये गए हैं। 
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया कनाडा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाए जाते हैं। 
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॅानिक सामानों के निर्माण में आवश्यक है, इन तत्त्वों की मांग बढ़ती जा रही है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

ताजा जल की कमी पर बढ़ती चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, केंद्रीय भूजल बोर्ड, राष्ट्रीय जल नीति, 2012, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल शक्ति अभियान- कैच द रेन कैंपेन, अटल भूजल योजना।

मेन्स के लिये:

भारत में ताजा जल की कमी की स्थिति, भारत में जल संसाधनों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्किल ऑफ ब्लू एवं वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) द्वारा जारी एक वैश्विक अध्ययन में 31 देशों के लगभग 30,000 लोगों का सर्वेक्षण कर ताजा जल की कमी की स्थिति का विश्लेषण किया गया।

  • अर्जेंटीना, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, कोलंबिया, जर्मनी और पेरू के लोगों ने पिछले कुछ वर्षों में जल की कमी में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की है। 

प्रमुख बिंदु

  • 30% लोग ताजा जल की कमी के कारण अत्यधिक प्रभावित हैं।
  • 17 देशों में ताजा जल की कमी संबंधी चिंताएँ वर्ष 2014 के 49% से बढ़कर 2022 में 61% हो गई हैं।
  • ग्रामीण (28%) या कस्बों और उपनगरीय क्षेत्रों (26%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (32%) के ताजा जल की कमी से बहुत अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
  • 38% लोगों का कहना है कि वे जलवायु परिवर्तन से व्यक्तिगत रूप से "काफी" प्रभावित हुए हैं।
    • जिन लोगों ने जलवायु परिवर्तन से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित होने का दावा किया, उन्होंने सूखे को इसके सबसे चिंताजनक प्रभाव के रूप में अनुभव किया है।

भारत में ताजा जल की कमी की स्थिति?  

  • परिचय:  
    • भारत में हमेशा से ही ताजा जल का संकट रहा है। हालाँकि भारत में विश्व की जनसंख्या का 16% हिस्सा है, लेकिन देश के पास विश्व के ताजा जल संसाधनों का केवल 4% हिस्सा है।
    • नीति आयोग के अनुसार, बड़ी संख्या में भारतीय अत्यधिक जल संकट का सामना करते हैं।
    • उत्तर भारत, देश का सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है जहाँ वर्ष 2060 तक गंभीर अपरिवर्तनीय ताजा जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण महत्त्वपूर्ण संसाधन की उपलब्धता में कमी आ सकती है।
  • मुद्दे:  
    • जल प्रदूषण में निरंतर वृद्धि: बड़ी मात्रा में घरेलू, औद्योगिक और खनन अपशिष्ट जल निकायों में प्रवाहित किये जाते हैं, जिससे जलजनित बीमारियाँ हो सकती हैं।
      • इसके अलावा जल प्रदूषण से सुपोषण (यूट्रोफिकेशन) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
    • भूजल का अत्यधिक दोहन: केंद्रीय भूजल बोर्ड (2017) के अनुसार, भारत के 700 ज़िलों में से 256 में गंभीर या अतिदोहित भूजल स्तर की सूचना है।
      • कुएँ, तालाब और टैंक सूख रहे हैं क्योंकि अत्यधिक निर्भरता और अस्थिर खपत के कारण भूजल संसाधनों पर दबाब बढ़ रहा है। इससे जल संकट गहरा गया है।
    • संभावित ग्रामीण-शहरी संघर्ष: तीव्र शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहरों का तेज़ी से विस्तार हो रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों से वृहत् स्तर पर प्रवासियों के प्रवासन के कारण शहरों में जल के प्रति व्यक्ति उपयोग में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप जल संकट को दूर करने के लिये ग्रामीण जलाशयों से शहरी क्षेत्रों में पानी स्थानांतरित किया जा रहा है। 
      • शहरी जल स्तर में गिरावट की प्रवृत्ति को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में शहर मीठे पानी की उपलब्धता के लिये बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों पर निर्भर होंगे, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच संघर्ष हो सकता है।

जल प्रबंधन से संबंधित सरकार की पहलें: 

आगे की राह 

  • सतत् भूजल प्रबंधन: भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण और घरेलू स्तर पर वर्षा जल संचयन, सतही जल और भूजल के संयुक्त उपयोग तथा जलाशयों के नियमन के लिये एक उचित तंत्र एवं ग्रामीण-शहरी एकीकृत परियोजनाओं को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • जल संरक्षण क्षेत्र: जल संरक्षण क्षेत्र स्थापित करने और क्षेत्रीय, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर जल निकायों की स्थिति का आकलन करने के लिये प्रभावी जल शासन तथा बेहतर डेटा अनुशासन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • आधुनिक जल प्रबंधन तकनीकों का लाभ उठाना: सूचना प्रौद्योगिकी को जल संबंधी डेटा प्रणालियों से जोड़ा जा सकता है। साथ ही हाल के वर्षों में हुए अनुसंधान और प्रौद्योगिकी सफलताओं से उस जल को उपयोगी बनाना संभव बना दिया है जिसे उपभोग के लिये अनुपयुक्त माना जाता था।
    • सबसे अधिक उपयोग में लाई जाने वाली कुछ तकनीकों में इलेक्ट्रोडायलिसिस रिवर्सल (EDR), डिसैलिनाइज़ेशन, नैनोफिल्ट्रेशन और सौर तथा अल्ट्रा वॉयलेट फिल्ट्रेशन शामिल हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की एक शृंखला का निर्माण किया गया था और संबंद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021)

(a) धौलावीरा
(b) कालीबंगन
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a) 


प्रश्न. वॉटर क्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है। 
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न.1 जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020) 

प्रश्न.2 रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजनीति

फ्लोर टेस्ट के लिये बुलाने की राज्यपाल की शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

फ्लोर टेस्ट, संवैधानिक प्रावधान, राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ 

मेन्स के लिये:

अधिवेशन के लिये बुलाने की राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा है कि राज्यपाल पार्टी सदस्यों के आंतरिक मतभेदों के आधार पर सदन को फ्लोर टेस्ट के लिये नहीं बुला सकता है। 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने एक राजनीतिक दल के दो गुटों के बीच विवाद के मामले की सुनवाई करते हुए विश्वास मत हेतु बुलाने संबंधी राज्यपाल की शक्तियों और भूमिका पर चर्चा की।  

सदन को फ्लोर टेस्ट हेतु राज्यपाल कैसे बुलाता है? 

  • परिचय: 
    • संविधान का अनुच्छेद 174 राज्यपाल को राज्य विधानसभा को आहूत करने, विघटित करने और सत्रावसान करने का अधिकार देता है। 
      • संविधान का अनुच्छेद 174(2)(b) राज्यपाल को सदन की सहायता और परामर्श पर विधानसभा को विघटित करने की शक्ति देता है। हालाँकि राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल तब कर सकता है जब बहुमत पर प्रश्नचिह्न उठने पर किसी मुख्यमंत्री द्वारा परामर्श दिया जाता है।  
    • अनुच्छेद 175(2) के अनुसार, सरकार के पास संख्या बल है या नहीं यह साबित करने के लिये तथा फ्लोर टेस्ट के लिये राज्यपाल सदन को बुला सकता है।
    • हालाँकि, राज्यपाल इस अधिकार का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार कर सकता है, जिसके अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श पर कार्य करता है। 
    • सदन के सत्र में होने पर अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट की घोषणा कर सकता है। हालाँकि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की अवशिष्ट शक्तियों के अनुसार, उसे विधानसभा के सत्र में नहीं होने पर फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने का अधिकार है। 
  • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति: 
    • अनुच्छेद 163(1) मूल रूप से राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को उन स्थितियों तक सीमित करता है जहाँ संविधान स्पष्ट रूप से यह आदेश देता है कि राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिये।
    • मुख्यमंत्री के बहुमत का समर्थन खो देने की स्थिति में अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
    • आमतौर पर मुख्यमंत्री के पक्ष में बहुमत पर संदेह की स्थिति में विपक्ष और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकते हैं।
    • कई मौकों पर न्यायालयों ने यह भी स्पष्ट किया है कि जब सत्ता पक्ष का बहुमत सवालों के घेरे में हो, तो फ्लोर टेस्ट यथाशीघ्र उपलब्ध अवसर पर आयोजित किया जाना चाहिये।

राज्यपाल द्वारा फ्लोर टेस्ट की मांग पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी: 

  • वर्ष 2016 में नबाम रेबिया और बमांग फेलिक्स बनाम उपाध्यक्ष मामले (अरुणाचल प्रदेश विधानसभा) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सदन बुलाने की शक्ति पूरी तरह से राज्यपाल में निहित नहीं है और इसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता तथा सलाह से किया जाना चाहिये, न कि स्वयं ही।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्यपाल एक निर्वाचित अधिकारी नहीं है और केवल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त नामांकित व्यक्ति है, इस तरह के नामांकित व्यक्ति के पास राज्य विधानमंडल के सदन या सदन के लोगों के प्रतिनिधियों पर वीटो शक्ति नहीं हो सकती है।
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और अन्य बनाम स्पीकर, मध्य प्रदेश विधानसभा और अन्य मामले में प्रथम दृष्टया यह विचार आने पर कि सरकार ने अपना बहुमत खो दिया है, फ्लोर टेस्ट के लिये स्पीकर की शक्तियों को बरकरार रखा। 
    • यदि राज्यपाल को उसके पास उपलब्ध स्रोतों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार को सदन का विश्वास प्राप्त है या नहीं, तब ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल को शक्ति परीक्षण का आदेश देने की शक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में मुद्दे को फ्लोर टेस्ट के आधार पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। 

फ्लोर टेस्ट:

  • यह बहुमत के परीक्षण के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। यदि किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ संदेह है, तो उसे सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहा जा सकता है।
  • गठबंधन सरकार के मामले में मुख्यमंत्री को विश्वास मत पेश करने और बहुमत हासिल करने के लिये कहा जा सकता है।
  • स्पष्ट बहुमत के अभाव में जब सरकार बनाने के लिये एक से अधिक व्यक्तिगत हिस्सेदारी की आवशयकता होती है, तो राज्यपाल यह जानने के लिये एक विशेष सत्र बुला सकता है कि सरकार बनाने के लिये किसके पास बहुमत है। 
  • कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या मतदान करने से इनकार कर सकते हैं। अर्थात् आँकड़ों की गणना केवल उन विधायकों के आधार पर की जाती है जो मतदान में उपस्थित हों।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

BCI ने विदेशी वकीलों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी

प्रिलिम्स के लिये:

BCI, सर्वोच्च न्यायालय, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 

मेन्स के लिये:

BCI ने विदेशी वकीलों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भारत में विदेशी वकीलों और विदेशी लॉ फर्मों के पंजीकरण और विनियमन के लिये नियम, 2022 अधिसूचित किये हैं, जो विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को भारत में अभ्यास करने की अनुमति देते हैं। 

  • हालाँकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या अन्य वैधानिक या नियामक प्राधिकरणों के समक्ष पेश होने की अनुमति नहीं दी है। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के निर्णय: 

  • एक दशक से अधिक समय से BCI भारत में विदेशी कानूनी फर्मों को अनुमति देने का विरोध कर रहा था। 
  • अब BCI ने तर्क दिया है कि उसके इस निर्णय से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह से संबंधित चिंताओं का समाधान होगा और भारत अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बन जाएगा।  
  • ये नियम उन विदेशी लॉ फर्मों को कानूनी स्पष्टता प्रदान करते हैं जो वर्तमान में भारत में बहुत सीमित तरीके से कार्य करती हैं। 
  • BCI ने कहा कि वह "इन नियमों को लागू करने के लिये संकल्पित है, ताकि विदेशी वकीलों और विदेशी कानूनी फर्मों को विदेशी कानून एवं विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा भारत में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की कार्यवाही को अच्छी तरह से परिभाषित, विनियमित व नियंत्रित तरीके से पारस्परिकता की अवधारणा पर अभ्यास करने में सक्षम बनाया जा सके।

नए नियम: 

  • अधिसूचना विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को भारत में अभ्यास करने हेतु BCI के साथ पंजीकरण करने की अनुमति देती है यदि वे अपने देश में कानून का अभ्यास करने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि वे भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते।
    • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अनुसार, केवल बार काउंसिल में नामांकित अधिवक्ता भारत में कानून का अभ्यास करने के हकदार हैं। अन्य सभी जैसे कि वादी, केवल न्यायालय प्राधिकारी या उस व्यक्ति की अनुमति से उपस्थित हो सकता है जिसके समक्ष कार्यवाही लंबित है।
  • उन्हें लेन-देन संबंधी कार्य/कॉर्पोरेट कार्य (गैर-मुकदमेबाज़ी अभ्यास) जैसे संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा मामले, अनुबंधों का मसौदा तैयार करना तथा पारस्परिक आधार पर अन्य संबंधित मामलों का अभ्यास करने की अनुमति होगी। 
  • उन्हें अनुसंधान, संपत्ति हस्तांतरण या इसी तरह के अन्य कार्यों से संबंधित किसी भी कार्य में भाग लेने या करने की अनुमति नहीं है।
  • विदेशी कानूनी फर्मों के साथ काम करने वाले भारतीय वकील भी केवल "नॉन-लिटिगियस प्रैक्टिस" में संलग्न होने के समान प्रतिबंध के अधीन होंगे।

नए नियम का महत्त्व? 

  • यह विशेष रूप से सीमा पार विलय और अधिग्रहण (M&A) अभ्यास में कार्य करने वाली फर्मों के लिये संभावित समेकन का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  • वैश्विक संदर्भ में विदेशी विधिक फर्मों का प्रवेश, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य में, भारत की महत्त्वाकांक्षा को अधिक दृश्यमान तथा मूल्यवान बनाने में बड़े पैमाने पर समर्थन करेगा।  
  • वैश्विक संदर्भ में यह मध्यम आकार की फर्मों के लिये एक महत्त्वपूर्ण निर्णय होगा और भारत में विधिक फर्मों को प्रतिभा प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, क्षेत्रीय ज्ञान और प्रबंधन में अधिक दक्षता प्राप्त करने में मदद करेगा। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया:

  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया भारतीय वकीलों को विनियमित और प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत संसद द्वारा बनाई गई एक सांविधिक संस्था है। 
  • यह पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को निर्धारित करके तथा अधिवक्ताओं पर अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके नियामक कार्य करता है। 
  • यह कानूनी शिक्षा के लिये मानक भी निर्धारित करता है और उन विश्वविद्यालयों को मान्यता देता है जिनकी विधि में डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्यता के रूप में काम करती है।   
  • इसके अतिरिक्त यह अधिवक्ताओं के विशेषाधिकारों, अधिकारों और हितों की रक्षा के साथ-साथ उनके लिये कल्याणकारी कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिये धन जुटाकर कुछ प्रतिनिधित्त्व संबंधी कर्त्तव्यों को पूरा करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. सरकारी विधि अधिकारी और विधिक फर्म अधिवक्ताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, किंतु कॉर्पोरेट वकील और पेटेंट न्यायवादी अधिवक्ता की मान्यता से बाहर रखे गये हैं।
  2. विधिज्ञ परिषदों (बार काउंसिल) को विधिक शिक्षा और विधि विश्वविद्यालयों की मान्यता के बारे में नियम अधिकथित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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