इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय राजनीति

BCI ने विदेशी वकीलों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी

  • 16 Mar 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

BCI, सर्वोच्च न्यायालय, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता, अधिवक्ता अधिनियम, 1961 

मेन्स के लिये:

BCI ने विदेशी वकीलों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति दी 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भारत में विदेशी वकीलों और विदेशी लॉ फर्मों के पंजीकरण और विनियमन के लिये नियम, 2022 अधिसूचित किये हैं, जो विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को भारत में अभ्यास करने की अनुमति देते हैं। 

  • हालाँकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने उन्हें न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या अन्य वैधानिक या नियामक प्राधिकरणों के समक्ष पेश होने की अनुमति नहीं दी है। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के निर्णय: 

  • एक दशक से अधिक समय से BCI भारत में विदेशी कानूनी फर्मों को अनुमति देने का विरोध कर रहा था। 
  • अब BCI ने तर्क दिया है कि उसके इस निर्णय से देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह से संबंधित चिंताओं का समाधान होगा और भारत अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बन जाएगा।  
  • ये नियम उन विदेशी लॉ फर्मों को कानूनी स्पष्टता प्रदान करते हैं जो वर्तमान में भारत में बहुत सीमित तरीके से कार्य करती हैं। 
  • BCI ने कहा कि वह "इन नियमों को लागू करने के लिये संकल्पित है, ताकि विदेशी वकीलों और विदेशी कानूनी फर्मों को विदेशी कानून एवं विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा भारत में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की कार्यवाही को अच्छी तरह से परिभाषित, विनियमित व नियंत्रित तरीके से पारस्परिकता की अवधारणा पर अभ्यास करने में सक्षम बनाया जा सके।

नए नियम: 

  • अधिसूचना विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को भारत में अभ्यास करने हेतु BCI के साथ पंजीकरण करने की अनुमति देती है यदि वे अपने देश में कानून का अभ्यास करने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि वे भारतीय कानून का अभ्यास नहीं कर सकते।
    • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अनुसार, केवल बार काउंसिल में नामांकित अधिवक्ता भारत में कानून का अभ्यास करने के हकदार हैं। अन्य सभी जैसे कि वादी, केवल न्यायालय प्राधिकारी या उस व्यक्ति की अनुमति से उपस्थित हो सकता है जिसके समक्ष कार्यवाही लंबित है।
  • उन्हें लेन-देन संबंधी कार्य/कॉर्पोरेट कार्य (गैर-मुकदमेबाज़ी अभ्यास) जैसे संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा मामले, अनुबंधों का मसौदा तैयार करना तथा पारस्परिक आधार पर अन्य संबंधित मामलों का अभ्यास करने की अनुमति होगी। 
  • उन्हें अनुसंधान, संपत्ति हस्तांतरण या इसी तरह के अन्य कार्यों से संबंधित किसी भी कार्य में भाग लेने या करने की अनुमति नहीं है।
  • विदेशी कानूनी फर्मों के साथ काम करने वाले भारतीय वकील भी केवल "नॉन-लिटिगियस प्रैक्टिस" में संलग्न होने के समान प्रतिबंध के अधीन होंगे।

नए नियम का महत्त्व? 

  • यह विशेष रूप से सीमा पार विलय और अधिग्रहण (M&A) अभ्यास में कार्य करने वाली फर्मों के लिये संभावित समेकन का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  • वैश्विक संदर्भ में विदेशी विधिक फर्मों का प्रवेश, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य में, भारत की महत्त्वाकांक्षा को अधिक दृश्यमान तथा मूल्यवान बनाने में बड़े पैमाने पर समर्थन करेगा।  
  • वैश्विक संदर्भ में यह मध्यम आकार की फर्मों के लिये एक महत्त्वपूर्ण निर्णय होगा और भारत में विधिक फर्मों को प्रतिभा प्रबंधन, प्रौद्योगिकी, क्षेत्रीय ज्ञान और प्रबंधन में अधिक दक्षता प्राप्त करने में मदद करेगा। 

बार काउंसिल ऑफ इंडिया:

  • बार काउंसिल ऑफ इंडिया भारतीय वकीलों को विनियमित और प्रतिनिधित्त्व प्रदान करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत संसद द्वारा बनाई गई एक सांविधिक संस्था है। 
  • यह पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों को निर्धारित करके तथा अधिवक्ताओं पर अनुशासनात्मक अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके नियामक कार्य करता है। 
  • यह कानूनी शिक्षा के लिये मानक भी निर्धारित करता है और उन विश्वविद्यालयों को मान्यता देता है जिनकी विधि में डिग्री एक अधिवक्ता के रूप में नामांकन के लिये योग्यता के रूप में काम करती है।   
  • इसके अतिरिक्त यह अधिवक्ताओं के विशेषाधिकारों, अधिकारों और हितों की रक्षा के साथ-साथ उनके लिये कल्याणकारी कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिये धन जुटाकर कुछ प्रतिनिधित्त्व संबंधी कर्त्तव्यों को पूरा करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. सरकारी विधि अधिकारी और विधिक फर्म अधिवक्ताओं के रूप में मान्यता प्राप्त हैं, किंतु कॉर्पोरेट वकील और पेटेंट न्यायवादी अधिवक्ता की मान्यता से बाहर रखे गये हैं।
  2. विधिज्ञ परिषदों (बार काउंसिल) को विधिक शिक्षा और विधि विश्वविद्यालयों की मान्यता के बारे में नियम अधिकथित करने की शक्ति है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow