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डेली न्यूज़

  • 12 Jun, 2025
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

विश्वास-आधारित विनियमन

प्रिलिम्स के लिये:

जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, MSME, केंद्रीय बजट 2025-26, भारतीय वन अधिनियम, 1927, चालान प्रबंधन प्रणाली (IMS), GST, वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR), 73वाँ/74वाँ संशोधन, PARIVESH, MCA21      

मेन्स के लिये:

नियामक निकाय और जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम 2023, भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की आवश्यकता।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

चर्चा में क्यों?

जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम 2023, जो अगस्त 2023 से प्रभावी है, मामूली उल्लंघनों के लिये आपराधिक दंडों को आर्थिक ज़ुर्मानों से प्रतिस्थापित करता है। यह अधिनियम 42 केंद्रीय कानूनों के 183 प्रावधानों का अपराधमुक्तिकरण करता है, जिसका उद्देश्य है- जीवनयापन की सुगमता, व्यवसाय करने में सुविधा और विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।

जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 क्या है?

  • परिचय: यह एक महत्त्वपूर्ण विधायी सुधार है, जिसका उद्देश्य भारत में व्यवसाय करने में सुगमता बढ़ाना और विश्वास-आधारित विनियमन को प्रोत्साहित करना है। यह अधिनियम पर्यावरण, कृषि, कॉरपोरेट मामलों सहित 19 मंत्रालयों से संबंधित कानूनों को शामिल करता है।
    • उदाहरण के लिये, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत होने वाली प्रक्रियात्मक त्रुटियों (procedural lapses) के लिये अब कारावास के स्थान पर आर्थिक दंड का प्रावधान है।
  • उद्देश्य: यह सुधार दंडात्मक व्यवस्था से सुधारात्मक कानूनी तंत्र की ओर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है, जिसमें छोटे और दुर्भावनाहीन उल्लंघनों के लिये कारावास की सज़ा के स्थान पर आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है, जिससे भय तथा उत्पीड़न कम हो जाता है तथा विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये अनुपालन सुगम बनता है।
  • आवश्यकता: कई पुराने प्रावधानों ने कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है, जिससे हाशिये पर रह रहे समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और व्यवसायों पर अभियोजन का भय बढ़ गया है। 
    • एक समान अनुपालन ढाँचे ने MSME पर असमान दबाव डाला, जिससे उच्च लागत के कारण औपचारिकीकरण और विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई। 
    • आर्थिक क्षमता को पूरी तरह से विकसित करने के लिये भारत को औपनिवेशिक युग की भय आधारित कानून व्यवस्था को बदलकर एक विश्वास-आधारित शासन मॉडल की आवश्यकता थी, जो मामूली  उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी में डाल देता था।
  • आगामी कदम: केंद्रीय बजट 2025–26 में जन विश्वास विधेयक 2.0 का प्रस्ताव रखा गया, जिसका उद्देश्य 100 से अधिक प्रावधानों का अपराधमुक्तिकरण करना है तथा विश्वास-आधारित नियामक प्रणाली को और अधिक दृढ़ बनाना है।
  • इसमें राज्यों और नगर पालिकाओं से, जहाँ अधिकांश कारावास संबंधी कानून मौजूद हैं, सुधारों को अपनाने, कानूनी ढाँचे को आधुनिक बनाने तथा कारावास के लिये स्पष्ट मानदंड निर्धारित करने का आग्रह किया गया है।

विश्वास-आधारित विनियामक दृष्टिकोण क्या है?

  • परिचय: यह एक शासन प्रणाली (governance approach) है जिसमें सरकार यह मानती है कि व्यक्ति और व्यवसाय सद्भावना (good faith) के साथ कार्य करेंगे तथा कानून का पालन करेंगे, न कि उन्हें शुरू से ही संभावित अपराधी मानकर व्यवहार किया जाए।
  • दृष्टिकोण: यह मॉडल अनावश्यक कानूनी बोझ को कम करने और स्वैच्छिक अनुपालन (voluntary compliance) को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जबकि गंभीर उल्लंघनों के लिये कठोर दंड बनाए रखता है।
    • यह पुलिसिंग माइंडसेट (मामूली उल्लंघनों के लिये कठोर दंड) से साझेदारी मॉडल (चूक के लिये उचित परिणामों के साथ स्वैच्छिक अनुपालन को प्रोत्साहित करना) की ओर स्थानांतरित हो रहा है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: 
    • छोटे अपराधों का गैर-अपराधीकरण: प्रक्रियागत या तकनीकी उल्लंघनों के लिये कारावास की सज़ा के स्थान पर ज़ुर्माने का प्रावधान।
    • जोखिम-आधारित प्रवर्तन: केवल गंभीर उल्लंघनों (जैसे- धोखाधड़ी, सुरक्षा जोखिम) के लिये सख्त कार्रवाई।
    • सरलीकृत अनुपालन: व्यापार वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये नौकरशाही लालफीताशाही को कम करना।
    • स्व-घोषणा और पारदर्शिता: व्यवसायों/नागरिकों पर केवल उच्च जोखिम वाले मामलों हेतु ऑडिट का अनुपालन करने का विश्वास करना।
    • सरकारी हस्तक्षेप में कमी: अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और वसूली को न्यूनतम करना।

भारत को विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण की आवश्यकता क्यों है?

  • औपनिवेशिक युग के दंडात्मक उपायों को कम करना: भारतीय वन अधिनियम, 1927 जैसे कई औपनिवेशिक काल के कानून नियंत्रण के उद्देश्य से बनाए गए थे, न कि आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये। ये कानून मामूली उल्लंघनों पर भी आपराधिक दंड आरोपित करते थे, जिससे छोटे व्यवसायों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता था।
    • ये कानून भय, उत्पीड़न और रेंट-सीकिंग (लाभ के लिये दबाव बनाने) का वातावरण बनाते हैं, जिसे विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।
  • व्यापार सुगमता: अत्यधिक अनुपालन बोझ उद्यमिता में बाधा डालते हैं, जिसमें 75% से अधिक MSME डिजिटल अनुपालन से जूझ रहे हैं तथा 95% को GST के तहत चालान प्रबंधन प्रणाली (IMS) को अपनाने के लिये अधिक समय और संसाधनों की आवश्यकता है। 
    • यह अधिनियम विनियमों को सरल, व्यवसायों के लिये अनुपालन को आसान तथा कम चुनौतीपूर्ण बनाकर इस समस्या का समाधान करने में मदद करता है ।
  • न्यायपालिका पर बोझ कम करना: भारतीय अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से कई सामान्य उल्लंघनों से संबंधित हैं, जिनके लिये आपराधिक मुकदमे के बजाय ज़ुर्माने से बेहतर समाधान किया जा सकता है।
    • मध्यस्थता, मध्यस्थता और सुलह जैसे तंत्र मुकदमेबाज़ी को आसान बना सकते हैं तथा अदालतों को अधिक महत्त्वपूर्ण मामलों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दे सकते हैं।
  • भ्रष्टाचार और उत्पीड़न में कमी: प्रक्रियागत चूक के लिये कारावास की धमकी से भ्रष्ट अधिकारियों को लाभ कमाने में मदद मिलती है, जबकि अनिवार्य सत्यापन, निरीक्षण और अनावश्यक डेटा अनुरोधों से संसाधनों की बर्बादी होती है, विश्वास आधारित प्रणाली में बदलाव से नौकरशाही में कमी आ सकती है साथ ही उत्पादक उपयोग के लिये संसाधनों को मुक्त किया जा सकता है।
  • आर्थिक विकास: अनजाने में नियमों का पालन न करने से आपराधिक आरोपों का डर छोटे व्यवसायों के विस्तार में बाधक बनता है, लेकिन मध्य प्रदेश, केरल और हरियाणा जैसे राज्यों ने ऐसे सुधारों को अपनाया है जो क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देते हैं। 
    • इस पर निर्माण करते हुए, जन विश्वास 2.0 (बजट 2025-26) में 100 से अधिक प्रावधानों को गैर-अपराधीकरण करने, अनुपालन को और आसान बनाने तथा व्यापार-अनुकूल शासन का समर्थन करने की योजना है।
  • विकसित भारत 2047 विज़न के साथ संतुलन: भारत का अमृत काल विज़न न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन को बढ़ावा देता है, जिससे नागरिकों और व्यवसायों को न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके। एक विश्वास-आधारित प्रणाली परिणाम-आधारित शासन को प्राथमिकता देती है, नवाचार एवं निवेश को प्रोत्साहित करती है। 

भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की दिशा में बदलाव में कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • शासन में औपनिवेशिक अविश्वास की विरासत: भारत की औपनिवेशिक विरासत में शक और प्रक्रियात्मक नौकरशाही का वर्चस्व रहा है, जिससे अत्यधिक निगरानी, लालफीताशाही तथा अविश्वास की संस्कृति बनी रहती है। यह प्रणाली नियंत्रण पर केंद्रित रहती है, जिससे नियमों के अनुपालन और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने वाली विश्वास-आधारित विनियमन प्रणाली की ओर स्थानांतरित होना कठिन हो जाता है।
  • विनियामक ढाँचा में दोहराव: भारत में कुल 1,536 कानून और 69,233 अनुपालनीय (compliances) हैं, जिनमें से कई या तो अप्रासंगिक हो चुकी हैं या एक-दूसरे के साथ विरोधाभासी हैं। केंद्र सरकार द्वारा जन विश्वास अधिनियम जैसे उपायों से कानूनों का अपराधीकरण कम किया जा रहा है, लेकिन राज्य स्तरीय कठोर विनियम भ्रम उत्पन्न करते हैं और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर असमान रूप से भार डालते हैं।
  • विकेंद्रीकरण और स्वायत्तता का प्रतिरोध: 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के बावजूद, स्थानीय सरकारों को वास्तविक स्वायत्तता प्राप्त नहीं है क्योंकि व्यवस्था अब भी ऊपर से नीचे तक नियंत्रण आधारित है। अधिकारी जोखिम-आधारित प्रवर्तन के बजाय ऑडिट और दंड को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अविश्वास की भावना बनी रहती है।
  • विश्वास मेट्रिक्स का अभाव: भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की ओर बढ़ते समय एक प्रमुख चुनौती यह है कि विश्वास को वित्तीय या सेवा संकेतकों की भाँति प्रायः मापा नहीं जाता, जिससे नीतियों के प्रभाव का आकलन करना कठिन हो जाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, ई-बिल प्रणाली और परिवेश जैसी पहलों के क्रियान्वयन में मौजूद खामियों के कारण देरी होती है, जिससे विश्वास-आधारित शासन ढाँचा बनाने के प्रयास कमज़ोर पड़ते हैं।

भारत में विश्वास-आधारित विनियमन को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है?

  • 'एक राष्ट्र, एक व्यवसाय' पहचान प्रणाली: एकीकृत 'एक राष्ट्र, एक व्यवसाय' पहचान प्रणाली को अपनाने से प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सकता है, जबकि डिजी लॉकर जैसे उपकरणों का उपयोग करते हुए डिजिटल-प्रथम दृष्टिकोण अपनाने से अनुमोदन में लगने वाले समय में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
    • डिजी यात्रा और FSSAI के पूर्वानुमेय नियामकीय अद्यतनों जैसी पहलों से प्राप्त शिक्षाएँ विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों का मार्गदर्शन करने में सहायक हो सकती हैं।
  • कानूनों का सामंजस्यकरण: जन विश्वास 2.0 को 100 से अधिक प्रावधानों के गैर-अपराधीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करना चाहिये, विशेषकर राज्य स्तरीय कानूनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जिनमें 80% कारावास संबंधी प्रावधान निहित हैं।ज़ुर्माने लागू किये जाने चाहिये।
  • जोखिम-आधारित प्रवर्तन का संस्थानीकरण: अनुपालन भार का मूल्यांकन करने और दंड को वास्तविक क्षति के अनुरूप बनाने हेतु विनियामक प्रभाव आकलन (RIA) को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
    • सामूहिक निरीक्षणों के स्थान पर लक्षित ऑडिट के लिये AI-आधारित उपकरणों का उपयोग किया जाए और कारावास के लिये स्पष्ट मानदंड निर्धारित किये जाएँ, जिससे इसे केवल गंभीर अपराधों जैसे- धोखाधड़ी या सार्वजनिक सुरक्षा जोखिमों तक सीमित रखा जा सके।
  • पारदर्शिता बढ़ाना और विवेकाधिकार कम करना: MCA21 जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का विस्तार करते हुए ब्लॉकचेन प्रमाणीकरण को शामिल किया जाए ताकि कागज़ रहित अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
    • भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखबिरों की सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाए और निरीक्षण एवं दंड प्रक्रिया में वास्तविक समय की पारदर्शिता हेतु सार्वजनिक डैशबोर्ड का उपयोग किया जाए।
  • विश्वास एवं परिणामों का आकलन: सुधारों के प्रभाव का मूल्यांकन करने हेतु अनुपालन सुगमता स्कोर और नागरिक प्रतिक्रिया जैसे मापदंड विकसित किये जाएँ। फिनटेक जैसे क्षेत्रों में पायलट कार्यक्रम प्रारंभ किये जाएँ और नीतियों को परिष्कृत करने के लिये नियमित उद्योग-नियामक संवाद हेतु हितधारक परिषदों की स्थापना की जाए।

निष्कर्ष

जन विश्वास अधिनियम, 2023 छोटे उल्लंघनों को अपराधमुक्त कर और विनियामक भार को कम कर विश्वास-आधारित शासन की दिशा में एक प्रगतिशील परिवर्तन का संकेत देता है। इसके पूर्ण लाभ को प्राप्त करने हेतु भारत को कानूनों को सरल बनाना, स्थानीय निकायों को सशक्त करना, डिजिटल उपकरणों को अपनाना और संस्थागत विश्वास का निर्माण करना होगा — जिससे विकासोन्मुखी, नागरिक-केंद्रित तथा कुशल शासन सुनिश्चित हो सके जो विकसित भारत 2047 के लक्ष्य के अनुरूप हो।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: "विकसित समाज की एक प्रमुख विशेषता है सरकार का अपने नागरिकों और संस्थाओं पर विश्वास।" इस संदर्भ में भारत में विश्वास-आधारित शासन की ओर हो रहे परिवर्तन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012)

राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रो की स्थापना

'एकल खिड़की मंज़ूरी' (सिंगल: विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना

प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. राष्ट्रपति द्वारा हाल में प्रख्यापित अध्यादेश के द्वारा माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में क्या प्रमुख परिवर्तन किये गए हैं? यह भारत के विवाद समाधान यांत्रिकत्व को किस सीमा तक सुधारेगा? चर्चा कीजिये। (2015)


सामाजिक न्याय

कृषि में महिलाओं की भूमिका को सुदृढ़ करना

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP), DAY-NRLM, UN FAO, पुनर्योजी कृषि, कृषि वानिकी, कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM), नमो ड्रोन दीदी पहल 

मेन्स के लिये:

कृषि में महिलाओं की भूमिका, महिला किसानों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने वर्ष 2026 को "अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष" घोषित किया है, जिससे वैश्विक कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण किंतु प्रायः उपेक्षित भूमिका को मान्यता दी गई है।

  • महिलाएँ वैश्विक खाद्य आपूर्ति का लगभग आधे हिस्से तक का योगदान देती हैं। विकासशील देशों में वे 60% से 80% तक खाद्य उत्पादन में भाग लेती हैं और दक्षिण एशिया में कृषि श्रमिक बल में उनका 39% हिस्सा हैं।

भारतीय कृषि में महिलाओं की स्थिति क्या है?

  • उच्च भागीदारी दर: लगभग 80% ग्रामीण महिलाएँ कृषि में संलग्न हैं, जिनमें 3.6 करोड़ महिला किसान और 6.15 करोड़ महिला कृषि मज़दूर हैं (जनगणना 2011)। 
    • ये कृषि श्रम शक्ति का 33% और स्वरोज़गार वाले किसानों का 48% हिस्सा हैं। 
    • पुरुषों के बढ़ते प्रवास के कारण, महिलाएँ भी स्वतंत्र रूप से कृषि की ज़िम्मेदारी स्वतंत्र रूप से सँभालने लगी हैं, जिससे भारतीय कृषि में स्त्रीकरण की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • सामुदायिक प्रबंधन: महिलाएँ कृषि विस्तार, सूचना प्रसार और समुदाय-आधारित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन हेतु प्रमुख सुविधाकर्ता के रूप में कार्य करती हैं।

Women_Contribution_to_Agriculture Factors_Affecting_Women's _Agricultural_Participation

कृषि में महिलाओं के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • लैंगिक आय में स्वामित्व वाली भूमि: कृषि कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होने के बावजूद, महिलाओं के पास केवल 14% कृषि भूमि है, जो NFHS-5 के अनुसार केवल 8.3% है। इस प्रकार ऋण, ग्रेड, वर्गीकरण और विस्तार सेवाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है, जिससे उनके सिद्धांत व निर्णय लेने की शक्ति पर विचार होता है।
  • उद्यमिता, स्टार्टअप और कौशल में बाधाएँ: महिला किसानों को ऋण, वित्तीय सेवाओं और आधुनिक प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्नत कृषि तकनीकों में निवेश करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • इसके अतिरिक्त, औपचारिक शिक्षा, वित्तीय संस्थान और तकनीकी कौशल के निम्न स्तर के नवाचारों को अभ्यास या कृषि उद्यमों को बढ़ाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है। इससे आधुनिक और कुशल कृषि तकनीकों का अभ्यास की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
  • अत्यधिक कार्यभार एवं उपेक्षित योगदान: महिलाएँ एक साथ खेती की ज़िम्मेदारियाँ, घरेलू कामकाज और बच्चों की देखभाल करती हैं, जिससे उन्हें शारीरिक थकावट एवं समय की कमी का सामना करना पड़ता है। पशुपालन, बीज संरक्षण और खाद्य प्रसंस्करण जैसे कार्यों में उनका योगदान अक्सर बिना पारिश्रमिक के और बिना मान्यता के रह जाता है।
  • बाज़ार से बहिष्करण: सीमित गतिशीलता, परिवहन की कमी और बाज़ार स्थानों में लैंगिक-आधारित भेदभाव के कारण महिलाएँ उचित बाज़ारों तथा लाभकारी मूल्यों तक पहुँच नहीं बना पातीं। सूचनात्मक असमानता (information asymmetry) भी उन्हें मूल्य शृंखलाओं (value chains) से और भी अधिक हाशिये पर बाँटती है।
  • जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न असुरक्षाएँ: जलवायु परिवर्तन महिला किसानों की मौजूदा चुनौतियों को और गंभीर बना देता है, क्योंकि इससे बाढ़ एवं सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति तथा तीव्रता बढ़ जाती है। इसके साथ ही यह उनके घरेलू उत्तरदायित्वों को भी बढ़ा देता है, जिससे खेती के लिये उनका समय व संसाधन और अधिक सीमित हो जाते हैं।

भारत में कृषि क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु क्या पहल है?

  • महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना (MKSP) और कृषि मशीनीकरण उप-मिशन (SMAM): MKSP और SMAM पहलें महिला किसानों के कौशल को बढ़ाने पर केंद्रित हैं तथा कृषि मशीनरी की खरीद के लिये अनुदान प्रदान करती हैं, जिससे वे उत्पादकता में सुधार कर सकें एवं शारीरिक श्रम को कम किया जा सके।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): NFSM विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिला किसानों को सहायता प्रदान करने के लिये अपने बजट का 30% हिस्सा आवंटित करता है, जिसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा में सुधार करना तथा कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना है।
  • नवोन्मेषी परियोजनाएँ और पहलें:
    • नगाँव ज़िले में ENACT परियोजना: इस परियोजना के माध्यम से महिला किसानों को प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि एवं जलवायु विशेषज्ञों से जोड़ा जाता है। ENACT परियोजना साप्ताहिक सलाह प्रदान करती है, जिससे उन्हें महत्त्वपूर्ण कृषि ज्ञान और बदलते मौसम के अनुसार रणनीतियाँ अपनाने में सहायता मिलती है।
    • बाढ़-प्रतिरोधी फसलों और बाज़ार संपर्क को बढ़ावा: बाढ़-प्रतिरोधी धान की किस्मों को बढ़ावा देने और आजीविका के स्रोतों में विविधता लाने जैसी पहलों से प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलती है। साथ ही, बाज़ार संपर्कों को सुधारने से महिला किसानों को अपनी उपज के लिये बेहतर बाज़ारों तक पहुँच सुनिश्चित होती है।
  • अन्य पहलें:
    • स्वयं सहायता समूह (SHG) और माइक्रोफाइनेंस महिलाओं के सामूहिक कार्य एवं ग्रामीण एच वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हैं।
    • लखपति दीदी योजना स्वयं सहायता क्लिनिक और ग्रामीण महिला उद्यमियों के लिये उद्यम, ऋण पहुँच एवं वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती है।
    • नमो ड्रोन दीदी पहल (2024-26) के लक्ष्य कृषि व्यवसायियों के लिये 15,000 महिला स्वयं सहायता निवासियों को प्रस्ताव देना है।
    • सूक्ष्म और औद्योगिक खेती पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, जिसमें पर ड्रॉप मोर क्रॉप एवं मौसम आधारित क्षेत्र विकास (RAD) के तहत छोटे और प्रशिक्षित किसानों के लिये 50% निर्धारित किया जाएगा, जिसमें महिलाओं के लिये 30% शामिल होगा।
    • महिला किसान योजना अनुसूचित जाति की महिलाओं को कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों में स्वरोज़गार हेतु ऋण प्रदान करती है। 
    • राष्ट्रीय महिला किसान दिवस प्रतिवर्ष 15 अक्तूबर को मनाया जाता है, ताकि कृषि में महिला किसानों के अमूल्य योगदान को मान्यता दी जा सके और उनके प्रयासों की सराहना की जा सके।

कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  • अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष (2026) का लाभ उठाना: इस वैश्विक मान्यता का उपयोग कृषि में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने, जागरूकता का प्रसार करने तथा महिला किसानों के लिये सहायक नीतियों और संस्थानों को सुदृढ़ करने के लिये किया जाए।
  • लैंगिक केंद्रित नीतियों का निर्माण करना: कृषि संबंधी नीतियों का निर्माण लैंगिक-आधारित आँकड़ों के आधार पर किया जाए ताकि महिलाओं द्वारा कृषि क्षेत्र में सामना की जाने वाली विशिष्ट आवश्यकताओं और चुनौतियों का प्रभावी समाधान किया जा सके।
  • संसाधनों तक पहुँच और सामूहिक कार्रवाई को सुदृढ़ करना: महिलाओं की ऋण, प्रौद्योगिकी और जानकारी तक सुलभता को बढ़ाया जाए तथा महिला नेतृत्व वाले स्वयं सहायता समूहों (SHG) को समर्थन दिया जाए ताकि कृषि में उनकी भागीदारी, सौदेबाज़ी शक्ति तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि हो सके।

निष्कर्ष 

वर्ष 2026 को अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष घोषित किया जाना कृषि क्षेत्र में प्रणालीगत सुधारों को गति देने का एक अवसर है। महिला किसान केवल लाभार्थी नहीं हैं; वे खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण समृद्धि और जलवायु अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिये परिवर्तन की संवाहक हैं। उनके सामर्थ्य को पूरी तरह विकसित करने के लिये अधिकार-आधारित, समावेशी तथा जलवायु-अनुकूलित कृषि नीतियों की आवश्यकता है, जो समानता और सशक्तीकरण के सिद्धांतों पर आधारित हों।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: महिला किसान खाद्य सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन नीतियों और आँकड़ों में उनकी उपेक्षा बनी रहती है। भारतीय कृषि में इस लैंगिक अंतर को पाटने के लिये नीति संबंधी उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय कृषि में परिस्थितियों के संदर्भ में, "संरक्षण कृषि" की संकल्पना का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन से संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)

  1. एकधान्य कृषि पद्धतियों का परिहार
  2. न्यूनतम जोत को अपनाना
  3. बागानी फसलों की खेती का परिहार
  4. मृदा धरातल को ढकने के लिये फसल अवशिष्ट का उपयोग 
  5. स्थानिक एवं कालिक फसल अनुक्रमण/फसल आवर्तनों को अपनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1,3 और 4
(b) 2, 3, 4 और 5
(c) 2,4 और 5
(d) 1.2, 3 और 5

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'जलवायु-अनुकूली कृषि के लिये वैश्विक सहबंध' (ग्लोबल एलायन्स फॉर क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) (GACSA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2018)

  1. GACSA, 2015 में पेरिस में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन का एक परिणाम है।
  2. GACSA में सदस्यता से कोई बंधनकारी दायित्व उत्पन्न नहीं होता।
  3. GACSA के निर्माण में भारत की साधक भूमिका थी।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ऐसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिये, जो भारत में कृषि के बढ़ते हुए नारीकरण को प्रेरित कर रहे हैं। (2014)


मुख्य परीक्षा

UNFPA विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2025

स्रोत: TH1, TH2

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने अपनी विश्व जनसंख्या की स्थिति (SOWP) 2025 रिपोर्ट "The Real Fertility Crisis अर्थात् वास्तविक प्रजनन संकट" शीर्षक से जारी की है। यह भारत को विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बताता है और प्रजनन क्षमता, उम्र बढ़ने एवं प्रजनन स्वायत्तता में महत्त्वपूर्ण बदलावों को उजागर करता है, जनसंख्या में गिरावट के डर के बजाय लोगों के अधूरे प्रजनन लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह करता है।

भारत से संबंधित UNFPA रिपोर्ट 2025 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • जनसंख्या का आकार एवं अनुमान: अप्रैल 2025 में भारत की जनसंख्या 146.39 करोड़ होने का अनुमान है, जो विश्व में सबसे ज़्यादा है। 2060 के दशक की शुरुआत में इसके 170 करोड़ तक पहुँचने की संभावना है, फिर धीरे-धीरे इसमें कमी आएगी। 
    • पुरुषों के लिये जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष तथा महिलाओं के लिये 74 वर्ष अनुमानित है।
  • प्रजनन दर के रुझान और अंतराल: भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे, 1.9 तक गिर गई है। 
  • नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) 2021 के अनुसार, TFR 2.0 थी, जो राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धि दर्शाती है। 
    • हालाँकि बिहार (3.0), मेघालय (2.9) और उत्तर प्रदेश (2.7) जैसे राज्यों में अभी भी उच्च TFR है। 31 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्रतिस्थापन स्तर से नीचे हैं, जबकि 7 राज्यों में शहरी-ग्रामीण अंतर है।
    • भारत का प्रजनन विभाजन क्षेत्रीय असमानता को दर्शाता है, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, विकास और लैंगिक मानदंडों में अंतर के कारण बिहार, उत्तर प्रदेश तथा झारखंड जैसे उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्य केरल, दिल्ली एवं तमिलनाडु जैसे कम प्रजनन क्षमता वाले राज्यों के विपरीत हैं।

  • युवा एवं कामकाजी आयु वर्ग की जनसांख्यिकी: भारत में सुदृढ़ जनसांख्यिकी लाभ है, इसकी 68% जनसंख्या कामकाजी आयु वर्ग (15-64) में है। 0-14 वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या 24% है, जबकि 26% 10-24 आयु वर्ग में हैं। 
    • वरिष्ठ नागरिक (65 वर्ष और उससे अधिक आयु के) जनसंख्या का 7% हिस्सा हैं।
  • प्रजनन स्वायत्तता में बाधाएँ: भारत में प्रजनन संबंधी विकल्प वित्तीय (40%), आवास (22%), रोज़गार (21%) और बाल देखभाल (18%) जैसी सीमाओं से प्रभावित होते हैं। इसके अतिरिक्त, बाँझपन (13%) एवं मातृ देखभाल की खराब स्थिति (14%) जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी इन विकल्पों को बाधित करती हैं।
    • सामाजिक दबाव (19%) तथा जलवायु, राजनीति और अर्थव्यवस्था को लेकर बढ़ती चिंता भी निर्णयों को प्रभावित करती है।
  • भारत के लिये नीति सुझाव: यह रिपोर्ट भारत से जनसंख्या नियंत्रण के बजाय प्रजनन अधिकारों को प्राथमिकता देने का आग्रह करती है। इसके लिये गर्भनिरोधकों, मातृ एवं बाँझपन देखभाल तथा सुरक्षित गर्भपात की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने की सिफारिश की गई है।
    • यह रिपोर्ट आवास, बाल देखभाल और रोज़गार असुरक्षा जैसी संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने, अविवाहित, LGBTQIA+ एवं हाशिये पर रहने वाले समूहों तक सेवाओं का विस्तार करने, अपूर्ण आवश्यकताओं पर बेहतर डेटा एकत्रित करने तथा सामुदायिक पहलों के माध्यम से लैंगिक समानता और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने की सिफारिश करती है।

भारत के लिये प्रमुख जनसांख्यिकीय आँकड़े क्या हैं?

सूचक

मूल्य/अनुमान

मध्य आयु

भारत की जनसंख्या की औसत आयु 28.2 वर्ष है (विश्व जनसंख्या परिप्रेक्ष्य)।

कार्यशील आयु जनसंख्या (15-64 वर्ष)

भारत की लगभग 68% जनसंख्या, जो लगभग 961 मिलियन है, कार्यशील आयु वर्ग में आती है।

साक्षरता दर 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण वर्ष 2019–21 (NFHS-5) के अनुसार, वयस्क पुरुषों और महिलाओं (15–49 वर्ष) की साक्षरता दर क्रमशः 87.4% और 71.5% है।

श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)

15 वर्ष और उससे अधिक आयु की जनसंख्या में पुरुषों का LFPR 78.8% है, जबकि महिलाओं का LFPR 41.7% है। भारत का कुल LFPR 60.1% है।

कुल साक्षरता दर (आयु 15+)

15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की कुल साक्षरता दर 77.7% है (NSO, 2021)।

निर्भरता अनुपात

निर्भरता अनुपात 47% है, अर्थात् हर 100 कार्यशील आयु वाले व्यक्तियों पर 47 आश्रित हैं।

जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में जनसंख्या

भारत की 80% से अधिक जनसंख्या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में निवास करती है।

NCD और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रचलन

20% से अधिक जनसंख्या गैर-संचारी रोगों (NCD) से पीड़ित है और लगभग 15% जनसंख्या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रही है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष क्या है?

  • परिचय: UNFPA संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक सहायक संस्था है और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • यह 150 से अधिक देशों में कार्य करता है, जो वैश्विक जनसंख्या के लगभग 80% हिस्से को कवर करता है।
  • स्थापना: वर्ष 1969 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधि कोष के रूप में प्रारंभ हुआ, जिसे वर्ष 1987 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नाम दिया गया (हालाँकि UNFPA संक्षिप्त नाम यथावत रखा गया)।
    • यह ICPD कार्यक्रम कार्य योजना (1994, काहिरा) तथा वर्ष 2019 नैरोबी वक्तव्य द्वारा निर्देशित है, जो महिलाओं के सशक्तीकरण और प्रजनन अधिकारों पर केंद्रित है।
  • उद्देश्य: UN विशेषज्ञ का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक गर्भावस्था वांछित हो, प्रत्येक प्रसव सुरक्षित हो तथा प्रत्येक युवा की क्षमता का पूर्ण उपयोग हो।
  • संरचना: UNFPA संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा निर्देशित है UNDP/ UNFPA कार्यकारी बोर्ड (36 सदस्य) रिपोर्ट करते हैं तथा  WHO, UNICEF, UNDP और UNAIDS के साथ सहयोग करते हैं।
  • वित्तपोषण: UNFPA को संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट से वित्तपोषित नहीं किया जाता है। इसे पूरी तरह से सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज के स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से समर्थन दिया जाता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न.1 किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उसकी सामाजिक पूंजी का हिस्सा माना जाएगा? (2019)

(a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात
(b) इसकी इमारतों, अन्य बुनियादी ढांँचों और मशीनों का स्टॉक
(c) कामकाजी आयु-वर्ग में जनसंख्या का आकार
(d) समाज में आपसी विश्वास और सद्भाव का स्तर

उत्तर: (d)


प्रश्न. 2 भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। यह किस कारण है? (2011)

(a) 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(b) 15-64 वर्ष के आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(c) 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
(d) इसकी उच्च कुल जनसंख्या

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016)

प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएंगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)


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