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डेली न्यूज़

  • 07 Dec, 2024
  • 64 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

चीन प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने में भारत का पिछड़ना

प्रिलिम्स के लिये:

चीन प्लस वन रणनीति, PLI (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन), मुद्रास्फीति, GDP, भारत के व्यापार समझौते, GST, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

मेन्स के लिये:

चीन प्लस वन रणनीति का लाभ उठाने में भारत के लिये अवसर और चुनौतियाँ, भारत द्वारा उठाए गए कदम उसे चीन के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी नीति आयोग की ट्रेड वॉच रिपोर्ट में अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष और 'चीन प्लस वन' रणनीति के आलोक में भारत की व्यापार संभावनाओं, चुनौतियों और विकास क्षमता पर प्रकाश डाला गया है।

  • इसमें कहा गया है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने और जोखिम कम करने के लिये अपनाई गई 'चीन प्लस वन' रणनीति का लाभ उठाने में भारत को "अभी तक सीमित सफलता" मिली है।

चीन प्लस वन रणनीति में भारत को "सीमित सफलता" क्यों मिली है?

  • प्रतिस्पर्द्धात्मक नुकसान और नियामक चुनौतियाँ: 
    • इसके अतिरिक्त, भ्रष्टाचार के कारण निवेशकों का विश्वास कम हुआ है, लेन-देन की लागत बढ़ी है, तथा भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों के बावजूद, निवेश गंतव्य के रूप में भारत की अपील कम हुई है।
    • वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे देशों ने चीन से दूर जाने की चाहत रखने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिये  सस्ते श्रम, सरल कर कानूनों और कम टैरिफ का लाभ उठाया है।
    • भारत के जटिल नियम, नौकरशाही बाधाएँ, असंगत नीतियाँ और उच्च श्रम लागत निवेश को बाधित करते हैं, तथा धीमा प्रशासन एवं अप्रत्याशित सुधार व्यवसाय प्रतिस्पर्द्धा को कम करते हैं।
  • मुक्त व्यापार समझौते (FTA): 
    • वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे दक्षिण एशियाई देश मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर हस्ताक्षर करने में अधिक सक्रिय रहे हैं, जिससे उन्हें अपने निर्यात हिस्सेदारी का विस्तार करने में मदद मिली है। 
    • FTA पर बातचीत करने और उसे अंतिम रूप देने में भारत की धीमी गति ने उसे नुकसान पहुँचाया है।
  • भू-राजनीतिक तनाव और सीमित बाज़ार हिस्सेदारी:
    • वैश्विक व्यापार में भारत की सीमित हिस्सेदारी (वैश्विक व्यापार के 70% में 1% से भी कम) अप्रयुक्त क्षमता को उज़ागर करती है। 
    • जबकि भू-राजनीतिक तनाव, जैसे कि अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष, भारत को एक तटस्थ विकल्प के रूप में उभरने के अवसर प्रदान करते हैं, वे अनिश्चितता भी पैदा करते हैं, व्यापार रणनीतियों को जटिल बनाते हैं और बाज़ार विस्तार में बाधा डालते हैं।
  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान:
    • चीन पर अमेरिकी निर्यात नियंत्रण और टैरिफ ने आपूर्ति शृंखलाओं को खंडित कर दिया है, जिससे भारत को अवसर मिला है। हालाँकि, निम्न बुनियादी ढाँचे, अकुशल बंदरगाहों और उच्च रसद लागतों ने भारत की विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को सीमित कर दिया है।
  • कार्बन टैक्स जोखिम और भूमि अधिग्रहण के मुद्दे:
    • यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (CBAM) के कारण भारत के लौह और इस्पात निर्यात की लागत बढ़ने तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम होने का खतरा है। 
    • इसके अतिरिक्त, भारत की जटिल कर व्यवस्था और धीमी भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया से व्यवसाय लागत बढ़ती है, औद्योगिक परियोजनाओं में देरी होती है और विकास में बाधा आती है।

'चाइना प्लस वन' रणनीति क्या है?

  • परिचय: 
    • चाइना प्लस वन (अथवा चाइना+1) रणनीति से तात्पर्य उन वैश्विक प्रवृत्ति से है जिसमें कम्पनियाँ चीन से बाहर के देशों में परिचालन स्थापित करके अपनी विनिर्माण एवं आपूर्ति शृंखला में विविधता ला रही हैं। 
    • इस रणनीति का उद्देश्य किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से उत्पन्न होने वाले जोखिम को कम करना है, जो विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनाव और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के कारण हो सकता है।
  • चाइना प्लस वन रणनीति की पृष्ठभूमि:
    • चीन "विश्व कारखाना":
      • दशकों से चीन वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं का केंद्र रहा है तथा अपने अनुकूल उत्पादन कारकों और सुदृढ़ व्यापारिक पारिस्थितिकी तंत्र के कारण इसे "विश्व का कारखाना" कहा जाता है। 
      • 1990 के दशक में, अमेरिका और यूरोप की कंपनियों ने अल्प विनिर्माण लागत और इसके व्यापक घरेलू बाज़ार पहुँच के कारण अपना उत्पादन चीन में स्थानांतरित किया था।
    • महामारी के दौरान व्यवधान:
      • हालाँकि, चीन की शून्य-कोविड नीति के कारण औद्योगिक लॉकडाउन, आपूर्ति शृंखला में अस्थिरता और कंटेनर की कमी के हुई जिसके परिणामस्वरूप कोविड-19 महामारी के दौरान गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुए। 
  • चाइना प्लस वन रणनीति का क्रमिक विकास:
    • चीन की शून्य-कोविड नीति, आपूर्ति शृंखला व्यवधान, उच्च माल ढुलाई दर और लंबी लीड टाइम सहित कई कारकों के संयोजन से अनेक वैश्विक कंपनियाँ "चाइना-प्लस-वन" रणनीति अपनाने के लिये प्रेरित हुईं। 
    • इसमें चीन पर निर्भरता कम करने के लिये विनिर्माण को भारत, वियतनाम, थाईलैंड, बांग्लादेश और मलेशिया जैसे अन्य वैकल्पिक देशों में स्थानांतरित किया जाना शामिल है।

चाइना प्लस वन रणनीति के अंतर्गत भारत के लिये प्रमुख विकास चालक क्या हैं?

  • विशाल घरेलू बाज़ार और जनसांख्यिकीय लाभ:
    • युवा जनसांख्यिकी और आय में उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ भारत की 1.3 बिलियन जनसंख्या, एक व्यापक वृद्धिशील उपभोक्ता आधार और एक सुदृढ़ कार्यबल प्रदान करती है। 
    • वर्ष 2024-25 में भारत की वास्तविक GDP में 6.5-7% की वृद्धि के अनुमान और लगभग आधी जनसंख्या 30 वर्ष से अल्प आयु होने के साथ भारत सतत् आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है, जो इसे वैश्विक व्यापार के प्रमुख चालक एवं एक आकर्षक निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करेगा।
  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बुनियादी ढाँचे का लाभ:
    • चीन की अपेक्षा विनिर्माण पारिश्रमिक 47% कम होने के साथ भारत के उत्पादन क्षेत्र को वियतनाम जैसे अन्य प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में अल्प श्रम और पूंजीगत लागत का लाभ प्राप्त होता है। 
    • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) जैसी सरकार की अवसंरचना पहलों का उद्देश्य विनिर्माण लागत को कम करना और लॉजिस्टिक्स में 20% सुधार करना है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
  • व्यावसायिक परिवेश और नीतिगत पहल:
    • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, कर में परिवर्तन और FDI मानदंडों में छूट सहित हाल के सुधारों से भारत के व्यावसायिक परिवेश में सुधार हुआ है।
    • मेक इन इंडिया पहल और सरलीकृत व्यापार प्रक्रियाएं वैश्विक कंपनियों के लिये प्रोत्साहन के माध्यम से विदेशी निवेश को और अधिक आकर्षित करती हैं।
  • रणनीतिक आर्थिक साझेदारियाँ:
    • भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) जैसी रणनीतिक साझेदारियों पर भारत का ध्यान इसकी वैश्विक व्यापार स्थिति को बढ़ाता है। इन समझौतों से पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार में 200% की वृद्धि होने का अनुमान है, जिससे नए बाज़ार स्थापित होंगे और किसी एक विशेष अर्थव्यवस्था पर निर्भरता कम होगी
  • गतिशील कूटनीति और वैश्विक प्रभाव:
    • क्वाड, I2U2, G20 और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों में भारत की सक्रिय भूमिका उसके कूटनीतिक तथा आर्थिक संबंधों को मज़बूत करती है। वैश्विक चर्चाओं का नेतृत्व करके, भारत व्यापार प्रवृत्तियों को प्रभावित करता है, निवेश आकर्षित करता है और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा वित्तीय सहयोग को सुगम बनाता है।

चीन प्लस वन रणनीति के तहत संभावित भारतीय क्षेत्र को लाभ

  • फार्मास्यूटिकल्स: वर्ष 2024 में 3.5 लाख करोड़ रुपए के मूल्यांकन के साथ, भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा फार्मास्युटिकल उत्पादक होगा, जो WHO की वैक्सीन आवश्यकताओं का 70% आपूर्ति करता है और अमेरिका की तुलना में 33% कम विनिर्माण लागत प्रदान करता है।
  • धातु और इस्पात: भारत की प्राकृतिक संसाधन संपदा और विशेष इस्पात के लिये PLI योजना से वर्ष 2029 तक 40,000 करोड़ रुपए प्राप्त होने की उम्मीद है, जिससे एक प्रमुख इस्पात निर्यातक के रूप में इसकी स्थिति मज़बूत होगी, जिसे चीन की निर्यात नीति में बदलाव से और बढ़ावा मिलेगा।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT/ITeS): भारत IT सेवा निर्यात में एक प्रमुख देश है, जिसे "मेक इन इंडिया" जैसी पहलों का समर्थन प्राप्त है तथा IT हार्डवेयर विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करने से वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियाँ आकर्षित हो रही हैं।

आगे की राह 

  • संरचनात्मक सुधार: विनियमनों को सुव्यवस्थित करना, व्यापार को सुकर बनाना तथा सड़क परिवहन की उच्च लागत को कम करने के लिये रसद दक्षता को बढ़ाना, जो वर्तमान में 60% माल ढुलाई का संचालन करता है।
    • वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों द्वारा अपनाई गई रणनीतियों को अपनाना, जैसे सस्ता श्रम, सरल कर कानून और औद्योगिक विकास के लिये पुनर्वितरित भूमि।
  • विशिष्ट औद्योगिक क्लस्टर: क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी अवसरंचना, प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं और साझा सेवाओं के साथ समर्पित विनिर्माण केंद्र विकसित करना।
  • कौशल विकास: व्यावसायिक प्रशिक्षण को मज़बूत करना, STEM शिक्षा को बढ़ावा देना तथा उच्च तकनीक विनिर्माण की मांगों को पूरा करने के लिये कार्यबल को उन्नत बनाना।
  • क्षेत्रीय विनिर्माण को बढ़ावा: कपड़ा, चमड़ा, ऑटो घटक एवं फार्मास्यूटिकल्स में ताकत का लाभ उठाते हुए, मोबाइल फोन और रक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों में दीर्घकालिक कर प्रोत्साहन प्रदान करना तथा विकास को समर्थन देना।

निष्कर्ष

  • 'चीन प्लस वन' अवसर को प्राप्त करने की भारत की यात्रा में कई चुनौतियाँ शामिल हैं, जिनमें प्रतिस्पर्द्धात्मक नुकसान, विनियामक बाधाएँ और क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दे शामिल हैं। हालाँकि, बुनियादी अवसरंचना में रणनीतिक निवेश, विनियामक सुधारों और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करके भारत वैश्विक आपूर्ति शृंखला परिदृश्य में स्वयं को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में स्थापित कर सकता है। आर्थिक विकास की संभावनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन चुनौतियों को अवसरों में बदलने के लिये सक्रिय उपायों की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. 'चीन प्लस वन' रणनीति क्या है और यह भारत के लिये क्या अवसर और चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 


मेन्स:

प्रश्न. मध्य एशिया, जो भारत के लिये एक हित क्षेत्र है, में अनेक बाह्य शक्तियों ने अपने-आप को संस्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में, भारत द्वारा अश्गाबात करार, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2018)  


शासन व्यवस्था

भारतीय वायुयान विधायक विधेयक 2024

प्रिलिम्स के लिये:

संसद, नागरिक विमानन महानिदेशालय, नागरिक विमानन सुरक्षा ब्यूरो, संविधान का अनुच्छेद 14, उड़े देश का आम नागरिक, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, डिजी यात्रा

मेन्स के लिये:

भारतीय वायुयान विधायक विधेयक, 2024, विमानन में स्थिरता, भारत का विमानन क्षेत्र

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, संसद ने भारतीय वायुयान विधायक (BVV) विधेयक, 2024 पारित किया, जिसका उद्देश्य विमान अधिनियम 1934 (अंतिम बार 2020 में संशोधित) को प्रतिस्थापित करना और विमानन क्षेत्र में बड़े सुधार लाना है।

भारतीय वायुयान विधायक विधेयक, 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • विमान अधिनियम 1934: विधेयक में विमान अधिनियम, 1934 के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत नागरिक विमानन महानिदेशालय (DGCA), नागरिक विमानन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS) और विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो (AAIB) की स्थापना की गई थी।
    • ये निकाय क्रमशः सुरक्षा, संरक्षा और दुर्घटना जाँच की देखरेख करना जारी रखेंगे।
    • विधेयक में DGCA या BCAS के आदेशों के विरुद्ध केंद्र सरकार के समक्ष अपील करने की व्यवस्था की गई है, जो अंतिम प्राधिकारी होगा।
  • एकल खिड़की मंजूरी: BVV विधेयक, 2024 रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर प्रतिबंधित (RTR) प्रमाणपत्रों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दूरसंचार विभाग (DoT) से DGCA को सौंपता है।
    • इस परिवर्तन का उद्देश्य विमानन कर्मियों के लिये लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाना तथा दूरसंचार विभाग की RTR परीक्षाओं में भ्रष्टाचार को दूर करना है, जिससे DGCA की निगरानी में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित होगी।
      • वैमानिकी उद्देश्यों के लिये RTR प्रमाणन या RTR (A) एक लाइसेंस है जो किसी व्यक्ति की विमान पर रेडियो संचार उपकरण का उपयोग करने की योग्यता को प्रमाणित करता है, मुख्य रूप से हवाई यातायात नियंत्रण संचार के लिये। यह भारत में पायलटों के लिये अनिवार्य है।
  • विमान डिज़ाइन का विनियमन: विधेयक DGCA को न केवल विमान के विनिर्माण, मरम्मत एवं रखरखाव को विनियमित करने का अधिकार देता है, बल्कि डिज़ाइन और उन स्थानों को भी विनियमित करने का अधिकार देता है जहाँ विमान डिज़ाइन किये जा रहे हैं।
    • इन नई शक्तियों के साथ, DGCA भारत में विमानन क्षेत्र की अधिक व्यापक और कुशल निगरानी सुनिश्चित कर सकेगा।
  • मध्यस्थ की नियुक्ति: विधेयक केंद्र सरकार को हवाई अड्डों के निकट भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुआवजा विवादों को सुलझाने के लिये एकतरफा मध्यस्थ (ऐसा व्यक्ति जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये योग्य हो या रहा हो) नियुक्त करने की अनुमति देता है। 

BVV विधेयक, 2024 के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • DGCA की स्वतंत्रता का अभाव: विधेयक DGCA को स्वतंत्र नियामकों के विपरीत प्रत्यक्ष सरकारी नियंत्रण में रखता है तथा विधेयक DGCA प्रमुख की योग्यता या कार्यकाल को निर्दिष्ट नहीं करता है, जिसके परिणामस्वरूप हितों के टकराव की संभावना हो सकती है तथा केंद्र सरकार का प्रभाव पड़ सकता है।
  • मध्यस्थता प्रक्रिया के मुद्दे: मुआवजा विवादों के लिये मध्यस्थ की एकतरफा नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन हो सकती है क्योंकि यह मध्यस्थता प्रक्रिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता को कमज़ोर करती है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निष्पक्षता संबंधी चिंताओं के कारण ऐसी नियुक्तियाँ समानता के अधिकार का उल्लंघन हो सकती हैं।
    • विधेयक को मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 से छूट देने से सरकार मानकीकृत मध्यस्थता प्रक्रियाओं को दरकिनार करने का जोखिम उठा रही है, जिससे न्यायनिर्णयन में असंगतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • दंड की रूपरेखा: इस विधेयक में केंद्र सरकार को विमानन अपराधों के लिये दंड निर्धारित करने की अनुमति दी गई है, जिससे निश्चित विधिक दिशानिर्देशों के स्थान पर कार्यपालिका के विवेकाधिकार के कारण संभावित असंगति और निष्पक्षता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996

  • माध्यस्थम् न्यायालय प्रणाली के बाहर पक्षों के विवादों का समाधान करने की विधि है। यह सुलह और मध्यस्थता के साथ-साथ एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) विधि है।
  • भारत में मध्यस्थता की प्रक्रिया माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (2015, 2019 और 2021 में संशोधित) द्वारा शासित और विनियमित होती है।
    • 2019 संशोधन अधिनियम का उद्देश्य मध्यस्थ संस्थाओं की ग्रेडिंग और मध्यस्थों को मान्यता प्रदान करने हेतु भारतीय मध्यस्थता परिषद (ACI) की स्थापना करना था। हालाँकि, औपचारिक रूप से ACI की स्थापना अभी नहीं हुई है और इसका संचालन भी नहीं हुआ है।

विमानन क्षेत्र के संबंध में BVV विधेयक, 2024 के क्या निहितार्थ हैं?

  • सुव्यवस्थित लाइसेंसिंग: RTR प्रमाणन को DGCA के नियंत्रण में लाने का उद्देश्य प्रमाणन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का उन्मूलन और इसमें होने वाली देरी को कम करना है।
  • बेहतर निगरानी: विमान डिज़ाइन को विनियमित करने और दंड अधिरोपित करने की विस्तारित शक्तियों से सुरक्षा और अनुपालन में सुधार की संभावना है।
  • नियामक चुनौतियाँ: DGCA की स्वतंत्रता का आभाव और सरकारी केंद्रीकरण से संबंधित चिंताएँ निष्पक्षता एवं पारदर्शिता को प्रभावित कर सकती हैं।
  • निजी एयरलाइनों पर विनियामक बोझ: संकटपूर्ण उड़ान जैसे अपराधों के लिये कठोर दंड अधिरोपित किया गया है, जिसमें एक करोड़ रुपए जुर्माना और कारावास का प्रावधान है, हालाँकि दंड अधिरोपित करने की विवेकाधीन शक्ति चिंता उत्पन्न करती है।
  • नई अनुपालन आवश्यकताओं से निजी ऑपरेटरों की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत के विमानन उद्योग का परिदृश्य क्या है?

  • यात्रियों की संख्या में तीव्र वृद्धि: वित्त वर्ष 23 में घरेलू हवाई यातायात में यात्रियों की संख्या 306.79 मिलियन थी, जो कि गत वर्ष की तुलना में 13.5% अधिक है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय यातायात में 22.3% की वृद्धि के साथ इसमें यात्रियों की संख्या 69.64 मिलियन रही।
    • अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है।
  • बुनियादी ढाँचे का विस्तार: वर्ष 2014 में क्रियाशील हवाई अड्डों की संख्या 74 थी जो 2024 में बढ़कर 157 हो गई है तथा 2047 तक इनकी संख्या 350-400 करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
  • बेड़े का विस्तार: भारतीय विमानन कंपनियों ने वर्ष 2023 में 112 नए विमान शामिल किये, जिससे कुल विमानों की संख्या 771 हो गई, तथा वर्ष 2027 तक 1,100 तक पहुँचने की योजना है।
  • बाज़ार और राजस्व वृद्धि: भारत का विमानन राजस्व वित्त वर्ष 24 में 15-20% और वित्त वर्ष 25 में 10-15% बढ़ने की उम्मीद है।
    • माल यातायात में स्थिर वृद्धि देखी गई, वित्त वर्ष 24 में घरेलू माल ढुलाई 1.32 मिलियन टन और अंतर्राष्ट्रीय माल ढुलाई 2.04 मिलियन टन रही।

विमानन उद्योग से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?

  • नीतिगत हस्तक्षेप:
    • राष्ट्रीय नागरिक विमानन नीति 2016: NCAP 2016 का उद्देश्य वहनीयता और कनेक्टिविटी को बढ़ाकर, व्यापार में आसानी, विनियमन, सरलीकृत प्रक्रियाओं और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देकर आम जनता के लिये उड़ान को सुलभ बनाना है। 
    • उड़ान-RCS योजना: इसका उद्देश्य क्षेत्रीय हवाई संपर्क में सुधार करना है; 519 मार्गों पर परिचालन शुरू किया गया और 13 मिलियन से अधिक यात्रियों को लाभ मिला।
    • FDI नीति: केंद्र सरकार ने हवाई परिवहन और रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) जैसे विमानन क्षेत्रों में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी है।
  • बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण: डिजी यात्रा और NABH निर्माण जैसी पहल परिचालन दक्षता और यात्री अनुभव को बढ़ाती हैं।
    • 21 ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 11 वर्ष 2023 तक चालू हो जाएंगी (डोनी पोलो हवाई अड्डा, ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश भारत का पहला ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा है)।
      • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे, अविकसित भूमि पर शुरू से निर्मित विमानन सुविधाएँ हैं, जिन्हें पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिये पर्यावरण अनुकूल विशेषताओं के साथ डिजाइन किया गया है।
  • स्थिरता प्रयास: दिल्ली और मुंबई जैसे हवाई अड्डों ने लेवल 4+ कार्बन प्रमाणन हासिल किया।

आगे की राह

  • पारदर्शी मध्यस्थता ढाँचा: अनुच्छेद 14 के तहत समानता के संवैधानिक अधिकार को बनाए रखने के लिये मुआवजा विवादों के लिये स्वतंत्र तृतीय पक्ष की निगरानी शुरू करना।
  • नियामक स्वतंत्रता को मज़बूत करना: निष्पक्षता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये DGCA को एक स्वायत्त नियामक निकाय के रूप में कार्य करने हेतु पुनर्गठित करने पर विचार करना।
  • सुसंगत दंड ढाँचा: विमानन अपराधों से संबंधित दंड के लिये एक स्पष्ट और सुसंगत ढाँचा विकसित करना, कार्यकारी विवेक के दायरे को कम करना और निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
  • समावेशी परामर्श प्रक्रिया: एयरलाइनों, विमानन कर्मियों और आम जनता सहित हितधारकों के साथ मिलकर फीडबैक एकत्र करना और चिंताओं का समाधान करना। इससे आम सहमति बनाने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि विधेयक के प्रावधान व्यावहारिक और प्रभावी हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय वायुयान विधेयक 2024 के महत्व और भारत के विमानन क्षेत्र पर इसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमान पत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (2017)


शासन व्यवस्था

अन्न चक्र और SCAN द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013उचित मूल्य की दुकानेंप्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, भारतीय खाद्य निगम, न्यूनतम समर्थन मूल्य, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड

मेन्स के लिये:

भारत में PDS प्रणाली में सुधार, भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ, PDS प्रणाली की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये उपाय अपनाए जा सकते हैं।  

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से "अन्न चक्र" और स्कैन (NFSA के लिये सब्सिडी दावा आवेदन) पोर्टल लॉन्च किया।

  • इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली आपूर्ति शृंखला की दक्षता बढ़ेगी और सब्सिडी दावा प्रक्रिया सुचारू होगी, जिससे खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों पर निर्भर लाखों नागरिकों को लाभ मिलेगा।

अन्न चक्र और स्कैन प्रणाली क्या है?

  • अन्न चक्र के बारे में:
    • अन्न चक्र  भारत में  सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आपूर्ति शृंखला को अनुकूलित करने के लिये एक अग्रणी उपकरण है।
    • इसे विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और IIT-दिल्ली स्थित फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (FITT) के सहयोग से विकसित किया गया है।
    • यह पहल खाद्यान्नों के परिवहन के लिये इष्टतम मार्गों की पहचान करने के लिये उन्नत एल्गोरिदम का उपयोग करती है। 
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • बढ़ी हुई दक्षता और लागत बचत: आवश्यक वस्तुओं की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिये PDS लॉजिस्टिक्स नेटवर्क को अनुकूलित किया जाता है, साथ ही ईंधन की खपत, समय और लॉजिस्टिक्स लागत में कमी के माध्यम से 250 करोड़ रुपए की वार्षिक बचत होती है।
    • पर्यावरणीय स्थिरता: परिवहन दूरी को 15-50% तक कम करके परिवहन-संबंधी उत्सर्जन को न्यूनतम करता है और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में योगदान देता है।
    • व्यापक कवरेज: अनुकूलन मूल्यांकन 30 राज्यों में किया गया, जिससे PDS आपूर्ति शृंखला के अंतर्गत लगभग 4.37 लाख उचित मूल्य की दुकानें (FPS) और 6,700 गोदाम लाभान्वित हुए।
    • निर्बाध एकीकरण: एकीकृत लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (ULIP) के माध्यम से रेलवे के माल परिचालन सूचना प्रणाली (FOIS) के साथ जोड़ा गया और PM गति शक्ति प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत किया गया , जिससे FPSऔर गोदामों की भौगोलिक स्थिति का मानचित्रण संभव हो सका।
  • स्कैन प्रणाली के बारे में:
    • स्कैन पोर्टल को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत राज्यों के लिये सब्सिडी दावा प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
    • यह बेहतर निधि उपयोग के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के संचालन को आधुनिक बनाता है, लीकेज को कम करने के लिये सरकारी तकनीकी पहलों के साथ संरेखित करता है, तथा पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ के साथ 80 करोड़ लोगों के लिये खाद्य सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • एकीकृत मंच: राज्यों को खाद्य सब्सिडी दावे प्रस्तुत करने के लिये सिंगल विंडो प्रणाली प्रदान करता है, जिससे सभी हितधारकों के लिये प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है।
    • स्वचालित कार्यप्रवाह: सब्सिडी जारी करने और निपटान के लिये अंत-से-अंत स्वचालन सुनिश्चित करता है, जिससे दक्षता और पारदर्शिता बढ़ती है।
    • नियम-आधारित तंत्र: खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) द्वारा दावे की जाँच और अनुमोदन के लिये नियम-आधारित प्रसंस्करण का उपयोग किया जाता है, जिससे निपटान में तेज़ी आती है।

PDS क्या है?

  • परिचय:
    • PDS एक भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली है जिसे सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराकर खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिये स्थापित किया गया है।
    • यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के तहत कार्य करता है, जो वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • नोडल मंत्रालय:
    • उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय।
  • PDS का विकास:
    • भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्धकालीन राशनिंग उपाय के रूप में हुई और यह कई चरणों से गुजरी। 
    • 1960 के दशक में खाद्यान्न की कमी को देखते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार किया गया , तथा घरेलू खरीद और भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कृषि मूल्य आयोग और FCI की स्थापना की गई।
    • 1970 के दशक तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक सार्वभौमिक योजना बन गई और वर्ष 1992 में संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (RPDS) का उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पहुंच को  मजबूत और विस्तारित करना था।
    • वर्ष 1997 में शुरू की गई लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) में लाभार्थियों को गरीबी रेखा से नीचे (BPL) और गरीबी रेखा से ऊपर (APL) परिवारों  में वर्गीकृत करके गरीबों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • वर्ष 2000 में शुरू की गई अंत्योदय अन्न योजना (AAY) का लक्ष्य सबसे गरीब परिवार थे। 
  • प्रबंध: 
    • इसका प्रबंधन केन्द्र और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है तथा इनकी अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।
    • केंद्र सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन का काम संभालती है।
    • राज्य सरकारें स्थानीय वितरण का प्रबंधन करती हैं, पात्र परिवारों की पहचान करती हैं, राशन कार्ड जारी करती हैं और उचित मूल्य की दुकानों (FPS) की निगरानी करती हैं।
  • वितरित वस्तुएँ: 
    • PDS मुख्य रूप से गेहूँ, चावल, चीनी और केरोसिन उपलब्ध कराता है। कुछ राज्य दालें, खाद्य तेल और नमक जैसी चीजें भी वितरित करते हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013

  • अधिनियमित: NFSA 12 सितंबर 2013 को अधिनियमित किया गया था।
  • उद्देश्य: NFSA का उद्देश्य एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये लोगों को वहनीय मूल्‍यों पर उचित गुणवत्तापूर्ण खाद्यान्‍न की पर्याप्‍त मात्रा उपलब्‍ध कराते हुए उन्‍हें खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना है।
  • कवरेज: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत रियायती दर पर खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत को शामिल किया गया है,जिससे भारत की कुल आबादी के 67% लोग लाभान्वित होते हैं।
  • पात्रता:
    • राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्राथमिकता वाले परिवारों को TPDS के तहत शामिल किया जाना है।
    • अंत्योदय अन्न योजना के तहत आने वाले परिवार।
  • प्रावधान:
    • प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न, जिसमें चावल 3 रुपए किलो, गेहूँ 2 रुपए किलो और मोटा अनाज 1 रुपए किलो दिया जाता है।
    • हालाँकि अंत्योदय अन्न योजना के तहत मौजूदा प्रतिमाह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रदान करना जारी रहेगा।
    • गर्भवती महिलाओं और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्‍था के दौरान तथा बच्चे के जन्‍म के 6 माह बाद भोजन के अलावा कम-से-कम 6000 रुपए का मातृत्त्व लाभ प्रदान किये जाने का प्रावधान है।
    • 14 वर्ष तक के बच्चों के लिये भोजन की व्यवस्था।
    • खाद्यान्न या भोजन की आपूर्ति नहीं होने की स्थिति में लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता।
    • ज़िला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना। 

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC): 
    • ONORC पूरे देश में राशन कार्ड की पोर्टेबिलिटी को सक्षम बनाता है। यह लाभार्थियों को पूरे देश में किसी भी FPS से सब्सिडी वाले खाद्यान्न तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे प्रवासी श्रमिकों और मौसमी मज़दूरों को लाभ मिलता है।
    • यह बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और डिजिटल भुगतान के माध्यम से समावेशिता, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ाता है।
  • सार्वभौमिक PDS :
    • तमिलनाडु ने सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की है, जिसके तहत प्रत्येक परिवार को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार है, जिससे पूरे राज्य में व्यापक कवरेज सुनिश्चित होता है।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी सार्वजनिक वितरण प्रणाली सुधार:
    • स्मार्ट-PDS योजना: स्मार्ट-PDS योजना: वर्ष 2023 में, भारत सरकार ने 2023-2026 की अवधि के लिये स्मार्ट-PDS योजना को मंजूरी दी।
      • इसका उद्देश्य PDS के एंड-टू-एंड कम्प्यूटरीकरण और एकीकृत प्रबंधन (ImPDS) में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी को बनाए रखना तथा उन्नत करना है।
    • कम्प्यूटरीकृत उचित मूल्य की दुकानें (FPS): पॉइंट ऑफ सेल (POS) मशीनों की स्थापना के माध्यम से कई FPS को कम्प्यूटरीकृत किया गया है, जो लाभार्थियों को प्रमाणित करते हैं और जारी किये गए सब्सिडी वाले अनाज की मात्रा को रिकॉर्ड करते हैं। यह स्वचालन धोखाधड़ी की गुंजाइश को कम करता है और वितरण में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • आधार और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): TPDS में आधार एकीकरण से लाभार्थी की पहचान बेहतर हुई है, त्रुटियाँ कम हुई हैं और डुप्लिकेट समाप्त हुए हैं।
      • DBT ने लाभार्थियों को नकद अंतरण सुनिश्चित किया, जिससे उन्हें खुले बाज़ार से खाद्यान्न खरीदने की सुविधा मिली और साथ ही राशन की दुकानों पर उनकी निर्भरता कम हुई।
    • GPS और SMS निगरानी: यह सुनिश्चित करने के लिये GPS ट्रैकिंग का उपयोग किया गया है कि खाद्यान्न ट्रक बिना किसी डायवर्जन के निर्दिष्ट FPS तक पहुँचें, जबकि SMS अलर्ट नागरिकों को TPDS वस्तुओं के प्रेषण और आगमन के विषय में सूचित करते हैं, जिससे पारदर्शिता तथा सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।

नोट: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त वाधवा समिति ने वर्ष 2006 में पाया कि तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू बनाने के लिये कम्प्यूटरीकरण और अन्य तकनीकी उपायों को लागू किया था।

  • इन सुधारों से लीकेज को कम करने तथा खाद्यान्न वितरण में सुधार करने में सहायता मिली है।

PDS से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • लाभार्थियों की पहचान: लाभार्थियों की पहचान करने में समावेशन और बहिष्करण संबंधी महत्त्वपूर्ण त्रुटियाँ हैं। कई पात्र परिवार छूट जाते हैं जबकि अपात्र परिवारों को लाभ मिलता है।
    • अध्ययनों से पता चला है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लगभग 61% बहिष्करण त्रुटि तथा 25% समावेशन त्रुटि है।
  • भ्रष्टाचार और लीकेज: भ्रष्टाचार और लीकेज व्यापक हैं, खाद्यान्नों को खुले बाज़ार में ले जाया जाता है या उच्च कीमतों पर बेचा जाता है। इससे सिस्टम की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में गरीबों के लिये निर्धारित सब्सिडी वाले अनाज का लगभग 28% हिस्सा लीकेज के कारण नष्ट हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को अनुमानित 69,108 करोड़ रुपए का वित्तीय नुकसान होता है।
  • भंडारण और वितरण: पर्याप्त भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है और खराब हो जाता है। इसके अलावा, वितरण नेटवर्क भी अक्षम है, जिससे विलंब और नुकसान होता है।
  • खाद्यान्न की गुणवत्ता: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अक्सर असंगत और घटिया गुणवत्ता वाला खाद्यान्न वितरित करती है तथा मुफ्त चावल व गेहूँ पर इसका ध्यान विशेष रूप से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की विविध पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है।

आगे की राह 

  • एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण और निगरानी: आपूर्ति शृंखला को ट्रैक करने और वास्तविक समय के स्टॉक अपडेट को लागू करने के लिये ब्लॉकचेन तथा IoT का उपयोग करने की आवश्यकता है। AI एनालिटिक्स अनियमितताओं का पता लगाने और चोरी को रोकने में सहायता कर सकता है।
    • FPS को बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, इलेक्ट्रॉनिक भारांकन मापनी/मापक्रम और डिजिटल भुगतान प्रणाली के साथ उन्नत करने के साथ-साथ गुणवत्ता प्रमाणन के लिये QR कोड लागू करने तथा सार्वजनिक निगरानी डैशबोर्ड बनाने की भी आवश्यकता है।
  • पोर्टेबल लाभ और प्रवासन सहायता: बेहतर अंतरराज्यीय समन्वय और वास्तविक समय ट्रैकिंग के साथ वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) को मज़बूत करना। मौसमी प्रवासियों के लिये अस्थायी राशन कार्ड पंजीकरण की सुविधा प्रदान करना।
  • स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर का आधुनिकीकरण: IoT-आधारित गुणवत्ता निगरानी के साथ आधुनिक साइलो में अपग्रेड करना। विकेंद्रीकृत, तकनीक-सक्षम स्टोरेज विकसित करना और इंफ्रास्ट्रक्चर के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
    • पूर्व-निर्धारित स्टॉक और मोबाइल PDS इकाइयों के साथ आपदा प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल स्थापित करना।
  • पोषण सुरक्षा: चुनिंदा FPS को दालों, तेलों और फोर्टिफाइड वस्तुओं के साथ पोषण केंद्रों में बदलें। सुभेद्य समूहों के लिये ई-रुपया पोषण वाउचर शुरू करना और कर्नाटक व ओडिशा की तरह PDS में कदन्न शामिल करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) क्या है? यह भारत के लिये क्यों आवश्यक है और इसकी दक्षता बढ़ाने के लिये क्या सुधार लागू किये गए हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021) 

  1. भारत में ‘जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)’ दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (सी.सी.ए.एफ.एस.) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
  2. सी.सी.ए.एफ.एस. परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (सी.जी.आई.ए.आर.) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय प्राँस में है।
  3. भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आई.सी.आर.आई.एस.ए.टी.), सी.जी.आई.ए.आर. के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2             
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. केवल 'गरीबी रेखा से नीचे (BPL) की श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं। 
  2. परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार की मुखिया होगी। 
  3. गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छ: महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015)


भूगोल

खनन पट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करना

प्रिलिम्स के लिये:

खनन पट्टे, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957, सर्वोच्च न्यायालय, अपशिष्ट प्रबंधन, भारतीय खान ब्यूरो (IBM), अवैध खनिज निष्कर्षण, ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF), राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET), खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023, महत्त्वपूर्ण खनिज, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन।

मेन्स के लिये:

भारत की खनिज नीति, आर्थिक शासन, सतत् संसाधन प्रबंधन और पर्यावरण विनियमों का महत्त्व।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, केंद्र सरकार ने खनन गतिविधियों को सुचारु रूप से चलाने और उद्योग की चुनौतियों का समाधान करने के लिये राज्य सरकारों को खनन अपशिष्ट/ओवरबर्डन के डंपिंग के उद्देश्य से मौजूदा खनन पट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करने की अनुमति दी है।

  • खान मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के अंतर्गत अपशिष्ट निपटान जैसी सहायक गतिविधियों के लिये गैर-खनिज क्षेत्रों को खनन पट्टे में शामिल किया जा सकता है। 
  • यह व्याख्या खान अधिनियम, 1952 और खनिज रियायत नियम, 2016 के नियम 57 के अनुरूप है, जो पट्टा क्षेत्र में सहायक क्षेत्रों को शामिल करने की अनुमति प्रदान करता है।

खनन और खनिजों के विनियमन के लिये सर्वोच्च न्यायालय के क्या निर्णय हैं?

  • केंद्र का प्राथमिक प्राधिकार: वर्ष 1989 में इंडिया सीमेंट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया कि खनन विनियमन मुख्य रूप से खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और संघ सूची की प्रविष्टि 54 के माध्यम से केंद्र के प्राधिकार के अंतर्गत आता है ।
  • करों पर राज्य प्राधिकरण: उड़ीसा राज्य बनाम एमए टुलोच एंड कंपनी मामले में, यह माना गया कि राज्य केवल रॉयल्टी एकत्र कर सकते हैं, अतिरिक्त कर नहीं लगा सकते, क्योंकि रॉयल्टी को करों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। 
    • पश्चिम बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में वर्ष 2004 में दिये गए फैसले में इस वर्गीकरण पर सवाल उठाया गया, जिसके कारण नौ न्यायाधीशों द्वारा इसकी समीक्षा की गई।
  • वर्ष 1989 के फैसले को पलटना: जुलाई, 2024 में न्यायालय ने राज्यों के पक्ष में फैसला सुनाया (1989 के फैसले को पलट दिया), जिसमें सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 50 के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार दिया, लेकिन संसद को खनिज विकास में बाधाओं को रोकने के लिये प्रतिबंध लागू करने तक सीमित कर दिया।
    • हालाँकि, कुछ न्यायाधीशों ने चिंता व्यक्त की कि अनियंत्रित राज्य कराधान से खनिज मूल्य निर्धारण और विकास में संघीय एकरूपता बाधित हो सकती है, इसलिये उन्होंने संसद से इसमें स्थिरता लाने के लिये हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।

गोवा फाउंडेशन बनाम भारत संघ मामला, 2014: वैध पट्टा क्षेत्रों के बाहर डंपिंग के विरुद्ध

  • बाह्य डंपिंग पर प्रतिबंध: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि पर्यावरणीय और कानूनी उल्लंघनों को रोकने के लिये वैध खनन पट्टों की सीमाओं के बाहर खनन अपशिष्ट/ओवरबर्डन की डंपिंग प्रतिबंधित है।
  • गैर-खनिज क्षेत्रों का संरक्षण: फैसले में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि गैर-खनिज क्षेत्रों का उपयोग खनन संबंधी गतिविधियों के लिये नहीं किया जाना चाहिये, तथा उनका संरक्षण और उचित विनियमन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • खनन कानूनों के साथ संरेखण: न्यायालय के निर्णय ने खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 और संबंधित कानूनों के अनुपालन को सुदृढ़ किया, जो भूमि के अनधिकृत उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं।
  • खनन गतिविधियों पर प्रभाव: खनन कार्यों में पट्टे वाले क्षेत्रों के भीतर अपशिष्ट प्रबंधन को शामिल करना आवश्यक था, जिसके कारण नियोजन एवं भूमि आवंटन में परिवर्तन करना पड़ा।

हाल ही में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल किये जाने के क्या निहितार्थ हैं?

  • सुव्यवस्थित संचालन: खनन पट्टों अथवा खनिपट्टों में गैर-खनिज क्षेत्रों को शामिल करने से ओवरबर्डन और अपशिष्ट का सुरक्षित और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित होता है , तथा उद्योग की परिचालन चुनौतियों का समाधान होता है।
    • खनिज प्राप्त करने के लिये हटाए गए चट्टानों, मृदा और सामग्रियों से जनित ओवरबर्डन का सुरक्षित खनन के दृष्टिगत उचित प्रबंधन किया जाना चाहिये।
    • गैर-खनिज क्षेत्रों (वे क्षेत्र जहाँ महत्त्वपूर्ण खनिज भंडार नहीं हैं) को राज्य सरकारों द्वारा ओवरबर्डन निपटान के लिये आवंटित किया जा सकता है तथा यदि वे समीपस्थ हैं तो उन्हें बिना नीलामी के खनन पट्टों में जोड़ा जा सकता है।
  • 2014 के निर्णय के अनुरूप: यह निर्णय वैध पट्टा क्षेत्रों के बाहर डंपिंग के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के निर्णय के अनुरूप है।
  • भूमि का कुशल उपयोग: पट्टा क्षेत्रों के भीतर अपशिष्ट निपटान की अनुमति देने से गैर-खनिज क्षेत्रों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित होता है तथा ऐसे प्रयोजनों के लिये अलग से नीलामी की आवश्यकता नहीं होती।
  • उद्योग विकास: परिचालन संबंधी बाधाओं को कम करना, स्थायी खनिज निष्कर्षण को प्रोत्साहित करना और खनन क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देना।
    • राज्य अपशिष्ट प्रबंधन के लिये सन्निहित या असम्बद्ध गैर-खनिजीकृत क्षेत्रों का आवंटन कर सकते हैं, यदि इससे खनिज विकास को लाभ मिलता है तथा परिचालन अनुकूल होता है।
  • दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा: राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि गैर-खनिज क्षेत्रों का सत्यापन किया जाए, सीमा निर्धारण के लिये भारतीय खान ब्यूरो (IBM) से परामर्श किया जाए तथा पूरक पट्टों के बारे में IBM को सूचित किया जाए ताकि अवैध खनिज निष्कर्षण को रोका जा सके।

खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 क्या है?

  • निर्णायक विधान: इस अधिनियम के माध्यम से भारत के खनन क्षेत्र को नियंत्रित किया जाता है, जिसका उद्देश्य उद्योग का विकास, खनिजों का संरक्षण तथा दोहन में पारदर्शिता एवं दक्षता सुनिश्चित करना है।
  • प्रारंभिक उद्देश्य: इस अधिनियम का प्रारंभिक उद्देश्य खनन को बढ़ावा देना, संसाधनों का संरक्षण करना और रियायतों को विनियमित करना था।
  • 2015 संशोधन: 2015 में किये गए संशोधन के तहत प्रमुख सुधार पेश किए गए, जिनमें पारदर्शिता के लिये नीलामी पद्धति, खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) की स्थापना, अन्वेषण को बढ़ावा देने हेतु राष्ट्रीय खनिज खोज न्यास (NMET) की स्थापना और अवैध खनन के लिये कड़े दंड शामिल है।
  • 2021 संशोधन: कैप्टिव खदानों का संचालन कंपनियों द्वारा विशेष रूप से अपने स्वयं के उपयोग के लिये खनिजों का उत्पादन करने हेतु किया जाता है। कैप्टिव खदानों से निकाले गए खनिज का, अंतिम उपयोग संयंत्र की संपूर्ण आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक खुले बाज़ार में विक्रय किये जाने की अनुमति दी गई।
  • मर्चेंट खदानों का संचालन खुले बाज़ार में बिक्री के लिये खनिजों का उत्पादन करने के लिये किया जाता है तथा निष्कर्षित खनिजों को विभिन्न खरीदारों को बेचा जाता है, जिनमें वे उद्योग भी शामिल हैं जिनके पास अपनी खदानें नहीं हैं।
  • केवल नीलामी रियायतें: यह सुनिश्चित किया गया कि सभी निजी क्षेत्र की खनिज रियायतें नीलामी के माध्यम से दी जाएँ।
  • 2023 संशोधन : खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 का उद्देश्य भारत की आर्थिक वृद्धि और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों के अन्वेषण और निष्कर्षण में वृद्धि करना है।
  • प्रमुख परिवर्तनों में राज्य अभिकरण अन्वेषण के लिये आरक्षित 12 परमाणु खनिजों की सूची से छह खनिजों को हटाना तथा सरकार को महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये विशेष रूप से रियायतों की नीलामी की अनुमति देना शामिल है। 
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने तथा अवर खनन कंपनियों को गभीरस्थ एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज में शामिल करने  के लिये अन्वेषण लाइसेंस की शुरुआत की गई है।
  • संशोधन में आयात पर निर्भरता कम करने और लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे आवश्यक खनिजों के खनन में तेज़ी लाने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो भारत के ऊर्जा संक्रमण और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के खनन क्षेत्र के विनियमन में खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 तथा इसके संशोधनों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में 'ज़िला खनिज प्रतिष्ठान (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन्स)' का/के उद्देश्य क्या है/ हैं? (2016)

  1. खनिज-सम्पन्न ज़िलों में खनिज-खोज संबंधी क्रियाकलापों को प्रोत्साहित करना 
  2. खनिज-कार्य से प्रभावित लोगों के हितों की रक्षा करना 
  3. राज्य सरकारों को खनिज-खोज के लिये लाइसेंस निर्गत करने के लिये अधिकृत करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

मेन्स:

प्रश्न: प्रश्न. अवैध खनन के परिणाम क्या हैं? कोयला खनन क्षेत्र के लिए पर्यावरण और वन मंत्रालय की “गो” और “नो गो” ज़ोन की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। (2013)


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