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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

कोई फ़र्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में और अंत तक हिम्मत न हारने में...

वो 1990 की सर्दियों का समय था ; श्रीलंका का एक 20 वर्षीय युवक प्रथम श्रेणी क्रिकेट में धमाकेदार बल्लेबाजी करने के बाद राष्ट्रीय क्रिकेट में भारत के खिलाफ पर्दापण करने के लिए तैयार था. लेकिन, ये क्या! वह दोनों पारियों में शून्य पर आउट हो गया और चयनकर्ताओं द्वारा उसे टीम से बाहर कर दिया गया. इसके बाद वह सीधा नेट्स में गया और दिन-रात पसीना बहाया. अगला मौका उसे पूरे 21 महीने बाद मिला परंतु परिणाम इस बार भी मनोनुकूल नहीं आया. वह इस बार भी दोनों पारियों को मिलाकर 1 रन ही बना पाया. पुनः 17 महीने टीम से बाहर रहकर अभ्यास करने पर उसे अगला मौका मिला और एक बार फिर वह दोनों पारियों में शून्य पर आउट हो गया.

ऐसी परिस्थिति के बाद किसी का भी धैर्य जबाव दे जाता; कोई भी समर्पण कर देता; लेकिन महान लोगों की महानता इसी में निहित होती है कि वे अपनी यात्रा पर संदेह नहीं करते. लगातार संघर्ष और खुद पर विश्वास के द्वारा कठिन से कठिन रास्तों को नाप लेते हैं.

वह बल्लेबाज़ 3 वर्षों के पुनः लगातार संघर्ष के बाद एक बार फिर राष्ट्रीय टीम में चयनित हुआ और उसके बाद उसका करियर इतिहास में दर्ज है. 6 डबल सेंचुरी, 5000 से ज्यादा टेस्ट रन, अपने देश का नेतृत्व आदि! यह 'डोंट गिव अप' की कहानी मर्वन अटापट्टू की है; बल्कि कहें हर उस व्यक्ति की है जिसने हारने से मना कर दिया!

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

सफलता किसे अच्छी नहीं लगती! विफलता से कौन विचलित नहीं होता! लेकिन, जो व्यक्ति विफलता को विनम्रता से स्वीकार करता है; लगातार अपनी कमियों को संदर्भित करता है, सुधार करता है और पूरे मनोयोग से अपने सर्वस्व का निवेश करता है, उसे सफलता मिलती ही है. शनैः शनैः अपनी बढ़त को मापना, उसे पोषित करना और अपने विश्वास को बनाए रखना ही सफलता का मूल मंत्र है.

सफलता की संघर्ष-यात्रा को हम 'चीनी बम्बू' की जीवन-यात्रा से भी समझ सकते हैं. आप इसके बीज को बोते हैं और साल भर खाद-पानी देने पर भी इसमें कोई बढ़त नहीं दिखती है तो आप परेशान हो जाते हैं; यह परेशानी और झल्लाहट 4-5 वर्ष तक चलती रहती है क्योंकि इसकी कोई ग्रोथ नहीं दिखती! 5वें वर्ष आपकी मेहनत का फल आना शुरू होता है और देखते-देखते यह 'चीनी-बम्बू' 90 फ़ीट बढ़ जाता है.

ज़िंदगी का भी यही सच है. ज़िंदगी भी आपको इसी तरह अचंभित करती है. आप लगातार मेहनत करते हुए संघर्ष करते रहते हैं तो अचानक एक दिन परिणाम आना शुरू होता है और फिर ये शृंखला शुरू हो जाती है और आपको अपनी संघर्ष-यात्रा मुक़म्मल प्रतीत होती है.

लगातार लगे रहिये! जहाँ हैं, वहाँ से प्रयास करिए! छोटे-छोटे पलों को काउंट करिए! खुद पर यकीन रखिये! विनम्र रहिये! सीखते रहिये! और फिर एक दिन आप पाएंगे कि धीरे-धीरे अंधेरा छंट रहा है, आप उजाले में प्रवेश कर रहे हैं और आपका जीवन आसान हो रहा है, और आप अपने होने के अर्थ तलाश कर पाए हैं.

बकौल कुंवर नारायण -

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में
जिन्हें तुमने जीता है—

जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे
और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में......

[आलोक कुमार]

(लेखक उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारी हैं)


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