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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

भारत में बाल श्रम की रोकथाम कैसे हो?

बीते दिनों की बात है मैं सुबह-सुबह बस स्टेशन पर बैठकर अपनी बस के आने का इंतज़ार कर रही थी। उसी बीच मेरे पास दो छोटे बच्चे आए, जिनमें एक की उम्र करीब 5 साल और दूसरे की 6 साल के आस-पास थी। दोनों के हाथों में पेन के दो-दो पैकेट थे। वो मेरे पास आए और मुझसे पेन खरीदने की गुज़ारिश करने लगे। उनके मासूम से चेहरों को देखकर मेरे मन में अनगिनत प्रश्न कौंधने लगे। उन्हीं अनगिनत प्रश्नों में से कुछ का जवाब पाने के लिये मैंने दोनों से पेन खरीदने की बात कहकर उन्हें अपने पास बैठाया और उनसे बात करने लगी। बातों-बातों में उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता उन्हें स्कूल जाने से मना करते हैं और उनसे काम करने के लिये कहते हैं। उन्होंने आगे बताया कि, हम सुबह पेन बेचने का काम करते हैं और दोपहर में एक ढाबे पर बर्तन धुलने का काम करते हैं। मुझे यह सुनकर आश्चर्य तो हुआ ही, साथ ही यह सोचकर दुख भी हुआ कि क्या इन बच्चों या इनके जैसे और हज़ारों बच्चों को जो छोटी उम्र से ही श्रम करने को मज़बूर हैं, क्या इन्हें अपना बचपन हँसते-खेलते हुए गुज़ारने का अधिकार नहीं है? क्या इन्हें दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाने का अधिकार नहीं है? आखिर क्यों तमाम सख्त कानूनी प्रावधानों के बावजूद भी हम मानवता के चेहरे पर लगे ‘बाल दासता’ के कलंक को मिटा नहीं पा रहे हैं।

यद्यपि बाल श्रम केवल भारत ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया की समस्या है जिससे निपटने के लिये अलग-अलग देशों ने कई कदम उठाए हैं। भारत में भी बाल मज़दूरी को समाप्त करने के उद्देश्य से कई प्रकार के कानून बनाए गए हैं जिनमें से बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) कानून 1986, कारखाना अधिनियम 1948, राष्ट्रीय बाल श्रम नीति 1987, राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP), पेंसिल पोर्टल, खदान अधिनियम 1952, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2006 जैसे कानून अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके बारे में हम सभी को पता होना चाहिये, जिससे हम अपने आस-पास काम कर रहे कम उम्र के बच्चों को इस दलदल से बाहर निकालकर उनका खोया हुआ बचपन उन्हें लौटा सकें। लेकिन इन कानूनों को जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि आखिर बाल श्रम क्या है और यह किन - किन रूपों में होता है?

भारतीय संविधान के अनुसार- किसी उद्योग, कल-कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले 5 -14 वर्ष की उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक कहा जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार- 18 वर्ष से कम उम्र के श्रम करने वाले लोग बाल श्रमिक की श्रेणी में आते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक- बाल श्रम की उम्र 15 साल तय की गई है।

अमेरिका में- 12 साल या उससे कम उम्र के बच्चों को बाल श्रमिक माना जाता है।

आखिर किन-किन रूपों में होता है बाल श्रम?

सामान्यत: जब भी हम बाल श्रम शब्द सुनते हैं तो हमारे दिमाग में ढाबे पर काम कर रहे, साइकिल का पंचर बना रहे या सड़कों पर गुब्बारे आदि बेच रहे बच्चों की छवि उभर कर सामने आती है, लेकिन हम आपको बता दें कि बाल श्रम भी कई तरह का होता है। जैसे-

बाल मज़दूर- वे बच्चे जो कारखानों, कार्यशालाओं, प्रतिष्ठानों, खानों और घरेलू श्रम जैसे सेवा क्षेत्र में मज़दूरी या बिना मज़दूरी के काम कर रहे हैं।

गली-मोहल्ले के बच्चे- इसके अंतर्गत कूड़ा बीनने वाले, अखबार और फेरी लगाने वाले और भीख माँगने वाले बच्चे आते हैं।

बंधुआ बच्चे- इस श्रेणी में वे बच्चे आते हैं जिन्हें या तो उनके माता-पिता ने पैसों की ख़ातिर गिरवी रखा है या जो कर्ज़ चुकाने के चलते मज़बूरन काम कर रहे हैं।

वर्किंग चिल्ड्रेन- इसके अंतर्गत वे बच्चे आते हैं जो कृषि में और घर - गृहस्थी के काम में पारिवारिक श्रम का हिस्सा हैं।

यौन शोषण के शिकार बच्चे- हज़ारों नाबालिग लड़के - लड़कियाँ यौन शोषण की जद में हैं।

क्या कहते हैं आँकड़े?

भारत सरकार की 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अंतिम उपलब्ध आँकड़ों के मुताबिक, देश में 10.1 मिलियन बाल श्रमिक मौजूद हैं, जबकि गैर-सरकारी आँकड़ों के अनुसार, भारत में करीब 5 करोड़ बच्चों से बाल मज़दूरी कराई जा रही है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, कोविड महामारी के प्रभावों के चलते बाल श्रम में संलग्न बच्चों की संख्या 160 मिलियन हो गई है और लाखों अन्य बच्चे इसके जोखिम में हैं।

इतना ही नहीं, चिंताजनक बात तो यह है कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ दुनिया के सबसे ज़्यादा बाल मज़दूर रहते हैं। जिसमें सबसे ज़्यादा बाल श्रमिक उत्तर प्रदेश (8.96 लाख), उसके बाद बिहार (4.51 लाख) और तीसरे स्थान पर राजस्थान (2.52 लाख) है। इनके अलावा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी बड़ी संख्या में बाल श्रमिक हैं।

चलिये अब जानते हैं, भारत में बाल श्रम को रोकने के लिये बनाए गए संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों के बारे में-

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार, किसी भी प्रकार का बलात् श्रम निषिद्ध है।
  • अनुच्छेद 24 में कहा गया है कि, 14 साल से कम उम्र के बच्चे को किसी भी खतरनाक काम करने के लिये नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
  • वहीं नीति निर्देशक सिद्धांत के अंतर्गत आने वाला अनुच्छेद 39, बच्चों के स्वास्थ्य और उनके शारीरिक विकास के लिये ज़रूरी सुविधाएँ उपलब्ध कराने का निर्देश देता है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009): यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का उपबंध करता है।

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986): यह अधिनियम 14 साल से कम उम्र के बच्चों को जीवन जोखिम में डालने वाले व्यवसायों में काम करने पर रोक लगाता है।

राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987): इसका उद्देश्य बाल श्रम पर प्रतिबंध एवं विनियमन के माध्यम से बाल श्रम का उन्मूलन करना, बच्चों एवं उनके परिवारों के लिये कल्याण एवं विकास कार्यक्रम प्रदान करना और कार्यशील बच्चों के लिये शिक्षा एवं पुनर्वास सुनिश्चित करना है।

राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP): इस परियोजना का उद्देश्य बाल श्रम से आज़ाद कराए गए बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में डालने से पहले गैर-औपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वज़ीफा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ प्रदान करना है।

‘पेंसिल पोर्टल’ (Pencil Portal): इस मंच का उद्देश्य बाल श्रम मुक्त समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, ज़िला प्रशासन, नागरिक समाज और आम लोगों का सहयोग प्राप्त करना है। 

बाल श्रम से उत्पन्न समस्याएँ

बाल श्रम एक सामाजिक, आर्थिक और राष्ट्रीय समस्या है। इसके चलते बच्चे एक तरफ शिक्षा से वंचित हो जाते हैं तो दूसरी तरफ सही पोषण न मिलने के चलते उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। आपको सुनने में यह अविश्वसनीय लगेगा कि कहीं-कहीं बंधुआ मज़दूरी कर रहे बच्चों से 20 से 22 घंटे प्रतिदिन काम कराया जाता है, और थकने के बाद काम न कर सकने की स्थिति में उन्हें बिजली से करंट, डंडे से पिटाई जैसी कष्टप्रद शारीरिक यातनाएँ भी दी जाती हैं, जिससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इसके अलावा, कई बार ये बच्चे यौन शोषण के लिये ग़ैर क़ानूनी ख़रीद-फ़रोख़्त (चाइल्ड पोर्नग्राफी) के दलदल में भी फंस जाते हैं, और बच्चों का बचपन इसी बेगार की चक्की में पिसता चला जाता है।

सुझाव

  • भारत में लगभग 80 फीसदी बाल श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में होता है। ऐसे में पंचायतें बाल मज़दूरी को रोकने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं।
  • बाल श्रम से निपटने के लिये मौजूदा भारतीय क़ानूनों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किए जाने के साथ, उनमें एकरूपता लाने की ज़रूरत है।
  • बाल श्रम कानूनों का उल्लंघन करने पर प्रदत्त दंड, गंभीर और सुसंगत होना चाहिये।
  • सरकार को गरीब और कमज़ोर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि वे विवश होकर बाल श्रम का सहारा न लें। इसमें नियमित नकद हस्तांतरण, सब्सिडी, पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, खाद्य सुरक्षा जैसे उपाय शामिल किए जा सकते हैं। 
  • इसके अलावा सरकार को स्कूल में नामांकन नहीं कराने वाले या स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों पर भी गौर करना चाहिये और उन्हें ब्रिज एजुकेशन, व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसी सुविधाएँ मुहैया करानी चाहिये।
  • सरकार द्वारा नागरिक समाज संगठनों, मीडिया, निगमों और नागरिकों के सहयोग से बाल श्रम के हानिकारक प्रभावों और बाल अधिकारों के महत्त्व के बारे में लोगों को जागरुक किया जाना चाहिये।
  • सरकार को संघर्ष, आपदाओं, महामारी या आर्थिक असंतुलन जैसी आपात स्थितियों एवं संकटों पर (जो बाल श्रम के जोखिम को बढ़ा सकते हैं) तुरंत प्रतिक्रिया एवं कार्रवाई के लिये तैयार रहना चाहिये, ताकि प्रभावित बच्चों और परिवारों को संकट के दौरान और उसके बाद शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • हालांकि, बचपन बचाओ आंदोलन, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन फाउंडेशन, चाइल्ड फंड, तलाश एसोसिएशन जैसे कई संगठन बच्चों को इस जाल से निकालने का काम कर रहे हैं लेकिन यह कार्य पूरी तरह से सार्थक तभी होगा जब हमारे समाज का प्रत्येक व्यक्ति व्यक्तिगत स्तर पर बाल श्रम को रोकने का प्रयास करेगा।

अंत में इतना ही कहा जा सकता है कि, बाल मज़दूरी देश की प्रगति में एक बाधा है इसलिये देश को आर्थिक समृद्धि की पटरी पर तेजी से दौड़ाने के लिये बाल मज़दूरी को पूरी तरह से समाप्त करना होगा। आखिर बच्चे ही तो देश का भविष्य हैं। बच्चों के विकास के बगैर किसी भी देश का दीर्घकालिक और टिकाऊ विकास नहीं हो सकता। सुरक्षित बचपन से ही सशक्त भारत का निर्माण संभव है। इसी संदर्भ में बशीर बद्र लिखते हैं-

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में

फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।।

  शालिनी बाजपेयी  

शालिनी बाजपेयी यूपी के रायबरेली जिले से हैं। इन्होंने IIMC, नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम.ए. किया। वर्तमान में ये हिंदी साहित्य की पढ़ाई के साथ साथ लेखन का कार्य कर रही हैं।

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