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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के 50 वर्ष - समालोचनात्मक विश्लेषण (भाग-II)

  • 29 Jun, 2023

  आयुष वर्मा   

आयुष वर्मा गुजरात कैडर के वर्ष 2018 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी हैं, आपको ऑल-राउंड उत्कृष्ट प्रदर्शन में भारत सरकार के स्वर्ण पदक, मुख्य वानिकी (कोर फॉरेस्ट्री) में उच्चतम स्थान के लिये स्वर्ण पदक एवं संजय सिंह मेमोरियल पुरस्कार के साथ-साथ हिल मेमोरियल पुरस्कार तथा वन तथा वनों में निवासरत लोगों हेतु किये गए उत्कृष्ट कार्यों के लिये के.एम. तिवारी स्मृति पुरस्कार, अकादमिक उत्कृष्टता के लिये डॉ. बी.एन.गांगुली पुरस्कार और IGNFA में पेशेवर प्रशिक्षण हेतु के.पी. सग्रेया श्रेष्ठ वणिक पुरस्कार प्रदान किया गया है। 

आपने IIT- BHU से इंजीनियरिंग विषय में स्नातक किया, पर्यावरण के क्षेत्र में आपकी विशेष रुचि थी जिसकी अभिव्यक्ति टाटा स्टील में आपके द्वारा प्रस्तुत जियो-सीक्वेस्ट्रेशन मॉडल के माध्यम से होती है। पर्यावरण के लिये आपका स्वाभाविक प्रेम, जीव जंतुओं के प्रति करुणा का भाव और माँ प्रकृति को अपने "प्रकृति ऋण" का भुगतान करने की एक आंतरिक इच्छा ने आपको वन सेवाओं की ओर प्रोत्साहित किया।

आपने गिर (पश्चिम) मंडल में सहायक वन संरक्षक के रूप में अपनी सेवा के दौरान गिर वन मंडल के लिये गश्त योजना पर एक पुस्तक भी लिखी है। वर्तमान में आप बोताड एवं भावनगर के अधिकार क्षेत्र के साथ सामाजिक वानिकी प्रभाग बोताड के उप वन संरक्षक के रूप में कार्यरत हैं- ये दोनों क्षेत्र ग्रेटर गिर क्षेत्र का हिस्सा हैं।

वानिकी में आपकी रुचि के क्षेत्रों में वन एवं वनों में निवासरत जनजातियाँ शामिल हैं (जिनके लिये आपने IGNFA की कार्यविधि में "जनजातियों और वनों" को संदर्भित एक रिपोर्ट लिखी थी), वन्यजीव संरक्षण हेतु आपके द्वारा किये गए कार्यों, जिनमें प्रमुख रूप से आपके द्वारा प्रस्तुत गिर वन मंडल हेतु गश्त योजना के लिये आपको शासन व्यवस्था के SKOCH अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।

इस लेख में आपने वनसंरक्षक के रूप में अपने क्षेत्र के अनुभवों और ज़मीनी ज्ञान के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 पर राय व्यक्त की है। इस लेख के माध्यम से आपने WPA के कार्यान्वन में विभिन्न व्यावहारिक और प्रक्रियात्मक पहलुओं को इंगित करने का प्रयास किया है। अपने अनुमानों एवं अपनी व्यक्तिगत राय को अधिक वस्तुनिष्ठ बनाने के लिये आपने इस अधिनियम का एक SWOT विश्लेषण तैयार किया है। SWOT विश्लेषण एक प्रकल्प या एक व्यावसायिक उद्यम में शामिल शक्तियों (Strengths), कमज़ोरियों (Weakness), अवसरों (Opportunities) और खतरों (Threats) के मूल्यांकन के लिये इस्तेमाल की गई युक्ति है। 

अस्वीकरण

यहाँ व्यक्त विचार मुख्य रूप से लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं तथा आधिकारिक स्थिति नहीं रखते हैं। इस लेख में लेखक द्वारा अपने क्षेत्र के अनुभवों, व्यावसायिक प्रशिक्षण की सीख और वनसंरक्षक के रूप में अपने अवलोकनों के आधार पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का निष्पक्ष विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है एवं किसी भी तरह या तरीके से, चाहे पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से इस लेख की व्याख्या सरकार के विचारों के रूप में नहीं की जानी चाहिये।

इस लेख (ब्लॉग) की योजना

इस लेख को दो भागों में प्रकाशित किया जाएगा-

भाग I:

  1. वन्यजीव संरक्षण की पृष्ठभूमि में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का योगदान
  2. अधिनियम के प्रमुख गुण एवं सकारात्मक पहलू
  3. कथित कमज़ोरियाँ और सुधार की गुंजाइश

भाग II:

  1. वन्यजीव संरक्षण की रूपरेखा को सुदृढ़ करने हेतु नवीन अवसर
  2. वन्यजीव संरक्षण की रूपरेखा के लिये संभावित खतरे
  3. WPA के 50 वर्षों पर लेखक की राय

यह लेख का भाग-II है, भाग-I के लिये यहाँ क्लिक करें

वन्यजीव संरक्षण की रूपरेखा को सुदृढ़ करने हेतु नवीन अवसर

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 2022 में हाल ही में किये गए संशोधनों ने वन्यजीव अपराध नियंत्रण, अपराध की पहचान और दोषसिद्धि को संबोधित करने के लिये नवीन साधन प्रदान किये हैं। विशेष रूप से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति, जो अभी भी दोधारी तलवार बनी हुई है एवं नवाचार तथा समुदायों तक पहुँच भारत में वन्यजीव संरक्षण रूपरेखा को सुदृढ़ करने के नए अवसर हैं।

A. CITES का अनुपालन

WPA में हालिया संशोधन, विशेष रूप से भारत की विधिक अवसंरचना को CITES समझौते के अनुरूप बनाने के लिये किये गए हैं। इसके अंतर्गत शामिल है:

  • केंद्र को एक प्रबंधन प्राधिकरण और वैज्ञानिक प्राधिकरण गठित करने की अनुमति:
    • धारा 49E: नमूनों के व्यापार हेतु निर्यात या आयात परमिट देने के लिये केंद्र सरकार नामित प्रबंधन प्राधिकरण- जीवित नमूनों के हकधारकों को MGMT प्राधिकरण से पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा
    • धारा 49F: वनस्पतियों और जीवों के सतत् दोहन के लिये वैज्ञानिक प्राधिकरण का गठन

फील्ड अनुभव

  • प्रबंधन प्राधिकरण वन्यजीवों की तस्करी के अन्वेषण हेतु एक विधिक रूपरेखा निर्मित करने का कार्य करेगा। यह वन्यजीव व्यापार और हस्तांतरण को नियमित, नियंत्रित करने एवं पर्यवेक्षण, निरीक्षण तथा निगरानी के लिये मंच भी प्रदान करेगा। अब ऐसे वन्यजीवों का पंजीकरण, जिनका निर्यात या आयात किया जाना है, परिवेश (PARIVESH) पोर्टल पर किया जा सकेगा।
  • यह वन्यजीव अपराधों का पता लगाने और सूचित करने में सीमा शुल्क अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है, यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में सीमा शुल्क अधिकारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता को भी संदर्भित करता है। इसके अतिरिक्त यह वन और सीमा शुल्क अधिकारियों के मध्य एक सहज समन्वय की आवश्यकता पर भी ज़ोर देता है।

वन्यजीव अपराध की बढ़ती सीमा पार प्रकृति को देखते हुए वन और सीमा शुल्क अधिकारियों के मध्य सहयोग के लिये बैठक एक स्वागत योग्य कदम है।

  • वैज्ञानिक प्राधिकरण निश्चित रूप से एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता अभी देखी जानी बाकी है। यह केवल तभी सर्वोत्तम रूप से कार्य कर सकता है जब जवाबदेही के साथ-साथ इसको पर्याप्त स्वायत्तता भी प्रदान की जाए।

मौजूदा अनुसूचियों का युक्तिकरण और एक नई अनुसूची को समाविष्ट करना: मौजूदा छह अनुसूचियों को घटाकर चार करना। चौथी अनुसूची CITES प्रजातियों से संबंधित है। यह एक स्वागत योग्य कदम है।

फील्ड अनुभव

  • 6 अनुसूचियों का अस्तित्व- इनमें से विशेष रूप से अनुसूची I से IV ने क्षेत्रीय कर्मचारियों के मध्य भ्रम की स्थिति निर्मित की है। गलत अनुसूची में वर्गीकरण सज़ा की मात्रा और उनसे निपटने के तरीके को पूरी तरह से परिवर्तित कर सकता है। उदाहरण के लिये अनुसूची I या अनुसूची II या इसके भाग II की प्रजातियों के विरुद्ध अपराधों को अनुसूची III या IV में सूचीबद्ध वन्यजीवों के विपरीत समाविष्ट नहीं किया जा सकता है। मौजूदा छह अनुसूचियों को घटाकर चार करना- जिनमें से अनुसूची I को सर्वोच्च संरक्षण दिया गया है, जो कि इससे संबंधित भ्रम को दूर करती है क्योंकि अक्सर अनुसूची II के भाग I को उसी अनुसूची के भाग II के साथ मिला दिया जाता था।
  • संशोधित नवीन अनुसूची- अनुसूची IV में CITES प्रजातियाँ शामिल हैं, यह अब तक का एक महत्त्वपूर्ण विकास है क्योंकि पूर्व में प्रजातियों के खिलाफ वन्यजीव अपराध को किसी भी अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं किया गया था, जिससे कि उनका संज्ञान नहीं लिया जा सकता था। बाज़ार में विदेशज पक्षियों की खुलेआम तस्करी या उन प्रजातियों के शिकार से प्राप्त पशु उत्पादों के कई मामले सामने आए हैं जो किसी भी अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं थे- जैसे गैलिफ स्ट्रीट, कोलकाता या नखास पक्षी बाज़ार, लखनऊ- इन सभी मामलों में वन्यजीव अपराधियों से सीधा मुकाबला करने में वन विभाग स्वयं को असहाय महसूस कर रहा है।

अब ऐसे मामलों के अन्वेषण की उम्मीद है।

प्रवासी जीव भी सुरक्षा के पात्र हैं- क्योंकि वन्य प्राणी के रूप में ये भी महत्त्वपूर्ण हैं

B. आक्रामक विदेशज प्रजातियों का मुकाबला करना

2022 का संशोधन आक्रामक विदेशज प्रजातियों (IAS) के प्रबंधन से संबंधित है। यह धारा 2(16A) को शामिल करता है जो आक्रामक विदेशज प्रजातियों (IAS) को "जीव या वनस्पति की एक प्रजाति के रूप में परिभाषित करता है जो भारत के मूल अधिवासी नहीं है एवं जिनका परिचय या प्रसार वन्यजीवन या उनके निवास स्थान को खतरे में डाल सकता है या प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है"।

WPA में संशोधन अब केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशज प्रजातियों के आयात, व्यापार, आधिपत्य या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है। आक्रामक विदेशज प्रजातियाँ जीव या वनस्पति की ऐसी प्रजातियों को संदर्भित करती हैं जो भारत के मूल अधिवासी नहीं हैं एवं इनके परिचय से वन्यजीव या इनके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। केंद्र सरकार आक्रामक प्रजातियों को जब्त करने और इनके निपटान के लिये एक अधिकारी को अधिकृत कर सकती है।

फील्ड अनुभव

आक्रामक विदेशज प्रजातियों का मुकाबला करना एक बड़ा मुद्दा है- इसमें वनस्पति और जीव दोनों शामिल हैं। वनस्पतियों में लैंटाना एसपीपी तथा प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा व्यापक आक्रामक विदेशज प्रजातियों में से हैं जो देशज प्रजातियों की कीमत पर विकसित होती हैं एवं धीरे-धीरे किंतु निश्चित रूप से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं। अक्सर ये प्रजातियाँ पहुँच से दूर होती हैं और इससे जंगली शाकाहारियों का चारे या चारे की तलाश में मानव आवासों की ओर जाने का जोखिम उत्पन्न होता है। साथ ही यह मांसाहारियों को भी प्रभावित करता है एवं अनजाने में इस तरह के अहानिकर दिखने वाले वनस्पति मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि करते हैं। इसे गिर के वन्य परिदृश्य में भी देखा जाता है। इसलिये लैंटाना का उन्मूलन गिर वनों में किये जाने वाले नियमित सांस्कृतिक कार्यों में से एक है। यह न सिर्फ गिर वनों को हानि पहुँचाते हैं, बल्कि लैंटाना कैमरा और अन्य लैंटाना एसपीपी बाघ अभयारण्य के स्थानीय पारितंत्र को भी बृहत् स्तर पर हानि पहुँचाते हैं।

कट रूट स्टॉक विधि और सी.आर. बाबू द्वारा अपनायी विधि जैसे तकनीकी विधियों को वर्तमान में क्षेत्रीय स्तर पर लागू किया जा रहा है।

इस प्रकार आक्रामक विदेशज प्रजातियों के प्रबंधन पर ध्यान देने के साथ WPA में किये गए नवीन संशोधन एक सकारात्मक व्यावहारिक अभिविन्यास की अनुभूति कराते हैं।

C. वन्यजीव अपराधों के निवारण एवं दंड के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग

इसे निम्नानुसार समझा जा सकता है:

  • ड्रोन या रडार के माध्यम से वन्य क्षेत्रों की निगरानी।
  • वन्यजीवों की रेडियो-कॉलरिंग से विशेष रूप से प्रमुख वन्य प्राणियों एवं उनके आवागमन पर निगरानी रखी जा सकती है।
  • संवेदनशील स्थानों पर कैमरा ट्रैप और CCTV का उपयोग।
  • वन्यजीव अपराध अन्वेषण में डॉग स्क्वॉड की तैनाती।
  • वास्तविक समय के आधार पर गश्त अवसंरचना का मानचित्रण करने के लिये KML जैसे एप्लीकेशन का उपयोग।
  • भूमि अतिक्रमण की जाँच करने के लिये Google अर्थ जैसे अनुप्रयोगों का उपयोग।
  • वन आवरण के लिये सैटेलाइट चित्रों का उपयोग- भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India- FCI) द्वारा किया गया।
  • वास्तविक समय के आधार पर वनाग्नि की निगरानी- MODIS आवेदन और भारतीय वन सर्वेक्षण इन्फ्रारेड एवं थर्मल इमेजिंग सेंसर का उपयोग।
  • फील्ड स्टाफ के आवागमन पर निगरानी- वाहनों और पैदल निगरानी सुनिश्चित करना।
  • जियो-टैगिंग के लिये GPS आधारित कैमरा एप्लीकेशन... जिसे नीचे दर्शाया गया है।

गिर वन में शेरों की रेडियो-कॉलरिंग

गिर (पश्चिम) वन मंडल के लिये मेरे द्वारा तैयार की गई केएमएल फाइल का उदाहरण। इसमें वास्तविक समय के आधार पर Google अर्थ पर गस्त अवसंरचना का मानचित्रकरण किया गया है।

D. बढ़े हुए दंड

2022 के संशोधन ने वन्यजीव अपराधों के लिये दंड में वृद्धि की है और यह ठीक भी है क्योंकि दंड की दरें वर्तमान वन्यजीव अपराधों के खिलाफ आर्थिक जाँच में निवारक के रूप में पर्याप्त नहीं थीं।

उल्लंघन के प्रकार 1972 का अधिनियम 2022 का संशोधन
सामान्य उल्लंघन 25,000 रुपए तक 1,00,000 रुपए तक
विशेष रूप से संरक्षित जीव 10,000 रुपए तक 25,000 रुपए तक

E. सामुदायिक पहुँच

हमें समुदायों, विशेष रूप से ज्ञात आपराधिक इतिहास वाले कुछ जनजातीय समूहों को वन्यजीव अपराध में शामिल होने से रोकने के लिये दंडात्मक कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है बल्कि गरीबी और वन्यजीव अपराधों में लिप्त होने के मूल कारण को जानने की आवश्यकता है। इसका मतलब यह है कि वन्यजीव अपराधों के प्रति समुदायों को संवेदनशील बनाने तथा उन्हें वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने के लिये दोतरफा दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो स्थायी आधार पर वन्यजीव अपराधों का सामना करने के लिये आवश्यक है।

फील्ड अनुभव

  • मध्य प्रदेश में वन विभाग सक्रिय रूप से आदिवासियों से MFP और NTFP के तहत खरीद कर रहा है। राज्य का सहकारी मॉडल विंध्य हर्बल्स का समर्थन कर रहा है। आदिवासियों को इस तरह के समर्थन का वन विभाग द्वारा अन्यत्र भी अनुकरण किया जाना चाहिये।
  • कार्बी-एंगलोंग जनजाति को पर्यटकों के लिये स्मृति चिह्न के रूप में जनजातीय हस्तशिल्प, पाक कला और अन्य कलाकृतियों को बढ़ावा देने हेतु असम वन विभाग द्वारा सहायता प्रदान की जाती है ताकि उन्हें आकर्षक गैंडे के सींग की अवैध तस्करी के कारोबार से रोका जा सके।
  • इको-टूरिज़्म गाइड और वन संरक्षक के रूप में रोज़गार- सिद्दी जनजाति गिर राष्ट्रीय उद्यान में सफारी-ड्राइवर के रूप में कार्यरत हैं, बिश्नोई जोधपुर में कृष्ण मृग के संरक्षण के लिये कार्यरत हैं।
  • पैसे कमाने के लिये आदिवासी संस्कृति और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन- अरुणाचल प्रदेश के ईगलनेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में मोनपा जनजाति द्वारा अजी लामू नृत्य और पारंपरिक बुगुन जैसे जनजातीय नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है।
  • चिड़ियाघरों में जानवरों को गोद लेना- ऐसी योजना जिसमें लोग स्वेच्छा से सीमित समय अवधि के लिये चिड़ियाघर में एक चुनिंदा जानवर के भोजन का खर्च वहन करते हैं। जैसे- मोहाली के छतबीड़ ज़ू में ऐसा किया जा रहा है। इससे लोगों को भावनात्मक रूप से वन्यजीवों से जुड़ने में मदद मिलती है।
  • संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) के माध्यम से जनजातियों को शामिल करना, उनकी जीवनशैली को वन प्रबंधन के साथ जोड़ना। JFM की कार्यक्षमता को सही तरीके से सुनिश्चित करना ताकि वे निरर्थक और उद्देश्यहीन न हों।
  • वन मज़दूरों के रूप में आदिवासियों का रोज़गार: दूसरी पंचवर्षीय योजना ने सभी राज्यों में बढ़ती संख्या को देखते हुए वन श्रमिक समितियों और सहकारी समितियों की स्थापना की सिफारिश की। यह योजना उन वन ठेकेदारों को हटाने के लिये थी, जिन्होंने पारंपरिक रूप से कार्य करने की स्थिति तथा खराब पारिश्रमिक के साथ आदिवासियों के श्रम का शोषण किया है।
  • विकास के अन्य पहलुओं को वन विभाग की योजना से जोड़ने वाली ग्राम स्तरीय योजनाएँ तैयार करना।

इसके अतिरिक्त विश्व वन्यजीव सप्ताह, विश्व पर्यावरण दिवस, विश्व शेर दिवस आदि कार्यक्रमों के उत्सव में समुदायों तक पहुँचना सद्भावना उत्पन्न करने में मदद करता है। समुदायों के साथ विभिन्न आयोजनों जैसे- 'सिंह सेतु' (वन्यजीव पर समुदायों के साथ संवाद और वन विभाग से इन समुदायों की अपेक्षाएँ) पर बैठकों का नियमित आयोजन शेरों के संरक्षण में सक्रिय जनभागीदारी का तरीका है, यह महत्त्वपूर्ण रूप से वन्यजीवों के लिये सांस्कृतिक सहिष्णुता बनाए रखने में सहायता करता है।

  गिर में विश्व शेर दिवस समारोह  

गिर संवाद सेतु आमजन के साथ दोतरफा वार्ता के रूप में कार्य करता है - यह समुदाय की वन विभाग से अपेक्षाओं को जानने में सहायता करता है।
युवाओं और बच्चों को वन्य जीवन और वनों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये गिर वन में प्रकृति शिक्षा शिविर आयोजित किये गए

संक्षेप में, वन्यजीव संरक्षण संरचना को मज़बूत करने के अवसरों को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है:


  वन्यजीव संरक्षण संरचना हेतु संभावित खतरे  

मानवीय आवश्यकताओं हेतु नियमित रूप से वनों का अतिक्रमण होता है, ऐसे स्थानों पर वन्यजीवों के आवासों पर मौजूदा संकट की पहचान करना तथा हमारे वन्यजीवों पर भविष्य में आने वाले संकट का अनुमान लगाना महत्त्वपूर्ण है। मैं विनम्रतापूर्वक इस प्रकार के संकट पर विचार करना चाहता हूँ:

A. वनों का विखंडन/बिखराव

यह सर्वविदित है कि मानव निर्मित कंक्रीट के जंगल प्राकृतिक जंगल से कहीं अधिक आगे निकल गए हैं, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उद्देश्य हालाँकि हितकारी हैं फिर भी इसके चलते निश्चित रूप से नकारात्मक उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, इस खंड का निहितार्थ पहले से इंगित कमियों के साथ-साथ वनों के विखंडन के लिये वनीय ग्रामों को राजस्व ग्राम में परिवर्तित करने के लिये वनों के बीच राजस्व भूमि बनाना है। इससे वनों के विभाजन के साथ-साथ जंगलों का विखंडन हो सकता है, जो कि वन्यजीवों के लिये गंभीर संकट उत्पन्न करता है क्योंकि यह हाथी और शेर या बाघ जैसे बड़े जानवरों के क्षेत्र को बाधित करता है।

इसी प्रकार वन क्षेत्र के माध्यम से सड़क या रेल जैसी रेखीय अवसंरचना के विकास से वनों के विखंडन के अतिरिक्त वन्यजीवों का शिकार या उनकी हत्या हो सकती है।

फील्ड अनुभव

अकेले गिर क्षेत्र में वर्ष 1982 से वर्ष 1997 के बीच लगभग बारह शेरों की मृत्यु रेल दुर्घटनाओं के कारण हुई। इसी प्रकार बाघिन अवनि की सड़क दुर्घटना में हुई मौत से लोग वाकिफ हैं।

वनों का और अधिक विखंडन मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ा सकता है।

आगे की राह

  • हाथियों और बाघों की आवाजाही के लिये ईको ब्रिज तथा अंडरपास का निर्माण। उदाहरण- कालाढूंगी-नैनीताल राजमार्ग पर निर्मित इको-ब्रिज।
  • वनीय ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने हेतु एफआरए (FRA) अधिनियम पर पुनर्विचार किया जा सकता है, जिसके लिये वनों को खंडित किये बिना आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वन निवास समुदायों के अधिकारों को पूरा करने के लिये ऐसी नीति तैयार करने का प्रयास किया जाना चाहिये- क्षेत्र में वैकल्पिक बस्तियाँ एक अच्छा विचार हो सकता है।

B. सामुदायिक महत्त्वाकांक्षा

वनों पर आदिवासियों की निर्भरता निश्चित रूप से कम देखने को मिलती है।

उनके भौतिक लक्ष्य बेहतर बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं की मांग करते हैं, जो वनों के कारण प्रत्यक्ष रूप से वन्यजीवों के निवास स्थानों पर देखने को मिल सकता है।

इसी प्रकार सामान्य सामुदायिक जीवनशैली में भारी बदलाव यह देखने को मिला है कि वर्तमान भूमि उपयोग के प्रारूप में बदलाव को प्रतिबंधित करना एक कठिन कार्य है, जैसा कि सामुदायिक रिज़र्व या पश्चिमी घाट जैसे पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्रों में- एक जैवविविधता हॉटस्पॉट के मामले में देखा जाता है।

आगे की राह

  • समुदाय की वास्तविक आजीविका की आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाना चाहिये- जैसे लघु वन उपज की कटाई उस स्तर तक हो जिस पर वन अपने संसाधनों की पुनः पूर्ति कर सकें।

C. वन्यजीव अपराध एवं सांस्कृतिक निहितार्थ

बहेलिया, मिशिकारी या नागा आदि जैसे आखेटक जनजातियों को अवैध शिकार गतिविधियों में शामिल होने के लिये जाना जाता है, लेकिन चिंता की बात यह है कि ये लोग मवेशियों के शिकार, नीलगाय या जंगली सूअरों से फसल को बचाने के लिये तेंदुए या बाघ जैसे वन्यजीवों की प्रतिशोधात्मक हत्या का सहारा लेते हैं जिससे मानवीय क्षति होती है। बढ़ते मानवजनित दबावों से होने वाले मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणामस्वरूप वन्यजीवों के खिलाफ अपराधों के प्रति बढ़ती सांस्कृतिक सहिष्णुता वन्यजीव संरक्षण के लिये एक बड़ा खतरा है, जिसके लिये डब्ल्यूपीए (WPA) को सही मायने में लागू किया जा रहा है।

आगे की राह

सामुदायिक दृष्टिकोण और संवेदीकरण, वन्यजीव अपराधों के प्रति बढ़ती सहिष्णुता का समाधान है। समुदाय या धार्मिक नेताओं को जोड़ने जैसे नवाचारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, गुजरात में।

  • 'व्हेल शार्क बचाओ अभियान' की शुरुआत करने के लिये धार्मिक नेता मोरारी बापू को शामिल किया गया था।
  • ‘करुणा अभियान’ वार्षिक रूप से पक्षियों के लिये बचाव अभियान है, जब पतंगबाज़ी उत्सव के दौरान पतंगबाज़ी के कारण पक्षी घायल हो जाते हैं, जिनके बचाव के लिये उत्तरायण (गैर-सरकारी संगठन) के सक्रिय सहयोग से वन विभाग द्वारा यह अभियान चलाया जाता है। सामुदायिक पहुँच बनाने के लिये इस अभियान का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है एवं हानिकारक चीनी माँझा का प्रयोग न करने के लिये समुदाय से आग्रह किया जाता है।

D. संगठित अपराध

संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime- UNODC) के अनुसार, वन्यजीव तस्करी अपराध ड्रग्स, हथियारों और मानव तस्करी के बाद चौथा सबसे बड़ा संगठित अपराध की श्रेणी में आता है।

ये सिंडिकेट (संघ) और कार्टेल (उत्पादक संघ) हैं, जो घातक हथियारों के साथ-साथ हाई-एंड टेक्नोलॉजी तथा अनुभवी शिकारियों से युक्त हैं।

  छवि सौजन्य: डब्ल्यूसीसीबी  

इंटरनेट पर डार्क-वेब और डीप-वेब इंटरनेट के ऐसे भाग हैं, जो सर्च इंजन के माध्यम से ब्राउज़ पर नियमित खोज करने योग्य नहीं हैं, जो वन्यजीव लेखों की तस्करी हेतु बाज़ार के रूप में कार्य करते हैं। साइबर-समर्थित वन्यजीव अपराध जिसे साइबर-अवैध शिकार कहा जाता है, निरंतर रूप से बढ़ रहा है जो कि हमारे वन्यजीवों के लिये एक बड़ा खतरा है। सोशल मीडिया ने इस बाज़ार में और बढ़ोतरी की है।

इस प्रकार शिकारी केवल इस व्यापक समस्या के शुरुआती सूक्ष्मतम भाग हैं- ये वन्यजीव अपराध के मामले में शामिल होते हैं लेकिन आवश्यक संसाधनों के अभाव के कारण उन्हें इसका पूरा लाभ नहीं मिलता है 'व्यापक स्तर' पर इसका लाभ इस शृंखला की अंतिम कड़ी पर अवस्थित लोगों को होता है।

आगे की राह

  • वन्यजीवों से प्राप्त उत्पादों की मांग को कम करने पर ध्यान देना चाहिये। इसके लिये निम्नलिखित जन आंदोलनों के माध्यम से जागरूकता उत्पन्न की जा सकती है, जैसे:
    • ऐसे उत्पादों का त्याग करने हेतु जनता के बीच वन्यजीवों के लिये सहानुभूति उत्पन्न करना।
    • लोगों को वन्यजीवों से प्राप्त उत्पादों के बारे में जागरूक करने हेतु शिक्षित करना क्योंकि कई बार वे अज्ञानतावश उपयोग किये जा रहे उत्पाद के बारे में जागरूक नहीं होते हैं।
  • WPA (वन्यजीव संरक्षण अधिनियम) साइबर- अवैध शिकार और संगठित अपराधों से निपटने के प्रावधानों से युक्त है।
  • वन्यजीव अपराधों की रोकथाम, जाँच और सज़ा में वन्यजीव फोरेंसिक एवं वनकर्मियों की क्षमता निर्माण को मज़बूत करना।

E. नीति उद्देश्य

हाल ही में हुए वर्ष 2022 के संशोधन ने WPA को पहले से कहीं अधिक सुसज्जित कर दिया है, इस संशोधन द्वारा प्रदान किये गए कुछ अचूक प्रावधान भी हैं जो वन्यजीव संरक्षण हेतु सही नहीं हैं। मैं उन्हें निम्नानुसार सूचीबद्ध करता हूँ:

हाथी- एक बड़ी समस्या

  • WPA की पहली अनुसूची की धारा 43 में यह संशोधन किया गया है कि 'धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य' के लिये हाथियों का उपयोग करने की अनुमति देना अनिवार्य है।
    • अनुसूची I, संभावित रूप से ‘किसी अन्य उद्देश्य' की व्यावसायिक उपयोगिता का सुझाव देता है।
    • इसके अतिरिक्त यह खंड स्पष्ट रूप से समाज के कुछ वर्गों की सांस्कृतिक संवेदनशीलता के निहितार्थों को पुष्ट करने वाला प्रतीत होता है, लेकिन एक तथ्य जो कि सर्वविदित है, वह यह है कि सांस्कृतिक संवेदनशीलताके कारण इन वन्य प्राणियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और इन प्रावधानों ने इसे बढ़ावा देने का कार्य किया है। जैसे कि हम वर्तमान में देख रहे हैं कि जल्लीकट्टू एक खतरनाक रूप ले चुका है। इसी प्रकार कर्नाटक के कम्बाला या उत्तर-पूर्व भारत में मुर्गे की लड़ाई या ऐसे अन्य 'सांस्कृतिक' आयोजनों को वैध बनाने के लिये नए सिरे से मांग की जाएगी, जिसमें जंगली या घरेलू पशुओं की मांग बढ़ सकती है।

यह निश्चित रूप से ए नागराज केस (वर्ष 2014) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विपरीत है, जिसने जानवरों की उपयोगिता पर उनके अधिकारों को बरकरार रखा था।

इसलिये यह पहचान और सांस्कृतिक निहितार्थों के जटिल सामंजस्य को उजागर कर सकता है।

  • शक्तियों का कथित केंद्रीकरण: नवीन संशोधन स्थायी समितियों के गठन की अनुमति देता है, जो अंततः WPA की धारा 6 के तहत गठित राज्य वन्यजीव बोर्ड के अधिकार को कम कर देगा।

उल्लेखनीय है कि WPA की धारा 5A के तहत गठित राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की वर्ष 2014 के बाद से एक बार भी बैठक नहीं हुई है, क्योंकि इस तरह की ज़िम्मेदारियाँ केंद्र सरकार की स्थायी समिति द्वारा ली गई थीं। हालाँकि यह संभव है कि राज्य वन्यजीव बोर्डों का भी ऐसा ही हाल होगा।

इसी प्रकार एक जंगली जानवर को वर्मिन के रूप में घोषित करना, जो राज्य सरकार पर केंद्र सरकार के विशेषाधिकार को दर्शाता है।

आगे की राह

कुल मिलाकर WPA में वर्ष 2022 के संशोधनों ने राष्ट्र के वन्यजीव संरक्षण संरचना को मज़बूत करने के लिये कई प्रावधान किये हैं, लेकिन उपरोक्त संशोधन पुनः विचार योग्य हैं क्योंकि यह वन्यजीव संरक्षण के सर्वोत्तम हित में होना चाहिये।

उपर्युक्त उल्लिखित संभावित खतरों पर संक्षिप्त पुनः दृष्टि


  WPA के 50 वर्षों पर मेरे विचार  

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम समग्र रूप से एक प्रशंसनीय कानून है क्योंकि वर्ष 1991, 2006 तथा वर्ष 2022 के प्रमुख संशोधनों के माध्यम से यह वनों के निरंतर विकास में समय की कसौटी पर आधी सदी से भी अधिक समय तक खरा उतरा है।

इस SWOT विश्लेषण के माध्यम से मैं यह बताना चाहता हूँ कि एक ओर हमें इस अधिनियम की शक्ति और सकारात्मकता को ध्यान में रखना चाहिये, वहीं दूसरी ओर वन्यजीव संरक्षण के महान उद्देश्य के लिये इस कानून की कमियों पर ध्यान देना चाहिये, साथ ही हमें समकालीन संकटों का सामना करते हुए वन्यजीव संरक्षण को मज़बूत करने के लिये विश्व भर से मिली सीख, अवसरों और अच्छी प्रथाओं का भी उपयोग करना चाहिये।

मैं यह बताना चाहता हूँ कि वर्ष 1972 में इस अधिनियम का अधिनियमन वाशिंगटन कन्वेंशन के बाद CITES में शामिल होने की भारतीय महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित था। इसी प्रकार वर्ष 2005 के बाद सरिस्का टाइगर रिज़र्व प्रकरण (जब वन्यजीव वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा इस लोकप्रिय रिज़र्व में एक भी बाघ नहीं देखा गया था) के पश्चात् हंगामे की स्थिति थी, जिसके बाद वन्यजीवों हेतु राष्ट्रीय और राज्य बोर्डों (NBWL & SBWL) का गठन किया गया, जिसे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) तथा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) ने वास्तविक रूप दिया।

यहाँ तक कि इस ऐतिहासिक कानून में वर्ष 2022 का हालिया संशोधन भी CITES के द्वारा संभावित खतरे का परिणाम था, जिसे एक प्रबंधन और वैज्ञानिक प्राधिकरण के निर्माण सहित कई CITES प्रावधानों के पुराने गैर-अनुपालन के रूप में माना जाता था।

इस प्रकार वन्यजीव संरक्षण अधिनियम द्वारा भारत का विधायी विकास काफी हद तक एक त्वरित और स्वाभाविक प्रतिक्रिया रहा है।

इसके अतिरिक्त इसका वांछित सक्रिय दृष्टिकोण सकारात्मकता को बढ़ाता है, कमियों, खतरों को दूर करता है तथा वन्यजीवों के संरक्षण के लिये इस कानून में दृढ़ता लाने हेतु अवसरों को कम करता है और 'प्रकृति माता' का समर्थन करता है।

अंत में, मैं यह निष्कर्ष देना चाहूँगा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के 50 वर्ष पूर्ण होने के साथ ही यह न केवल इस ऐतिहासिक कानून का जश्न मनाने का समय है, बल्कि आत्मनिरीक्षण करने और इसके प्रावधानों को सही तरीके से लागू करने हेतु सक्रिय रूप से कार्य करने का भी समय है... कानून केवल उतने ही प्रभावी होते हैं जितने उन्हें लागू करने वाले प्रभावी होते हैं”

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम- उन प्राणियों के लिये ऐसा अधिनियम जो स्वयं के लिये आवाज़ नहीं उठा सकते।

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