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Aurora मॉडल - मौसम प्रणाली का आधुनिकीकरण और भारत के लिये प्रेरणा

  • 06 Jun, 2025

मानव सभ्यता की प्रगति में मौसम पूर्वानुमान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह न केवल कृषि योजना के लिये आवश्यक है बल्किआपदा प्रबंधन, उड्डयन सुरक्षा और की अन्य  क्षेत्रों में भी सटीक समय पर पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण है। लंबे समय से मौसम विज्ञान पारंपरिक संख्यात्मक गणनाओं (Numerical Weather Prediction- NWP) पर निर्भर रहा है। ये मॉडल वातावरण के जटिल समीकरणों को सुपरकंप्यूटिंग संसाधनों के माध्यम से हल करते हैं। हालाँकि इन प्रणालियों की अपनी सीमाएँ भी रही हैं, जैसे कि धीमी प्रक्रिया, अत्यधिक ऊर्जा खपत और सीमित स्थानिक-सामयिक सटीकता। इस परिदृश्य में ‘Aurora मॉडल’ एक नवीन पहल के रूप में सामने आया है। यह मॉडल पारंपरिक पूर्वानुमान प्रणाली को प्रतिस्थापित नहीं करता बल्कि उसे पूरक बनाता है और सुधारता है। यह मॉडल विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मौसम संस्थानों द्वारा परीक्षणाधीन है। 

मौसम पूर्वानुमान का विकास 

मौसम पूर्वानुमान एक प्राचीन विज्ञान है, जो खगोल विज्ञान और प्राकृतिक घटनाओं पर आधारित रहा है। आधुनिक मौसम विज्ञान की शुरुआत 20वीं सदी में हुई, जब संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान (NWP) मॉडल्स और तकनीकों का विकास हुआ। नोर्बर्ट वीनर और लुइस फ्राई रिचर्डसन जैसे वैज्ञानिकों द्वारा वायुमंडलीय समीकरणों के गणितीय समाधान की संभावना प्रस्तुत की गई। संख्यात्मक मॉडल आज भी मौसम पूर्वानुमान की रीढ़ हैं। ये मॉडल वायुमंडल को ग्रिड में विभाजित करते हैं, हर ग्रिड बिंदु पर तापमान, दाब, आर्द्रता, पवन गति आदि से संबंधित डेटा का उपयोग करते हुए समीकरणों को हल करते हैं। इसमें वृहत् कंप्यूटिंग क्षमता की आवश्यकता होती है, जिसे आमतौर पर सुपर कंप्यूटर के माध्यम से पूरा किया जाता है।

  • पारंपरिक प्रणाली की सीमाएँ:
    • उच्च गणनात्मक लागत: मॉडल के संचालन में कई घंटे लग सकते हैं, जिससे ‘रियल-टाइम फोरकास्टिंग’ बाधित होती है।
    • संसाधन सीमाएँ: हर देश के पास ECMWF या NOAA जैसी संस्थानों के स्तर के सुपर कंप्यूटर नहीं होते।
    • स्थानिक-सामयिक सीमा: हाई-रेज़ोल्यूशन पर पूर्वानुमान करना महँगा और समय-साध्य सिद्ध होता है।
    • मॉडल अनिश्चितता: मौसमी कारकों की जटिलता के कारण कई बार पूर्वानुमान गलत होते हैं।
  • आधुनिक आवश्यकता:
    • आज की दुनिया में मौसम भविष्यवाणी केवल वैज्ञानिक अभ्यास नहीं बल्कि जलवायु न्याय, कृषि उत्पादकता और आपदा प्रबंधन का आधार बन चुकी है। IPCC की विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से चरम मौसमी घटनाओं (जैसे- चक्रवात, बाढ़, सूखा और हीटवेव) की आवृत्ति बढ़ रही है। इस संदर्भ में पारंपरिक मॉडल अब पर्याप्त नहीं रह गए हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा क्रांति:
    • मौसम पूर्वानुमान में AI की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। मशीन लर्निंग की शुरुआत एक वृहत् परिवर्तन को सूचित करती है। बड़े पैमाने पर रियल-टाइम डेटा, क्लाउड स्टोरेज और AI एल्गोरिद्म को समेकित किया जा रहा है तो संपूर्ण प्रणाली अधिक अनुकूलनीय, त्वरित एवं परिशुद्ध बनने लगी है। Aurora को इसी तकनीकी बदलाव के एक प्रतिनिधि मॉडल के रूप में देखा जा सकता है, जो बताता है कि मौसम विज्ञान अब केवल गणितीय समीकरणों से नहीं बल्कि डेटा पैटर्न की समझ से भी संचालित हो सकता है।

Aurora मॉडल क्या है?

Aurora एक नवीनतम AI आधारित मौसम पूर्वानुमान प्रणाली है, जिसे Microsoft Research द्वारा विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य पारंपरिक संख्यात्मक मॉडल्स के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना नहीं बल्कि उन्हें पूरक बनाकर मौसम पूर्वानुमान को अधिक सटीक, त्वरित एवं ऊर्जा-कुशल बनाना है।

  • पृष्ठभूमि:
    • Microsoft Research ने Aurora को विकसित करने में 40 वर्षों से अधिक के वैश्विक जलवायु डेटा का उपयोग किया है। इस प्रणाली को डीप लर्निंग तकनीकों से प्रशिक्षित किया गया है, जो विशाल जलवायु डेटासेट्स से पैटर्न सीखने में सक्षम होती हैं। इसका परीक्षण प्रमुख वैश्विक मौसम संस्थानों द्वारा किया जा रहा है, जैसे कि ECMWF द्वारा, जो इसे अन्य मौजूदा मॉडल्स के साथ तुलनात्मक रूप से प्रयोग कर रहा है।
  • मुख्य तकनीकी घटक:
    • Aurora को प्रशिक्षित करने के लिये वायुमंडलीय चर (जैसे- तापमान, दाब, आर्द्रता, वायुवेग आदि) के दशकों पुराने हाई-रेज़ोल्यूशन वैश्विक डेटा का प्रयोग किया गया। यह डेटा ग्रहों की  गतिविधियों, मौसम पैटर्न, समुद्र के उत्प्लव (Ocean Buoys) और अन्य स्रोतों से संकलित होता है।
    • मॉडल को Microsoft Azure पर विकसित और परिनियोजित किया गया है। क्लाउड के माध्यम से इसे अत्यधिक गणनात्मक संसाधन और ‘स्केलेबिलिटी’ मिली, जिससे यह कम समय में उच्च गुणवत्ता का पूर्वानुमान देने में सक्षम हो गया। यह सुविधा पारंपरिक सुपर कंप्यूटर-आधारित पूर्वानुमान प्रणालियों की तुलना में अधिक सुलभ और लचीली है।
    • Aurora में उपयोग की गई AI तकनीकें विशेष रूप से ट्रांसफॉर्मर-आधारित डीप-लर्निंग मॉडल्स पर आधारित हैं, जो नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) में भी क्रांतिकारी रही हैं। इस तकनीक ने जलवायु डेटा के अंतर-संबंधों को समझने में नाटकीय सुधार प्रदान किया है।
  • प्रदर्शन (Performance Metrics):
    • सटीकता (Accuracy): एक आंतरिक परीक्षण में पाया गया कि Aurora का पूर्वानुमान ECMWF द्वारा प्रयुक्त अन्य स्थापित मॉडलों के समान या कभी-कभी उससे बेहतर रहा है (विशेषकर 5-दिन और 10-दिन के पूर्वानुमानों के मामले में)।
    • गति (Speed): जहाँ पारंपरिक मॉडल्स को पूर्वानुमान के सृजन में घंटों लगते हैं, वहीं Aurora इसे मिनटों में संपन्न कर सकता है।
    • ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency): पारंपरिक मॉडल की तुलना में Aurora 10-40 गुना अधिक ऊर्जा-कुशल है।
    • सुलभता (Accessibility): Aurora को सीमित संसाधनों वाले देशों के लिये एक निम्न लागतपूर्ण और द्रुतगामी विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • तुलनात्मक दृष्टिकोण:.
    • Aurora को कई अन्य AI-आधारित मौसम प्रणालियों (जैसे- Google DeepMind का GraphCast, Huawei का Pangu-Weather, NVIDIA का FourCastNet आदि) के साथ तुलनात्मक अध्ययन में रखा गया है। इन सभी मॉडलों ने AI की शक्ति को दर्शाया है, लेकिन Microsoft का Aurora, विशेष रूप से क्लाउड इंटीग्रेशन और ऊर्जा दक्षता के कारण, एक उल्लेखनीय मॉडल की प्रस्तुति करता है।

डेटा, क्लाउड कंप्यूटिंग और AI का त्रिकोण 

Aurora मॉडल में तीन अत्यंत शक्तिशाली प्रौद्योगिकियों का समन्वय किया गया है। इन तीनों का एकीकृत उपयोग मौसम पूर्वानुमान को पारंपरिक वैज्ञानिक विधियों से एक नई दिशा की ओर ले जाता है। 

  • बिग डेटा – मौसम डेटा की वृहतता
    • मौसम पूर्वानुमान में असाधारण मात्रा में डेटा का प्रयोग किया जा रहा है:
      • प्रतिदिन 100 टेराबाइट्स से अधिक मौसम संबंधी डेटा उत्पन्न होता है।
      • डेटा के स्रोत: उपग्रह, रडार, IoT डिवाइसेज़, समुद्री सेंसर, मोबाइल एप्स आदि।
    • Aurora इस विशाल डेटा को उपयोगी ज्ञान में बदलता है:
      • दीर्घकालिक पैटर्न अधिगम के लिये
      • भौगोलिक क्षेत्रवार अनुकूलन के लिये
      • अलग-अलग स्रोतों से एकीकृत डेटा का विश्लेषण कर समेकित पूर्वानुमान के लिये (मल्टी-सोर्स फ्यूज़न)
  • क्लाउड कंप्यूटिंग – स्केलेबिलिटी और गति की शक्ति
    • Microsoft Azure पर आधारित Aurora मॉडल, क्लाउड की निम्नलिखित क्षमताओं का उपयोग करता है:
      • स्केलेबिलिटी: जितना डेटा, उतना संसाधन — मांग के अनुसार स्केलिंग करना।
      • तेज़ प्रोसेसिंग: GPU-इनेबल्ड क्लस्टर्स पर त्वरित मॉडल रनिंग।
      • रियल-टाइम पूर्वानुमान: बिना देरी के अपडेट सृजित करना।
      • निम्न लागत: हार्डवेयर निवेश की आवश्यकता नहीं।
    • ऐसे क्लाउड मॉडल्स विशेषकर उन देशों के लिये उपयोगी हैं, जिनके पास स्वयं की सुपर कंप्यूटिंग अवसंरचना नहीं है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता
    • AI मॉडल्स (विशेष रूप से Deep Neural Networks और Transformers) मौसम डेटा में वैसे पैटर्न की पहचान कर सकते हैं, जिन्हें पारंपरिक मॉडलों में पकड़ना कठिन होता है:
      • समय में परिवर्तन (Temporal dynamics) 
      • स्थानिक सह-संबंध (Geospatial correlations)
      • अनिश्चितता का मूल्यांकन (Uncertainty modeling)

भारत की वर्तमान क्षमताएँ और अंतराल 

  • वर्तमान क्षमताएँ:
    • भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) और इसके अधीनस्थ अन्य संस्थान (जैसे- NCMRWF, IITM-Pune आदि) देश में मौसम पूर्वानुमान के प्रमुख स्तंभ हैं। भारत ने पिछले दो दशकों में मौसम पूर्वानुमान प्रणाली के डिजिटलीकरण और उच्च क्षमता वाले संख्यात्मक मॉडल के क्षेत्र में व्यापक गति की है:
      • मॉडल्स:
        • NCUM (NCMRWF Unified Model): ब्रिटेन के Met Office से प्राप्त उन्नत संख्यात्मक मॉडल, जिसे भारत के लिये अनुकूलित किया गया है।
        • WRF (Weather Research and Forecasting Model): उच्च-रेज़ोल्यूशन से संपन्न क्षेत्रीय पूर्वानुमान हेतु।
        • MME (Multi-Model Ensemble): कई मॉडल्स का संयोजन, अनिश्चितता को कम करने के लिये।
      • सुपरकंप्यूटिंग अवसंरचना:
        • Mihir (Pune) और Pratyush (Noida) जैसे हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग (HPC) क्लस्टर्स, जिनकी संयुक्त क्षमता लगभग 10 पेटाफ्लॉप्स है।
      • डेटा स्रोत:
        • INSAT और METSAT जैसे स्वदेशी उपग्रह।
        • Doppler रडार नेटवर्क (150+ रडार स्टेशनों के साथ)।
        • ऑटोमेटेड वेदर स्टेशन (AWS) और मोबाइल एप्लिकेशन (उदाहरण : मौसम, मेघदूत)।

    • मुख्य अंतराल:
      • डेटा विविधता और एकत्रीकरण की सीमा:

        • भारत में अनेक मौसम डेटा स्रोत मौजूद हैं, लेकिन इनका एकीकरण और मानकीकरण अभी भी अपूर्ण है।
        • रियल-टाइम डेटा प्रोसेसिंग सीमित है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
      • AI/ML आधारित पूर्वानुमान प्रणाली का अभाव:
        • AI आधारित मॉडलिंग अभी प्राथमिक चरण में है।
        • अधिकांश प्रयास प्रायोगिक (pilot) या शैक्षणिक संस्थानों तक सीमित हैं।
      • क्लाउड अवसंरचना की सीमित भूमिका:
        • IMD अभी भी पारंपरिक ऑन-प्रिमाइसेस सर्वर और HPC मॉडलिंग पर निर्भर है।
        • क्लाउड-आधारित स्केलेबिलिटी का लाभ पूर्णतः नहीं उठाया गया है।
      • प्रशिक्षित मानव संसाधन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:
        • AI और क्लाइमेट साइंस के बीच अंतःविषयक विशेषज्ञों की कमी है।
        • निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स की भागीदारी अभी तक सीमित रही है।

    भारत के लिये प्रेरणा और सुझाव 

    प्रेरणा के प्रमुख बिंदु

    • मौसम पूर्वानुमान का लोकतंत्रीकरण:
      • Aurora जैसी प्रणाली का उद्देश्य केवल बड़े अनुसंधान केंद्रों तक सीमित रहना नहीं बल्कि लोक-उपयोग के लिये पूर्वानुमान सुलभ कराना है। भारत जैसे देश में, जहाँ किसान, मछुआरे, आपदा-प्रबंधन एजेंसियाँ और अन्य मौसम की जानकारी पर निर्भर होते हैं, यह दृष्टिकोण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • क्लाउड-आधारित पूर्वानुमान की शक्ति:
      • भारत को पारंपरिक सुपरकंप्यूटिंग से आगे बढ़ते हुए Cloud-Native संरचना की ओर जाना चाहिये, ताकि संसाधनों का अधिकतम उपयोग संभव हो सके।
    • AI मॉडल की सटीकता और गति में योगदान:
      • Aurora पुष्टि करता है कि डीप-लर्निंग, ट्रांसफॉर्मर और AI मॉडलिंग पूर्वानुमान की सटीकता तथा द्रुत डिलीवरी में योगदान कर सकते हैं, जो मानसून जैसी जटिल प्रणालियों के लिये विशेष लाभकारी है।

    भारत के लिये रणनीतिक सुझाव 

    • एक राष्ट्रीय AI-मौसम प्लेटफॉर्म का विकास:
      • IMD और IIT जैसे संस्थानों को समवेत प्रयास से AI आधारित मॉडलों का विकास एवं परीक्षण करना चाहिये।
      • राष्ट्रीय स्तर पर ‘India Climate AI Grid’ की स्थापना पर भी विचार किया जा सकता है।
    • ओपन डेटा और ओपन API नीति:
      • भारत सरकार को मौसम डेटा को अधिक खुला और मानकीकृत बनाना चाहिये, ताकि स्टार्टअप, कृषि टेक कंपनियाँ एवं रिसर्च संस्थान इनका लाभ उठा सकें।
    • क्लाउड-फर्स्ट नीति (Cloud-First Policy):
      • IMD और MoES को अपनी नई प्रणालियों को ‘क्लाउड-फ्रेंडली’ बनाना चाहिये, विशेष रूप से आकस्मिक आपदाओं के लिये।
    • निजी क्षेत्र और स्टार्टअप की भागीदारी:
      • भारत में Skymet, Cropin और Blue Sky Analytics जैसे स्टार्टअप्स पहले से इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। उन्हें AI/Cloud इंटीग्रेशन के लिये सरकार के साथ PPP (Public-Private Partnership) मॉडल में लाया जाना चाहिये।
    • मानव संसाधन और प्रशिक्षण:
      • विश्वविद्यालयों में मौसम विज्ञान, डेटा साइंस और AI का अंतःविषयक पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जाए।

    चुनौतियाँ और संभावित समाधान 

    • प्रौद्योगिकीय चुनौतियाँ: IMD और अन्य एजेंसियाँ विविध प्रकार के स्रोतों से डेटा प्राप्त करती हैं, लेकिन उनमें संगतता तथा संरचना की कमी है। AI मॉडल को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने के लिये लेबल युक्त उच्च -गुणवत्ता वाले डेटा की आवश्यकता होती है, जिसकी उपलब्धता भारत में कई बार एक चुनौती हो सकती है।
      • समाधान: एक ‘राष्ट्रीय एकीकृत मौसम डेटा प्लेटफॉर्म’ (National Integrated Weather Data Grid) की स्थापना करना। IMD, ISRO, CWC, कृषि मंत्रालय आदि के डेटा को API और क्लाउड मानक के अनुसार समेकित किया जाए।
    • मानव संसाधन और विशेषज्ञता की कमी: भारत में AI और डेटा साइंस के विशेषज्ञ मौजूद हैं, लेकिन मौसम विज्ञान में  विशेषज्ञता के साथ AI को एकीकृत करने वाले विशेषज्ञों की कमी है। इस क्षेत्र में विश्व स्तरीय विशेषज्ञों का सहयोग लाभकारी हो सकता है।
      • समाधान: प्रमुख IITs, IISc और कृषि विश्वविद्यालयों में ‘AI for Earth Sciences’ जैसे विशेष स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आरंभ किये जाएँ। IMD और NCMRWF में AI आधारित मौसम पूर्वानुमान के लिये समर्पित अनुसंधान प्रभाग (Research Divisions) की स्थापना की जाए।
    • नीतिगत और संस्थागत बाधाएँ: मौसम डेटा का विभिन्न संस्थानों में विभाजन, डेटा साझा करने में देरी और नीतिगत अस्पष्टता  जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। क्लाउड सेवाओं का सार्वजनिक संस्थानों में क्लाउड सेवाओं का उपयोग अभी भी सीमित है, जो डेटा प्रबंधन और साझाकरण को प्रभावित करता है।
      • समाधान: सरकार को एक स्पष्ट ‘Climate Data Sharing and Use Policy’ लागू करनी चाहिये। IMD को AI एवं क्लाउड तकनीक अपनाने में नियमित प्रशिक्षण और बजट प्रावधान दिया जाना चाहिये।
    • वित्तीय और अवसंरचनात्मक बाधाएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में IoT आधारित मौसम स्टेशनों या उच्च गुणवत्ता के सेंसर का अभाव पाया जाता है। AI और क्लाउड समाधानों में आरंभिक निवेश अपेक्षाकृत अवहनीय हो सकता है।
      • समाधान: केंद्र सरकार की Digital India, AgriStack और Public Tech Infrastructure (PTI) परियोजनाओं के साथ इन प्रयासों का समन्वय किया जाए। विश्व बैंक, UNDP और GCF जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग लिया जाए।
    • सामाजिक स्वीकृति और स्थानीय अनुकूलन: ग्रामीण और किसान समुदायों के लिये  AI आधारित तकनीक को। स्थानीय भाषा में सुलभ बनाना एक बड़ी चुनौती हो सकती है खासकर जब तकनीकी ज्ञान और डिजिटल साक्षरता की कमी हो पहुँच सीमित हो।
      • समाधान: स्थानीय भाषाओं में स्मार्टफोन ऐप्स और SMS आधारित सूचना सेवाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। FPOs, कृषक मित्रों और पंचायत संस्थाओं के माध्यम से सूचना का प्रचार-प्रसार हो।

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