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भारतीय राजव्यवस्था

भारत में चुनाव सुधार

  • 03 Jun 2025
  • 23 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI),  मतदाता फोटो पहचान-पत्र (EPIC), RPA, 1951, EVM, VVPAT, ERONET (मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली), स्टार प्रचारक, टोटलाइज़र मशीन, आदर्श आचार संहिता (MCC), विधि आयोग, ARC। 

मेन्स के लिये:

चुनावी सुधारों की आवश्यकता और उन्हें संबोधित करने के तरीके। 

चुनाव सुधार क्या हैं?

परिभाषा:

  • चुनाव सुधार से तात्पर्य किसी देश में चुनावी प्रक्रिया की दक्षता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ाने के उद्देश्य से किये गए व्यवस्थित परिवर्तनों से है।

आवश्यकता:

  • भारत जैसे लोकतंत्र में, चुनाव राजनीतिक वैधता और नागरिक भागीदारी की आधारशिला होते हैं। इसलिये, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना लोकतांत्रिक शासन को बनाए रखने के लिये मूलभूत आवश्यकता है।
  • हालाँकि, समय के साथ, चुनावी प्रक्रिया को धन और बल का दुरुपयोग, राजनीति का अपराधीकरण, राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी और मतदान में कम भागीदारी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • इन मुद्दों पर काबू पाने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखने के लिये चुनावी सुधार अनिवार्य हो गए हैं। इन सुधारों का उद्देश्य कानूनी ढाँचे को मज़बूत करना, संस्थागत तंत्र में सुधार करना और चुनावी प्रणाली में जनता का विश्वास बहाल करना है।

संवैधानिक प्रावधान: 

  • संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने तथा संसद और राज्य विधानसभाओं के लिये चुनाव कराने का अधिकार प्रदान करता है।

वैधानिक ढाँचा:

  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1950: इसमें मुख्य निर्वाचन अधिकारी, ज़िला निर्वाचन अधिकारी और निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी जैसे चुनाव अधिकारियों के साथ-साथ संसदीय, विधानसभा और परिषद निर्वाचन क्षेत्रों के लिये मतदाता सूची के प्रावधान शामिल हैं। 
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: यह अधिनियम चुनाव-पूर्व प्रक्रिया, मुख्यतः मतदाता सूची की तैयारी और रखरखाव से संबंधित है।
  • निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत मतदाता सूची से संबंधित प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है।  
    • उदाहरणार्थ, मतदाता सूची में नाम शामिल करने, सुधारने या हटाने के लिये दिशा-निर्देश। 
  • परिसीमन अधिनियम, 2002: इसे नवीनतम जनगणना आँकड़ों के आधार पर संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।

भारत में प्रमुख चुनाव सुधार क्या हैं?

वर्ष 1996 से पहले के चुनाव सुधार:

  • 61वें संशोधन अधिनियम, 1988 के द्वारा मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इससे अधिक युवाओं को चुनाव और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ।
  • फर्जी उम्मीदवारों को रोकने के लिये, राज्यसभा और विधानपरिषद चुनावों में प्रस्तावकों की संख्या बढ़ाकर निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं के 10% या 10 मतदाता (जो भी कम हो) कर दी गई।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM): मतदान प्रक्रिया को आधुनिक बनाने के लिये EVM का प्रयोग पहली बार 1998 में (राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली) और पूर्णरूप से 1999 में (गोवा विधानसभा)किया गया।
  • बूथ कैप्चरिंग: बूथ कैप्चरिंग (जबरन कब्जा) होने पर चुनाव रद्द करने या रोकने के लिये विशेष कानून बनाए गए।
  • फोटो पहचान-पत्र: फर्जी मतदान रोकने के लिये निर्वाचक फोटो पहचान-पत्र (EPIC) जारी करने की शुरुआत की गई। मतदाता को मतदाता सूची में पंजीकृत होना आवश्यक है।

वर्ष 1996 के बाद चुनाव सुधार:

  • उम्मीदवारों की सूचीबद्धता: उम्मीदवारों को तीन श्रेणियों में सूचीबद्ध किया गया-  मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के उम्मीदवार, पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल और स्वतंत्र उम्मीदवार।
  • अयोग्यता: यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय संविधान का अपमान करता है या राष्ट्रगान गाने से रोकता है तो उसे चुनाव लड़ने से 6 वर्षों के लिये अयोग्य घोषित किया जाएगा।
  • शराब की बिक्री पर प्रतिबंध: मतदान क्षेत्र में मतदान से 48 घंटे पहले शराब या नशीले पदार्थों की बिक्री या वितरण प्रतिबंधित है। उल्लंघन करने पर 6 महीने की कैद या ₹2,000 तक का जुर्माना हो सकता है।
  • प्रस्तावकों की संख्या: यदि कोई उम्मीदवार मान्यता प्राप्त दल द्वारा समर्थित नहीं है तो उसे 10 प्रस्तावक देने होंगे। यदि उम्मीदवार को मान्यता प्राप्त दल का समर्थन प्राप्त है तो केवल एक प्रस्तावक पर्याप्त है।
  • उम्मीदवार की मृत्यु: पहले यदि किसी उम्मीदवार की मतदान से पूर्व मृत्यु हो जाती थी तो चुनाव रद्द कर दिया जाता था। अब यदि मृत उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त दल से है तो वह दल 7 दिनों के भीतर नया उम्मीदवार नामित कर सकता है।
  • उप-चुनाव: किसी सीट के रिक्त होने पर उप-चुनाव 6 महीनों के भीतर कराना अनिवार्य है, जब तक कि शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम न हो या चुनाव आयोग द्वारा यह प्रमाणित न किया गया हो कि चुनाव कराना कठिन है।
  • दो निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित: कोई भी उम्मीदवार सामान्य चुनाव या एक साथ हो रहे उप-चुनाव में अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से ही चुनाव लड़ सकता है।
  • प्रचार अवधि में कमी: नाम वापसी की अंतिम तिथि और मतदान दिवस के बीच का अंतराल 20 दिन से घटाकर 14 दिन कर दिया गया।

वर्ष 1997–2009 के बीच चुनाव सुधार:

  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव: राष्ट्रपति के लिये प्रस्तावकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 और उपराष्ट्रपति के लिये 5 से बढ़ाकर 20 की गई।
  • डाक मतपत्र (Postal Ballot): निर्वाचन आयोग द्वारा अधिसूचित कुछ श्रेणियों के लोग अब डाक मतपत्र के माध्यम से मतदान कर सकते हैं।
  • सशस्त्र बलों के लिये प्रॉक्सी वोटिंग: वर्ष 2003 में सशस्त्र बलों के लिये प्रतिनिधि मतदान (Proxy Voting) की व्यवस्था की गई, जिससे वे सेवा मतदाता के रूप में प्रतिनिधि के माध्यम से मतदान कर सकते हैं।
  • उम्मीदवारों की पारदर्शिता: उम्मीदवारों को अब अपने आपराधिक मामलों, संपत्ति, देनदारियों और शैक्षणिक योग्यताओं की जानकारी देनी अनिवार्य है। गलत जानकारी देने पर दंड का प्रावधान है।
  • राज्यसभा सुधार (2003): अब राज्यसभा के उम्मीदवार के लिये उस राज्य का निवासी होना अनिवार्य नहीं है, जिससे वह चुनाव लड़ रहा है। साथ ही, क्रॉस-वोटिंग रोकने के लिये ओपन बैलट प्रणाली लागू की गई।
  • मान्यता प्राप्त पार्टी के उम्मीदवारों को निःशुल्क मतदाता सूची और सामग्री मिलती है।
  • पार्टियाँ 20,000 रुपए से अधिक का दान केवल विस्तृत जानकारी के साथ स्वीकार कर सकती हैं। दान देने वाली कंपनियों को कर में छूट मिलती है।
  • चुनाव आयोग पिछले प्रदर्शन के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पार्टियों के लिये समान समय सुनिश्चित करता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में अब दृष्टिबाधित मतदाताओं के लिये ब्रेल लिपि की सुविधा भी उपलब्ध है।
  • निर्वाचन आयोग की अनुमति अवधि समाप्त होने तक एग्जिट पोल आयोजित या साझा नहीं किये जा सकते। उल्लंघन करने वालों को 2 वर्ष तक की जेल या जुर्माना हो सकता है।
  • लोकसभा चुनावों में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिये जमानत राशि बढ़ाकर 25,000 रुपए और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये 12,500 रुपए कर दी गई तथा विधानसभा चुनावों में सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिये 10,000 रुपए और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये 5,000 रुपए कर दी गई।
  • ज़िला स्तर पर अपील: अब मतदाता सूची से संबंधित अपीलें राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) की बजाय ज़िला स्तर के अधिकारियों द्वारा निपटाई जाती हैं।

वर्ष 2010 से अब तक चुनाव सुधार

  • अनिवासी भारतीयों के लिये मतदान का अधिकार (वर्ष 2010): विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक (गैर-दोहरी नागरिकता वाले) अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र में मतदान कर सकते हैं।
    • वर्ष 2013 से नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकरण हेतु ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
    • EVM में NOTA (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प जोड़ा गया है। यदि NOTA को सबसे अधिक वोट मिलते हैं तो भी सबसे अधिक वैध वोट पाने वाला उम्मीदवार जीतता है।
    • चुनावों में धोखाधड़ी को कम करने के लिये वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) लागू किया गया। मतदाताओं को उनके वोट की पुष्टि करने वाली एक मुद्रित पर्ची मिलती है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने जेल या पुलिस हिरासत में बंद व्यक्तियों को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी।
    • दोषी ठहराए गए सांसदों/विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित कर दिया जाता है (3 महीने की देरी नहीं)। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित किया गया।
  • बड़े राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिये खर्च सीमा बढ़ाकर 70 लाख रुपए  और विधानसभा चुनावों के लिये 28 लाख रुपए  कर दी गई, जबकि छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये इसमें बदलाव किया गया है।
  • चुनावी बॉण्ड की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी। ये पार्टियों को दान देने के लिये गुमनाम बैंक उपकरण थे। पिछले चुनाव में 1% या उससे ज़्यादा वोट पाने वाली पार्टियाँ ही इसे प्राप्त कर सकती हैं। लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2024 में चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया ।

चुनाव सुधार से संबंधित समिति क्या है? 

  • तारकुंडे समिति (वर्ष 1974):   इसने सिफारिश की कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश वाली समिति की सलाह पर की जानी चाहिये।
  • दिनेश गोस्वामी समिति (वर्ष 1990): यह समिति भारत में चुनाव सुधारों का सुझाव देने के लिये गठित की गई थी। इसकी सिफारिशें वर्ष 1996 में लागू की गईं।
  • वोहरा समिति (वर्ष 1993): इस समिति ने अपराध और राजनीति के बीच गठजोड़ की जाँच की।
  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (वर्ष 1998): इस समिति ने चुनावों के लिये राज्य के वित्त पोषण के विचार पर ध्यान केंद्रित किया।
  • भारतीय विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (वर्ष 1999): इस रिपोर्ट में भारत के चुनावी कानूनों में सुधार का सुझाव दिया गया।
  • तन्खा समिति (वर्ष 2010): चुनाव कानूनों और चुनाव सुधारों की समीक्षा करने और उनमें बदलाव की सिफारिश करने के लिये गठित एक कोर समिति।
  • भारतीय विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट (2015): इस व्यापक रिपोर्ट में भारत में चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिये विभिन्न चुनाव सुधारों का प्रस्ताव दिया गया।
  • क साथ चुनाव कराने पर उच्चस्तरीय समिति की प्रमुख सिफारिशें: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व में एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता की जाँच के लिये एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई थी।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन: पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव, उसके बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकायों के लिये चुनाव।
  • मतदाता सूची और EPIC का समन्वयन : दोहराव और त्रुटियों को कम करने के लिये सरकार के सभी स्तरों हेतु एकल मतदाता सूची और एकल EPIC का निर्माण।
  • आर्थिक और कानूनी प्रभाव: समिति ने चुनाव संबंधी व्यवधानों को कम करने और बेहतर प्रशासन के लिये संसाधन आवंटन में सुधार पर ज़ोर दिया।

चुनाव प्रक्रिया में प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • EVM से छेड़छाड़ की चिंताएँ: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) से संभावित छेड़छाड़ को लेकर चिंताएँ उठाई गई हैं, जिसके कारण पेपर बैलेट की वापसी और VVPAT पर्चियों का EVM परिणामों से पूर्ण मिलान करने की मांग की गई है।
    • आलोचकों का तर्क है कि यदि पूर्ण सत्यापन नहीं किया जाता है तो चुनाव परिणामों की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है, जिससे मतदान प्रक्रिया में जनता का विश्वास कमज़ोर हो सकता है।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रत्येक VVPAT-EVM के पूर्ण मिलान की मांग को अस्वीकार कर दिया और निर्णय दिया कि सभी VVPAT पर्चियों की गिनती आवश्यक नहीं है। इसकी  बजाय, न्यायालय ने यह अनुमति दी कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में EVM के साथ छेड़छाड़ का संदेह हो तो वहाँ की 5% EVM की मेमोरी चिप्स का सत्यापन किया जा सकता है।
  • मतदाता सूची में हेरफेर: विपक्षी दलों ने महाराष्ट्र और दिल्ली में फर्ज़ी मतदाताओं को जोड़ने का आरोप लगाया। निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया कि यह दोहराव पहले के विकेंद्रीकृत मतदाता फोटो पहचान-पत्र (EPIC) प्रणाली के कारण हुआ था, जिसे अब ERONET (मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली) में केंद्रीकृत कर दिया गया है।
  • डुप्लिकेट EPIC नंबर: पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में डुप्लिकेट EPIC नंबरों के आरोप लगाए गए हैं।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन: स्टार प्रचारक अक्सर अनुचित भाषा का प्रयोग करते हैं, जाति/सांप्रदायिक अपीलें करते हैं और अपुष्ट आरोप लगाते हैं।
  • चुनावी व्यय: उम्मीदवार अक्सर निर्धारित व्यय सीमा का उल्लंघन करते हैं, जबकि राजनीतिक दलों पर कोई व्यय सीमा नहीं होती। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में व्यय का अनुमान लगभग ₹1,00,000 करोड़ लगाया गया था।
  • राजनीति का अपराधीकरण: चुनावी सुधार संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2024 में निर्वाचित सांसदों में से 46% के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 31% पर बलात्कार, हत्या और अपहरण जैसे गंभीर आरोप हैं।

चुनावी प्रक्रिया में किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • प्रचार प्रक्रिया में सुधार:
    • निर्वाचन आयोग को आदर्श आचार संहिता (MCC) के गंभीर उल्लंघनों के लिये स्टार कैंपेनर की स्थिति वापस लेने का अधिकार दिया जाना चाहिये।
    • कानूनों में संशोधन करके यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि राजनीतिक दलों को मिलने वाली  धनराशि उम्मीदवार के व्यय की सीमा के भीतर ही रहे।
      • राजनीतिक दलों को लोकतांत्रिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत लाया जाना चाहिये।
    • उम्मीदवारों द्वारा चुनाव से पहले अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • चुनावी मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा: गोपनीयता संबंधी चिंताओं को दूर करने के बाद, आधार को मतदाता पहचान-पत्र (EPIC) से जोड़ना डुप्लिकेट मतदाता पहचान को समाप्त करने में सहायक हो सकता है।
  • मतदान एवं मतगणना प्रक्रिया:
    • VVPAT-EVM मिलान के लिये सैंपल आकार वैज्ञानिक तरीके से निर्धारित किया जाना चाहिये, ताकि मतगणना प्रक्रिया में विश्वास सुनिश्चित किया जा सके।
    • ‘टोटलाइज़र’ मशीन (एक ऐसा उपकरण जो 14 बूथों के मतों को एक साथ गिनने की अनुमति देता है) परिणामों को प्रकट करने से पहले मतों को समेकित करेगा, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी।
    • संशयास्पद छेड़छाड़ की स्थिति में उम्मीदवारों को 5% EVM की सत्यापन की मांग करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • मतदाता जागरूकता: चुनावों की निगरानी के लिये मीडिया और नागरिक समाज का समर्थन करना चाहिये तथा सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये राजनीतिक नेताओं हेतु नैतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (2021)

  1. भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोक सभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
  2. 1991 के लोक सभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोक सभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।
  3. वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोक सभा चुनाव में कई निर्वाचन- क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिए, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3

उत्तर: (b) 


मेन्स 

प्रश्न 1. विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए, एवं "एक राष्ट्र-एक चुनाव" के विशिष्ट संदर्भ में, चुनाव सुधारों की आवश्यकता का परीक्षण करें। (2024) 

प्रश्न 2. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)

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