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भारतीय राजनीति

आदर्श आचार संहिता

  • 02 May 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आदर्श आचार संहिता (MCC), भारत निर्वाचन आयोग (ECI)

मेन्स के लिये:

MCC के विकास में ECI की भूमिका, आदर्श आचार संहिता - चुनावों में महत्त्व और इसकी आलोचना

चर्चा में क्यों?

जैसे-जैसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने के आरोप लगा रहे हैं।

आदर्श आचार संहिता (MCC):

  • परिचय:
    • यह निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के विनियमन तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
    • यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
    • आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है।
  • विकास:
    • आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब राज्य प्रशासन ने राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिये एक ‘आचार संहिता' तैयार की थी।
    • इसके पश्चात् वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग (EC) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को फीडबैक के लिये आचार संहिता का एक प्रारूप भेजा, जिसके बाद से देश भर के सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है।
    • वर्ष 1991 में चुनाव के नियमों के बार-बार उल्लंघन और भ्रष्टाचार जारी रहने के बाद चुनाव आयोग ने MCC को और सख्ती से लागू करने का फैसला किया।
  • राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों हेतु MCC:
    • प्रतिबंधित:
      • राजनीतिक दलों की आलोचना केवल उनकी नीतियों, कार्यक्रमों, पिछले रिकॉर्ड और कार्य तक सीमित होनी चाहिये।
      • जातिगत और सांप्रदायिक भावनाओं को आहत करने, असत्यापित रिपोर्टों के आधार पर उम्मीदवारों की आलोचना करने, मतदाताओं को रिश्वत देने या डराने और किसी के विचारों का विरोध करते हुए उसके घर के बाहर प्रदर्शन या धरना देने जैसी गतिविधियाँ पूर्णतः निषिद्ध हैं।
    • बैठकें:
      • पार्टियों को किसी भी बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस अधिकारियों को समय पर सूचित करना चाहिये ताकि पुलिस पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कर सके।
    • जुलूस:
      • यदि दो अथवा दो से अधिक उम्मीदवार एक ही मार्ग से जुलूस निकालने की योजना बनाते हैं, तो राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिये पहले से संपर्क कर लेना करना चाहिये ताकि जुलूस में आपसी टकराव न हो।
      • राजनीतिक दलों के सदस्यों का प्रतिनिधित्त्व करने वालों को पुतले ले जाने और जलाने की अनुमति नहीं है।
    • चुनाव के दिन:
      • केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग से प्राप्त वैध पास वाले लोगों को ही मतदान केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति होती है।
      • मतदान केंद्रों पर सभी अधिकृत पार्टी कार्यकर्त्ताओं को उपयुक्त बैज अथवा पहचान पत्र दिया जाना चाहिये।
      • उनके द्वारा मतदाताओं को दी जाने वाली पहचान पर्ची सादे (सफेद) कागज़ पर होगी और उसमें कोई प्रतीक, उम्मीदवार का नाम अथवा पार्टी का नाम नहीं होगा।
    • प्रेक्षक:
      • कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के संबंध में समस्याओं की रिपोर्ट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों को कर सकता है।
    • सत्ताधारी पार्टी:
      • MCC ने सत्ताधरी पार्टी के आचरण को विनियमित करते हुए वर्ष 1979 में कुछ प्रतिबंधों को शामिल किया। मंत्रियों की आधिकारिक यात्राएँ और चुनाव कार्य पृथक होने चाहिये अथवा चुनाव कार्य के लिये आधिकारिक साधनों का उपयोग नहीं करना चाहिये।
      • पार्टी को सरकारी संसाधनों की कीमत पर विज्ञापन देने अथवा चुनावों में जीत की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये उपलब्धियों के प्रचार हेतु आधिकारिक जन मीडिया का उपयोग करने से बचना चाहिये।
      • आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा किये जाने के समय से मंत्रियों और अन्य अधिकारियों को किसी भी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं करनी चाहिये, सड़कों के निर्माण, पीने के जल की व्यवस्था आदि का वादा नहीं करना चाहिये। अन्य दलों को सार्वजनिक स्थानों तथा विश्रामगृहों का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिये और इन पर सत्ताधरी पार्टी का एकाधिकार नहीं होना चाहिये।
    • चुनावी घोषणापत्र:
      • भारतीय निर्वाचन आयोग का निर्देश है कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को किसी भी चुनाव (संसद/राज्य विधानमंडल) के लिये चुनावी घोषणा पत्र जारी करते समय निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है:
        • इस चुनाव घोषणापत्र में संविधान में निहित आदर्शों और सिद्धांतों के खिलाफ कुछ भी नहीं होगा।
        • राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिये जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता धूमिल होने या मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालने की संभावना हो।
        • घोषणापत्र में वादों के औचित्य को प्रतिबिंबित करना चाहिये और इसके लिये वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीकों एवं साधनों को व्यापक रूप से इंगित करना चाहिये।
      • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के तहत एकल या बहु-चरणीय चुनावों के लिये निर्धारित प्रतिबंधात्मक अवधि के दौरान घोषणापत्र जारी नहीं किया जाएगा।

MCC में कुछ हालिया परिवर्द्धन:

  • ECI द्वारा अधिसूचित अवधि के दौरान ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल का विनियमन।
  • मतदान के दिन और उससे एक दिन पहले प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों पर प्रतिबंध जब तक कि विषय-वस्तु स्क्रीनिंग समितियों द्वारा पूर्व-प्रमाणित न हो।
  • चुनाव अवधि के दौरान राजनीतिक पदाधिकारियों की विशेषता वाले सरकारी विज्ञापनों पर प्रतिबंध।

MCC कानूनी रूप से लागू करने योग्य:

  • हालाँकि MCC के पास कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन निर्वाचन आयोग द्वारा इसके सख्त प्रवर्तन के कारण पिछले एक दशक में इसने शक्ति हासिल की है।
    • MCC के कुछ प्रावधानों को IPC 1860, CrPC 1973 और RPA 1951 जैसे अन्य कानूनों में संबंधित प्रावधानों के साथ लागू किया जा सकता है।
  • वर्ष 2013 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने MCC को कानूनी रूप से बाध्यकारी तथा RPA 1951 का हिस्सा बनाने की सिफारिश की।
  • हालाँकि ECI इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने के खिलाफ है। इसके अनुसार, चुनावों को अपेक्षाकृत कम समय या 45 दिनों के करीब पूरा किया जाना चाहिये क्योंकि न्यायिक कार्यवाही में सामान्यतः अधिक समय लगता है, इसलिये इसे कानून द्वारा लागू करने योग्य बनाना संभव नहीं है।

MCC की आलोचनाएँ:

  • कदाचार पर अंकुश लगाने में अप्रभावी:
    • MCC हेट स्पीच, फेक न्यूज़, धन बल, बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने और हिंसा जैसी चुनावी कदाचारों को रोकने में विफल रही है।
    • ECI को नई प्रौद्योगिकियों और सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्मों द्वारा भी चुनौती दी जाती है जो गलत सूचना को तीव्र रूप से फैलाने तथा उसका व्यापक रूप से प्रसार करते हैं।
  • कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव:
    • MCC, वैद्यानिक रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ नहीं है, वह अनुपालन के लिये केवल नैतिक अनुनय और जनमत पर निर्भर करती है।
  • शासन के साथ हस्तक्षेप:
    • MCC नीतिगत निर्णयों, सार्वजनिक व्यय, कल्याणकारी योजनाओं, स्थानांतरण और नियुक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है।
    • MCC को बहुत जल्दी या बहुत देर से लागू करने, विकास गतिविधियों और सार्वजनिक हित को प्रभावित करने के लिये ECI की अक्सर आलोचना की जाती है।
  • जागरूकता और अनुपालन की कमी:
    • इसे व्यापक रूप से मतदाताओं, उम्मीदवारों, पार्टियों और सरकारी अधिकारियों द्वारा नहीं समझा जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का चुनाव आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है।
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)

मेन्स:

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: द हिंदू

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