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भारतीय राजनीति

स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की पुनर्कल्पना

  • 09 Dec 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 06/12/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “India is paving the way for truly accessible elections” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में चुनाव और उनसे संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय संविधान के संस्थापकों ने प्रतिनिधिक संसदीय लोकतंत्र की कल्पना भारत के लोकाचार, पृष्ठभूमि और आवश्यकताओं के लिये सबसे उपयुक्त राज्य व्यवस्था के रूप में की थी।

  • उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभी वयस्क नागरिकों की बिना किसी भेदभाव के समान भागीदारी की परिकल्पना की थी। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) के माध्यम से लोगों के प्रतिनिधियों का चयन और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव (Free And Fair Elections) भारतीय गणतंत्र के लिये सबसे उपयुक्त प्रतीत होते हैं।
  • भारत में चुनावों का आयोजन लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, विधान परिषद, स्थानीय निकाय, नगर निगम, ग्राम पंचायत, ज़िला पंचायत एवं प्रखंड पंचायत के सदस्यों के निर्वाचन के साथ ही राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पद के निर्वाचन के लिये कराया जाता है।
  • लेकिन मौजूदा चुनाव प्रणाली कई चुनौतियों का सामना कर रही है जो इसकी ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष’ प्रकृति के बारे में संदेह उत्पन्न करती हैं। इसलिये यह ज़रूरी है कि इन मुद्दों की सावधानीपूर्वक जाँच की जाए और इन्हें समग्र रूप से संबोधित किया जाए।

भारत में चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 326 में प्रावधान है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर आयोजित होंगे।
  • अनुच्छेद 324 के अनुसार, निर्वाचनों के लिये निर्वाचक-नामावली (मतदाता सूची) तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग में निहित होगा
  • अनुच्छेद 243K और 243ZA के तहत स्थानीय निकायों—पंचायतों और नगर निकायों के चुनाव की ज़िम्मेदारी राज्य चुनाव आयोगों पर है।
  • अनुच्छेद 328 राज्य के विधानमंडल को ऐसे विधानमंडल के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है।

निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ

  • पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों की क्षेत्रीय सीमाओं का निर्धारण।
  • मतदाता सूची तैयार करना और समय-समय पर उन्हें संशोधित करना तथा सभी अर्हत मतदाताओं को पंजीकृत करना।
  • चुनावों के कार्यक्रम और तिथियों को अधिसूचित करना तथा नामांकन पत्रों की जाँच करना।
  • विभिन्न राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना तथा उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
  • चुनाव के बाद संसद और राज्य विधानमंडलों के मौजूदा सदस्यों की अयोग्यता के मामले में आयोग के पास सलाहकारी क्षेत्राधिकार भी है।
  • आवश्यकता पड़ने पर किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव कराने के लिये भी यह ज़िम्मेदार है।

भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

  • मतदाताओं के सूचना-संपन्न निर्णयन को विकृत करना: अनियंत्रित लोकलुभावनवाद के कारण चुनाव अभियानों के दौरान 'अतार्किक मुफ़्त उपहारों' (Irrational Freebies) की पेशकश की जाती है जो मतदाताओं को (विशेष रूप से वंचित समूहों के मतदाताओं को) पक्षपाती बनाता है क्योंकि ऐसे मुफ़्त उपहार उन्हें प्रभावित कर सकते हैं और अपने प्रतिनिधियों को चुनने की सूचना-संपन्न निर्णयन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
  • स्वतंत्र कर्मचारियों की कमी: चूँकि भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के पास स्वयं के कर्मचारी नहीं होते हैं, इसलिये जब भी चुनाव होते हैं तो इसे कर्मियों के लिये केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • परिणामस्वरूप, प्रशासनिक कर्मचारी ही सामान्य प्रशासन के साथ-साथ चुनावी प्रशासन के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं, जो चुनावी प्रक्रिया को कम निष्पक्ष और कुशल बनाता है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) को लागू करने के लिये कोई सांविधिक समर्थन नहीं: जहाँ तक आदर्श आचार संहिता (MCC) को लागू करने और अन्य चुनाव संबंधी निर्णयों का संबंध है, इन्हें ज़मीनी स्तर पर प्रवर्तित करने के लिये भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की शक्तियों के बारे में स्पष्टता का अभाव है।
  • ‘बूथ कैप्चरिंग’: मतदान केंद्र—जो मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करने हेतु निर्दिष्ट स्थान होता है, चुनाव प्रक्रिया का अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है।
    • राजनीतिक नैतिकता के मानकों में गिरावट के कारण ‘बूथ कैप्चरिंग’ के कई दृष्टांत सामने आते रहे हैं जहाँ किसी पार्टी के वफादार या भाड़े के अपराधी मतदान केंद्र पर ‘कब्जा’ कर लेते हैं और वैध मतदाताओं के बदले स्वयं मतदान करते हैं ताकि किसी उम्मीदवार विशेष की जीत सुनिश्चित हो सके।
  • सोशल मीडिया का राजनीतिकरण: सोशल मीडिया जनमत को दर्शाता है, जो लोकतंत्र की मुद्रा है। लेकिन सोशल मीडिया की सबसे आम आलोचनाओं में से एक यह है कि यह एक ‘इको चैंबर’ (echo chambers) का निर्माण करता है जहाँ लोग केवल उन्हीं दृष्टिकोणों को देखते हैं जिनसे वे सहमत होते हैं।
    • सोशल मीडिया पर चलने वाले राजनीतिक अभियान कभी-कभी देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक और सामाजिक तनाव पैदा कर देते हैं जो फिर निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
  • दिव्यांगजनों के लिये बूथ की दुर्गमता: दिव्यांगजनों (PwD) की एक बड़ी संख्या को मतदान केंद्रों पर सहायक बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण अपना मत डालने में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

भारत निर्वाचन आयोग की हाल की प्रमुख पहलें

आगे की राह

  • चुनावों का लोकतंत्रीकरण: लोकतंत्र में सभी दलों के लिये समानता की मांग की जाती है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव उन अवसरों को सुनिश्चित करते हैं।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये की अल्पसंख्यक राजनीतिक अभियानों पर भी समान ध्यान दिया जाए, राजनीतिक उद्देश्यों हेतु सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में कठोर मानदंड स्थापित किये जाने चाहिये।
      • भारत निर्वाचन आयोग को यह सुनिश्चित करने के लिये वृहत प्रयास करना चाहिये कि चुनाव में सत्तारूढ़ दल को अन्य दलों की तुलना में अनुचित लाभ प्राप्त नहीं हो रहा हो।
    • राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप चुनावी अभियानों के संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा के उपयोग पर नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये विनियमन होने चाहिये।
  • कोई भी मतदाता मताधिकार से वंचित न हो: स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव आयोजित कराने के साथ ही निर्वाचन आयोग को आवश्यक बुनियादी ढाँचा एवं सुविधाएँ प्रदान करके (विशेष रूप से दिव्यांगजनों के लिये) "सहभागी, सुगम, समावेशी" चुनाव सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने चाहिये ।
  • मतदाता जागरूकताः मुफ़्त उपहारों के वितरण को रोकने या उन्हें स्वीकृत करने की शक्ति मतदाताओं के पास है। तर्कहीन मुफ़्त उपहारों को विनियमित करने और यह सुनिश्चित करने के लिये कि मतदाता तर्कहीन वादों के बहकावे में न आएँ, एक सर्वसम्मति होनी चाहिये।
    • इसके लिये मतदाता वर्ग की ओर से शाश्वत सतर्कता की आवश्यकता है।
  • आदर्श आचार संहिता का अनुपालन सुनिश्चित करना: राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के मार्गदर्शन के लिये आदर्श आचार संहिता का प्रवर्तन आवश्यक है। इसके लिये इसे सांविधिक समर्थन प्रदान करना आवश्यक है ताकि सूचना-संपन्न मतदाता व्यवहार में हेरफेर को रोकने के लिये चुनाव घोषणापत्रों को प्रभावी ढंग से विनियमित किया जा सके।
  • चुनाव सुधार पर विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट: रिपोर्ट में लोकसभा/राज्यसभा सचिवालय की तरह भारत निर्वाचन आयोग के लिये भी एक स्वतंत्र और स्थायी सचिवालय प्रदान करने की अनुशंसा की गई है।
    • इसके अलावा, राज्य निर्वाचन आयोगों के लिये भी समान प्रावधान करने चाहिये ताकि चुनावों में उनकी स्वायत्तता और निष्पक्षता की भी गारंटी सुनिश्चित हो सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में चुनावों से संबंधित प्रमुख चुनौतियों की चर्चा करें और चुनावी प्रक्रिया को अधिक समावेशी एवं निष्पक्ष बनाने के उपाय सुझाएँ।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है।
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिए चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2
(C) केवल 2 और 3
(D) केवल 3

उत्तर: (D)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2022)

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