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शासन व्यवस्था

शराब पर प्रतिबंध

  • 26 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

महात्मा गांधी, शराब, अनुच्छेद 47, DPSP, सातवीं अनुसूची

मेन्स के लिये:

शराबबंदी के फायदे और नुकसान, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में बिहार में हुई एक ज़हरीली शराब त्रासदी ने कई लोगों की जान ले ली और कई अन्य गंभीर रूप से बीमार व अंधे हो गए।

भारत में शराबबंदी की पृष्ठभूमि:

  • भारत में शराबबंदी के प्रयास महात्मा गांधी की सोच से प्रभावित हुए हैं, जिन्होंने शराब के सेवन को बुराई से ज़्यादा एक बीमारी के रूप में देखा। 
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद गांधीवादी शराब बंदी के लिये प्रयास करते रहे हैं।
  • इन प्रयासों के कारण संविधान में अनुच्छेद 47 को शामिल किया गया।
  •  भारत के कई राज्यों ने शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है। 
    • उदाहरण के लिये हरियाणा ने मद्यनिषेध के कई प्रयास किये लेकिन अवैध आसवन और अवैध शराब व्यापार को नियंत्रित न कर पाने के कारण उसे इस नीति को छोड़ने के लिये बाध्य होना पड़ा, इसके परिणामस्वरूप कई मौतें भी हुईं।
  • गुजरात में 1 मई, 1960 से शराबबंदी लागू है, लेकिन कालाबाज़ारी के ज़रिये शराब का कारोबार जारी है। 
  • बिहार में अप्रैल 2016 में लागू शराबबंदी, जो शुरुआत में सफल होती दिखी और कुछ सामाजिक लाभ भी देती दिखी।
    • हालाँकि अवैध शराब के सेवन से हुई कई मौतों के बाद यह नीति असफल होती दिख रही है।
  • वर्तमान में पाँच राज्यों (बिहार, गुजरात, लक्षद्वीप, नगालैंड और मिज़ोरम) में पूर्ण शराबबंदी  और कुछ में आंशिक शराबबंदी लागू है।

शराब के संबंध में भारतीय संविधान में प्रावधान:

  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (अनुच्छेद  47): 
    • इसमें उल्लेख किया गया है कि राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये कदम उठाएगा और नशीले पेय तथा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन पर रोक लगाएगा।
    • हालाँकि DPSPs कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, वे लक्ष्य निर्धारित करते हैं कि राज्य को ऐसी स्थितियाँ स्थापित करने की आकांक्षा रखनी चाहिये जिसके तहत नागरिक एक अच्छा जीवन जी सकें।
    • इस प्रकार भारतीय संविधान शराब को एक अवांछनीय बुराई के रूप में देखता है जिसे राज्यों  द्वारा नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
  • सातवीं अनुसूची: 
    • संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, शराब एक राज्य का विषय है, यानी राज्य विधानसभाओं के पास इसके बारे में कानूनों का मसौदा तैयार करने का अधिकार और ज़िम्मेदारी है, जिसमें "मादक पदार्थ शराब का उत्पादन, निर्माण, कब्ज़ा, परिवहन, खरीद एवं बिक्री" शामिल है।
    • इस प्रकार शराबबंदी और निजी बिक्री के बीच पूरे स्पेक्ट्रम में आने वाले शराब के संबंध में कानून सभी राज्यों में अलग-अलग हैं।

सभी राज्यों द्वारा शराब पर प्रतिबंध न लगाए जाने का कारण:

  • संविधान शराब पर प्रतिबंध को एक लक्ष्य के रूप में निर्धारित करता है फिर भी अधिकांश राज्यों के लिये शराब पर प्रतिबंध लगाना बहुत मुश्किल है। 
  • यह मुख्य रूप से इसलिये है क्योंकि शराब से प्राप्त राजस्व को नज़रअंदाज करना आसान नहीं है और इसने राज्य सरकारों के राजस्व में लगातार बड़े हिस्से का योगदान दिया है।
    • उदाहरण के लिये महाराष्ट्र राज्य में शराब से प्राप्त राजस्व अप्रैल 2020 में (देश भर में कोविड लॉकडाउन के दौरान) 11,000 करोड़ रुपए का था, जबकि मार्च में यह 17,000 करोड़ रुपए था।

निषेध के फायदे और नुकसान:

  • फायदे :  
    • विभिन्न अध्ययनों ने शराब को घरेलू दुर्व्यवहार या घरेलू हिंसा से जोड़ने के साक्ष्य प्रदान किये हैं।
      • बिहार का मामला: महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर (प्रति 100,000 महिला आबादी) और घटना (पूर्ण संख्या) दोनों के संदर्भ में स्पष्ट रूप से गिरावट आई है। 
  • नुकसान: 
    • संगठित अपराध समूहों को मज़बूत करना: 
      • निषेध एक संपन्न भूमिगत अर्थव्यवस्था के लिये अवसर प्रदान करता है जो राज्य के नियामक ढाँचे के बाहर शराब वितरित करता है। 
        • यह संगठित अपराध समूहों (या माफिया) को मज़बूत करने से लेकर नकली शराब के वितरण तक की समस्याएँ उत्पन्न करता है। 
        • बिहार के मामले में यह देखा गया था कि शराबबंदी लागू होने के एक वर्ष बाद मादक द्रव्यों के सेवन में वृद्धि हुई थी।
        • सरकार ने शराब को और अधिक दुर्गम बना दिया फिर भी इसे पूरी तरह से प्रचलन से बाहर करना असंभव है।
    • समाज के गरीब वर्गों पर प्रभाव:
      • मद्यनिषेध समाज के गरीब वर्गों को असमान रूप से प्रभावित करता है, उच्च वर्ग अभी भी महँगी (और सुरक्षित) शराब खरीदने में सक्षम हैं।
        • बिहार में इसके निषेध कानूनों के तहत दर्ज अधिकांश मामले अवैध या निम्न गुणवत्ता वाली शराब की खपत से संबंधित हैं।
    • न्यायपालिका पर बोझ:
      • बिहार ने अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी। हालाँकि इससे निश्चित रूप से शराब की खपत में कमी आई है, लेकिन संबंधित सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक लागत शराबबंदी के लाभ को सही ठहराने के लिये बहुत अधिक रही है। शराबबंदी ने न्यायिक प्रशासन को पंगु बना दिया।
        • पूर्व सीजेआई एन.वी. रमना ने कहा था कि बिहार में शराबबंदी जैसे निर्णयों ने न्यायालयों पर भारी बोझ डाला है। वर्ष 2021 तक न्यायालयों में शराब प्रतिबंध से संबंधित तीन लाख मामले लंबित थे।  

आगे की राह 

  • एक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
    • सार्वजनिक स्वास्थ्य की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना शराब उत्पादन और बिक्री के विनियमन को एकीकृत करने वाले सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • एक प्रभावी और स्थायी शराब नीति का लक्ष्य कई हितधारकों, जैसे- महिला समूहों और विक्रेताओं के बीच समन्वित कार्रवाई के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
  • शराब का विनियमन:
    • विनियमन पक्ष में शराब पीकर गाड़ी चलाने और शराब के विज्ञापनों पर नियमों को कड़ा किया जा सकता है तथा अत्यधिक शराब पीने के खतरों संबंधी लेबलिंग को अनिवार्य किया जा सकता है।
      • विकसित देशों ने अत्यधिक शराब के सेवन के परिणामों को देखते हुए लोगों को शिक्षित करने हेतु व्यावहारिक परामर्श को अपनाया है।  इस तरह के अभियान लोगों को उनकी जीवनशैली के बारे में शिक्षित विकल्प प्रदान करने में मदद करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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