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राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 29 May 2025
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ओरण भूमि वन के रूप में वर्गीकृत

चर्चा में क्यों?

राजस्थान सरकार ने सामुदायिक संरक्षित 'ओरण' भूमि को वनों के रूप में वर्गीकृत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके बाद, इन पवित्र उपवनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत आधिकारिक तौर पर "सामुदायिक रिज़र्व" के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।

मुख्य बिंदु

  • ओरण भूमि के बारे में:
    • 'ओरण' राजस्थान के पवित्र वन क्षेत्र हैं, जो पारंपरिक रूप से ग्रामीण समुदायों द्वारा संरक्षित और प्रबंधित किये जाते हैं।
    • ये उपवन सामाजिक-धार्मिक परंपरा के तहत स्थानीय देवताओं को समर्पित हैं।
    • राजस्थान में लगभग 25,000 ओरण स्थल हैं, जो मिलकर राजस्थान के रेगिस्तानी परिदृश्य में 6 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को आच्छादित करते हैं।
      • राजस्थान में ओरण को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है, जैसे– देवरा, मालवन, देवराई, रखत बणी, देव घाट, मंदिर वन और बाग
    • ओरण में बड़ी संख्या में खेजड़ी के पेड़ (Prosopis cineraria), हिरण, काले हिरण और नीलगाय भी पाई जाती हैं जो राजस्थान के बिश्नोई समुदाय के लिये भी पवित्र हैं।
      • इन ओरण भूमियों में रहने वाले समुदायों ने ऐतिहासिक रूप से इन वनों को बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • ये भूमि चरागाह को बढ़ावा देती हैं, वन उपज प्रदान करती हैं, प्राकृतिक जल निस्पंदन में सहायता करती हैं तथा पशुधन अर्थव्यवस्था के माध्यम से आजीविका को बनाए रखती हैं।
  • संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • 18 दिसंबर 2024 को दिये गए एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को ओरण भूमि का विस्तृत मानचित्रण करने का निर्देश दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को 'ओरांस' को वन के रूप में वर्गीकृत करने के लिये केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) की 2005 की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया।
    • हालाँकि, राजस्थान वन नीति, 2023 में 'ओरांस' को सामान्य सामुदायिक भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है,जिससे इन वनों को पर्याप्त कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाता और वे अतिक्रमण व पारिस्थितिक क्षरण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं
      • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय औपचारिक वन वर्गीकरण के माध्यम से कानूनी सुरक्षा उपायों को मज़बूत करके इन अंतरालों को दूर करता है।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली जानवरों, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • यह अधिनियम उन पौधों और जानवरों की अनुसूचियों को भी सूचीबद्ध करता है, जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर की सुरक्षा तथा निगरानी प्रदान की जाती है।

केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC)

  • परिचय:
    • केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) का गठन मूलतः सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2002 में किया गया था तथा बाद में वर्ष 2008 में इसका पुनर्गठन किया गया था।
    • यह पर्यावरण संरक्षण तथा न्यायालय के निर्देशों और पर्यावरण कानूनों के अनुपालन की निगरानी के लिये एक तदर्थ निगरानी निकाय के रूप में कार्य करता था।
  • सुधार: 
    • केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वर्ष 2023 की अधिसूचना के अनुसार, CEC को एक स्थायी वैधानिक निकाय में परिवर्तित करने का प्रस्ताव है।
    • इस कदम का उद्देश्य CEC को दीर्घकालिक आधार पर प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों को संभालने के लिये संस्थागत निरंतरता और कानूनी अधिकार प्रदान करना है।


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केर सांगरी को GI टैग प्राप्त

चर्चा में क्यों?

राजस्थान की लोकप्रिय व्यंजन केर सांगरी को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला है, जो इसे पारंपरिक तरीके से बनाए जाने वाले विशिष्ट क्षेत्रीय उत्पाद के रूप में मान्यता देता है।

मुख्य बिंदु

  • केर सांगरी के बारे में: 
    • केर सांगरी एक पारंपरिक राजस्थानी व्यंजन है, जो दो देशी रेगिस्तानी पौधों से बनाया जाता है:
      • केर – एक छोटा, जंगली बेरी।
      • सांगरी – एक बींस की तरह फलने वाला फल हैं, जो खेजड़ी के पेड़ पर उगता है। यह  शुष्क क्षेत्रों का स्वदेशी वृक्ष है।
    • ये सामग्री थार के सूखे, रेतीले इलाके में प्राकृतिक रूप से उगती हैं।
    • ऐतिहासिक रूप से, केर सांगरी सूखे के समय जीवित रहने वाले खाद्य के रूप में विकसित हुई थी, जब ताज़ी सब्जियाँ उपलब्ध नहीं होती थीं।
    • समय के साथ, यह व्यंजन राजस्थान का लोकप्रिय व्यंजन और सांस्कृतिक प्रतीक बन गया।
    • खेजड़ी का पेड़, जिससे सांगरी प्राप्त होती है, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
    • यह बिश्नोई समुदाय द्वारा पवित्र माना जाता है, जिसने सदियों से इस पेड़ को जीवन और स्थिरता के प्रतीक के रूप में संरक्षित रखा है।
  • केर सांगरी के लिये GI टैग का महत्त्व:
    • यह इसके प्रामाणिकता को नकली या घटिया उत्पादों से बचाता है
    • यह स्थानीय किसानों और कारीगरों को उचित सम्मान और पारिश्रमिक दिलाने में सहायक है।
    • राजस्थान के अन्य GI-टैग उत्पाद:
    • राजस्थान अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हस्तकला के लिये कई GI टैग प्राप्त उत्पादों के लिये प्रसिद्ध है। इनमें प्रमुख हैं: सोजत मेहंदी, बीकानेरी भुजिया, कोटा डोरिया, जयपुर की ब्लू पॉटरी, मोलेला माटी के काम, राजस्थान की कठपुतलियाँ, सांगानेरी हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, बागड़ू हैंड ब्लॉक प्रिंट, थेवा कला, पोकरण मिट्टी के बर्तन, नाथद्वारा पिचवाई चित्रकला, उदयपुर की कोफ्तगारी धातु कला, बीकानेर कशीदाकारी, जोधपुर बंदेज कारीगरी, बीकानेर उस्ताद कला और मकराना संगमरमर

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग 

  • परिचय:
    • भौगोलिक संकेत (GI) टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग उन विशेष उत्पादों पर किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से संबंधित होते हैं।
    • GI टैग यह सुनिश्चित करता है कि केवल अधिकृत उपयोगकर्त्ताओं या भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ही लोकप्रिय उत्पाद के नाम का उपयोग करने की अनुमति है।
      • यह उत्पाद को दूसरों द्वारा नकल या अनुकरण किये जाने से भी बचाता है।
    • एक पंजीकृत GI टैग 10 वर्षों के लिये वैध होता है।
    • GI पंजीकरण की देखरेख वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा की जाती है।
  • विधिक ढाँचा:


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