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पारसनाथ पहाड़ी
चर्चा में क्यों?
झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पारसनाथ पहाड़ी पर मांस, शराब और मादक पदार्थों की बिक्री तथा सेवन पर पहले से लागू प्रतिबंध को और सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया है। पारसनाथ पहाड़ी जैन और संथाल आदिवासी समुदाय दोनों के लिये पवित्र स्थल है।
मुख्य बिंदु
- पारसनाथ पर्वत का महत्त्व:
- यह पर्वत जैनों द्वारा पारसनाथ तथा संथाल समुदाय द्वारा मरांग बुरू (अर्थात् “महान पर्वत”) के रूप में जाना जाता है।
- जैनियों के लिये: यह वह स्थान है जहाँ पार्श्वनाथ सहित 24 तीर्थंकरों में से 20 ने निर्वाण प्राप्त किया था। पहाड़ी पर अनेक जैन मंदिर और धाम स्थित हैं।
- संथालों के लिये: मरांग बुरू को सर्वोच्च प्राणवादी देवता और न्याय का आसन माना जाता है। पहाड़ी पर स्थित जुग जाहेर थान (पवित्र उपवन) संथालों का सबसे पवित्र धोरोम गढ़ (धार्मिक स्थल) है।
- लो बिर बैसी, जो कि संथाल समुदाय की पारंपरिक जनजातीय परिषद है, पर्वत की तलहटी में ग्रामों के बीच के विवादों को सुलझाने के लिये बैठक आयोजित करती है।
- वर्ष 1855 का संथाल हुल, जिसका नेतृत्व सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने किया था, मरांग बुरू से ही शुरू हुआ एक महत्त्वपूर्ण जनजातीय विद्रोह था।
- पारसनाथ पहाड़ी विवाद:
- एक प्रमुख विवाद सेंदरा उत्सव को लेकर है, जो संथाल समुदाय द्वारा पहाड़ी पर आयोजित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक शिकार है।
- यह प्रथा, जो संथाल लोगों के लिये एक संस्कार मानी जाती है, जैन समुदाय के अहिंसा और शाकाहार के मूल्यों के बिल्कुल विपरीत है, जिसके कारण संथालों और जैनियों के बीच कानूनी संघर्ष उत्पन्न हुआ।
- संथाल:
- संथाल जनजाति भारत की सबसे बड़ी आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा तथा असम में निवास करती है।
- वे संथाली भाषा बोलते हैं, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त है और जिसकी अपनी लिपि ओलचिकी है, जिसे पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया था।
- नृत्य (एनेज) और संगीत (सेरेंग) उनके उत्सवों तथा सामाजिक आयोजनों में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मुख्य आधार हैं।

