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प्रश्न :
प्रश्न. पारंपरिक भारतीय संस्कृति की नींव रखने में गुप्त काल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इसे किस हद तक ‘स्वर्ण युग’ माना जा सकता है? (150 शब्द)
01 Dec, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृतिउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गुप्त काल का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- पारंपरिक भारतीय संस्कृति को आकार देने में इस काल के महत्त्व पर गहन विचार प्रस्तुत कीजिये।
- ‘स्वर्ण युग’ की उपमा दिये जाने के पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय :
गुप्त काल भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। इसे प्रायः पारंपरिक युग कहा जाता है, क्योंकि इसी दौर में कला, साहित्य, धर्म और प्रशासन से संबंधित वे मानक विकसित हुए, जिन्होंने आगे आने वाली शताब्दियों तक भारतीय सभ्यता की रूपरेखा निर्धारित की।
मुख्य भाग:
पारंपरिक भारतीय संस्कृति को आकार देने में महत्त्व:
- कला और स्थापत्य कला का सुदृढ़ीकरण
- मंदिर स्थापत्य कला: यह काल शिलाखंडों को तराश कर बनाये गये मंदिरों संरचनात्मक शैलकृत मंदिरों में परिवर्तन का काल था।
- देवगढ़ स्थित दशावतार मंदिर प्रारंभिक नागर शैली का एक प्रमुख उदाहरण है, जिसमें शिखर और गर्भगृह जैसे उन अवयवों को स्थापित किया गया, जो आगे चलकर उत्तरी भारत में मानक बन गये।
- मूर्तिकला: सारनाथ और मथुरा शैलियों में आध्यात्मिक शांति, आदर्श अनुग्रह के सौंदर्यशास्त्र और सहजता को प्रधानता दी गई, जो पूर्ववर्ती गांधार शैली के पेशीय यथार्थवाद से भिन्न थी।
- चित्रकला: अजंता और बाघ के भित्ति चित्र अभिव्यक्ति, रंग-संयोजन और सूक्ष्मता की निपुणता को दर्शाते हैं।
- रंगों और परिष्कृत छायांकन तकनीकों के प्रयोग ने श्रीलंका एवं दक्षिण-पूर्व एशिया तक की कलात्मक शैलियों को प्रभावित किया।
- मंदिर स्थापत्य कला: यह काल शिलाखंडों को तराश कर बनाये गये मंदिरों संरचनात्मक शैलकृत मंदिरों में परिवर्तन का काल था।
- साहित्यिक और भाषाई उत्कर्ष:
- संस्कृत का प्रभुत्व: संस्कृत प्रशासन, साहित्य और अभिजात्य संस्कृति की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हुई, जिसने पूर्ववर्ती भाषाई प्रवृत्तियों का स्थान ले लिया।
- पारंपरिक साहित्य: यह कालिदास का काल था, जिनकी कृतियों जैसे ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ और ‘मेघदूतम’ ने संस्कृत साहित्य के लिये स्वर्ण मानक स्थापित किये।
- वैज्ञानिक और बौद्धिक प्रगति
- गणित और खगोल विज्ञान में प्रगति: इस काल के दौरान गणित और खगोल-विज्ञान में आर्यभट ने पृथ्वी के घूर्णन और के सटीक मान जैसे विशिष्ट निष्कर्ष दिये।
- वराहमिहिर की ‘बृहत् संहिता’ खगोल, मौसम, स्थापत्यकला और प्राकृतिक विज्ञानों से संबंधित एक विश्वकोशीय मार्गदर्शिका के रूप में प्रतिष्ठित हुई।
- धातुकर्म: दिल्ली का लौह स्तंभ, जो एक सहस्राब्दी से भी अधिक समय से संक्षारण के प्रति अपने प्रतिरोध के लिये उल्लेखनीय है, गुप्तकालीन धातुकर्म के परिष्कार का प्रमाण है।
- गणित और खगोल विज्ञान में प्रगति: इस काल के दौरान गणित और खगोल-विज्ञान में आर्यभट ने पृथ्वी के घूर्णन और के सटीक मान जैसे विशिष्ट निष्कर्ष दिये।
- धार्मिक समन्वय
- इस काल में बौद्ध धर्म को मिलने वाले राजकीय संरक्षण में लगातार ह्रास हुआ तथा पौराणिक हिंदू धर्म, विशेषकर वैष्णववाद और शैववाद का उदय हुआ।
- अवतारों की अवधारणा के लोकप्रिय होने से स्थानीय पंथों को व्यापक ब्राह्मणवादी कार्यढाँचे में एकीकृत करने का अवसर मिला, जिससे एक अधिक एकीकृत हिंदू धार्मिक पहचान का उदय हुआ।
‘स्वर्ण युग’ कहे जाने के पक्ष में तर्क
- आर्थिक समृद्धि: गुप्त शासकों द्वारा शासनकाल में जारी किये गए बड़ी संख्या में स्वर्ण-मुद्राएँ, विशेष रूप से अभिजात वर्ग के बीच, दीर्घ-दूरी व्यापार और आर्थिक सुगमता का संकेत देते हैं।
- राजनीतिक स्थिरता: समुद्रगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन ने राजनीतिक एकीकरण का वातावरण निर्मित किया, जिसे कभी-कभी पैक्स गुप्त के रूप में भी वर्णित किया जाता है। इस स्थिरता ने आर्थिक और सांस्कृतिक प्रसार को प्रोत्साहित किया।
- सांस्कृतिक गौरव: भारत की वैश्विक बौद्धिक प्रतिष्ठा बढ़ी। नालंदा विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया से छात्रों और भिक्षुओं को आकर्षित किया, जिससे शिक्षा के केंद्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी। नालंदा जैसे शिक्षण-केंद्र चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के विद्वानों को आकृष्ट करते थे, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा ज्ञान-केंद्र के रूप में बढ़ी।
- ‘स्वर्ण युग’ कहे जाने के विरुद्ध तर्क (सामाजिक यथार्थ)
- सामंतवाद का विकास: ब्राह्मणों और अधिकारियों को दिये गये भूमि-अनुदानों ने राजस्व, प्रशासन एवं न्यायाधिकारों का स्थानांतरण किया, जिससे केंद्रीय सत्ता का क्षरण व सामंतवादी कार्यढाँचे का उद्भव हुआ।
- इससे सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ और सामंती संरचनाओं की नींव पड़ी, जिससे केंद्रीय नियंत्रण कमज़ोर हो गया।
- सामंतवाद का विकास: ब्राह्मणों और अधिकारियों को दिये गये भूमि-अनुदानों ने राजस्व, प्रशासन एवं न्यायाधिकारों का स्थानांतरण किया, जिससे केंद्रीय सत्ता का क्षरण व सामंतवादी कार्यढाँचे का उद्भव हुआ।
- सामाजिक असमानताएँ:
- जाति व्यवस्था: वर्ण-व्यवस्था अधिक कठोर होती गयी।
- महिलाओं की स्थिति: महिलाओं की स्थिति में गिरावट आयी, अल्पायु विवाह का प्रचलन बढ़ा और सती प्रथा के सबसे पुराने अभिलेखीय साक्ष्य इसी काल में मिलते हैं।
- किसान वर्ग: कृषक वर्ग पर कर-भार अधिक था।
निष्कर्ष
गुप्त काल निस्संदेह एक सांस्कृतिक स्वर्णिम युग था, जिसने कलात्मक शब्दावली, धार्मिक कार्यढाँचे, साहित्यिक प्रतिभा एवं वैज्ञानिक आधार प्रदान किये, जिन्होंने सदियों तक भारतीय सभ्यता की दिशा निर्धारित की। फिर भी, यह उत्कर्ष पूरे समाज में समान रूप से अनुभव नहीं किया गया। सांस्कृतिक उपलब्धियों के समानांतर सामाजिक विषमता, सामंतवादी प्रवृत्तियाँ और लैंगिक व जाति के स्तर पर असमानताएँ भी सुदृढ़ होती गयीं।
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