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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता वार्ताओं का मूल्यांकन, विशेष रूप से कार्बन सीमा कर और गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों के संदर्भ में कीजिये तथा इनके द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों पर प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्दों में)

    13 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ता और कार्बन सीमा करों एवं गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
    • यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर प्रस्ताव और गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO), भारत पर उनके प्रभाव तथा ये मुद्दे भारत-यूरोपीय संघ व्यापार संबंधों और राजनयिक संबंधों को कैसे प्रभावित करते हैं, इसकी जाँच कीजिये।
    • उपर्युक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत और यूरोपीय संघ (EU) लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 रखा गया है। हालाँकि, EU के प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर टैक्स (CBT) और भारत के विस्तारित गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) जैसे गैर-टैरिफ मुद्दे विवाद के महत्त्वपूर्ण बिंदु बनकर उभरे हैं, जो द्विपक्षीय व्यापार और कूटनीतिक संबंधों की दिशा को प्रभावित कर रहे हैं।

    मुख्य भाग:

    कार्बन सीमा कर (कार्बन बॉर्डर टैक्स- CBT):

    • यूरोपीय संघ का प्रस्ताव: यह यूरोपीय संघ में कार्बन-गहन आयात पर टैरिफ है, जिसका उद्देश्य कार्बन रिसाव को रोकना है।
      • स्टील, एल्युमीनियम, सीमेंट और उर्वरक जैसे भारतीय आर्थिक क्षेत्र, जो ऊर्जा-गहन और कोयले पर अत्यधिक निर्भर हैं, उन्हें निर्यात लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। यह यूरोपीय संघ के बाज़ार में भारत की मूल्य प्रतिस्पर्द्धत्मकता को कमज़ोर कर सकता है।
    • भारत की चिंताएँ: CBAM को एक गैर-टैरिफ बाधा के रूप में देखा जाता है जो विकासशील देशों को असमान रूप से प्रभावित करती है।
      • भारत न्यायसंगत एवं समतापूर्ण परिवर्तन का समर्थन करता है तथा जलवायु ढाँचे के अंतर्गत विभेदित उत्तरदायित्वों की मांग करता है।

    गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCOs):

    • उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार, QCOs का उद्देश्य सार्वजनिक सुरक्षा, पर्यावरणीय स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोकना है।
      • भारत ने अनिवार्य BIS प्रमाणन के लिये 769 उत्पादों को कवर करते हुए 187 QCO अधिसूचित किये हैं।
    • इनमें विद्युत उपकरण, मशीनरी, रसायन आदि क्षेत्र शामिल हैं।
    • यूरोपीय संघ के निर्यात पर प्रभाव: भारत की विस्तारित QCO व्यवस्था के कारण यूरोपीय संघ के निर्यातकों को अनुपालन संबंधी मानदंडों का सामना करना पड़ रहा है।
      • विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और औद्योगिक मशीनरी शामिल हैं।
    • भारत का पक्ष: भारत का मानना ​​है कि ये गुणवत्ता जाँच, उपभोक्ता की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण होते हुए भी, गैर-टैरिफ बाधाओं के रूप में कार्य कर सकती हैं जो यूरोपीय बाज़ार तक पहुँच को सीमित कर देती हैं।
      • भारत दोनों क्षेत्रों के बीच सुगम व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए अधिक लचीले मानकों और गुणवत्ता पर पारस्परिक मान्यता समझौतों (MRAs) पर बातचीत करना चाहता है।

    द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों पर प्रभाव:

    • अवसर:
      • क्यूसीओ भारत के उत्पाद मानकों में सुधार कर सकते हैं, जिससे वे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बन सकेंगे।
        • इसका एक प्रमुख उदाहरण जापान है, जहाँ सख्त आंतरिक नियमों और मज़बूत गुणवत्ता नियंत्रण के कारण टोयोटा जैसे विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त ब्रांडों का विकास हुआ है।
      • CBT के साथ जुड़ने से भारत की हरित साख में वृद्धि हो सकती है तथा यूरोपीय संघ के साथ जलवायु-तकनीक सहयोग के द्वार खुल सकते हैं।
      • स्थिर विनियामक ढाँचे और बेहतर बाज़ार पहुँच के साथ, यूरोपीय संघ की कंपनियाँ भारत में निवेश करने के लिये अधिक इच्छुक हो सकती हैं, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में।
    • अल्पकालिक चुनौतियाँ:
      • CBAM और QCO विनियामक बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं, जिससे FTA की प्रगति धीमी हो जाती है। भारतीय निर्यातकों और यूरोपीय संघ के निर्माताओं दोनों के लिये अनुपालन लागत में वृद्धि हुई है।
      • यूरोपीय संघ चीन पर निर्भरता कम करना चाहता है, जिसमें भारत एक प्रमुख विकल्प है।
      • लेकिन, अनसुलझे नियामक अवरोध निवेश को अन्य देशों की ओर मोड़ सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    हालाँकि ये गैर-टैरिफ बाधाएँ समझौते में देरी कर सकती हैं, लेकिन वे दोनों पक्षों को स्थिरता, व्यापार निष्पक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता से संबंधित व्यापक चिंताओं को दूर करने के लिये एक मंच भी प्रदान करती हैं। इन चिंताओं के प्रति संतुलित दृष्टिकोण भारत-यूरोपीय संघ के आर्थिक संबंधों की भविष्य की दिशा निर्धारित करेगा।

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