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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. अरस्तू की 'सद्गुण नैतिकता' की अवधारणा अच्छे चरित्र लक्षणों के विकास पर केंद्रित है। इस दर्शन को आधुनिक लोकतंत्रों में लोक सेवा के नैतिक कार्यढाँचे में किस प्रकार एकीकृत किया जा सकता है? (150 शब्द)

    01 May, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • सद्गुण नैतिकता को परिभाषित कीजिये।
    • प्रासंगिक उदाहरणों, मूल्यों और व्यावहारिक अनुप्रयोगों का उपयोग करते हुए बताइये कि इसे आधुनिक लोक सेवा नैतिकता में किस प्रकार एकीकृत किया जा सकता है।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    अरस्तू की सदाचार नीतिशास्त्र अच्छे चरित्र लक्षणों की खेती पर ज़ोर देती है, आदत के माध्यम से नैतिक उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित करती है। यह एक ऐसा कार्यढाँचा है जो व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता देता है, जिसे आधुनिक लोकतंत्रों में लोक सेवा के नैतिक कार्यढाँचे में सहजता से एकीकृत किया जा सकता है।

    मुख्य भाग:

    सद्गुण नैतिकता का मूल

    • सद्गुण नैतिकता साहस, ईमानदारी, न्याय और बुद्धि जैसे गुणों के विकास पर केंद्रित है।
      • अरस्तू के अनुसार, नैतिक गुणों का विकास व्यावहारिक क्रिया के माध्यम से होता है, जिसका उद्देश्य ‘स्वर्णिम माध्य’— अर्थात् अति और अभाव के बीच संतुलन प्राप्त करना होता है।
    • कर्त्तव्य-आधारित या परिणाम-आधारित नैतिकता के विपरीत, 'सद्गुण नैतिकता' किसी विशेष कर्म के उचित या अनुचित होने पर नहीं, बल्कि व्यक्ति के नैतिक चरित्र पर केंद्रित होती है।

    लोक सेवा में एकीकरण

    • आदर्श उदाहरण के रूप में लोक सेवक: प्रभावी शासन के लिये, लोक सेवकों में ईमानदारी, जवाबदेही और सहानुभूति जैसे सद्गुण होने चाहिये।
      • नैतिक उत्कृष्टता प्राप्त करने की अरस्तू की अवधारणा को यह सुनिश्चित करने के लिये लागू किया जा सकता है कि लोक सेवक न केवल कुशल हों, बल्कि नैतिक रूप से भी ईमानदार हों।
    • शासन में निर्णय लेना: अरस्तू का स्वर्णिम माध्य का विचार राजनेताओं और लोक सेवकों को निर्णय लेने में मार्गदर्शन कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये, संसाधन वितरण के मामले में, लोक सेवक दक्षता और समानता के बीच संतुलन बना सकते हैं तथा व्यावहारिक निहितार्थों की उपेक्षा किये बिना निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकते हैं।
    • नैतिक नेतृत्व: नैतिक गुणों का प्रदर्शन करने वाले नेता जनता में विश्वास और विश्वसनीयता जागृत करते हैं।
      • उदाहरण के लिये, महात्मा गांधी या नेल्सन मंडेला जैसी हस्तियों की नेतृत्व शैली, जो अहिंसा, ईमानदारी और न्याय के गुणों पर आधारित थी, यह उदाहरण प्रस्तुत करती है कि किस प्रकार सद्गुण नैतिकता समाज में विश्वास एवं एकता को बढ़ावा दे सकती है।
    • सार्वजनिक नीति: सद्गुण नैतिकता सार्वजनिक नीतियों को भी प्रभावित करती है जो मानव कल्याण और यूडेमोनिया (जीवन की उत्कृष्टता) की खोज़ पर केंद्रित होती हैं।
    • उदाहरण के लिये, सामाजिक कल्याण नीतियों को सहानुभूति और न्याय के साथ तैयार किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करते हुए नैतिक अखंडता को प्रतिबिंबित करें।

    समकालीन लोक सेवा के उदाहरण

    • महात्मा गांधी का नेतृत्व: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गांधीजी के नेतृत्व ने सदाचार, विशेष रूप से सत्य और अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
      • राजनीतिक सत्ता की तुलना में नैतिक सत्यनिष्ठा पर उनका ध्यान आज सार्वजनिक नेताओं के लिये एक मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है।
    • आधुनिक लोक सेवक: नैतिक नेतृत्व किरण बेदी जैसे प्रशासनिक अधिकारियों में देखा जाता है, जिन्होंने भारत में एक पुलिस अधिकारी के रूप में सेवा करते हुए सत्यनिष्ठा और न्याय का उदाहरण पेश किया।
      • ऐसे व्यक्ति दर्शाते हैं कि ईमानदारी और सहानुभूति जैसे गुण लोक प्रशासन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

    निष्कर्ष:

    आधुनिक लोकतंत्रों में, लोक सेवा में अरस्तू के सद्गुण नैतिकता का एकीकरण यह सुनिश्चित करता है कि लोक सेवक न केवल अपने कर्त्तव्यों का प्रभावी ढंग से पालन करें बल्कि नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखें जो सामाजिक कल्याण और न्याय को बढ़ावा देते हैं। ईमानदारी, सहानुभूति और ज्ञान जैसे गुणों का समावेशन करके, लोक सेवा लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मज़बूत कर सकती है तथा एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना कर सकती है।

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