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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ऐसा माना जाता है कि सरकारी गोपनीयता अधिनियम सूचना के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन में बाधा है। क्या आप इस दृष्टिकोण से सहमत हैं? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    21 Sep, 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उत्तर लेखन आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के संक्षिप्त परिचय के साथ प्रारंभ कीजिये।
    • गोपनीयता अधिनियम और सूचना के अधिकार अधिनियम के बीच तुलना कीजिये साथ कुछ समितियों की सिफारिशों या सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों जैसे सहायक तर्क प्रस्तुत कीजिये।
    • मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए और एक संतुलित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वर्ष 1923 का आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA) एक कानून है जो विशेष रूप से विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्रों में सरकारी रहस्यों की निजता एवं गोपनीयता की रक्षा करने का प्रयास करता है। वर्ष 2005 का RTI अधिनियम एक ऐसा कानून है जो नागरिकों को शासन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही में वृद्धि के साथ भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन पर अंकुश लगाने के लिये सार्वजनिक अधिकारियों से जानकारी मांगने और प्राप्त करने का अधिकार देता है।

    संरचना:

    एक विचार यह है कि गोपनीयता अधिनियम, सूचना के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन में बाधा है, क्योंकि यह सूचना के अधिकार और गोपनीयता बनाए रखने के कर्तव्य के बीच टकराव उत्पन्न करता है।

    गोपनीयता अधिनियम (OSA) सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI)
    • गोपनीयता अधिनियम, यह परिभाषित नहीं करता है कि आधिकारिक गोपनीयता क्या है, साथ ही यह सरकार को किसी भी जानकारी को इस प्रकार वर्गीकृत करने का व्यापक विवेक प्रदान करता है।
    • गोपनीयता अधिनियम किसी अन्य कानून को भी समाप्त कर देता है जिसमें जानकारी के प्रकटीकरण की आवश्यकता होती है, साथ ही अनधिकृत संचार अथवा आधिकारिक गोपनीयता के लिये कठोर दंड लगाता है।
    • गोपनीयता अधिनियम अपने अंर्तगत लिये गए निर्णयों की अपील या समीक्षा के लिये कोई तंत्र प्रदान नहीं करता है, साथ ही सरकार में गलत काम या भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्हिसलब्लोअर अथवा पत्रकारों के लिये किसी भी सार्वजनिक हित की रक्षा को मान्यता प्रदान नहीं करता है।
    • दूसरी ओर, सूचना का अधिकार अधिनियम इस सिद्धांत पर आधारित है कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रस्तुत की गई सभी जानकारी सार्वजनिक संपत्ति हैं, साथ ही नागरिकों को कुछ छूटों और प्रतिबंधों के अधीन, उस तक पहुँचने का अधिकार प्रदान करता है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, सूचना के लिये अनुरोध करने तथा उसका निपटान के लिये एक स्पष्ट और सरल प्रक्रिया प्रदान करता है, साथ ही अपील एवं शिकायतों पर निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र सूचना आयोग की स्थापना करता है।
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, ऐसी जानकारी का खुलासा करने में सार्वजनिक हित को पहचानता है जो संरक्षित हितों को होने वाले हानि से अधिक हो सकती हैं, साथ ही इसे निर्धारित करने के लिये एक संतुलन परीक्षण भी प्रदान करता है।

    यह दृष्टिकोण कि गोपनीयता अधिनियम, सूचना के अधिकार अधिनियम के लिये एक बाधा है, विभिन्न समितियों और विशेषज्ञों की सिफारिशों द्वारा समर्थित है। उदाहरण के लिये:

    • वर्ष 1971 में विधि आयोग ने सिफारिश की कि राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित सभी कानूनों को एक अधिनियम में विलय कर दिया जाना चाहिये और "राष्ट्रीय सुरक्षा विधेयक" पारित किया जाना चाहिये।
    • वर्ष 2006 में, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा सिफारिश की गई कि गोपनीयता अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिये, और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम में एक अध्याय द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें आधिकारिक गोपनीयता से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
    • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि गोपनीयता अधिनियम का प्रयोग सरकार की वै आलोचना को दबाने के लिये नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने यह भी माना कि सूचना के अधिकार अधिनियम सूचना तक पहुँच को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून है, साथ ही गोपनीयता अधिनियम का उपयोग केवल उन सूचनाओं तक पहुँच को प्रतिबंधित करने के लिये किया जा सकता है जो वास्तव में संवेदनशील हैं।

    निष्कर्ष:

    अतः यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गोपनीयता अधिनियम कभी-कभी सूचना के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करता है, क्योंकि यह सरकार में गोपनीयता एवं अविश्वास की संस्कृति को जन्म देता है और साथ ही नागरिकों के अधिकारों को कमज़ोर करता है। गोपनीयता अधिनियम को सूचना के अधिकार अधिनियम के अनुरूप बनाने के लिये इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।

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