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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    एक महिला अपने पुरुष साथी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में थी। उसने अपने साथी द्वारा शादी का झाँसा देकर पिछले पाँच सालों से लगातार यौन उत्पीड़न एवं बलात्कार किये जाने की शिकायत पुलिस के पास दर्ज कराई। पुलिस द्वारा की गई प्राथमिक जाँच में यह पाया गया कि ये आरोप झूठे हैं तथा ये दंपत्ति आपसी मतभेद होने से पूर्व खुशहाल जीवन जी रहे थे, जिससे पुलिस को ये आरोप निराधार लगे। ऐसे में उस महिला ने राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवाते हुए यह आरोप लगाया कि पुलिस द्वारा उसे न्याय नहीं मिला, उल्टा पितृसत्तात्मक मानसिकता के वशीभूत होकर पुलिस ने उसके प्रति भेदभाव किया है। उसने महिला आयोग से न्याय की अपील की है। आप राज्य महिला आयोग की चेयरपर्सन हैं।

    (a) ऐसी परिस्थिति में आप कौन से कदम उठाएंगे?
    (b) क्या आपको लगता है कि लिव इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति एवं पारंपरिक मूल्यों के खिलाफ है? (250 शब्द) 20

    04 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • उक्त केस स्टडी में शामिल प्रमुख हितधारकों को सूचीबद्ध कीजिये।
    • केस स्टडी के विभिन्न दृष्टिकोणों को समझते हुए तार्किक कार्रवाई सुझाइये।
    • लिव-इन-रिलेशनशिप के साथ भारतीय संस्कृति तथा पारंपरिक मूल्यों की संगति का परीक्षण कीजिये।

    यह केस स्टडी एक महिला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर पर बलात्कार और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए जाने से संबंधित है जिसके साथ वह पिछले पाँच वर्षों से रह रही थी।

    प्रथमदृष्टया यह मामला रिश्तों में खटास का लग रहा है, हालाँकि यह मामला एक ऐसे रिश्ते में दोनों पक्षों की सुभेद्य स्थिति को भी प्रदर्शित करता है जिसके प्रति कानून और समाज बहुत ग्रहणशील नहीं हैं। ऐसे में दोनों पक्षों में से किसी एक के द्वारा न्याय की गुहार लगाने पर यह तय कर पाना कठिन है कि वास्तव में दोषी कौन है। फिर भी, राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में मेरी महती ज़िम्मेदारी है कि पीड़ित पक्ष को न्याय मिले।

    केस स्टडी में संबंधित हितधारक:

    • पुरुष लिव-इन पार्टनर
    • महिला लिव-इन पार्टनर
    • पुलिस अधिकारी
    • राज्य महिला आयोग
    • व्यापक अर्थों में समाज

    इस मामले में शिकायकर्त्ता द्वारा लिव-इन पार्टनर द्वारा यौन उत्पीड़न एवं पुलिस अधिकारियों द्वारा कर्त्तव्य की अवहेलना के संदर्भ में लगाए गए आरोपों की सत्यता की जाँच करना राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में मेरा प्राथमिक कदम होगा।

    (a) इस संबंध में उठाए जाने वाले कदम निम्नलिखित हैं-

    (i) पहले मैं, महिला द्वारा लिव-इन पार्टनर और पुलिस अधिकारियों पर लगाए गए आरोपों की सत्यता की जाँच करूंगी।
    (ii) मैं पुरुष लिव-इन पार्टनर से बात कर उसका पक्ष सुनूंगी और इस प्रकार मिले तथ्यों के आधार पर यह तय करने का प्रयास करूंगी कि महिला द्वारा लगाए गए आरोपों में सत्यता कितनी है।
    (iii) मैं पुलिस अधिकारियों से अनुरोध करूंगी कि वे प्रांरभिक जाँच रिपोर्ट की प्रतिलिपि उपलब्ध कराएँ जिससे इसकी जाँच की जा सके कि पुलिस ने अपनी जाँच स्तवंत्र और निष्पक्ष तरीके से की है अथवा नहीं।
    (iv) मैं इस मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए संबंधित क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों को नए सिरे से जाँच का निर्देश दूँगी और यह सुनिश्चित करूंगी कि इस जाँच दल में महिला पुलिसकर्मी भी सम्मिलित हों।
    (v) इस बीच पीड़ित महिला को भावनात्मक समर्थन और कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करने का प्रयास करूंगी।

    (b) भारतीय संस्कृति में विवाह को एक धार्मिक संस्कार माना जाता है जिसमें पुरुष और महिला शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये स्थाई बंधन में बँधे होते हैं। आमतौर पर भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार्य नहीं किया जाता है। इसे अभी तक हमारी संस्कृति में पूरी तरह आत्मसात् नहीं किया गया है जिसकी वजह से ऐसे रिश्ते में रहने वाले पुरुष व महिला को सामाजिक अस्वीकृति झेलनी पड़ती है। यदि आगे चलकर लिव-इन में रहने वाले पुरुष व स्त्री के आपसी संबंध खराब हो जाएँ तो उनके लिये विवाह की स्थापित परंपरा के तहत अपना घर दुबारा बसाना कठिन हो जाता है।

    लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर सामाजिक अस्वीकृति एवं कलंक के चलते अलगाव की स्थिति में यह महिला के लिये अधिक कष्टकारी होता है।

    हालाँकि, समय के साथ लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर समाज के दृष्टिकोण में बदलाव आ रहा है और शनै:-शनै: ही सही, समाज ने इन रिश्तों को स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया है। इस तरह के रिश्तों के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने भी अपने निर्णय में कहा है कि जब तक अन्यथा साबित नहीं होता तब तक लंबे समय से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले दंपतियों को कानूनी रूप से विवाहित माना जाएगा। लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि इन्हें लेकर धीरे-धीरे युवाओं के मध्य स्वीकार्यता बढ़ रही है। जहाँ तक कानून की बात है तो कानून के अनुसार बगैर विवाह किये साथ रहना अपराध नहीं है बल्कि यह जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है।

    आज, दुनिया के कई पारंपरिक समाज लिव-इन रिश्तों का विरोध कर रहे हैं। लेकिन हमें यह समझना होगा कि भावनात्मक लगाव को कभी भी सामाजिक दवाब से दबाया नहीं जा सकता है और ऐसे रिश्तों में व्यक्ति के पास निर्णय लेने एवं चुनाव करने की स्वतंत्रता होनी चाहिये। यदि युवा लिव-इन रिश्तों की ओर आकर्षित हो रहे हैं तो समाज के विभिन्न हितधारकों को बदलते परिवेश और परंपरा के मध्य संतुलन स्थापित करने का प्रयास करना चाहिये। दूसरी ओर, ऐसे रिश्ते में प्रवेश करने वाले लोगों से भी अपेक्षा है कि वे एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदार रवैया प्रदर्शित करें।

    सीधे तौर पर इन रिश्तों को अस्वीकार्य करने के बजाय हमें ऐसे दपंतियों के लिये एक ‘सपोर्ट मेकैनिज़्म’ विकसित करने पर ध्यान देना चाहिये जिससे आने वाले समय में ऐसे जोड़े सामाजिक रूप से धारणीय एवं स्थायी रिश्ता बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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