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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में वाणिज्यवादी प्रवृत्ति ने एक नया रूप लिया जिसे ब्रिटिशों ने श्वेत जाति के दायित्व के रूप में संबोधित किया। स्पष्ट कीजिये।

    21 Jul, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में यूरोप में नवीन साम्राज्यवाद को स्पष्ट करें।
    • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में नवीन साम्राज्यवाद के अंतर्गत अफ्रीका के औपनिवेशीकरण को बताएँ।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप में वाणिज्यवादी प्रवृत्ति ने एक नया रूप धारण कर लिया था। इस समय तक औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप आर्थिक क्षेत्र में नई विचारधाराओं का जन्म हुआ जिसे यूरोप में नवीन साम्राज्यवाद की संज्ञा दी गई।

    वस्तुतः औद्योगीकरण की नीति ही नवीन उपनिवेशवादी नीति की जन्मदात्री थी। ऐसे सभी देश, जिनके पास प्रचुर मात्रा में संचित पूंजी थी और जिनका उत्पादन निरंतर बढ़ रहा था, के लिए पूँजी का निवेश करना तथा उत्पादन का निर्यात करना अति आवश्यक हो गया। जर्मन चांसलर बिस्मार्क जो अभी तक उपनिवेशों को जर्मनी के लिये भार समझता था उसे भी क्रियाशील नीति अपनाने के लिये बाध्य होना पड़ा।

    यूरोपीय राज्यों के विभिन्न तथा महत्वपूर्ण राजनयिकों ने अविकसित क्षेत्रों पर प्रभुत्व स्थापित करना अपने राज्यों के लिये आवश्यक तथा अनिवार्य घोषित किया। इस नीति के परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी के अंतिम चरण में अफ्रीका महाद्वीप का 90 प्रतिशत भाग यूरोपीय राज्यों के बीच विभाजित हो गया तथा इसी तरह से प्रशांत महासागर के क्षेत्र में और एशिया के विस्तृत भू-भागों पर यूरोपीय राज्यों का क्रमशः आधिपत्य स्थापित हो गया। यूरोप के प्रमुख विचारकों, लेखकों तथा प्रभावशाली व्यक्तियों ने समय-समय पर इस औपनिवेशिक नीति को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया। ब्रिटिशों ने इसे ‘श्वेत जाति का भार या दायित्व’ के रूप में संबोधित किया तो फ़्राँस ने इस औपनिवेशिक विस्तार को ‘सभ्यता के विस्तार’ की संज्ञा दी, जबकि इटली ने इसे ‘पुनीत कर्त्तव्य’ घोषित किया।

    1868 से 72 के बीच इंग्लैण्ड में इम्पीरियल फेडरेशन आंदोलन के तत्त्वावधान में प्रमुख व्यक्तियों ने यह बात उठाई कि इंग्लैण्ड को अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिये हरसंभव प्रयास करना चाहिये। प्रसिद्ध लेखक रस्किन ने भी कहा था कि “इंग्लैण्ड को शीघ्रातिशीघ्र नए उपनिवेश स्थापित कर लेने चाहिये, उसे जहाँ भी उपयोगी खाली स्थान मिलता है उस पर अधिकार कर लेना चाहिये और अगर वह ऐसा नहीं करेगा तो नष्ट हो जाएगा।

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