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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जम्मू एवं कश्मीर के उच्च न्यायालय के व्यक्तव्य ‘‘जम्मू एवं कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के समतुल्य है’’ के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय का कथन कि ‘‘इस राज्य के नागरिक सबसे पहले भारत के नागरिक है’’ की व्यवाहर्यता का अनुच्छेद 370 के संदर्भ में परीक्षण करें।

    04 Mar, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    भूमिका:

    सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कुछ समय पहले अनुच्छेद 370 की अनुल्लंघनीयता का परीक्षण करते समय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के उस मत को खारिज किया गया कि जम्मू एवं कश्मीर का संविधान भारत के संविधान के समतुल्य है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उस राज्य के नागरिक सबसे पहले ‘भारत के नागरिक’ है।

    विषय-वस्तु

    कुछ समय पूर्व जम्मू एवं कश्मीर की विधानसभा ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें वित्तीय परिसंपत्ति का प्रतिभूतिकरण और पुननिर्माण एवं सुरक्षा उपाय व्रियान्वयन अधिनियम यानि सरफेसी अधिनियम, 2002 के जम्मू एवं कश्मीर में विस्तार को प्रतिबंधित किया था। जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा ने अनुच्छेद 370 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का हवाला देते हुए यह राय दी कि इस अधिनियम को राज्य में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे जम्मू एवं कश्मीर राज्य विधानसभा के द्वारा पारित नहीं किया गया है। इसलिये अनुच्छेद 370 के प्रावधानों एवं इसके निरसन के संबंध में विभिन्न पहलुओं का परीक्षण आवश्य है-

    • अनुच्छेद 370 (एक अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान) के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त है, क्योंकि इसका भारतीय संघ में विशेष परिस्थितियों में विलय हुआ था।
    • अनुच्छेद 370 एक ऐसा कानून है जो जम्मू एवं कश्मीर को विशेष स्वायत्त राज्य का दर्जा प्रदान करता है और शासन के मामलों में उस राज्य के लोगों को अधिकार प्रदान करता है, जो अपनी पहचान और भविष्य के विषय में असुरक्षित महसूस करते हैं।
    • यद्यपि इसे संघ की पहली अनुसूची में 15वें राज्य के रूप में सम्मिलित भी किया गया है, उसके बावजूद संविधान के वे सभी प्रावधान, जो अन्य राज्यों पर लागू होते हैं, वे जम्मू एवं कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं।
    • राष्ट्रपति ऐसी घोषणा कर सकते है कि यह अनुच्छेद व्रियाशील नहीं है, लेकिन यह तभी संभव है जब राज्य की विधानसभा इसकी अनुशंसा करें।
    • प्रावैधिक रूप से रक्षा, विदेशी मामलों और संचार को छोड़कर अन्य सभी कानूनों को लागू करने के लिये संसद को राज्य सरकार की सहमति लेना आवश्यक है। इससे राज्य को एक तरह की वीटो शक्ति प्राप्त होती है।
    • इससे अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों को जम्मू एवं कश्मीर में जमीन या अन्य अचल संपत्ति खरीदने की अनुमति प्राप्त नहीं है, राज्य सरकार में पदोन्नति में अनुसूचित जातियाँ/अनुसूचित जनजातियाँ आरक्षण का लाभ नहीं ले पाती इत्यादि।
    • युद्ध अथवा बाहरी अतिव्रमण की स्थिति को छोड़कर, आंतरिक तनाव या आसन्न खतरे की दशा में केंद्र के पास राज्य में आपातकाल घोषित करने का अधिकार नहीं है, जब तक कि राज्य इससे सहमत न हो।

    अनुच्छेद 370 के पक्ष में तर्क

    • 1952 के दिल्ली समझौते में अनुच्छेद 370 के अंतर्गत केंद्र और राज्य के बीच संबंध को परिभाषित किया गया है। राष्ट्रपति के आदेशों द्वारा संविधान के कई प्रावधानों को जम्मू एवं कश्मीर तक विस्तृत किया गया है। उदाहरणस्वरूप- मूल अधिकार, बाह्य आपातकाल के प्रावधान, संघ की आधिकारिक भाषाओं के संबंध में प्रावधान आदि जिससे अन्य राज्यों और जम्मू एवं कश्मीर में अधिक एकरूपता लाई जा सकें।
    • हालाँकि अन्य कानून पूरे भारत में लागू होते हैं लेकिन जम्मू एवं कश्मीर में नहीं होते। जैसे- पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के प्रावधान, राज्य के नीति निदेशक तत्त्व, मूल कर्त्तव्य, राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा।
    • वर्ष 2016 के बाद से अचानक से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों मे बदलाव करना उन मुख्यधारा के राजनीतिज्ञों और उन युवाओं के बीच मनमुटाव को और बठाएगा, जो क्षेत्र में लगातार बनी हुई अस्थिरता से तंग आ चुके हैं। इससे कट्टरपंथियों और अलगाववादियों को उनके स्थापत्य विरोधी एजेंडे को नकारात्मक तरीके से विस्तार देने का बहाना मिल जाएगा। इसकी बजाय क्षेत्र के विभिन्न साझेदारों से परामर्श के साथ उत्तरोत्तर परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ना अधिक भरोसेमंद उपाय साबित होगा।

    वर्ष 2015 में, जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 370 के शीर्षक में इसे ‘अस्थायी’ कहे जाने के बावजूद यह निर्णय दिया कि यह संविधान का स्थायी प्रावधान है। इसे निष्प्रभावी, निरस्त या संशोधित भी नहीं किया जा सकता। इसके अलावा अनुच्छेद 368 को भी इसमें प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। हालाँकि इस अनुच्छेद का संशोधन विवादास्पद है। अनुच्छेद 370 संविधान की आधारभूत संरचना का हिस्सा नहीं है, इसलिये यह अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संसद की संशोधन शक्ति के बाहर नहीं है।

    निष्कर्ष

    अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-

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