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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मैला ढोने या हाथ से सीवर या शुष्क शौचालयों की सफाई को अमानवीय प्रथा के रूप में शुमार किया जाता है। हाल ही भारत के दिल्ली, चेन्नई, चंडीगढ़ आदि बड़े शहरों में सीवरों की सफाई के क्रम में काफी संख्या में मज़दूरों को अपनी जान गवाँनी पड़ी है। साथ ही ग्रामीण इलाकों में सिर पर मैला ढोने जैसी प्रथा अब भी समाज में विद्यमान है। इस क्रम में एक विरोधाभास सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से भी दिखाई देता है। उपर्युक्त प्रकरण के सन्दर्भ से संबद्ध नैतिक मुद्दों की पहचान कीजिये।

    31 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • परिचय में इसे एक सामाजिक बुराई के रूप में दर्शाएँ।
    • नैतिक मुद्दों के रूप में निहित संवैधानिक, सामाजिक व अन्य मानवीय पहलुओं को उज़ागर करें।
    • स्वच्छ भारत अभियान के विरोधाभास का संक्षेप में उल्लेख करें।
    • निष्कर्ष के रूप में आलोचना करते हुए समाधान के कुछ उपाय सुझाएँ। 

    मैला ढोने या मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा एक सामाजिक बुराई के रूप में हमारे समाज में अभी भी विद्यमान है, जो किसी भी सभ्य समाज को कलंकित करने के लिये पर्याप्त है। इस अमानवीय प्रथा में निम्नलिखित नैतिक मुद्दे अंतर्निहित हैं-

    • मैला ढोने या मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा हमारे संविधान की प्रस्तावना में वर्णित व्यक्ति की गरिमा के विपरीत है।
    • इस प्रथा के तहत सीवर की सफाई के क्रम में होने वाली मौतों से संविधान के भाग तीन में उल्लेखित जीवन के अधिकार के साथ-साथ गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी का भी उल्लंघन होता है।
    • जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देने में इस प्रथा का बहुत बड़ा योगदान है। इस कुप्रथा के अंतर्गत दलितों को मैला ढोने व शौचालय साफ करने के लिये मज़बूर किया जाता है, जो समाज में ऊँच-नीच  और जातिगत भेदभाव की भावना के लिये उत्तरदायी है।
    • संविधान के अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों खासकर अनुसूचित जाति और जनजाति की सामाजिक अन्याय से रक्षा करेगा। लेकिन इस बुराई का विद्यमान होना, इस अनुच्छेद के क्रियान्वयन पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। इस तरह यह प्रथा सामाजिक न्याय की प्रक्रिया को भी बाधित करती है।
    • यह भी देखा गया है कि इस प्रथा में महिलाओं की भागीदारी अधिक होती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ शुष्क शौचालयों को हाथों से साफ किया जाता है तथा मैला सिर पर ढोकर उसे बाहर फेंका जाता है। इस तरह यह महिला सशक्तीकरण में बाधक होने के साथ लिंगगत भेदभाव को भी जन्म देता है।
    • वर्तमान सरकार द्वारा देश को स्वच्छ बनाने के लिये चलाए जा रहे स्वच्छ भारत अभियान के तहत बड़ी संख्या में शुष्क शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है जिसे कालांतर में साफ करने की आवश्यकता होगी। इसके परिणामस्वरूप अप्रत्यक्ष रूप से मैनुअल स्कैवेंजिंग को बढ़ावा मिल सकता है। 

    इस तरह मैला ढोना एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं को जन्म देने के लिये भी उत्तरदायी है। इस समस्या के समाधान के लिये अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम जैसी आधारभूत संरचनाओं का विकास करने के अतिरिक्त शिक्षा, आर्थिक उत्थान, उचित वैधानिक और दंडात्मक कार्रवाइयों के द्वारा इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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