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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    राज्य के संबंध में गांधी जी के विचारों पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।

    12 Feb, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    महात्मा गांधी का दर्शन अनेक विचारधाराओं से मिलकर बना है। उन्होंने सभी विचारधाराओं और दर्शनों को परखा और उसका सार ग्रहण किया परंतु किसी भी विचारधारा में बहे नहीं।

    दर्शन के स्तर पर गांधी जी अराजकतावादी विचारक हैं और यह धारणा उनके नीतिशास्त्र से जुड़ी है। इसका अर्थ है कि वे आदर्श स्थिति में राज्य के अस्तित्व का निषेध करते हैं। गांधी जी के अनुसार राज्य दो कारणों से बुरा है-

    1. राज्य के होने का अर्थ ही है कि वह हिंसा की ताकत (सेना और पुलिस) के सहारे टिका होगा जो कि अहिंसा के आदर्श के विपरीत है।
    2. राज्य अनिवार्य रूप से ऐसे कानून बनाता है जो सभी व्यक्तियों को एक जैसे ढाँचे में बाँधते हैं। इससे व्यक्तियों की आत्मिक स्वतंत्रता बाधित होती है।

    अराजकतावाद की स्थिति तक पहुँचने के लिये गांधी जी मार्क्स की तरह हिंसा का समर्थन नहीं करते और न ही पीटर क्रोपाटकिन की तरह राज्य के साथ-साथ धर्म के निषेध की बात करते हैं। उनका अराजकतावाद धर्म और शांति से सुसंगत है।

    गांधी जी जानते थे कि अराजकतावाद का आदर्श उपलब्ध होना आसान नहीं है। मार्क्स ने जिस तरह से मार्क्सवाद के आने की गारंटी दी है वैसा दावा गांधी जी नहीं करते हैं। उन्हें विश्वास है कि रामराज्य (अर्थात् अराजकतावाद) आएगा जरूर पर कब और कैसे का दावा करना संभव नहीं है।

    जब तक रामराज्य नहीं आता तब तक के लिये उन्होंने नैतिक राजव्यवस्था के सूत्र दिये हैं-

    1. राज्य की शक्तियाँ जितनी कम हों उतना बेहतर (थोरो का प्रभाव)।
    2. लोकतंत्र का समर्थन किंतु दलविहीन लोकतंत्र के पक्ष में।
    3. सत्ता का स्थानांतरण नीचे से ऊपर की ओर होना चाहिये। प्रत्यक्ष चुनाव सिर्फ ग्रामीण पंचायत के स्तर पर हो जिसके पास विधायी, कार्यपालक तथा न्यायिक शक्तियाँ हों। इसके ऊपर के सभी चुनाव इस तरह से हों कि नीचे के पदाधिकारी अपने से ऊपरी स्तर के सदस्यों को चुनें। गाँवों के ऊपर तालुका, उसके ऊपर जनपद, उसके ऊपर प्रदेश तथा उसके ऊपर देश की पंचायत होनी चाहिये। राष्ट्रीय पंचायत या देश की सरकार का मुख्य कार्य सिर्फ यह होना चाहिये कि वह देश को एक रख सके। इसी विचार को स्पष्ट करते हुए जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि राज्य ट्रेन की खतरे की जंजीर के समान हो, यात्रियों का ध्यान सदैव इस जंजीर पर केंद्रित नहीं रहता किंतु संकट के समय वे इसका प्रयोग करते हैं।
    4. गांधी जी लोक कल्याणकारी राज्य का भी उत्साहपूर्वक समर्थन नहीं करते क्योंकि लोक कल्याण के नाम पर राज्य की शक्तियाँ बढ़ जाती हैं और व्यक्ति की आत्मिक स्वतंत्रता बाधित होती है।

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