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केस स्टडी
आप एक महानगर के ज़िलाधिकारी हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित प्रेडिक्टिव पुलिसिंग प्रणाली लागू की है, जिसका उद्देश्य अपराध की पूर्वानुमानित रोकथाम है। इसके लिये नागरिकों से संबंधित बिग डाटा, जैसे: CCTV फुटेज, मोबाइल रिकॉर्ड, ऑनलाइन गतिविधियों के पैटर्न आदि का विश्लेषण किया जा रहा है।
हालाँकि इस प्रणाली ने सड़क अपराधों को कम करने और प्रतिक्रिया समय में सुधार करने में प्रारंभिक सफलता तो दिखाई है, फिर भी कई चिंताएँ सामने आई हैं। नागरिक समाज समूहों और डिजिटल अधिकार कार्यकर्त्ताओं का आरोप है कि यह तकनीक सीमांत समुदायों को असमान रूप से निशाना बनाती है, जिससे भेदभाव और प्रोफाइलिंग जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। आम नागरिकों ने बिना सहमति लिये डाटा संग्रहण और सामूहिक निगरानी (Mass Surveillance) की संभावना पर आपत्ति जताई है।
इसी बीच गृह विभाग आप पर दबाव डाल रहा है कि सभी थानों में इस प्रणाली का विस्तार किया जाये, क्योंकि यह दक्ष, कम लागत वाली और विधि-व्यवस्था के लिये लाभकारी बताई जा रही है। दूसरी ओर, कुछ पुलिस अधिकारी अनौपचारिक रूप से यह चिंता जता रहे हैं कि AI पर अंध-निर्भरता के कारण उनकी व्यावसायिक समझ और विवेक (Discretion) कमज़ोर हो सकता है।
आपसे अपेक्षा की गई है कि आप राज्य सरकार के लिये एक रिपोर्ट तैयार करें जिसमें सार्वजनिक सुरक्षा तथा मूल अधिकारों के संरक्षण की दोहरी अनिवार्यताओं को संतुलित किया गया हो।
प्रश्न:
(a) प्रेडिक्टिव पुलिसिंग को लेकर उठी चिंताओं पर आपकी तत्काल प्रतिक्रिया क्या होगी?
(b) इस मामले में निहित नैतिक मुद्दों का अभिनिर्धारण कर उनकी विवेचना कीजिये।
(c) यदि आपसे सार्वजनिक सुरक्षा हेतु AI के उपयोग को उचित ठहराने के लिये कहा जाये, तो आप कौन-से तार्किक और नैतिक तर्क प्रस्तुत करेंगे?
(d) एक लोकसेवक के रूप में आप कौन-से ठोस उपाय सुझाएँगे ताकि शासन में AI का प्रयोग करते समय उत्तरदायित्व, निष्पक्षता तथा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान सुनिश्चित किया जा सके?
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