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भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का राष्ट्रीय एकीकरण

  • 12 Sep 2025
  • 145 min read

यह एडिटोरियल 11/09/2025 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित How the Modi government has furthered integration of the North-East with rest of India पर आधारित है। इस लेख में मिज़ोरम की पहली रेलवे लाइन के उद्घाटन को पूर्वोत्तर के अलगाव और अवसंरचना की कमी को दूर करने की दिशा में एक कदम के रूप में चर्चा की गई है, साथ ही इस क्षेत्र की अप्रयुक्त क्षमता को भी रेखांकित किया गया है, जो विशाल संसाधनों के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद में इसकी मात्र 2.3% हिस्सेदारी में परिलक्षित होती है।

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने मिज़ोरम की पहली रेलवे लाइन का उद्घाटन किया, जो दशकों से चले आ रहे पूर्वोत्तर भारत के अवसंरचनात्मक अभाव और मुख्यधारा भारत से भौगोलिक अलगाव को दूर करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यद्यपि इस क्षेत्र में उग्रवाद से जुड़ी घटनाओं में 73% की कमी आई है तथा संपर्क-सुविधाओं में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी इसे जातीय तनाव, आर्थिक अविकास एवं राष्ट्रीय बाज़ारों के साथ अपर्याप्त एकीकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के कुल क्षेत्रफल का 8% हिस्सा होने के बावजूद पूर्वोत्तर का भारत की GDP में मात्र 2.3% योगदान यह स्पष्ट करता है कि इस क्षेत्र में अपार संभावनाएँ हैं, जिन्हें नीतिगत हस्तक्षेप और निरंतर निवेश द्वारा साकार किया जाना आवश्यक है।

भारत के विकास और सुरक्षा के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • दक्षिण-पूर्व एशिया का भू-राजनीतिक प्रवेश द्वार: पूर्वोत्तर, ASEAN और व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये भारत का महत्त्वपूर्ण भूमि सेतु के रूप में कार्य करता है, जो इसे देश की एक्ट ईस्ट नीति का आधार बनाता है। 
    • म्याँमार, बांग्लादेश, भूटान और चीन जैसे देशों की सीमा से लगा इसका रणनीतिक स्थान इसे व्यापार, संपर्क एवं राजनयिक प्रभाव के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाता है। 
    • कलादान मल्टीमॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट प्रोजेक्ट जैसी हालिया परियोजनाओं का उद्देश्य म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह के माध्यम से पूर्वोत्तर के लिये एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करना है, जिससे संकीर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे ‘चिकन नेक’ भी कहा जाता है) पर निर्भरता कम हो। 
  • क्षेत्रीय विकास के लिये आर्थिक उत्प्रेरक: इस क्षेत्र में विशाल अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधन हैं, विशेष रूप से जलविद्युत, तेल और गैस, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • विकास योजनाएँ क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को उपभोक्ता-से-उत्पादक में बदलने पर केंद्रित हैं। 
    • पूर्वोत्तर गैस ग्रिड और प्रस्तावित 11,000 मेगावाट की सियांग अपर बहुउद्देशीय परियोजना, इसकी आर्थिक क्षमता को उजागर करने के उद्देश्य से हाल ही में की गई पहलों के उदाहरण हैं। 
  • जैवविविधता हॉटस्पॉट और पारिस्थितिक समृद्धि: पूर्वोत्तर भारत भारत-बर्मा जैवविविधता हॉटस्पॉट का एक हिस्सा है, जहाँ वनस्पतियों और जीवों की उल्लेखनीय विविधता पाई जाती है। 
    • इसके घने वन और अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्र भारत के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं तथा फसल विविधता एवं मूल प्रजातियों के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। 
    • इस क्षेत्र में भारत की लगभग 50% पुष्पी पादपों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, साथ ही यह एक सींग वाला गैंडे और हूलॉक गिब्बन जैसी जंतु प्रजातियों का निवास स्थल है। 
  • सांस्कृतिक विविधता और सॉफ्ट पावर: 200 से अधिक विशिष्ट जातीय समूहों और जनजातियों के साथ, पूर्वोत्तर सांस्कृतिक परंपराओं, भाषाओं एवं त्योहारों की एक समृद्ध संरचना है। 
    • यह सांस्कृतिक विविधता भारत की सॉफ्ट पावर कूटनीति और पड़ोसी देशों के साथ लोगों के बीच समन्वय के लिये एक महत्त्वपूर्ण परिसंपत्ति है। 
    • नगालैंड का हॉर्नबिल महोत्सव और मणिपुर में संगाई महोत्सव जैसे उत्सव पर्यटकों को आकर्षित करते हैं तथा सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देते हैं। 
  • एक रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में सुरक्षा और स्थिरता: अपनी अवस्थिति को देखते हुए, पूर्वोत्तर की सुरक्षा और स्थिरता भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये सर्वोपरि है। 
    • इस क्षेत्र की भेद्य सीमाएँ और जातीय जटिलताएँ ऐतिहासिक रूप से उग्रवाद व सीमा-पार समस्याओं का कारण रही हैं। 
    • हालाँकि, इस क्षेत्र में सरकार द्वारा उल्लेखनीय प्रगति की गई है, जैसा कि चरमपंथी हिंसा में कमी और वर्ष 2020 का बोडो समझौता एवं कार्बी शांति समझौते- 2021 जैसे कई शांति समझौतों पर हस्ताक्षर से स्पष्ट है, जिन्होंने कई उग्रवादी समूहों को मुख्यधारा में ला दिया है। 
  • मानव पूँजी और सामाजिक विकास: पूर्वोत्तर में युवा और शिक्षित आबादी है जिसकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 
    • उदाहरण के लिये, मिज़ोरम ने हाल ही में पूर्ण कार्यात्मक साक्षरता हासिल की है, ऐसा करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है, जो इस क्षेत्र में केंद्रित सामाजिक विकास प्रयासों का प्रमाण है। 
    • डिजिटल और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना का उद्देश्य इस मानव संसाधन का उपयोग विकास को गति देने के लिये करना है, जो उत्तर पूर्व विशेष अवसंरचना विकास योजना (NESIDS) और असम व त्रिपुरा के लिये विशेष विकास पैकेज जैसी पहलों के साथ संरेखित है। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा केंद्र: उच्च वर्षण और नदी नेटवर्क के साथ, पूर्वोत्तर में नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से लघु जल विद्युत, सौर एवं बायोमास की अपार संभावनाएँ हैं। 
    • इसके विशाल बायोमास भंडार, उच्च सौर विकिरण के कारण सौर क्षमता और फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट (जैसे: असम की भुरबंधा गाँव पंचायत की फ्लोटिंग सौर परियोजना) में नई पहल इसे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा समावेशन के लिये एक परीक्षण स्थल बनाती हैं। 
    • चूँकि यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, बाढ़, भूस्खलन और हिमनदों के पिघले जलाशय में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक सुभेद्य है, इसलिये नवीकरणीय ऊर्जा से प्रेरित विकास पथ अनुकूलन एवं शमन दोनों लाभ प्रदान करता है।
    • इस प्रकार, पूर्वोत्तर देश के शेष हिस्सों को अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति करने के लिये एक हरित ऊर्जा गलियारे के रूप में कार्य कर सकता है और साथ ही पेरिस समझौते के तहत भारत के NDC लक्ष्यों के अनुरूप भी कार्य कर सकता है। 

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • निरंतर उग्रवाद और जातीय संघर्ष: इस क्षेत्र में जातीय आकांक्षाओं, अधिक स्वायत्तता की माँगों और सामाजिक-आर्थिक उपेक्षा से जुड़ी शिकायतों से प्रेरित उग्रवाद का एक लंबा इतिहास रहा है। 
    • हालाँकि हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई है, लेकिन तनाव और संघर्ष अभी भी बने हुए हैं, जो प्रायः जातीय आधार पर फिर से उभर आते हैं। 
    • इसका एक हालिया उदाहरण मणिपुर में मैतेई-कुकी संघर्ष है, जो मई 2023 में बढ़ गया, जिससे 70,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए और व्यापक हिंसा हुई। 
    • यह विशेष संघर्ष गहन जातीय विभाजन और अंतर-सांप्रदायिक संघर्ष को रोकने में मौजूदा शासन मॉडल की विफलता को उजागर करता है, जिसमें दोनों पक्षों की ओर से सरकारी पक्षपात एवं अपर्याप्त सुरक्षा उपायों के आरोप लगते हैं। 
  • अवसंरचना  की कमी और भौगोलिक अलगाव: हाल की सरकारी पहलों के बावजूद, इस क्षेत्र के ऊबड़-खाबड़ इलाके और स्थल-रुद्ध प्रकृति के कारण अवसंरचना की भारी कमी हुई है, जिससे शेष भारत के साथ आर्थिक एकीकरण में बाधा आ रही है। 
    • सुदृढ़ सड़क, रेल और हवाई संपर्क का अभाव परिवहन लागत को बढ़ाता है तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को सीमित करता है। 
    • उदाहरण के लिये, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम जैसे राज्यों में भारत में सबसे कम सड़क घनत्व है, जिससे बड़े क्षेत्र दुर्गम हो जाते हैं। 
      • यह अलगाव इस क्षेत्र के आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारक है, यही कारण है कि सेला सुरंग और भारतमाला परियोजना जैसी प्रमुख परियोजनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • आर्थिक अविकसितता और बेरोज़गारी: पूर्वोत्तर एक नाज़ुक अर्थव्यवस्था से ग्रस्त है जो कृषि और सार्वजनिक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भर है, जहाँ औद्योगीकरण एवं निजी निवेश न्यूनतम है। 
    • इसके परिणामस्वरूप बेरोज़गारी उच्च होती है (विशेष रूप से शिक्षित युवाओं में) जो असंतोष और सामाजिक अशांति को बढ़ावा देती है। 
    • पूर्वोत्तर में कुल बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 
      • कई राज्यों के आँकड़े चिंताजनक हैं। उदाहरण के लिये, नगालैंड की युवा बेरोज़गारी दर 27.4% है। 
    • सरकार की PM-DevINE योजना का उद्देश्य इस अंतर को समाप्त करना है, लेकिन पर्याप्त निजी पूंजी आकर्षित किये बिना, आर्थिक स्थिति अनिश्चित बनी हुई है। 
      • साथ ही, असम और त्रिपुरा से विशेष विकास पैकेज का विस्तार करके पूर्वोत्तर क्षेत्र के अन्य राज्यों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिये। 
  • अंतर-राज्यीय सीमा विवाद: पूर्वोत्तर के कई राज्य स्वतंत्रता के बाद अपने पुनर्गठन से उपजे ऐतिहासिक सीमा विवादों को साझा करते हैं। 
    • औपनिवेशिक काल के सीमा निर्धारण में निहित ये संघर्ष प्रायः हिंसक हो जाते हैं, जैसा कि वर्ष 2021 में असम और मिज़ोरम के पुलिस बलों के बीच हुए घातक संघर्ष में देखा गया। 
    • हालाँकि केंद्र सरकार ने वार्ता और मध्यस्थता शुरू की है, ये विवाद राजनीतिक अस्थिरता एवं संघर्ष का स्रोत बने हुए हैं, समन्वित क्षेत्रीय विकास में बाधा डाल रहे हैं तथा अविश्वास का माहौल बना रहे हैं। 
  • मादक पदार्थों की तस्करी और सीमा पार अपराध: दक्षिण पूर्व एशिया में अफीम उत्पादन के एक प्रमुख वैश्विक केंद्र, गोल्डन ट्रायंगल से इस क्षेत्र की निकटता इसे मादक पदार्थों की तस्करी के लिये एक प्रमुख पारगमन बिंदु बनाती है। 
    • यह मादक पदार्थ-आतंकवाद न केवल चरमपंथी समूहों को धन मुहैया कराता है, बल्कि युवाओं में बढ़ते मादक पदार्थों की लत के साथ एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या भी उत्पन्न करता है। 
    • उदाहरण के लिये, मणिपुर में, अफीम की अवैध खेती उग्रवादी समूहों के लिये संघर्ष एवं आय का एक प्रमुख स्रोत है। 
      • भेद्य सीमाएँ इस व्यापार को रोकना बेहद कठिन बना देती हैं, जिसके लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ कड़ी निगरानी एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। 
  • पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु भेद्यता: पूर्वोत्तर जैवविविधता का एक हॉटस्पॉट है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन के प्रति भी अत्यधिक सुभेद्य है, जहाँ प्रायः बाढ़, भूस्खलन एवं अनियमित वर्षा होती है। 
    • 'झूम' कृषि (कर्तन एवं दहन कृषि) के लिये निर्वनीकरण और अवैध कटाई से मृदा अपरदन एवं आवास क्षति बढ़ रही है। 
    • क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव की वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में असम को जलवायु संबंधी अवसंरचना को होने वाले नुकसान के लिये वैश्विक स्तर पर 28वाँ सबसे सुभेद्य क्षेत्र बताया गया है, जो इस क्षेत्र की स्थिरता एवं अर्थव्यवस्था के लिये गंभीर खतरे को रेखांकित करता है। 
      • साथ ही, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट में असम के 60% ज़िलों को अत्यधिक सुभेद्य श्रेणी में रखा गया है। 
  • जनांकिकीय चुनौतियाँ और अवैध प्रवास: इस क्षेत्र ने ऐतिहासिक और निरंतर प्रवास (विशेष रूप से बांग्लादेश से) के कारण महत्त्वपूर्ण जनांकिकीय बदलाव हुए हैं। 
    • इससे स्थानीय समुदायों में अपनी भूमि, संस्कृति और राजनीतिक प्रतिनिधित्व खोने का डर बढ़ गया है, जिससे जातीय तनाव तथा ‘बाह्य लोगों’ के खिलाफ आंदोलन भड़क उठे हैं। 
    • असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का कार्यान्वयन इसी मुद्दे को सुलझाने का एक प्रयास था। हालाँकि, यह एक अत्यंत संवेदनशील और अनसुलझा मामला बना हुआ है, जिसके राजनीतिक निहितार्थ एवं सामाजिक अशांति की संभावना है। 

पूर्वोत्तर क्षेत्र के एकीकरण को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • भौतिक और डिजिटल कनेक्टिविटी कॉरिडोर: राजमार्गों, रेलवे और जलमार्गों के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) को शेष भारत व पड़ोसी देशों से जोड़ने वाली बहुविध परिवहन परियोजनाओं में तेजी लाने की आवश्यकता है। 
    • BharatNet के माध्यम से उच्च गति वाले डिजिटल राजमार्गों और डिजिटल भारत निधि के प्रभावी उपयोग के साथ इसे पूरक बनाया जाना चाहिये, जिससे अंतिम बिंदु तक ब्रॉडबैंड व उपग्रह-आधारित इंटरनेट की अभिगम्यता सुनिश्चित हो। 
    • ऐसी कनेक्टिविटी अलगाव को कम करती है, आर्थिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है और सामाजिक-राजनीतिक एकीकरण को सुदृढ़ करती है। 
      • निर्बाध अंतर-राज्यीय यात्रा, लॉजिस्टिक्स केंद्रों और सीमा-पार व्यापार मार्गों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। इससे भौतिक और आभासी जुड़ाव के माध्यम से समावेश की भावना उत्पन्न होती है। 
  • सांस्कृतिक सेतु निर्माण और राष्ट्रीय मुख्यधारा: छात्र विनिमय कार्यक्रमों, उत्सवों और खेल संबंधों को संस्थागत बनाकर NER व अन्य राज्यों के बीच संरचित सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • स्थानीय कला रूपों, इतिहास और स्वदेशी भाषाओं को राष्ट्रीय मंचों पर एकीकृत किया जाना चाहिये ताकि गौरव एवं दृश्यता प्राप्त हो। 
    • रूढ़िवादिता से परे मुख्यधारा की कहानियों को लाने के लिये महानगरों में NER सांस्कृतिक केंद्र स्थापित किया जाना चाहिये। 
      • राष्ट्रीय कल्पना में क्षेत्र को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत करने के लिये मीडिया सहयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। ऐसे प्रयास साझा सांस्कृतिक स्वामित्व के माध्यम से मनोवैज्ञानिक एकीकरण उत्पन्न करते हैं। 
  • राजनीतिक और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण: स्वायत्त परिषदों और पंचायती राज संस्थाओं को शक्तियों के अधिक हस्तांतरण के माध्यम से शासन की वैधता में वृद्धि की जा सकती है। 
    • नागरिक परिषदों, शिकायत निवारण प्लेटफॉर्मों और दूरस्थ क्षेत्रों के लिये अनुकूलित डिजिटल गवर्नेंस टूल्स जैसे सहभागी तंत्रों को संस्थागत बनाया जाना चाहिये। 
      • केंद्रीय नीति निर्माताओं और ज़मीनी स्तर के नेताओं के बीच नियमित संपर्क सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
      • पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (MDoNER) और पूर्वोत्तर परिषद (NEC) को क्षेत्रीय आकांक्षाओं के साथ केंद्रीय समर्थन को संरेखित करके इस हस्तांतरण को सुगम बनाने में उत्प्रेरक भूमिका निभानी चाहिये। 
    • क्षेत्र के भीतर स्थानीय प्रशासनिक संवर्गों को मज़बूत करके विश्वास का निर्माण किया जाना चाहिये। यह विकेंद्रीकरण राज्य की क्षमता में सुधार करता है और संघ के साथ सामाजिक अनुबंध को मज़बूत करता है। 
  • आर्थिक क्लस्टर और मूल्य शृंखला एकीकरण: कच्चे संसाधन निष्कर्षण से कृषि-प्रसंस्करण, पर्यावरण-पर्यटन, हस्तशिल्प और प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा में क्षेत्र-विशिष्ट औद्योगिक क्लस्टरों की ओर परिवर्तन किया जाना चाहिये। 
    • समर्पित पूर्वोत्तर विशेष आर्थिक क्षेत्रों के माध्यम से इन समूहों को राष्ट्रीय और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जोड़ा जाना चाहिये। 
    • राज्यों की राजधानियों में स्टार्ट-अप इन्क्यूबेटर, उद्यम निधि और कौशल केंद्र बनाकर उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। स्वदेशी उत्पादों को राष्ट्रीय संपत्ति के रूप में ब्रांडिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
      • ऐसा समावेशी विकास निर्भरता को कम करता है और पूर्वोत्तर को भारत की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बनाता है। 
  • सुरक्षा-विकास संतुलन: मानव-सुरक्षा केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये, जहाँ उग्रवाद-विरोधी कार्य सामाजिक-आर्थिक विकास द्वारा पूरक हों। अलगाव को कम करने के लिये सामुदायिक पुलिसिंग, संवाद तंत्र और युवा समूहों के साथ विश्वास-निर्माण को संस्थागत बनाया जाना चाहिये।  
    • अवसंरचना, शिक्षा और आजीविका के माध्यम से सैन्य उपस्थिति से हटकर विकास-आधारित स्थिरता पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। 
    • सीमा प्रबंधन में सुरक्षा और वैध आवागमन की सुविधा के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये, जिससे शांति लाभ तथा बेहतर एकीकरण सुनिश्चित हो सके। 
  • पर्यावरणीय प्रबंधन का संवर्द्धन: नवीकरणीय ऊर्जा, जैविक कृषि और जैवविविधता-आधारित आजीविका को प्राथमिकता देने वाले हरित विकास मॉडल के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र की पारिस्थितिक समृद्धि का लाभ उठाया जा सकता है। 
    • कठोर धारणीयता मानकों के अनुरूप ईको-पर्यटन परिपथ विकसित करते हुए पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) को भारत के जलवायु कूटनीति तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ सीमा-पार पर्यावरणीय सहयोग के केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहिये। 
    • यह न केवल क्षेत्र को आर्थिक रूप से एकीकृत करता है बल्कि इसे भारत की वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं के केंद्र में भी स्थापित करता है। इस प्रकार एकीकरण पहचान-आधारित और भविष्योन्मुख बन जाता है। 
  • सीमा-पार क्षेत्रीय कूटनीति के केंद्र में पूर्वोत्तर क्षेत्र: क्षेत्रीय कूटनीति में राज्य सरकारों को सीधे शामिल करके भारत की एक्ट ईस्ट नीति में पूर्वोत्तर क्षेत्र की भूमिका को संस्थागत रूप दिया जा सकता है। 
    • सीमावर्ती टाउनशिप को वाणिज्यिक प्रवेश द्वार के रूप में विकसित करते हुए, म्याँमार, बांग्लादेश और भूटान के साथ लोगों के आपसी संबंधों को प्रगाढ़ किया जा सकता है। 
    • स्थानीय व्यवसायों को क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में भागीदार बनने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। पूर्वोत्तर क्षेत्र को आसियान संपर्क पहलों के एक अभिसरण बिंदु के रूप में प्रोत्साहित किया जा सकता है। 
      • यह परिधीय भौगोलिक स्थिति को एक रणनीतिक लाभ में रूपांतरित करेगा और आंतरिक एवं बाह्य एकीकरण को सशक्त बनाएगा।

निष्कर्ष:

दक्षिण पूर्व एशिया के लिये देश के रणनीतिक प्रवेश द्वार के रूप में पूर्वोत्तर भारत प्राकृतिक संसाधनों का भंडार और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र है। फिर भी, लंबे समय से चले आ रहे उग्रवाद, संपर्क अवसंरचना की कमी और विकासगत पिछड़ापन इसकी पूरी क्षमता को बाधित करते हैं। इस क्षेत्र में सुरक्षा, अवसंरचना और समावेशी विकास का एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है। यदि नीति-निर्माण में निरंतर ध्यान दिया जाये तो यह क्षेत्र हरित ऊर्जा का केंद्र और आर्थिक उत्प्रेरक बनकर भारत की विकास यात्रा में सशक्त रूप से जुड़ सकता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को प्रायः भू-राजनीतिक प्रवेशद्वार और विकासात्मक चुनौती, दोनों के रूप में वर्णित किया जाता है। भारत के सामरिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हितों के लिये इस क्षेत्र के महत्त्व का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये, साथ ही राष्ट्रीय मुख्यधारा में इसके एकीकरण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

 

 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:  (2013)  

जनजाति 

राज्य 

1. लिम्बू 

सिक्किम 

2. कार्बी 

हिमाचल प्रदेश 

3. डोंगरिया कोंध 

ओडिशा

4. बोंडा 

तमिलनाडु 

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं? 

(a) केवल 1 और 3 

(b) केवल 2 और 4 

(c) केवल 1, 3 और 4 

(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (a)


मेन्स 

प्रश्न 1. उत्तर-पूर्वी राज्यों में आंतरिक सुरक्षा एवं शांति प्रक्रिया में कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं? विगत एक दशक में सरकार द्वारा किये गए विभिन्न सहमति-पत्रों तथा शांति समझौतों के रूप में ली गई पहलों का खाका खींचिये। (2025) 

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