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तकनीकी संप्रभुता: भारत के विकास की नींव

  • 11 Sep 2025
  • 188 min read

यह एडिटोरियल 10/09/2025 को द हिंदू में प्रकाशित The long march ahead to technological independenceपर आधारित है। यह लेख डिजिटल युग में तकनीकी संप्रभुता की आवश्यकता को रेखांकित करता है और इस बात पर ज़ोर देता है कि भारत को विदेशी सॉफ्टवेयर पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता है। यह स्वदेशी ओपन-सोर्स समाधानों के निर्माण को सच्ची स्वतंत्रता के एक आवश्यक और साध्य मार्ग के रूप में रेखांकित करता है।

प्रिलिम्स के लिये: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023, आत्मनिर्भर भारत अभियान, भारत 6G विज़न, बौद्धिक संपदा अधिकार, इंडिया स्टैक, इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल, BHASHINI, सर्वम AI

मेन्स के लिये: तकनीकी संप्रभुता और उसका महत्व, तकनीकी संप्रभुता के मार्ग में भारत की बाधाएँ एवं चुनौतियाँ।

आज के डिजिटल युग में वास्तविक स्वतंत्रता केवल राजनीतिक स्वायत्तता से नहीं बल्कि तकनीकी संप्रभुता से तय होती है। आधुनिक युद्ध अब सॉफ्टवेयर और साइबरस्पेस में लड़े जा रहे हैं, जहाँ कुछ विदेशी कंपनियाँ हमारे महत्त्वपूर्ण तंत्रों, जैसे: बैंक, रेल और बिजली पर नियंत्रण रखती हैं। इस निर्भरता से गंभीर कमज़ोरियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसा कि हाल में तब देखने को मिला जब एक भारतीय कंपनी की क्लाउड सेवाएँ रोक दी गयीं। इसका समाधान भारत के अपने मूलभूत सॉफ्टवेयर तैयार करने में है, जिसे 'ओपन-सोर्स विकास' के माध्यम से हमारी विशाल IT समुदाय की सामूहिक भागीदारी से साकार किया जा सकता है। हालाँकि हार्डवेयर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता कठिन है, परंतु सॉफ्टवेयर स्वतंत्रता सामूहिक इच्छाशक्ति और सुनियोजित रणनीति के माध्यम से संभव है, जिसे संकट आने से पहले ही पूरा करना आवश्यक है। 

तकनीकी संप्रभुता क्या है?

  • तकनीकी संप्रभुता किसी राष्ट्र की उन महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों को विकसित करने, नियंत्रित करने और उन पर शासन करने की क्षमता को संदर्भित करती है जिन्हें वह अपनी सुरक्षा, अर्थव्यवस्था एवं रणनीतिक स्वायत्तता के लिये आवश्यक समझता है। 
    • इसका तात्पर्य पूर्ण तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त करना नहीं है, जो आज की परस्पर जुड़े विश्व में अव्यावहारिक है। 
    • बल्कि, इसका उद्देश्य प्रमुख प्रौद्योगिकियों के लिये विदेशी शक्तियों पर एकतरफा और महत्त्वपूर्ण निर्भरता से बचना है। 
  • हालाँकि यह डिजिटल संप्रभुता (जो डेटा और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को नियंत्रित करने पर केंद्रित है) से निकटता से संबंधित है, तकनीकी संप्रभुता एक व्यापक अवधारणा है जिसमें फिज़िकल हार्डवेयर और अंतर्निहित बौद्धिक संपदा (IP) भी शामिल है जो इन प्रणालियों को संचालित करती है।

भारत के लिये तकनीकी संप्रभुता क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • राष्ट्रीय सुरक्षा और डेटा प्राइवेसी: तकनीकी संप्रभुता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये अनिवार्य है, जो साइबर युद्ध और निगरानी से सुरक्षा प्रदान करती है। 
    • विदेशी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर निर्भरता गुप्त रास्ते और कमज़ोरियाँ उत्पन्न करती है, जिससे बाह्य तत्त्व पावर ग्रिड से लेकर वित्तीय प्रणालियों तक, महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना को खतरे में डाल सकते हैं। 
    • राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए सरकार द्वारा 119 से अधिक चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 को लागू करना, डेटा को स्थानीय बनाने तथा विदेशी तकनीकी दिग्गजों पर निर्भरता कम करने, सिटीज़न डेटा एवं राज्य के रहस्यों की सुरक्षा के लिये एक सक्रिय रुख को दर्शाता है। 
  • आर्थिक समुत्थानशीलता और आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी तकनीकों का विकास भारत के आर्थिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य का केंद्रबिंदु है, जो घरेलू नवाचार और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देता है। 
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान का उद्देश्य एक सुदृढ़ विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है, जो वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को कम करता है, जो महामारी के दौरान कमज़ोर सिद्ध हुई थीं। 
    • उदाहरण के लिये, PLI योजनाओं के तहत निर्यात ₹5.31 लाख करोड़ (लगभग 61.76 अरब अमेरिकी डॉलर) से अधिक हो गया है, जिसमें बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण जैसे क्षेत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। 
      • साथ ही, भारत का लक्ष्य वित्त वर्ष 2025 में स्मार्टफोन निर्यात में 20 अरब डॉलर को पार करना है, जो बढ़ते आईफोन निर्यात से प्रेरित है तथा एक निवल आयातक होने से एक बड़ा बदलाव है। 
  • भू-राजनीतिक लाभ और रणनीतिक स्वायत्तता: तकनीकी आत्मनिर्भरता भारत को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अधिक लाभ प्रदान करती है, जिससे वह भू-राजनीतिक तकनीकी प्रतिद्वंद्विता का हिस्सा बनने से बच जाता है। 
    • कुछ वैश्विक तकनीकी कंपनियों (मुख्यतः अमेरिका और चीन की) पर निर्भरता विदेश नीति के विकल्पों को बाधित कर सकती है। 
    • भारत का भारत 6G विज़न, जिसका लक्ष्य वैश्विक 6G-संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) का 10% सुरक्षित करना है, एक रणनीतिक कदम है जिससे वह स्वयं को केवल उपभोक्ता के रूप में नहीं, बल्कि प्रौद्योगिकी के निवल प्रदाता के रूप में स्थापित कर सके, जिससे वह भविष्य के वैश्विक मानकों और साझेदारियों को अपनी शर्तों पर आकार दे सके। 
  • बुनियादी अवसंरचना और वित्तीय समावेशन: एक सुदृढ़ सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी अवसंरचना के निर्माण और रख-रखाव के लिये संप्रभु प्रौद्योगिकी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है जो सभी नागरिकों के लिये सुलभ एवं किफायती हो। 
    • आधार, UPI और DigiLocker सहित डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं का एक समूह— इंडिया स्टैक, इसका प्रमाण है। 
    • अगस्त 2025 में UPI ने एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जब इसने 20 अरब से अधिक मासिक लेन-देन का आँकड़ा पार किया और कुल ₹24.85 लाख करोड़ के लेन-देन संपन्न हुए। यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि स्वदेशी तकनीक ने व्यापक वित्तीय समावेशन और डिजिटल अर्थव्यवस्था को नयी गति प्रदान की है। 
    • यह कार्यढाँचा भारत को विदेशी मॉडलों के अनुकूल होने के बजाय, स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप ज़मीनी स्तर से नवाचार करने में सहायता करता है। 
  • सेमीकंडक्टर स्वतंत्रता: वैश्विक सेमीकंडक्टर की कमी ने हार्डवेयर निर्माण में भारत की गंभीर भेद्यता को रेखांकित किया, जो किसी भी डिजिटल अर्थव्यवस्था का एक आधारभूत तत्त्व है। 
    • भारत विदेशी निर्मित चिप्स पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे यह आपूर्ति शृंखला के व्यवधानों और मूल्य अस्थिरता के प्रति संवेदनशील है। 
    • ₹76,000 करोड़ के बजट वाले इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) का उद्देश्य चिप डिज़ाइन और निर्माण के लिये एक घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना है, जिसमें वेदांता-फॉक्सकॉन और माइक्रोन टेक्नोलॉजी जैसी प्रमुख कंपनियाँ अरबों का निवेश करेंगी, जिससे एक सुरक्षित, आत्मनिर्भर इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की नींव रखी जा सकेगी। 
  • साइबर-रेज़िलिएंस और डिजिटल सॉवरेनिटी: सच्ची तकनीकी संप्रभुता केवल तकनीक के निर्माण के बारे में नहीं है, बल्कि उसे सुरक्षित करने के संदर्भ में भी है। 
    • भारत का डिजिटल बुनियादी अवसंरचना लगातार परिष्कृत साइबर हमलों के खतरे में है और साइबर सुरक्षा में स्वदेशी क्षमता की कमी विनाशकारी हो सकती है। 
    • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) ने साइबर खतरों में भारी वृद्धि दर्ज की है तथा एक मज़बूत साइबर सुरक्षा कार्यढाँचा और कुशल कार्यबल के निर्माण पर सरकार का ध्यान सर्वोपरि है। 
      • इसका एक हालिया हाई-प्रोफाइल उदाहरण WazirX क्रिप्टो एक्सचेंज हैक (2025) है, जहाँ उत्तर कोरिया से जुड़े लाज़ारस समूह ने स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट की खामियों का फायदा उठाया, जिससे भारत के वित्तीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र में गहरी साइबर सुरक्षा कमियों का पता चला। 
  • सांस्कृतिक और सामाजिक स्वायत्तता: तकनीकी संप्रभुता यह सुनिश्चित करती है कि किसी राष्ट्र के डिजिटल प्लेटफॉर्म और कंटेंट उसके विशिष्ट सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करें। 
    • विदेशी स्वामित्व वाले सोशल मीडिया और कंटेंट प्लेटफॉर्म पर निर्भरता स्थानीय भाषाओं एवं सांस्कृतिक आख्यानों के क्षरण का कारण बन सकती है तथा गलत सूचना अभियानों के लिये अनुकूल वातावरण तैयार कर सकती है। 
    • भारतीय भाषा की कंटेंट और प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देने की सरकार की पहल, नए IT नियमों के साथ, प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाने का लक्ष्य रखती है। 
      • उदाहरण के लिये, BHASHINI जैसे प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना, जो भारतीय भाषाओं में रीयल-टाइम ट्रांसलेशन और कंटेंट का समर्थन करता है, भारत की भाषाई विविधता के ‘डिजिटल उपनिवेशीकरण’ को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • अंतरिक्ष और संचार संप्रभुता: अंतरिक्ष और संचार में संप्रभुता भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता एवं इसकी बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।  
    • संचार, नेविगेशन और पृथ्वी अवलोकन के लिये विदेशी उपग्रह प्रणालियों पर निर्भरता एक गंभीर भेद्यता उत्पन्न करती है। 
    • भारत की स्वदेशी नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) सिस्टम, जो GPS का एक क्षेत्रीय विकल्प है, इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो नागरिक एवं रक्षा दोनों अनुप्रयोगों के लिये सुरक्षित और विश्वसनीय पोज़िशनिंग सेवाएँ प्रदान करती है। 
    • इसी प्रकार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) विदेशी पट्टे पर लिये गए ट्रांसपोंडरों पर निर्भरता कम करने, महत्त्वपूर्ण डेटा की सुरक्षा करने और राष्ट्रीय प्रसारकों व सैन्य अभियानों के लिये निर्बाध संचार सेवाएँ सुनिश्चित करने के लिये अपने स्वयं के संचार उपग्रहों (GSAT शृंखला) का प्रक्षेपण जारी रखे हुए है। 
  • AI और एल्गोरिदमिक सॉवरेनिटी: AI और एल्गोरिदमिक सॉवरेनिटी तकनीकी संप्रभुता का एक महत्त्वपूर्ण उपसमूह है, जो किसी राष्ट्र की कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणालियों को नियंत्रित और संचालित करने की क्षमता पर केंद्रित है, जो सार्वजनिक एवं निजी जीवन को तेज़ी से प्रभावित कर रही हैं। 
    • विदेश में विकसित ब्लैक-बॉक्स AI मॉडल पर निर्भर रहने से नियंत्रण खोने, विदेशी प्रभाव की संभावना और ऐसे पूर्वाग्रहों के अंतर्निहित होने का जोखिम है जो भारत के विविध सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। 
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए, बेंगलुरु स्थित स्टार्ट-अप सर्वम AI को देश का पहला स्वदेशी सॉवरेन लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) विकसित करने के लिये चुना गया है। 
      • यह सुनिश्चित करता है कि AI भारत की सूक्ष्मताओं, सांस्कृतिक संदर्भ और भाषाई विविधता को समझ सके, जिससे यह एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी अवसंरचना बन सके, जो बिना किसी बाह्य निर्भरता के जनता की सेवा कर सके। 

तकनीकी संप्रभुता की ओर भारत की राह में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • घरेलू सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव: भारत को डिज़ाइन से लेकर निर्माण तक, एक संपूर्ण घरेलू सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 
    • इस उद्योग की पूंजी-गहन प्रकृति और जटिल तकनीकी आवश्यकताओं ने ऐतिहासिक रूप से भारत को वैश्विक मूल्य शृंखला से बाहर रखा है। 
      • देश अपनी 90% से अधिक सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे यह भू-राजनीतिक आपूर्ति शृंखला आघात के प्रति सुभेद्य है। 
      • वैश्विक स्तर पर, सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर 10 नैनोमीटर (nm) से कम के प्रोसेस नोड्स पर बनाए जाते हैं, जो उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग, AI और उन्नत स्मार्टफोन के लिये आवश्यक हैं। इसके विपरीत, भारत में 28 नैनोमीटर या उससे कम के चिप्स के लिये कोई ऑपरेशनल फैब नहीं है। 
  • तीव्र कौशल अंतर और ‘प्रतिभा पलायन’: हालाँकि भारत बड़ी संख्या में STEM स्नातक तैयार करता है, फिर भी कौशल में एक महत्त्वपूर्ण असंतुलन और शीर्ष प्रतिभाओं का लगातार ‘प्रतिभा पलायन’ होता रहता है। 
    • उच्च कुशल पेशेवरों का एक बड़ा प्रतिशत बेहतर अवसरों, उच्च वेतन और उन्नत अनुसंधान सुविधाओं के लिये विदेश पलायन करता है। 
    • रिपोर्ट्स से पता चलता है कि AI, साइबर सुरक्षा और चिप डिज़ाइन जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में प्रतिभाओं की भारी कमी है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक लगभग 29 मिलियन कुशल कर्मियों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। 
      • प्रतिभाओं का यह पलायन घरेलू नवाचार क्षमताओं को कमज़ोर करता है और भारत के लिये अपने स्वयं के डीप-टेक उद्यमों का निर्माण एवं विस्तार करना कठिन बनाता है। 
  • कम अनुसंधान एवं विकास निवेश: अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर भारत का व्यय कम बना हुआ है, जो स्वदेशी तकनीकी विकास में एक बड़ी बाधा है। 
    • देश का अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय वर्षों से उसके सकल घरेलू उत्पाद के 0.6% और 0.7% के बीच रहा है, जो दक्षिण कोरिया, इज़रायल एवं अमेरिका जैसे प्रमुख वैश्विक नवप्रवर्तकों की तुलना में काफी कम है। 
    • एक प्रमुख कारक निजी क्षेत्र का कम योगदान है, जो कुल अनुसंधान एवं विकास व्यय का केवल लगभग 36% है, जो विकसित अर्थव्यवस्थाओं के बिल्कुल विपरीत है जहाँ निजी क्षेत्र प्रायः 70% से अधिक का योगदान देता है।
    • वित्त पोषण की यह कमी नवाचार को बाधित करती है और नई बौद्धिक संपदा के निर्माण को सीमित करती है। 
  • डीप टेक के लिये दीर्घकालिक पूँजी का अभाव: भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम का रुझान उपभोक्ता-केंद्रित और ई-कॉमर्स उद्यमों, जो तीव्र रिटर्न का वादा करते हैं, की ओर अत्यधिक है।   
    • डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिये दीर्घकालिक पूँजी का स्पष्ट अभाव है, जिन्हें अनुसंधान एवं विकास के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश एवं लंबी अवधि की आवश्यकता होती है। 
    • एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के डीपटेक स्टार्टअप्स के लिये फंडिंग राउंड में भाग लेने वाले निवेशकों की संख्या वर्ष 2022 की तुलना में वर्ष 2023 में 60% से भी कम हो गई है। 
    • निवेशक सामान्यतः 5–7 वर्षों के भीतर धन निकासी की सोचते हैं। इस कारण वे ऐसे स्टार्टअप्स में निवेश करने से हिचकते हैं जो आधारभूत और लंबी अवधि के अनुसंधान पर काम करते हैं, जैसे क्वांटम कम्प्यूटिंग, एडवांस्ड मटीरियल्स और रोबोटिक्स। परिणाम यह होता है कि इन क्षेत्रों के स्टार्टअप्स को अपने काम को बढ़ाने एवं सफल होने के लिये आवश्यक पूँजी जुटाना मुश्किल हो जाता है। 
  • विखंडित नियामक और शासन कार्यढाँचा: प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिये भारत का नियामक परिदृश्य प्रायः विखंडित होता है, जिसमें कई मंत्रालय और विभाग तकनीक के विभिन्न पहलुओं के लिये ज़िम्मेदार होते हैं, जिससे प्रशासनिक अड़चनें एवं एकीकृत दृष्टिकोण का अभाव होता है। 
    • उदाहरण के लिये, एक डीपटेक स्टार्टअप को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) से अलग-अलग नीतियों एवं अनुमोदनों को प्राप्त करने की आवश्यकता हो सकती है। 
    • यह नौकरशाही जड़ता और जोखिम-विरोधी संस्कृति परियोजना अनुमोदन एवं व्यावसायीकरण में विलंब कर सकता है। 
  • अकुशल सरकारी खरीद: ‘मेक इन इंडिया’ के ज़ोरदार प्रचार के बावजूद, सरकारी खरीद प्रक्रियाएँ स्थानीय तकनीकी स्टार्टअप्स के लिये एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं। 
    • यह प्रणाली प्रायः धीमी होती है और बड़े, स्थापित विदेशी विक्रेताओं को प्राथमिकता देती है जो पूर्व अनुभव एवं टर्नओवर जैसी कड़ी पात्रता शर्तों को पूरा कर सकते हैं। 
    • हालाँकि GeM स्टार्टअप रनवे जैसी पहलों ने स्टार्टअप्स के लिये छूट की शुरुआत की है, लेकिन उन्हें बड़े पैमाने की रणनीतिक परियोजनाओं में आगे बढ़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
      • स्टार्टअप्स से अत्याधुनिक समाधान प्राप्त करने के लिये ‘ट्रायल-रन’ मॉडल या समर्पित निधि का अभाव, सार्वजनिक क्षेत्र की फर्स्ट एंकर कस्टमर के रूप में कार्य करने की क्षमता को सीमित करता है, जो नवोदित तकनीकी फर्मों को अपनी क्षमताएँ सिद्ध करने तथा अपने उत्पादों का विस्तार करने में सहायता करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। 
  • कमज़ोर बौद्धिक संपदा (IPR) प्रवर्तन: एक कमज़ोर IPR प्रवर्तन व्यवस्था नवाचार के प्रोत्साहन को ही कमज़ोर कर देती है। हालाँकि भारत में बौद्धिक संपदा के लिये एक व्यापक विधिक कार्यढाँचा है, लेकिन इसका प्रवर्तन प्रायः धीमा और अप्रभावी होता है। 
    • न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ है, और छोटे नवप्रवर्तकों और स्टार्टअप्स के लिये न्यायिक प्रक्रिया अत्यधिक महंगी हो सकती है। 
    • US चैंबर ऑफ कॉमर्स की नवीनतम इंटरनेशनल IP इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत 55 देशों में 42वें स्थान पर है, जो पेटेंट प्रवर्तन और ट्रेडमार्क संरक्षण पर चिंताओं को उजागर करता है। 
      • कमज़ोर बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण का यह माहौल घरेलू और विदेशी दोनों कंपनियों को भारत में अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश करने से रोकता है, क्योंकि वे अपनी बौद्धिक संपदा को उल्लंघन से बचाने की अपनी क्षमता के प्रति आश्वस्त नहीं हैं।

भारत तकनीकी संप्रभुता प्राप्त करने की दिशा में रणनीतिक रूप से किस प्रकार आगे बढ़ सकता है?

  • संप्रभु गहन तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र को उत्प्रेरित करना: भारत को अपना ध्यान सेवा-केंद्रित IT मॉडल से हटाकर उत्पाद-प्रधान, गहन तकनीक-संचालित अर्थव्यवस्था पर केंद्रित करना होगा। 
    • इसके लिये AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और उन्नत कंटेंट जैसी आधारभूत तकनीकों पर काम करने वाले स्टार्टअप्स के लिये एक मज़बूत पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है। 
    • इन उपायों में दीर्घकालिक पूँजी के साथ विशिष्ट गहन तकनीकी निधियों का निर्माण, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) ‘नवाचार केंद्र’ स्थापित करना शामिल होना चाहिये जो अकादमिक शोधकर्त्ताओं तथा उद्योग विशेषज्ञों को एक साथ लाएँ और उच्च-जोखिम वाले, लंबी अवधि के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने वाली कंपनियों को कर प्रोत्साहन व अनुदान प्रदान कर सकें। 
    • इसका लक्ष्य स्वदेशी बौद्धिक संपदा (IP) का निर्माण करना है, जिससे लाइसेंस प्राप्त विदेशी तकनीक पर निर्भरता कम हो। 
  • संप्रभु प्रौद्योगिकी परीक्षण स्थल और नियामक सैंडबॉक्स: वास्तविक दुनिया में तैनाती का अनुकरण करने और प्रयोगशाला से बाज़ार तक अनुवाद में तेज़ी लाने के लिये अग्रणी तकनीक (चिप्स, AI, अंतरिक्ष, क्वांटम) के लिये समर्पित संप्रभु परीक्षण स्थल बनाए जाने चाहिये। 
    • नियामक सैंडबॉक्स सख्त अनुपालन के बिना नवाचार की अनुमति देते हैं, जिससे प्रयोगों में विलंब कम होता है। 
    • ऐसे संप्रभु वातावरण स्वदेशी स्टार्टअप को बढ़ावा देते हैं और मान्यता को विदेशी निर्भरता से बचाते हैं। 
  • प्रौद्योगिकी संप्रभुता क्षेत्र (TSZ): अग्रणी नवाचारों को बढ़ावा देने के लिये संप्रभु प्रौद्योगिकी विकास के समर्पित समूह— प्रौद्योगिकी संप्रभुता क्षेत्र (Technology Sovereignty Zones) स्थापित किये जाने चाहिये। 
    • ये केंद्र स्टार्टअप, शिक्षा जगत, रक्षा प्रयोगशालाओं और उद्योगों को राज्य समर्थित बुनियादी अवसंरचना एवं खरीद पाइपलाइनों के अंतर्गत एकीकृत करेंगे। 
    • औद्योगिक नीति को संप्रभुता उद्देश्यों के साथ जोड़कर, TSZ नवाचार-आधारित निर्यात को बढ़ावा देते हुए आयात पर निर्भरता कम करते हैं। क्षेत्रीय केंद्र प्रौद्योगिकी विकास का लोकतंत्रीकरण भी करते हैं, महानगरों में अति-संकेंद्रण को कम करते हैं तथा संतुलित विकास को बढ़ावा देते हैं। 
  • रणनीतिक भंडारण और संसाधन कूटनीति: लिथियम, कोबाल्ट, निकल और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा भारत की उच्च-तकनीकी संप्रभुता के लिये अनिवार्य है। 
    • भारत को रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से दीर्घकालिक अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों को आगे बढ़ाते हुए घरेलू भंडारों का पता लगाना चाहिये। 
    • सक्रिय भंडारण वैश्विक आपूर्ति झटकों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स और अर्द्धचालक जैसे उद्योगों के लिये निर्बाध अभिगम्यता सुनिश्चित होती है। 
    • अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया के साथ संसाधन कूटनीति चीनी एकाधिकार से स्वतंत्र लचीली आपूर्ति शृंखलाओं को स्थापित कर सकती है। 
  • सॉवरेन क्लाउड और फेडरेटेड एज इन्फ्रास्ट्रक्चर: भारत को एक बहु-स्तरीय राष्ट्रीय क्लाउड के माध्यम से एक सॉवरेन डिजिटल आधार बनाने की आवश्यकता है, जिसे रणनीतिक क्षेत्रों में फेडरेटेड एज नोड्स द्वारा पूरक बनाया जाए। 
    • ऐसी संरचना डेटा प्रवाह को विकेंद्रीकृत करती है, साइबर समुत्थानशक्ति बढ़ाती है और विदेशी-नियंत्रित प्लेटफॉर्म के संपर्क को कम करती है। रक्षा, शासन, स्वास्थ्य सेवा और वित्त जैसे संवेदनशील क्षेत्र सॉवरेन-ग्रेड क्लाउड एवं एज एकीकरण की मांग करते हैं। 
    • एक फेडरेटेड मॉडल भारत के पैमाने और विविधता के अनुरूप, वितरित संप्रभुता की अनुमति देते हुए दक्षता सुनिश्चित करता है। 
      • यह भारत को प्रतिकूल साइबर या भू-राजनीतिक परिदृश्यों के विरुद्ध भविष्य के लिये भी सुरक्षित बनाता है।
  • संस्थागत दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी के मार्ग: भारत को नागरिक और रक्षा क्षेत्रों के बीच नवाचारों के निर्बाध हस्तांतरण के लिये रूपरेखा को औपचारिक रूप देना चाहिये, जिससे अनुसंधान एवं विकास के परिणामों का अनुकूलन हो सके। 
    • उदाहरण के लिये, रक्षा-स्तरीय साइबर सुरक्षा उपकरण नागरिक वित्तीय प्रणालियों को सुदृढ़ कर सकते हैं, जबकि जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा में योगदान दे सकता है। 
    • संरचित मार्ग अलगाव को रोकते हैं और प्रौद्योगिकी के तेज़ प्रसार को सक्षम बनाते हैं। दोहरे उपयोग वाला नवाचार रणनीतिक प्रौद्योगिकियों के औद्योगिक अनुप्रयोगों को व्यापक बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा को भी दृढ़ करता है।
    • यह दृष्टिकोण सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास व्यय पर प्रतिफल को कई गुना बढ़ा देता है और साथ ही स्वदेशी क्षमता को भी बढ़ाता है। 
  • प्रवासी प्रौद्योगिकी सेतु: अग्रणी तकनीकी पारिस्थितिकी प्रणालियों में अंतर्निहित भारत का वैश्विक प्रवासी समुदाय, संप्रभुता के लिये एक अप्रयुक्त रणनीतिक संपत्ति है। 
    • संप्रभु उद्यम निधि, अल्पकालिक अनुसंधान निवास और नवाचार विनिमय कार्यक्रम जैसी संरचित पहल प्रतिभा पलायन को प्रतिभा परिसंचरण में बदल सकती हैं। 
    • उनके वैश्विक नेटवर्क का लाभ उठाने से प्रौद्योगिकी कूटनीति में भारत की स्थिति भी मज़बूत होती है। 
      • ये सेतु न केवल ज्ञान प्रवाह को बढ़ावा देते हैं, बल्कि पूंजी, मार्गदर्शन और सहयोगात्मक पेटेंट को भी बढ़ावा देते हैं। एक समन्वित प्रवासी रणनीति वैश्विक भारतीय प्रतिभा को संप्रभुता गुणक में बदल देती है। 
  • संप्रभु साइबर सुरक्षा संरचना: भारत को संप्रभु क्रिप्टोग्राफिक प्रोटोकॉल, AI-सक्षम खतरे का पता लगाने और महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना की सुरक्षा को शामिल करते हुए एक स्तरित, स्वदेशी साइबर सुरक्षा ढाँचा तैयार करना चाहिये। 
    • घरेलू सुरक्षा संचालन केंद्र (SOC), संप्रभु डिजिटल फोरेंसिक और त्वरित घटना प्रतिक्रिया प्रणालियों को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये। 
    • घरेलू साइबर सुरक्षा स्टार्टअप और अनुसंधान प्रयोगशालाओं में निवेश बाह्य निर्भरताओं के विरुद्ध समुत्थानशक्ति सुनिश्चित करता है। 
      • इस प्रकार साइबर सुरक्षा भारत की तकनीकी संप्रभुता के लिये एक राष्ट्रीय सुरक्षा अनिवार्यता के रूप में विकसित होती है। 

निष्कर्ष: 

तकनीकी संप्रभुता प्रतिभा, उपकरण और विश्वास पर आधारित है, ये तीन स्तंभ भारत की डिजिटल और रणनीतिक स्वायत्तता को सुरक्षित रखते हैं। विश्व स्तरीय प्रतिभाओं को विकसित करने से स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा मिलता है, जबकि संप्रभु उपकरण और बुनियादी अवसंरचना का विकास महत्त्वपूर्ण तकनीकों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है। सुरक्षित प्रणालियों में विश्वास स्थापित करने से डेटा, महत्त्वपूर्ण सेवाओं और जनता के विश्वास को बाह्य खतरों से बचाया जा सकता है। रणनीतिक संसाधन प्रबंधन और प्रवासी सहयोग के साथ, ये स्तंभ भारत को एक प्रौद्योगिकी उपभोक्ता से एक वैश्विक नवप्रवर्तक में बदल देते हैं। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. 21वीं सदी में भारत के लिये तकनीकी संप्रभुता के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। यह राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक समुत्थानशक्ति और भू-राजनीतिक स्वायत्तता के साथ किस प्रकार जुड़ता है?

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020) 

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत् की खपत कम करना  
  2. सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना  
  3. रोगों का निदान  
  4. टेक्स्ट से स्पीच (Text- to- Speech) में परिवर्तन  
  5. विद्युत् ऊर्जा का बेतार संचरण 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- 

(a) केवल 1, 2, 3 और 5 

(b) केवल 1, 3 और 4 

(c) केवल 2, 4 और 5 

(d) 1, 2, 3, 4 और 5 

उत्तर : (d)

प्रश्न 2. ‘‘ब्लॉकचेन तकनीकी’’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2020) 

  1. यह एक सार्वजनिक खाता है जिसका हर कोई निरीक्षक कर सकता है, परंतु जिसे कोई भी एक उपभोक्ता नियंत्रित नहीं करता।  
  2. ब्लॉकचेन की संरचना और अभिकल्प ऐसा है कि इसका समूचा डेटा केवल क्रिप्टोकरेंसी के विषय में है। 
  3. ब्लॉकचेन के आधारभूत वैशिष्ट्यों पर आधारित अनुप्रयोगों को बिना किसी व्यक्ति की अनुमति के विकसित किया जा सकता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 

(b) केवल 1 और 2 

(c) केवल 2 

(d) केवल 1 और 3 

उत्तर : (d)


मेन्स: 

प्रश्न 1. कोविड-19 महामारी ने विश्वभर में अभूतपूर्व तबाही उत्पन्न की है। तथापि, इस संकट पर विजय पाने के लिए प्रौद्योगिकीय प्रगति का लाभ स्वेच्छा से लिया जा रहा है। इस महामारी के प्रबन्धन के सहायतार्थ प्रौद्योगिकी की खोज कैसे की गई, उसका एक विवरण दीजिए। (2020) 

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