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आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट 2025

  • 16 May 2025
  • 16 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

 आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (IDMC), आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट, मरुस्थलीकरण, खाद्य सुरक्षा, शरणार्थी सम्मेलन 1951, प्रवासन पर वैश्विक समझौता (2018), लॉस एंड डैमेज फंड, यूरोपीय संघ, हरित जलवायु कोष, नॉन-रिफाउलमेंट सिद्धांत

मुख्य परीक्षा के लिये:

आंतरिक विस्थापन एवं जलवायु शरणार्थियों की स्थिति, शरणार्थियों से निपटने की वर्तमान रूपरेखा, शरणार्थियों के समक्ष चुनौतियाँ एवं आगे की राह

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र (IDMC) ने आंतरिक विस्थापन पर वैश्विक रिपोर्ट 2025 जारी की, जिसमें वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर आपदा-संबंधित आंतरिक विस्थापन और जलवायु शरणार्थियों की संख्या पर प्रकाश डाला गया है।

नोट: IDMC आंतरिक विस्थापन पर डेटा और विश्लेषण का विश्व का अग्रणी स्रोत है। इसकी स्थापना वर्ष 1998 में नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (NRC) के भाग के रूप में की गई थी।

  • आंतरिक विस्थापन संघर्ष, आपदाओं या जलवायु परिवर्तन के कारण, अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार किये बगैर, अपने ही देश के भीतर लोगों द्वारा किया जाने वाला जबरन विस्थापन है।

आंतरिक विस्थापन 2025 पर वैश्विक रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • वैश्विक विस्थापन: वर्ष 2024 में वैश्विक आंतरिक विस्थापनों की कुल संख्या 4.58 करोड़ रही, जो कि वर्ष 2008 में रिकॉर्ड दर्ज होना शुरू होने के बाद से अब तक की सबसे अधिक है और पिछले एक दशक के वार्षिक औसत की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
  • आपदाएँ विस्थापन की प्रमुख वजह: आपदाओं के कारण अधिकांश विस्थापन हुए, जिनमें से 99.5% विस्थापन जलवायु परिवर्तन के कारण बिगड़ी जलवायु-संबंधी चरम मौसम से संबंधित थी।
  • भारत से जुड़ी प्रमुख जानकारी: भारत में वर्ष 2024 में 54 लाख विस्थापन दर्ज किये गये, जो पिछले 12 वर्षों में सर्वाधिक हैं। इनमें से दो-तिहाई विस्थापन बाढ़ के कारण हुए। 
    • हिंसा के कारण 1,700 लोग विस्थापित हुए, जिनमें से 1,000 लोग मणिपुर में विस्थापित हुए, जो ऐसे आंदोलनों का मुख्य केंद्र बना रहा।
  • संघर्ष और जलवायु संबंध: 2.01 करोड़ लोग संघर्ष के कारण विस्थापित हुए, जिनमें अधिकांश जलवायु-संवेदनशील देशों में थे। वर्ष 2009 से अब तक आपदा एवं संघर्ष दोनों प्रकार के विस्थापन का सामना करने वाले देशों की संख्या तीन गुना हो चुकी है।

जलवायु शरणार्थी कौन हैं?

  • जलवायु शरणार्थी (पर्यावरणीय रूप से विस्थापित व्यक्ति या जलवायु-प्रेरित प्रवासी) ऐसे व्यक्ति या समुदाय हैं, जिन्हें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के प्रतिकूल प्रभावों के कारण अपने घरों और क्षेत्रों को छोड़ने के लिये मज़बूर होना पड़ता है । 
    • इन प्रभावों के कारण जीवन-यापन की स्थिति अव्यवहारिक हो जाती है , जिससे आंतरिक विस्थापन और सीमा-पार आवागमन को बढ़ावा मिलता है।

कारण: 

समुद्र का बढ़ता जल स्तर: निचले तट, छोटे द्वीप और डेल्टा क्षेत्र में समुद्र के बढ़ते जल स्तर के कारण समुदायों को स्थानांतरित होने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है।

    • उदाहरण के लिये, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से बांग्लादेश में 2-110 मिलियन लोग विस्थापित हो सकते हैं।
  • चरम मौसमी घटनाएँ: तूफान, बाढ़ और वनाग्नि जैसी लगातार एवं गंभीर आपदाओं के कारण घर, बुनियादी ढाँचे और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से विस्थापन होता है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में आपदाओं के कारण 32.6 मिलियन लोग विस्थापित हुए, जिनमें से 98% मौसम संबंधी खतरों के कारण विस्थापित हुए।
  • मरुस्थलीकरण एवं भूमि क्षरण: उप-सहारा अफ्रीका तथा मध्य पूर्व जैसे क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण के कारण पशुपालक और किसान उपजाऊ भूमि तथा जल की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2015 से 2019 तक भारत में भूमि क्षरण 4.42% से बढ़कर 9.45% हो गया, जिससे 30.51 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ।
  • जल का अभाव: जलवायु परिवर्तन से मीठे जल और कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिससे स्थिरता एवं खाद्य सुरक्षा हेतु पलायन में वृद्धि हुई है। 
    • एक अरब से अधिक प्रवासी हैं तथा वैश्विक प्रवास में 10%, जल की कमी के कारण होता है। 17 देश (जहाँ विश्व की 25% जनसंख्या निवास करती है) अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं। 
  • परिणाम:  
    • मानवीय संकट: जलवायु विस्थापन के कारण भोजन और जल की कमी के साथ स्वास्थ्य संकट की स्थिति हो सकती है।
    • शहरी तनाव: विस्थापन के कारण शहरों पर दबाव बढ़ता है।
    • सामाजिक संघर्ष और तनाव: संसाधन प्रतिस्पर्द्धा से विस्थापित व्यक्तियों एवं स्थानीय समुदायों के बीच अशांति की स्थिति हो सकती है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ: अप्रबंधित विस्थापन से सुरक्षा जोखिम बढ़ता (विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में) है।

जलवायु शरणार्थियों से संबंधित विधिक और नीतिगत चुनौतियाँ क्या हैं?

  • विधिक मान्यता का अभाव: शरणार्थी सम्मेलन,1951 सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, जलवायु शरणार्थियों को मान्यता नहीं दी गई है क्योंकि इसमें केवल उन लोगों को कवर किया गया है जो जाति, धर्म या राजनीतिक विश्वास जैसे कारणों से होने वाले उत्पीड़न से विस्थापित हो रहे हैं।
    • अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया सहित अधिकांश देश जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन को शरण का आधार नहीं मानते हैं।
      • अमेरिका में, अस्थायी संरक्षण स्थिति (TPS) के तहत आपदा प्रभावित देशों के लिये सीमित राहत प्रदान की जाती है।
    • नॉन रिफाॅल्मेंट प्रिंसिपल के तहत जलवायु शरणार्थियों को कवर नहीं किया गया है, जिससे राज्यों को गंभीर नुकसान या अधिकारों के उल्लंघन के जोखिम के बावजूद व्यक्तियों को बाहर करने का अधिकार मिलता है।
    • भारत ने शरणार्थी सम्मेलन, 1951 या शरणार्थी संरक्षण प्रोटोकॉल, 1967 पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
  • प्रवासन योजनाओं में अंतराल: प्रवासन पर वैश्विक समझौता (2018) के तहत जलवायु संबंधी विस्थापन का उल्लेख किया गया है लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • राज्यविहीनता संबंधी जोखिम: यदि जलवायु शरणार्थियों को निवास या नागरिकता प्राप्त नहीं हो पाती है तो वे राज्यविहीन हो सकते हैं तथा उन्हें शरण अधिकारों की कमी, रहने की निम्न स्थिति, स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा तक सीमित पहुँच तथा संभावित नज़रबंदी या निर्वासन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • सख्त सीमा नियंत्रण: यूरोपीय सीमा एवं तट रक्षक एजेंसी द्वारा अक्सर जलवायु प्रवासियों को रोका जाता है जबकि ऑस्ट्रेलिया में जलवायु-संवेदनशील द्वीपों से आने वाले शरणार्थियों सहित अपतटीय क्षेत्रों में शरण चाहने वालों को रोका जाता है।
  • फंडिंग विवाद: COP27 (वर्ष 2022) से संबंधित लाॅस एंड डैमेज फंड, फंडिंग विवादों के बीच वर्ष 2025 में प्रभावी हुआ। ग्रीन क्लाइमेट फंड पुनर्वास या शरण पर नहीं, बल्कि शमन पर केंद्रित है।

जलवायु शरणार्थियों के संरक्षण के लिये वर्तमान प्रावधान क्या हैं? 

  • वर्ष 1951 शरणार्थी सम्मेलन की सीमित प्रयोज्यता: सूखे से संबंधित अकाल संघर्ष और विस्थापन का कारण बन सकता है, जिससे प्रभावित व्यक्ति वर्ष 1951 सम्मेलन के तहत शरणार्थी संरक्षण के लिये पात्र हो सकते हैं।
  • क्षेत्रीय शरणार्थी साधन: कुछ क्षेत्रीय ढाँचे शरणार्थियों की अधिक अनुकूलित परिभाषा प्रदान करते हैं, जो जलवायु से संबंधित विस्थापन को भी सम्मिलित कर सकते हैं। उदाहरण के लिये:
    • अफ्रीकी एकता संगठन सम्मेलन 1969: यह उन लोगों की सुरक्षा करता है जो “ऐसी घटनाओं से भाग रहे हों जो सार्वजनिक व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं,” जिसमें जलवायु-प्रेरित संघर्ष जैसे बाढ़, सूखा या जलवायु संबंधित विस्थापन शामिल हो सकते हैं, खासकर जब ऐसी घटनाओं के बाद नागरिक अशांति होती है।
    • कार्टागेना घोषणा 1984 (लैटिन अमेरिका): यह शरणार्थी की परिभाषा का विस्तार करता है ताकि उन लोगों को शामिल किया जा सके जो “व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों” या ऐसी घटनाओं से भाग रहे हों जो “सार्वजनिक व्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं,” जिनमें सामाजिक और राजनीतिक विघटन उत्पन्न करने वाली जलवायु-सम्बंधित घटनाएँ भी शामिल हो सकती हैं।

जलवायु शरणार्थियों के प्रबंधन में सुधार कैसे किया जा सकता है?

  • कानूनी सुधार: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन में जलवायु विस्थापन को शामिल करने के लिये संशोधन किया जाना चाहिये, जलवायु शरणार्थियों के लिये एक नया संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन स्थापित करना चाहिये (जैसा कि प्रशांत द्वीप समूह देशों द्वारा समर्थित है), और क्षेत्रीय सुरक्षा योजनाओं का विस्तार करना चाहिये, जैसे कि लैटिन अमेरिका की कार्टागेना घोषणा, ताकि जलवायु प्रवासियों को भी कवर किया जा सके।
  • राष्ट्रीय स्तर पर नवाचार: इसमें जलवायु मानवीय वीज़ा (जैसा कि न्यूज़ीलैंड द्वारा प्रस्तावित किया गया है) की शुरुआत और भूमि क्रय समझौते (उदाहरण के लिये, किरिबाती द्वारा पुनर्वास हेतु फिजी में भूमि खरीदना) जैसे उपाय शामिल किये जा सकते हैं।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाएँ (NAP): जिन देशों को गंभीर जलवायु प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें अपनी NAP और आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) रणनीतियों में जलवायु प्रवासन और विस्थापन को सम्मिलित करना चाहिये, ताकि विस्थापित व्यक्तियों के लिये उपयुक्त तैयारी और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • उन्नत जलवायु वित्त: हरित जलवायु कोष और हानि एवं क्षति तंत्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्तीय तंत्रों को जलवायु-लचीला अवसंरचना और जलवायु प्रभावों से विस्थापित समुदायों के पुनर्वास का समर्थन करना चाहिये।

निष्कर्ष

IDMC 2025 रिपोर्ट जलवायु-प्रेरित विस्थापन के गहराते संकट को उजागर करती है, जिसमें आपदाएँ वैश्विक स्तर पर, भारत सहित, रिकॉर्ड स्तर पर विस्थापन का कारण बन रही हैं। बढ़ती संवेदनशीलताओं के बावजूद, जलवायु शरणार्थियों के लिये कानूनी संरक्षण अपर्याप्त बने हुए हैं, जिससे मानवीय और सतत् तरीके से जलवायु विस्थापन तथा उससे जुड़े मानवीय संकटों के प्रबंधन हेतु तत्काल सुधार, जलवायु-लचीली रणनीतियाँ और वित्तीय समर्थन की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु शरणार्थियों की आवश्यकताओं को संबोधित करने में वैश्विक एवं क्षेत्रीय तंत्रों की प्रभावशीलता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स

प्रश्न. शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं भेजा जाना चाहिये जहाँ उन्हें उत्पीड़न या मानवाधिकार उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।" खुले समाज के साथ लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले राष्ट्र द्वारा उल्लंघन किये जा रहे नैतिक आयाम के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न. बड़ी परियोजनाओं के नियोजन के समय मानव बस्तियों का पुनर्वास एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक संघात है, जिस पर सदैव विवाद होता है। विकास की बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव के समय इस संघात को कम करने के लिये सुझाए गए उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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