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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीन फंड जुटाना

  • 30 Nov 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु वित्त, COP27, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त और इसका महत्व

हाल ही में शर्म अल-शेख (मिस्र) में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change Conference- UNFCCC) के COP27 में, देशों ने सहमति व्यक्त की कि जलवायु कार्रवाई के लिये संसाधनों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली के पूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है।

  • वर्तमान में जलवायु कार्रवाई के लिये लगाया जा रहा धन अनुमानित आवश्यकताओं का मुश्किल से 1% -10% है।

जलवायु वित्त

  • जलवायु वित्त से तात्पर्य स्थानीय, राष्ट्रीय, या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण से है जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक स्रोतों से संगृहित किया गया हो साथ ही जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने वाले एवं अनुकूलन संबंधी कार्यों का समर्थन करता है।
  • UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के अंतर्गत अधिक वित्तीय संसाधनों वाले (विकसित देशों) से कमज़ोर देशों (विकासशील देश) को वित्तीय सहायता प्रदान करने का आह्वान किया।
  • यह "सामान्य परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्वों और संबंधित क्षमताओं" (Common but Differentiated Responsibility and Respective Capabilities (CBDR) के सिद्धांत के अनुसार है।
    • CBDR, UNFCCC में निहित एक सिद्धांत है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में अलग-अलग देशों की भिन्न-भिन्न क्षमताओं और अलग-अलग ज़िम्मेदारियों को स्वीकार करता है। CBDR का सिद्धांत वर्ष 1992 में रियो डी जनेरियो, ब्राज़ील में आयोजित अर्थ समिट में निहित है।

जलवायु कार्रवाई हेतु आवश्यक वित्त:

  • कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर वैश्विक परिवर्तन के लिये वर्ष 2050 तक प्रत्येक वर्ष लगभग 4-6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
  • यदि शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों को हासिल करना है तो वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में सालाना लगभग 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी।
  • वर्ष 2022-2030 के बीच विकासशील देशों की संचयी आवश्यकता, उनकी जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करने के लिये लगभग 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
    • इसका मतलब है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के कम से कम 5% को प्रत्येक वर्ष जलवायु कार्रवाई में निर्देशित करने की आवश्यकता होगी।
    • कुछ साल पहले अनुमानित आवश्यकताएँ वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 1 और 1.5% के बीच थीं।
  • विकसित देशों ने प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर जुटाने का वादा किया है जो व्यावहारिक रूप से अभी तक के धन का प्रतिनिधित्त्व करता है।
    • यहाँ तक कि यह 100 अरब अमेरिकी डॉलर भी अभी तक पूरी तरह से वसूल नहीं हुआ है।
    • विकसित देशों का कहना है कि वे वर्ष 2023 तक इस लक्ष्य तक पहुँच जाएंगे। फिलहाल प्रतिवर्ष करीब 50-80 अरब डॉलर का निवेश हो रहा है।

जलवायु निधि जुटाने में चुनौतियाँ:

  • यहाँ तक कि यदि विकसित देश अपने योगदान में वृद्धि करते हैं तो इसके परिणामस्वरूप समग्र राशि में मामूली वृद्धि ही होगी।
    • अधिक महत्त्वपूर्ण उछाल व्यवसायों और निगमों द्वारा हरित परियोजनाओं में धन निवेश से आएग
  • जलवायु वित्त में अब तक निजी निवेश सार्वजनिक वित्त से कम रहा है।
    • वर्तमान वित्तीय प्रवाह का मुश्किल से 30% निजी स्रोतों से आ रहा है।
  • वैश्विक वित्तीय प्रणाली के मौजूदा नियम और विनियम बड़ी संख्या में देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय वित्त तक पहुँच को बेहद कठिन बना देते हैं, विशेष रूप से राजनीतिक अस्थिरता या कमज़ोर संस्थागत और शासन संरचनाओं वाले देशों के लिये।
  • जलवायु वित्त द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा बहुपक्षीय चक्रव्यूह प्रणाली के माध्यम से प्रवाहित होता है।
    • यह अनुदान, रियायती ऋण, इक्विटी, कार्बन क्रेडिट इत्यादि के रूप में है।
    • इस बात पर मतभेद हैं कि क्या कोई विशेष राशि वास्तव में जलवायु से संबंधित है। वर्तमान में जुटाए जा रहे जलवायु वित्त की मात्रा के व्यापक रूप से अलग-अलग आकलन हैं।

कर (Tax) जलवायु कोष के लिये एक स्रोत:

  • जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों का बड़ा हिस्सा करों के रूप में आम नागरिक की जेब से आएगा।
  • पेट्रोल और डीजल तथा अन्य जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर कर लगाया जा सकता है।
  • भारत में कई वर्षों से कोयले के उत्पादन पर पहले से ही कर लगाया जा रहा है और यह सरकार के लिये मूल्यवान संसाधन रहा है जिसने इसका उपयोग मुख्य रूप से स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश के लिये किया है।
  • कार्बन टैक्स के नए रूपों को व्यवसायों पर भी लगाए जाने की संभावना है।
    • कई मामलों में ये देश के आम आदमी तक पहुँच जाएंगे।

जलवायु वित्त के लिये भारत की पहल:

  • जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन निधि (NAFCC):
    • NAFCC की स्थापना 2015 में भारत के राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की लागत को पूरा करने के लिये की गई थी जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के लिये संवेदनशील हैं
  • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष:
    • फंड स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था और उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर प्रारंभिक कार्बन कर के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।
    • यह एक अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा शासित होता है जिसके अध्यक्ष वित्त सचिव होते हैं।
    • इसका अधिदेश जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान और विकास को निधि देना है।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन निधि:
    • इस कोष की स्थापना 2014 में 100 करोड़ रुपये के कोष के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतर को पाटना था।
    • यह फंड पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत है।

आगे की राह:

  • इसके अलावा, नए वित्त जुटाने के लिये एक राजनीतिक प्रतिबद्धता बनाए रखने की आवश्यकता है,
    • यह सुनिश्चित करना कि प्रदान किया गया वित्त इस उत्सर्जन और भेद्यता को कम करने के लिये पर्याप्त है।
    • हाल के अनुभवों से सीखना और सुधार करना, खासकर ये देखना की ग्रीन क्लाइमेट फंड कैसे काम करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान हरित परियोजनाओं में निवेश के लिये सही वातावरण बनाने के लिये राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर काम करने वाली सरकारों, केंद्रीय बैंकों, वाणिज्यिक बैंकों और अन्य वित्तीय खिलाड़ियों के साथ जुड़ सकते हैं।
  • जलवायु के अनुकूल निवेश को प्रोत्साहित करना और खराब निवेश को हतोत्साहित करना, यहाँ  तक कि दंडित करने का  भी अभ्यास किया जाना चाहिये।
  • फंडिंग परिवर्तन में प्रथाओं का सरलीकरण, निवेश के लिये जोखिमों का आकलन करने के तरीके में बदलाव और क्रेडिट रेटिंग को भी शामिल करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं?

  1. भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है।
  2. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के विशाल निक्षेप उत्तरी ध्रुवीय टुंड्रा में तथा समुद्र अधस्तल के नीचे पाए जाते हैं।
  3. वायुमंडल में मीथेन एक या दो दशक के बाद कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • ‘मीथेन हाइड्रेट’ बर्फ की एक जालीनुमा केज जैसी संरचना है, जिसमें मीथेन अणु बंद होते हैं। यह एक प्रकार की "बर्फ" है जो केवल स्वाभाविक रूप से उपसतह में जमा होती है जहाँ तापमान और दबाव की स्थिति इसके गठन के लिये अनुकूल होती है।
  • आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के नीचे मीथेन हाइड्रेट और तलछटी चट्टानी इकाइयों के निर्माण तथा स्थिरता के लिये उपयुक्त तापमान एवं दबाव की स्थिति वाले क्षेत्रों में महाद्वीपीय सीमान्त साथ तलछट जमाव; अंतर्देशीय झीलों और समुद्रों के गहरे पानी के तलछट और अंटार्कटिक बर्फ आदि शामिल है। अत: कथन 2 सही है।
  • मीथेन हाइड्रेट्स जो एक संवेदनशील तलछट है, तापमान में वृद्धि या दबाव में कमी के साथ तेज़ी से पृथक हो सकते हैं। इस पृथक्करण से मुक्त मीथेन और पानी को प्राप्त किया जाता है जिसे ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा रोका जा सकता है। अत: कथन 1 सही है।
  • मीथेन वायुमंडल से लगभग 9 से 12 वर्ष की अवधि में ऑक्सीकृत हो जाती है जहाँ यह कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होती है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (d) सही है।


प्रश्न: नवंबर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था?  (मुख्य परीक्षा, 2021)

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के COP के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएं क्या हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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