सामाजिक न्याय
कृषि क्षेत्र में महिलाओं का सशक्तीकरण
- 01 Oct 2025
- 65 min read
प्रारंभिक परीक्षा के लिये: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना, किसान क्रेडिट कार्ड, चाय, कॉफी, ग्राम पंचायतें, सहकारी समितियाँ, किसान उत्पादक संगठन, भाषिनी, डिजिटल सखी, ई-नाम।
मुख्य परीक्षा के लिये: भारत में कृषि का नारीकरण की स्थिति, महिला कृषि सशक्तीकरण में चुनौतियाँ, महिलाओं की प्रगति में प्रणालीगत बाधाएँ, महिला किसानों के लिये सरकारी पहल, भविष्य के सशक्तीकरण हेतु रणनीतियाँ।
चर्चा में क्यों?
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24 के अनुसार, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। हालाँकि उनमें से लगभग आधी महिलाओं को अभी भी भुगतान नहीं किया जाता है, जो कृषि रोज़गार में गहरी लैंगिक असमानताओं को दर्शाता है।
भारतीय कृषि क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति क्या है?
- कृषि का नारीकरण: भारत के कृषि कार्यबल में अब महिलाओं की हिस्सेदारी 42% से अधिक है, जो पिछले एक दशक में 135% की वृद्धि को दर्शाता है। हर तीन में से दो ग्रामीण महिलाएँ कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं।
- अवैतनिक कार्य की व्यापकता: कृषि क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं में से लगभग आधी महिलाएँ अवैतनिक पारिवारिक श्रमिक हैं। इनकी संख्या आठ वर्षों (वर्ष 2017-18 से 2024-25) में 23.6 मिलियन से बढ़कर 59.1 मिलियन हो गई है।
- क्षेत्रीय संकेंद्रण: बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 80% से अधिक महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। हालाँकि इनमें से अधिकांश — यानी आधे से अधिक — महिलाएँ अब भी अवैतनिक हैं।
- सरकारी सहायता: महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना, किसान क्रेडिट कार्ड और स्वयं सहायता समूह सामूहिक रूप से कौशल विकास, औपचारिक ऋण तक पहुँच, सतत् कृषि और मज़बूत सामूहिक सौदेबाजी के माध्यम से महिला किसानों को सशक्त बनाते हैं।
भारत में कृषि का नारीकरण के लिये कौन से कारक ज़िम्मेदार हैं?
- पुरुषों का पलायन: पुरुष शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं या अधिक लाभदायक ग्रामीण नौकरियों (निर्माण, सेवा, परिवहन, सरकार) की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे महिलाओं को पारिवारिक खेतों का प्रबंधन और काम करना पड़ रहा है।
- अनुबंध खेती का विकास: फ्लोरीकल्चर, बागवानी और चाय/कॉफी बागान जैसे क्षेत्र श्रम-गहन कार्यों के लिये महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि वे उन्हें विश्वसनीय, कुशल और कम मज़दूरी स्वीकार करने को तैयार मानते हैं।
- पितृसत्तात्मक मानदंड: समाज महिलाओं से अपेक्षा करता है कि वे घर और हल्के कृषि कार्य संभालें, उनके कृषि श्रम को घरेलू कर्तव्यों का हिस्सा मानें या पुरुषों की सहायता करना।
- सीमित वैकल्पिक अवसर: कम साक्षरता, सीमित गतिशीलता और सामाजिक मानदंड महिलाओं के गैर-कृषि रोज़गार को सीमित करते हैं, जिससे कृषि ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ स्वीकार्य तथा सुलभ आजीविकाओं में से एक बन जाती है।
कृषि में महिलाओं की प्रगति को सीमित करने वाली प्रणालीगत बाधाएँ क्या हैं?
- Mnemonic: WOMEN
- W - वेतन भेदभाव (Wage Discrimination): भारत में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 20–30% कम कमाती हैं, जो आर्थिक असमानता और सशक्तीकरण में बाधा डालती है।
- O - निर्णय लेने से वंचित (Omission from Decision-Making): कृषि विस्तार अधिकारी मुख्यतः पुरुष हैं, जिससे महिलाएँ बीज, कीटनाशक और सतत् प्रथाओं के ज्ञान से वंचित रहती हैं। ग्राम पंचायतों और किसान सहकारी समितियों में उनके विचारों को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है।
- M - मशीनरी और उपकरणों का असंगत डिज़ाइन (Machinery and Tool Mismatch): ट्रैक्टर, हार्वेस्टर और थ्रेशर जैसी कृषि मशीनरी पुरुषों के शारीरिक गठन के अनुसार डिज़ाइन की गई है, जबकि महिलाओं के पास इसे संचालित करने की शक्ति, प्रशिक्षण या वित्तीय साधन अक्सर नहीं होते।
- E - घरेलू दोहरी ज़िम्मेदारी (Entrenched Domestic Double Burden): घरेलू कामकाज और बच्चों की देखभाल के कारण सीमित गतिशीलता और समय की कमी महिलाओं को बाज़ार, कौशल विकास और सामुदायिक भागीदारी से वंचित करती है।
- N - भूमि और पहचान अधिकारों की उपेक्षा (Negation of Land and Identity Rights): महिलाओं के पास केवल 13–14% भूमि स्वामित्व है। बिना भूमि के स्वामित्व के, उन्हें कृषक नहीं बल्कि मज़दूर माना जाता है, जिससे क्रेडिट, सरकारी योजनाओं और स्वतंत्र निर्णय लेने तक उनकी पहुँच सीमित रहती है।
भारत में महिला किसानों को सशक्त बनाने के प्रभावी उपाय
Mnemonic: GROW
G - बाज़ार पहुँच की गारंटी (Guarantee Market Access): यूके जैसे मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के माध्यम से भारत के कृषि निर्यात में 20% तक वृद्धि की संभावना है। इस अवसर का लाभ उठाते हुए महिलाओं से जुड़ी कृषि गतिविधियों—जैसे चाय, मसाले और डेयरी उत्पादों पर विशेष ध्यान देना चाहिये। साथ ही महिलाओं को जैविक खाद्य और GI-टैग वाले प्रीमियम उत्पादों के निर्यात में सहयोग देना आवश्यक है, ताकि उनके पारंपरिक ज्ञान और कौशल का पूर्ण उपयोग हो सके और वैश्विक बाज़ार में उनकी पहचान मज़बूत हो।
R - संसाधनों के अधिकार और सुधार (Resource Rights and Reforms): महिलाओं के लिये संयुक्त या व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व को प्रोत्साहित करना आवश्यक है, ताकि उन्हें बैंक क्रेडिट, बीमा और विभिन्न सरकारी योजनाओं तक आसान पहुँच मिल सके। साथ ही महिला नेतृत्व वाले किसान उत्पादक संगठन (FPOs) और स्वयं सहायता समूह (SHGs) को व्यवस्थित रूप से मज़बूत करना चाहिये, जिससे पैमाने की अर्थव्यवस्था हासिल हो और उनकी उत्पादन, विपणन एवं वित्तीय क्षमता बढ़ सके।
O - डिजिटल गेटवे का विस्तार (Open Digital Gateways): e-NAM जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का विस्तार करना आवश्यक है, ताकि किसानों विशेषकर महिलाओं को बाज़ार से सीधे जोड़ने और पारदर्शी मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने में मदद मिले। साथ ही BHASHINI, जुगलबंदी, डिजिटल सखी जैसी वॉइस-फर्स्ट AI तकनीकों का उपयोग करके महिलाओं में डिजिटल और वित्तीय साक्षरता बढ़ानी चाहिये, जिससे वे तकनीकी उपकरणों और ऑनलाइन सेवाओं का पूर्ण लाभ उठा सकें।
W - कल्याण और सामाजिक समर्थन (Well-being and Social Support): खेतों के पास क्रेच सुविधाएँ, पर्याप्त जल आपूर्ति और स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराना आवश्यक है, ताकि महिला किसानों की समय-बाध्यता कम हो और वे अधिक प्रभावी ढंग से कृषि गतिविधियों में भाग ले सकें। साथ ही मीडिया अभियानों और पुरस्कारों के माध्यम से महिला किसानों को रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत करना चाहिये, जिससे उनकी उपलब्धियों को पहचान मिले और अन्य महिलाओं के लिये प्रेरणा का स्रोत बनें।
निष्कर्ष:
कृषि में महिलाओं के योगदान की संभावनाओं का दोहन करने के लिये भारत को महिलाओं के श्रम को मान्यता देने के बजाय उन्हें आर्थिक प्रतिनिधि के रूप में सशक्त बनाने की ओर बढ़ना होगा। इसके लिये भूमि अधिकारों के हनन और वेतन अंतर जैसी व्यवस्थागत बाधाओं को दूर करना होगा, साथ ही समावेशी विकास के लिये तकनीक, बाज़ार और निर्णय लेने वाली भूमिकाओं तक उनकी पहुँच को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: "भारत में कृषि के स्त्रीकरण ने महिलाओं को सशक्त बनाने के बजाय मौजूदा असमानताओं को और मज़बूत किया है।" इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और लिंग-समावेशी कृषि विकास मॉडल के लिये उपाय सुझाइये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – कृषि का स्त्रीकरण
कृषि का स्त्रीकरण क्या है?
उत्तर: कृषि का स्त्रीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें पुरुषों के गैर-कृषि कार्यों की ओर पलायन के कारण महिलाओं की कृषि श्रम में भागीदारी बढ़ जाती है।
वर्तमान में भारत में कृषि कार्यबल में महिलाओं का हिस्सा कितना है?
उत्तर: वर्तमान में महिलाएँ भारत के कृषि कार्यबल का 42% से अधिक हिस्सा हैं, जो पिछले दशक में 135% की वृद्धि को दर्शाता है।
भारत में कृषि का स्त्रीकरण किस कारण हो रहा है?
उत्तर: इसके मुख्य कारण हैं –पुरुषों का गैर-कृषि रोज़गार के लिये पलायन, अनुबंध खेती का बढ़ना, पितृसत्तात्मक सामाजिक मान्यताएँ, महिलाओं के लिये सीमित गैर-कृषि अवसर।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारतीय कृषि परिस्थितियों के संदर्भ में, “संरक्षण कृषि” की संकल्पना का महत्त्व बढ़ जाता है। निम्नलिखित में से कौन-कौन से संरक्षण कृषि के अंतर्गत आते हैं? (2018)
- एकधान्य कृषि पद्धतियों का परिहार
- न्यूनतम जोत को अपनाना
- बागानी फसलों की खेती का परिहार
- मृदा धरातल को ढकने के लिये
- फसल अवशिष्ट का उपयोग स्थानिक एवं कालिक फसल अनुक्रमण/फसल आवार्तनों को अपनाना
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) 1, 3 और 4
(b) 2, 3, 4 और 5
(c) 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3 और 5
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. ऐसे विभिन्न आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक बलों पर चर्चा कीजिये, जो भारत में कृषि के बढ़ते हुए नारीकरण को प्रेरित कर रहे हैं। (2014)