कृषि
किसान उत्पादक संगठन
- 06 May 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:किसान उत्पादक संगठन (FPO), लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (SFAC), सहकारी समितियाँ, ई-NAM, कृषि तकनीक स्टार्टअप मेन्स के लिये:किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की स्थिति, चिंताएँ और आगे की राह |
स्रोत: बिज़नेस लाइन
चर्चा में क्यों?
किसान उत्पादक संगठनों (FPO) का विकास भारत में लघु कृषकों के सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम रहा है। FPO में सरकार के व्यापक निवेश के बावजूद, इनकी प्रगति अपेक्षा से मंद रही है।
किसान उत्पादक संगठन क्या है?
- परिचय: FPO एक प्रकार का उत्पादक संगठन (PO) है जिसके सदस्य किसान होते हैं और इसका संवर्द्धन लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (SFAC) द्वारा समर्थित होता है।
- FPO वर्ष 2008 में अस्तित्व में आए, जो कि कंपनी अधिनियम, 1956 में अर्थशास्त्री वाई.के. अलघ द्वारा किये गए संशोधन की अनुशंसा (2002) से प्रेरित थे।
- FPO को कंपनी अधिनियम, 2013 , सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860, अथवा भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के तहत लोक न्यास के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है।
- उत्पादक संगठन, उत्पादकों जैसे कृषक, अकृषक वर्ग अथवा शिल्पकारों द्वारा गठित समूह है, जो सदस्यों में लाभ साझा करते हुए उत्पादक कंपनियों अथवा सहकारी समितियों जैसे विधिक रूप ले सकता है।
- उद्देश्य एवं आवश्यकता: भारत के कृषि क्षेत्र में लघु और सीमांत किसानों का प्रभुत्व है (87% के पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है), जो ऋतुनिष्ठ और बाज़ार जोखिमों का सामना करते हैं, तथा उचित मूल्य प्राप्त करने के लिये संघर्ष करते हैं।
- FPO लघु किसानों को थोक इनपुट खरीद की सुविधा, बेहतर सौदाकारी की शक्ति, तथा अल्प लागत पर बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करके सहायता करते हैं।
- ये आय को दोगुना करने और वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश करने के लक्ष्य में सहायता प्रदान करते हुए किसानों की बाज़ार पहुँच में भी सुधार करते हैं।
- FPO लघु किसानों को थोक इनपुट खरीद की सुविधा, बेहतर सौदाकारी की शक्ति, तथा अल्प लागत पर बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करके सहायता करते हैं।
- वर्तमान स्थिति: वर्तमान में 45,000 FPO कंपनी के रूप में पंजीकृत हैं, लेकिन केवल 16,000 ही विनियामक फाइलिंग के अनुरूप हैं।
- केवल 4,000 FPO को क्रय के लिये कार्यशील पूंजी ऋण प्राप्त हुआ है और प्रति FPO औसत निवल लाभ 3 लाख रुपए है (किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की दृष्टि से यह बहुत कम निम्न है)।
FPO की सफलता की कहानी
- भारत के FPO की सफलता:
- ओडिशा में कंधमाल एपेक्स स्पाइसेज एसोसिएशन फॉर मार्केटिंग (KASAM) 61 मसाला विकास समितियों के माध्यम से कंधमाल हल्दी को बढ़ावा देता है।
- यह किसान साथी के साथ सहयोग करता है, जिससे गुमापदर एफपीसी लिमिटेड को नीदरलैंड के नेडस्पाइस समूह को हल्दी निर्यात करने में मदद मिलती है, जिससे FPO की वैश्विक बाज़ारों में विस्तार क्षमता प्रदर्शित होती है।
- वैश्विक स्तर पर:
- मेक्सिको (एजिडो प्रणाली): एजिडो सामुदायिक कृषि प्रणाली है, जहाँ भूमि का स्वामित्व और प्रबंधन सामूहिक रूप से समुदायों द्वारा किया जाता है, जिससे किसानों को विशेष रूप से एवोकाडो और बेरी जैसी फसलों के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिलती है।
- थाईलैंड: "एक टैम्बोन (गाँव) एक उत्पाद" जैसे कार्यक्रम अद्वितीय स्थानीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देते हैं।
- चीन: चाय, फल और जलीय कृषि जैसे क्षेत्रों में किसान पेशेवर सहकारी समितियाँ (FPS) वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच गई हैं, अलीबाबा जैसे प्लेटफार्मों ने उपभोक्ताओं की प्रत्यक्ष बिक्री को संभव बना दिया है।
भारतीय कृषि में FPO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- कोई सामान्य समाधान नहीं: किसान उत्पादक संगठन (FPOs) जलवायु जोखिम, कमजोर ग्रामीण अवसंरचना, सीमित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) कवरेज, वैश्विक मूल्य अस्थिरता एवं सामाजिक असमानताओं जैसी समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं हो सकते।
- बाजार संपर्कों पर सीमित प्रभाव: ई-नाम के साथ 3,500 FPO को एकीकृत किये जाने के बावजूद, व्यापार मूल्य (3.19 लाख करोड़ रुपए) कुल कृषि GVA (वर्तमान मूल्यों पर 50 लाख करोड़ रुपए) का केवल एक अंश है।
- यह असमानता दर्शाती है कि ई-नाम स्वीकृति में कमी, बाज़ार विखंडन, बुनियादी ढाँचे के अंतराल और क्षेत्रीय असमानताओं के कारण व्यापक कृषि अर्थव्यवस्था तक पूरी तरह से पहुँचने में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- कम लाभ: अधिकांश FPO इनपुट/आउटपुट मार्केटिंग में निम्न लाभ (3-6%) पर कार्य करते हैं, जिससे दीर्घकालिक व्यवहार्यता पर संदेह उत्पन्न होता है।
- सीमित लाभ मार्जिन के साथ, FPO को परिचालन लागत को कवर करने, विकास में निवेश करने और अपनी गतिविधियों को बनाए रखने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है।
- बिचौलियों से संबंधित चुनौतीयाँ: किसान विश्वास, ऋण और भुगतान के लिये बिचौलियों पर निर्भर रहते हैं। FPO पूरी तरह से उनकी जगह नहीं ले सकते, खासकर सामंती व्यवस्था वाले क्षेत्रों में, जिससे उनका पूर्ण उन्मूलन अवास्तविक हो जाता है।
- आउटसोर्सिंग चैनल: कुछ FPOs केवल खरीद एजेंट या कस्टम हायरिंग सेंटर के रूप में काम करने लगे हैं, जिससे उनका किसानों को सशक्त करने का मूल उद्देश्य कमजोर पड़ जाता है।
- सामाजिक पूंजी की कमी: FPOs को फलने-फूलने के लिये सामाजिक पूंजी और परिपक्व होने के लिये समय चाहिये, क्योंकि सामाजिक नेटवर्क पर आधारित संगठन एक दिन में स्थापित नहीं होते।
- सामाजिक पूंजी के बिना, FPO को स्थिरता, शासन और विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे किसानों को लाभ मिलने में देरी हो सकती है तथा विस्तार में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
सतत् कृषि के लिये FPO को कैसे मज़बूत किया जा सकता है?
- प्रतिष्ठित FPO का निर्माण: सक्षम नेतृत्व, सक्रिय किसान भागीदारी और व्यवहार्य व्यापार मॉडल वाले उच्च क्षमता वाले FPO की पहचान कर उन्हें समर्थन प्रदान करना।
- नागरिक समाज संगठनों (CSO), परोपकारी संस्थाओं और एग्री-टेक स्टार्टअप्स के साथ साझेदारी करके इन FPO को अन्य संस्थाओं के लिये आदर्श संस्थान के रूप में विकसित करना।
- ज्ञान संसाधन विकसित करना: FPO संचालन पर स्थानीय भाषा में पुस्तिका बनाना, जिसमें व्यवसाय मॉडल (आगत आपूर्ति, विपणन, मूल्य संवर्द्धन), वित्तीय प्रबंधन (लाभ-साझाकरण, कार्यशील पूंजी) और डिजिटल उपकरण (e-NAM, ONDC, एग्री-टेक) को शामिल किया जाए ताकि इसका सुचारू संचालन हो सके।
- स्थानीय FPO पेशेवरों का निर्माण: कृषि विश्वविद्यालयों में अल्पकालिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को FPO प्रबंधन में प्रशिक्षित करना, और उन्हें FPO प्रमोटरों के रूप में तैनात करना, जो स्व-नियोजित पेशेवर हैं जो शुल्क के लिये FPO स्थापित करने और प्रबंधित करने में मदद करते हैं।
- मूल्य संवर्द्धन को प्रोत्साहित करना: प्रसंस्करण, ब्रांडिंग और प्रमाणन (जैसे, जैविक, GI टैग) में FPO का समर्थन करना, प्रत्यक्ष खुदरा साझेदारी (सुपरमार्केट, निर्यात बाजार) की सुविधा प्रदान करना, और FPO के नेतृत्व वाले कृषि-पर्यटन, किसान बाज़ारों और सदस्यता-आधारित मॉडल (जैसे, वीकली वेजिटेबल बॉक्स) को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
FPO में छोटे किसानों को बाज़ार पहुँच और सौदेबाजी की शक्ति में सुधार करके सशक्त बनाने की महत्त्वपूर्ण क्षमता है। हालाँकि, उनकी सफलता अल्प मार्जिन, मापनीयता (Scalability) और विश्वास-आधारित रिश्तों जैसी चुनौतियों का समाधान करने पर निर्भर करती है। उच्च क्षमता वाले FPO पर ध्यान केंद्रित करना, डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना और मूल्य संवर्द्धन को बढ़ावा देना उनकी दीर्घकालिक स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: FPO के समक्ष आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये और सुझाव दीजिये कि उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य कैसे बनाया जा सकता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न . "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014) |