शासन व्यवस्था
पंचायत उन्नति सूचकांक
- 06 May 2025
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI), राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस, राष्ट्रीय संकेतक ढाँचा, 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, भौगोलिक सूचना प्रणाली मेन्स के लिये:PRI का वित्तीय सशक्तीकरण, पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित मुद्दे, सतत् विकास लक्ष्य |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (24 अप्रैल) पर पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) को स्थानीय शासन को सशक्त बनाने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) से संबद्ध विषयों पर 2.16 लाख पंचायतों की रैंकिंग करके विकसित भारत 2047 का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम बताया।
पंचायत उन्नति सूचकांक क्या है?
- परिचय: PAI एक समग्र सूचकांक है जिसे सामाजिक-आर्थिक संकेतकों का उपयोग कर समग्र भारत के ग्राम पंचायतों (GP) के प्रदर्शन और प्रगति का आकलन करने हेतु अभिकल्पित किया गया है। इसमें विकास अभाव की पहचान की जाती है और साक्ष्य-आधारित नियोजन में सहायता मिलती है।
- यह सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा विकसित सतत् विकास लक्ष्यों (LSDG) के स्थानीयकरण और राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (NIF) के अनुरूप है।
- यह भागीदारीपूर्ण, ऊर्ध्वगामी शासन को बढ़ावा देने, सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के माध्यम से ग्राम पंचायतों के विकास का आकलन करने, सुधार क्षेत्रों की पहचान करने और साक्ष्य-आधारित नियोजन को सक्षम बनाने के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्य 2030 एजेंडा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- PAI के संकेतक: यह 9 LSDG-संरेखित विषयों पर 435 अद्वितीय स्थानीय संकेतकों पर आधारित है।
- इसे पंचायत स्तर के विकास का मल्टी-डोमेन और बहु-क्षेत्रीय मूल्यांकन प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- डेटा संग्रह और सत्यापन: 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (UT) से 2.16 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों ने PAI पोर्टल पर डेटा दर्ज किया है। डेटा प्रविष्टियों को शामिल करने से पहले संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा सत्यापित किया जाता है।
- GP की प्रदर्शन श्रेणियाँ: PAI और विषयगत स्कोर के आधार पर, GP को पाँच प्रदर्शन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है: अचीवर (90+), फ्रंट रनर (75-89.99), परफॉर्मर (60-74.99), एस्पिरेंट (40-59.99), और बिगिनर (40 से निम्न)।
- वर्ष 2022-23 का PAI डेटा: 2.56 लाख ग्राम पंचायतों में से 2.16 लाख ने मान्य डेटा प्रस्तुत किया। कोई भी पंचायत अचीवर के रूप में योग्य नहीं पाई गई, जबकि 0.3% को फ्रंट रनर, 35.8% को परफॉर्मर, 61.2% को एस्पिरेंट्स और 2.7% को बिगिनर के रूप में वर्गीकृत किया गया।
पंचायती राज संस्थाओं के संबंध में संवैधानिक प्रावधान
- 73वाँ संशोधन अधिनियम, 1992: इसने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया तथा ग्राम सभाओं, पंचायत समितियों और ज़िला परिषदों में चुनाव, आरक्षण और शक्तियों के हस्तांतरण के प्रावधानों के साथ त्रिस्तरीय प्रणाली का निर्माण किया।
- संविधान के भाग IX को 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से जोड़ा गया तथा जिसका शीर्षक " पंचायत" है, इसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक शामिल हैं तथा इसमें पंचायती राज संस्थाओं की संरचना, संयोजन, निर्वाचन, शक्तियाँ और कार्यों का उल्लेख किया गया है।
- इसी संशोधन द्वारा जोड़ी गई 11वीं अनुसूची में पंचायतों को सौंपे गए 29 विषयों की सूची दी गई है, जिसमें प्रभावी स्थानीय शासन के लिये उनकी शक्तियों, प्राधिकार और ज़िम्मेदारियों का विवरण दिया गया है।
- अनुच्छेद 40 (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत): यह राज्य को ग्राम पंचायतों को संगठित करने और उन्हें उचित रूप से सशक्त बनाने का निर्देश देता है।
पंचायतों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- सीमित वित्तीय स्वायत्तता: पंचायतें राज्य और केंद्रीय निधियों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक के एक अध्ययन (वर्ष 2022-23) के अनुसार, प्रति पंचायत औसत राजस्व 21.23 लाख रुपए था, लेकिन केवल 1.1% ही उनके अपने स्वयं के राजस्व स्रोतों (स्थानीय कर, शुल्क) से आया।
- 15वें वित्त आयोग (वर्ष 2021-26) ने नोट किया कि केवल 8 राज्यों ने अपने छठे राज्य वित्त आयोग (SFC) का गठन किया है, जबकि इसकी नियत तिथि वर्ष 2019-20 है। इससे पंचायतों के विकास और सशक्तीकरण में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- इसके अतिरिक्त, स्थानीय कर संग्रहण ग्राम पंचायतों में राजनीतिक रूप से संवेदनशील और प्रशासनिक रूप से कमज़ोर बना हुआ है।
- अपूर्ण हस्तांतरण: 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 में पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को 29 विषयों का हस्तांतरण अनिवार्य किया गया है, लेकिन पंचायती राज मंत्रालय की वर्ष 2022 की रिपोर्ट से पता चला है कि 20% से भी कम राज्यों ने इस हस्तांतरण को पूरी तरह से लागू किया है।
- तकनीकी और क्षमता अंतराल: डिजिटल बुनियादी ढाँचे और साक्षरता की कमी निगरानी, मूल्यांकन और डेटा रिपोर्टिंग में बाधा डालती है।
- 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 100% पंचायतें कंप्यूटर से सुसज्जित हैं, लेकिन अरुणाचल प्रदेश में एक भी नहीं है, तथा ओडिशा में केवल 13% ही कंप्यूटर से सुसज्जित हैं। इंटरनेट की पहुँच भी निम्न है, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश में क्रमशः 0% और 1% कनेक्टिविटी की रिपोर्ट है।
- कई पंचायतों में विकास योजनाओं की डिजाइनिंग, निगरानी और मूल्यांकन के लिये प्रशिक्षित कर्मचारियों और तकनीकी सलाहकारों का अभाव है।
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: केवल 7 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 100% पक्के (स्थायी) पंचायत कार्यालय भवन हैं।
- अरुणाचल प्रदेश में यह दर सबसे कम है, जहाँ केवल 5% पंचायत कार्यालय पक्के भवनों में स्थित हैं।
- प्रतिनिधित्व में अंतराल: पंचायतों में महिलाओं के लिये 50% कोटा होने के बावजूद, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और त्रिपुरा जैसे राज्य पीछे रह गए हैं।
- निर्वाचित प्रतिनिधियों में महिलाओं की हिस्सेदारी 46.6% है, लेकिन "प्रधान पति" मुद्दे के कारण उनकी भागीदारी सीमित है, जहाँ पुरुष रिश्तेदार प्रायः निर्णय लेने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं।
- पितृसत्तात्मक मानदंड और नौकरशाही की उपेक्षा ने कई राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और राजस्थान जैसे उत्तरी क्षेत्रों में महिलाओं को नाममात्र का मुखिया बना दिया है।
- अंतर-विभागीय समन्वय में कमी: एक ही गाँव में कई सरकारी विभाग अक्सर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। अभिसरण की कमी से कार्यों का दोहराव होता है और संसाधनों का अकुशल उपयोग होता है।
पंचायती राज संस्थाओं (PRI) की प्रभावशीलता और स्वायत्तता को बढ़ाने के लिये कौन से उपाय किये जा सकते हैं?
- वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित करना: राज्यों को अनुच्छेद 243-I को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिये, प्रत्येक पाँच वर्ष में एक राज्य वित्त आयोग का गठन करना चाहिये जो वित्त का आकलन करेगा, कर वितरण की सिफारिश करेगा तथा पंचायतों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिये उपाय सुझाएगा।
- एल.एम. सिंघवी समिति (1986) की सिफारिश में पंचायतों के लिये अधिक वित्तीय संसाधनों की मांग की थी, भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के माध्यम से स्वचालित कर मानचित्रण पर RBI की वर्ष 2022 की रिपोर्ट को अपनाने से पंचायत स्तर पर कर संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
- हस्तांतरण और अधिकारिता: राज्यों को ग्यारहवीं अनुसूची में 29 विषयों को प्रभावी ढंग से हस्तांतरित करके 73वें संविधान संशोधन की भावना का पालन करना चाहिये। आवश्यकता-आधारित नियोजन को सक्षम करने के लिये समय पर और बिना किसी बंधन के निधि हस्तांतरण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- संस्थागत क्षमता को बढ़ावा देना: महिलाओं और हाशिए पर पड़े प्रतिनिधियों के लिये लक्षित प्रशिक्षण के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं की क्षमता को मज़बूत करने के लिये राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA) को बढ़ावा देना।
- सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय जवाबदेही को बढ़ाने के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG) और समुदाय आधारित संगठनों (CBO) के साथ अभिसरण को बढ़ावा देना।
- प्रौद्योगिकीय और डेटा-संचालित शासन: निरंतर सीखने के लिये भारतनेट और कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के माध्यम से डिजिटल मॉड्यूल को एकीकृत करना।
- ई-ग्राम स्वराज के उपयोग का विस्तार करना, जो विकास कार्यों की डिजिटल योजना, बजट और वास्तविक समय की निगरानी की अनुमति प्रदान करता है।
- स्थानीय शासन निर्देशिका (Local Government Directory - LGD) और परफॉर्मेंस ट्रैकिंग टूल्स जैसे मिशन अंत्योदय डैशबोर्ड का उपयोग करते हुए एक संरचित ऑडिट ढाँचा अपनाना।
- योजना एकीकरण को प्रोत्साहित करना: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना, जल जीवन मिशन (JJM) और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) जैसी प्रमुख केंद्र और राज्य योजनाओं को एकीकृत कर इन्हें पंचायत-स्तरीय कार्य योजना के माध्यम से लागू करना।
- यह दृष्टिकोण सभी के लिये एक ही मॉडल के स्थान पर आवश्यकता-आधारित, स्थानीय रूप से अनुकूलित विकास को सक्षम बनाता है, जिससे ज़मीनी स्तर पर अधिक प्रासंगिकता, दक्षता और प्रभाव सुनिश्चित होता है।
- लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देना: निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को सहायता प्रदान करने तथा 'सरपंच पति' जैसे मुद्दों का समाधान करने के लिये महिला संसाधन केंद्रों की स्थापना करके पंचायती राज में महिलाओं की स्थिति पर वर्ष 2013 में गठित समिति की सिफारिशों को लागू करना।
- लैंगिक बजटिंग को संस्थागत रूप प्रदान कर ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (GPDPs) में लैंगिक रूप से वर्गीकृत आँकड़ों को शामिल करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष आने वाली प्रणालीगत बाधाओं पर चर्चा कीजिये तथा उन्हें ज़मीनी स्तर पर विकास के लिये सशक्त बनाने हेतु सुधारों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है:(2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में स्थानीय सरकार के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों की खोज कर सकती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2018) प्रश्न. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन-परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (मुख्य परीक्षा, 2022) |