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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग

  • 27 Oct 2025
  • 75 min read

प्रिलिम्स के लिये: क्लाउड सीडिंग, पार्टिकुलेट मैटर, इंडो-गैंगेटिक मैदान, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

मेन्स के लिये: पर्यावरण प्रबंधन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भारत में शहरी वायु प्रदूषण और सतत् विकास।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के साथ मिलकर क्लाउड सीडिंग के प्रयोग शुरू किये हैं, ताकि पश्च-मानसून मौसम में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटा जा सके।

  • हालाँकि, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पश्च-मानसून अवधि में वर्षा वाले मेघों की अनुपस्थिति वैज्ञानिक रूप से समय को अनुपयुक्त बनाती है, जिससे इस पहल की प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न होता है।

क्लाउड सीडिंग क्या है?

  • परिचय: क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा मौसम में कृत्रिम परिवर्तन कर वर्षण में वर्द्धन करना है। इसका उद्देश्य उन मेघों से अधिक वर्षा प्राप्त करना होता है जो पहले से ही आकाश में मौजूद होते हैं।
  • कार्यप्रणाली: इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड (नमक) या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) जैसे पदार्थों को वायुयानों या अन्य माध्यमों से मेघों में निर्मुक्त किया जाता है।
    • ये सूक्ष्म कण मेघ संघनन नाभिक (CCN) या हिम नाभिक (IN) की तरह कार्य करते हैं — यानी बर्फ जैसी संरचना बनाकर मेघों में मौजूद बहुत ठंडे जलकणों को जमने के लिये प्रेरित करते हैं।
    • धीरे-धीरे ये बर्फ के क्रिस्टल बड़े और भारी हो जाते हैं और आपस में संयोजित होकर नीचे गिरते हैं, जिससे वर्षण या हिमपात होता है।
    • क्लाउड सीडिंग नए मेघ उत्पन्न नहीं कर सकती, यह केवल तब कार्य करती है जब पहले से बने मेघों में पर्याप्त आर्द्रता मौजूद हो।
  • भारत और विश्व में क्लाउड सीडिंग: भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) ने क्लाउड एरोसोल इंटरेक्शन एंड पार्टिसिपेशन एनहांसमेंट एक्सपेरिमेंट (CAIPEEX) के तहत इस विषय पर कई अध्ययन किये हैं।
    • वर्ष 2009 से 2019 के बीच चरणों में किये गए इन प्रयोगों से यह पाया गया कि अनुकूल परिस्थितियों में वर्षा में लगभग 46% तक की वृद्धि की जा सकती है।
    • महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने सूखा राहत के लिये क्लाउड सीडिंग के साथ प्रयोग किये हैं।
    • चीन बड़े आयोजनों (जैसे 2008 बीजिंग ओलंपिक) से पहले मौसम नियंत्रण के लिये व्यापक रूप से क्लाउड सीडिंग का उपयोग करता है।
    • UAE और सऊदी अरब भी जल की कमी से निपटने के लिये नियमित रूप से क्लाउड सीडिंग तकनीक का उपयोग करते हैं।
  • क्लाउड सीडिंग के उपयोग: सूखा-प्रवण या शुष्क क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि करना
    • वायु प्रदूषण को कम करना — प्रदूषकों को वर्षा के माध्यम से वायुमंडल से बाहर निकालकर (जैसा कि दिल्ली में प्रस्तावित है)। 
    • हवाई अड्डों या राजमार्गों के पास कोहरे को छाँटना, ताकि दृश्यता में सुधार हो सके।
    • ओलावृष्टि को नियंत्रित करना या कृषि उद्देश्यों के लिये मौसम में परिवर्तन करना

वायु प्रदूषण को कम करने में क्लाउड सीडिंग के उपयोग की सीमाएँ क्या हैं?

  • वर्षा वाले मेघों की कमी: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अक्तूबर से दिसंबर की अवधि को उत्तर-पूर्व मानसून या मानसून के निवर्तन की अवधि माना जाता है। इस दौरान मानसूनी मेघ और निम्न दाब प्रणाली पहले ही पीछे हट चुकी होती हैं, जिसके कारण बारिश लाने वाले मेघों की संख्या बहुत कम हो जाती है।
    • इस दौरान वातावरण प्रायः शुष्क और स्थिर होता है, जिसमें मेघ बनने के लिये आवश्यक ऊर्ध्वाधर गति बहुत सीमित होती है।
    • यहाँ तक कि जब मेघ मौजूद भी होते हैं, तब भी उनकी संरचना, तापमान और आर्द्रता स्तर क्लाउड सीडिंग के लिये उपयुक्त होनी चाहिये, क्योंकि क्लाउड सीडिंग केवल प्राकृतिक रूप से बने, पर्याप्त आर्द्रता वाले मेघों पर ही कार्य करती है।
  • पश्चिमी विक्षोभों पर निर्भरता: इस अवधि के दौरान उत्तर भारत में होने वाली वर्षा प्रायः पश्चिमी विक्षोभों (जो मौसम प्रणालियाँ भूमध्यसागर क्षेत्र से उत्पन्न होती हैं) के कारण होती है।
    • ये विक्षोभ अनियमित और अप्रत्याशित होते हैं, जिसके कारण क्लाउड सीडिंग अभियानों की अग्रिम योजना बनाना कठिन हो जाता है।
  • सीमित और अस्थायी प्रभाव: क्लाउड सीडिंग से उत्पन्न कोई भी वर्षा केवल अल्पकालिक राहत प्रदान करती है, क्योंकि यह अस्थायी रूप से वायुमंडल से पार्टिकुलेट मैटर को हटा देती है। परंतु जैसे ही उत्सर्जन जारी रहता है, प्रदूषण का स्तर पुन: बढ़ जाता है।
  • पर्यावरणीय जोखिम: सीडिंग में प्रयुक्त रासायनिक पदार्थ जैसे सिल्वर आयोडाइड मृदा और जल में एकत्रित हो सकते हैं। हालाँकि इनके दीर्घकालिक प्रभावों पर अभी भी विवाद बना हुआ है।
  • जवाबदेही का जोखिम: यदि क्लाउड सीडिंग के दौरान बाढ़ या अत्यधिक वर्षा होती है तो जनता इस हस्तक्षेप को दोष दे सकती है, चाहे वह वास्तविक कारण हो या नहीं।
    • जवाबदेही के लिये कोई स्पष्ट रूपरेखा मौजूद नहीं है, जिससे नुकसान की स्थिति में ज़िम्मेदारी तय करना कठिन हो जाता है।
  • संसाधनों का गलत आवंटन: क्षेत्र-विशिष्ट वैज्ञानिक आँकड़ों की अनुपलब्धता के कारण क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता सीमित रहती है, जिससे इसके परिणामों का मूल्यांकन करना या निवेश को उचित ठहराना कठिन हो जाता है। इससे वित्तीय संसाधन प्रमाण-आधारित और प्रभावी समाधानों से हटकर अन्य दिशाओं में उपयोग हो जाते हैं।

दिल्ली में वायु प्रदूषण के लगातार कारण क्या हैं?

  • वाहन उत्सर्जन: दिल्ली में 1.2 करोड़ से अधिक वाहन पंजीकृत हैं, जिससे यह देश के उन क्षेत्रों में शामिल हैं जहाँ सबसे अधिक वाहन हैं।
    • पेट्रोल और डीजल इंजन से निकलने वाले धुएँ से पार्टिकुलेट मैटर (PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड्स और कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है, जो शहरी स्मॉग का मुख्य कारण है।
  • फसल के अवशेष जलाना: पड़ोसी राज्य पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से निकलने वाला धुआँ हर सर्दी में दिल्ली की तरफ बहता है, जिससे NCR क्षेत्र में PM2.5 स्तर में काफी वृद्धि होती है।
  • औद्योगिक और निर्माण प्रदूषण: लगातार चल रहे निर्माण और तोड़फोड़ की गतिविधियों से बड़ी मात्रा में धूल और निलंबित कण निकलते हैं। कमज़ोर धूल नियंत्रण उपाय स्थानीय वायु गुणवत्ता को और खराब कर देते हैं।
    • दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में, जैसे बवाना और वज़ीरपुर, छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों में अक्सर कोयला, बायोमास या फर्नेस ऑयल जैसे डर्टी फ्यूल्स का उपयोग किया जाता है, जो हानिकारक उत्सर्जन को बढ़ाते हैं।
  • मौसम और भौगोलिक कारक: सर्दियों में कमज़ोर हवाएँ, कम तापमान और तापमान व्युत्क्रमण (Temperature Inversion) की वजह से प्रदूषक हवा में ऊपर उठने के बजाय सतह के पास फँस जाते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है।
    • शहर की स्थिति इंडो-गैंगेटिक मैदान में होने के कारण वायु परिसंचरण सीमित हो जाता है, जिससे प्रदूषक जमा हो जाते हैं और प्रदूषण बढ़ जाता है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण संकट के स्थायी समाधान क्या हैं?

  • उत्सर्जन नियंत्रण: वाहनों के लिये सख्त नियम लागू करना और बेहतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर तथा जागरूकता अभियान के साथ इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन योजना (EMPS) 2024 के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देना।
  • औद्योगिक और ऊर्जा नियंत्रण: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत निगरानी को मज़बूत करना, सख्त ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान लागू करना और NCR के पास कोयला आधारित पावर प्लांट को चरणबद्ध तरीके से बंद करना।
  • अपशिष्ट प्रबंधन: खुले में अपशिष्ट जलाने पर प्रतिबंध लगाना, अपशिष्ट के पृथक्करण और पुनर्चक्रण को सुधारें और बेहतर परिणामों के लिये सूरत के क्लीन कंस्ट्रक्शन हैंडबुक और अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति (जिससे वर्ष 2015 से 2020 के बीच खुले में अपशिष्ट जलाने की दर 25% से घटकर 2% हो गई) और इंदौर की अपशिष्ट प्रणाली जैसे मॉडल अपनाएँ।
  • फसल अवशेष प्रबंधन: हैप्पी सीडर (Happy Seeder) और सब्सिडी वाले फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) मशीनों को बढ़ावा देना, ताकि पराली जलाने से बचा जा सके और सतत् कृषि के अभ्यास को प्रोत्साहित किया जा सके।
  • हरित अवसंरचना: शहरी जंगलों, पार्कों और ग्रीन बेल्ट का विस्तार करना ताकि प्रदूषकों को अवशोषित किया जा सके तथा गर्मी व धूल को कम किया जा सके। 
  • सार्वजनिक भागीदारी: नागरिकों को कारपूल करने, अपशिष्ट कम करने, ऊर्जा की बचत करने और वायु गुणवत्ता संबंधी सूचनाओं का पालन करने के लिये प्रेरित करना।

निष्कर्ष

क्लाउड सीडिंग मौसम बदलने के लिये एक आशाजनक लेकिन वैज्ञानिक रूप से अस्थिर उपकरण है। यह जल प्रबंधन प्रयासों को बढ़ावा देने या अस्थायी रूप से प्रदूषण को कम करने में सहायक हो सकता है, लेकिन यह संरचनात्मक पर्यावरणीय सुधारों का विकल्प नहीं है।

भारत के लिये प्राथमिकता सतत् जल प्रबंधन, उत्सर्जन में कमी और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने पर बनी रहनी चाहिये, न कि अल्पकालिक मौसम नियंत्रण उपायों पर निर्भर रहने पर।

दृष्टि मेंस प्रश्न:

प्रश्न.  क्लाउड सीडिंग एक अस्थायी उपाय प्रदान करती है लेकिन भारत की वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं है। चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. क्लाउड सीडिंग क्या है?

यह एक मौसम बदलने वाली तकनीक है जिसमें वर्षा बढ़ाने के लिये बादलों में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस जैसे पदार्थों का छिड़काव किया जाता है।

2. इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम (EMPS) 2024 का उद्देश्य क्या है?
इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने में तेज़ी लाना और शहरी हवा प्रदूषण में योगदान देने वाले वाहनों से होने वाले एमिशन को कम करना।

3. हैप्पी सीडर मशीन का इस्तेमाल किस लिये किया जाता है?

यह पराली जलाए बिना सीधे मिट्टी में बीज बोकर फसल के बचे हुए हिस्से का इन-सीटू मैनेजमेंट करने में मदद करता है।

4. ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) क्या है?
यह दिल्ली-NCR क्षेत्र में लागू की गई आपातकालीन उपायों का एक समूह है, जिसका उद्देश्य वायु गुणवत्ता स्तर की गंभीरता के आधार पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्फेट वायुविलय अंतःक्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं?

(a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये
(b)उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता और तीव्रता को कम करने के लिये
(c) 
पृथ्वी पर सौर पवनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये
(d) भूमंडलीय तापन को कम करने के लिये

उत्तर: (d)

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