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ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

प्रारंभिक परीक्षा

लघु वित्त बैंक (SFBs)

स्रोत: BS

चर्चा मे क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने जन लघु वित्त बैंक (SFB) के यूनिवर्सल बैंक में परिवर्तन के आवेदन को SFB के लिये वर्ष 2024 के दिशा-निर्देशों के तहत उल्लिखित पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करने का हवाला देते हुए वापस कर दिया है।

लघु वित्त बैंक क्या है?

  • परिचय: लघु वित्त बैंक (SFB) भारत में वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करने के लिये स्थापित निजी संस्थाएँ हैं। ये छोटे किसानों, सूक्ष्म उद्योगों और अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों जैसे वंचित और कम सेवा प्राप्त समूहों को जमा और ऋण सहित बुनियादी बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  • उत्पत्ति: वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2014-15 के केंद्रीय बजट में घोषित, यह विचार वर्ष 2009 की रघुराम राजन समिति की "अ हंड्रेड स्माल स्टेप्स" रिपोर्ट से प्रेरित है।
  • पात्रता मानदंड: बैंकिंग और वित्त में 10 वर्षों के अनुभव वाले निवासी व्यक्ति/पेशेवर।
  • पूंजीगत आवश्यकताएँ: प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों को लघु वित्त बैंकों में परिवर्तित करने के लिये, निवल मूल्य की प्रारंभिक आवश्यकता ₹100 करोड़ होगी, जिसे बढ़ाकर ₹200 करोड़ करना होगा।
    • मिनिमम पेड-अप वोटिंग इक्विटी पूंजी या निवल मूल्य ₹200 करोड़ निर्धारित किया गया है।
    • प्रमोटर का प्रारंभिक अंशदान 40% होगा, जिसे 12 वर्षों के भीतर घटाकर 26% तक लाना आवश्यक है।
    • अन्य निजी क्षेत्र के बैंकों की भाॉंति इसमें विदेशी निवेश की भी अनुमति प्रदान की गई है।
  • विनियामक और विवेकपूर्ण मानदंड: भुगतान बैंकों के विपरीत, SFB पूर्ण बैंक हैं और CRR और SLR रखरखाव जैसे RBI के विवेकपूर्ण मानदंडों का पालन करते हैं।
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत विनियमित और भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पर्यवेक्षण किया जाता है।
  • परिचालन अधिदेश: समायोजित निवल बैंक ऋण (ANBC) का 75% प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) को आवंटित करना होगा।
    • कम-से-कम 50% ऋण का मूल्य 25 लाख रुपये तक होना चाहिये।
    • कोई भौगोलिक प्रतिबंध नहीं है, लेकिन 25% शाखाएँ बैंकिंग सुविधा रहित ग्रामीण केंद्रों में होनी चाहिये।
    • निम्न बैंकिंग सुविधा वाले राज्यों/ज़िलों में बैंक स्थापित करने की प्राथमिकता।
  • अनुमत गतिविधियाँ: यह आरबीआई और क्षेत्रीय नियामक अनुमोदन के साथ म्यूचुअल फंड यूनिट, बीमा और पेंशन उत्पाद वितरित कर सकता है।
    • विदेशी मुद्रा में श्रेणी II प्राधिकृत व्यापारी बन सकते हैं।
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय गतिविधियों के लिये सहायक कंपनियाँ स्थापित नहीं की जा सकतीं।

लघु वित्त बैंकों (SFB) को यूनिवर्सल बैंकों में परिवर्तित करने हेतु RBI के वर्ष 2024 के दिशा-निर्देश

  •  पात्र आवेदक: केवल वे सूचीबद्ध लघु वित्त बैंक आवेदन करने के पात्र होंगे जो यूनिवर्सल बैंक में रूपांतरण की शर्तें पूरी करते हैं।
  • वित्तीय आवश्यकताएँ: कम से कम 1,000 करोड़ रुपए की निवल संपत्ति होनी चाहिये, अनुसूचित बैंक का दर्जा होना चाहिये और कम से कम पाँच वर्षों का लाभकारी संचालन रिकॉर्ड होना चाहिये।
  • परिसंपत्ति गुणवत्ता मानदंड: विगत दो वर्षों के लिये सकल NPA को 3% से नीचे और निवल NPA को 1% से नीचे निरंतर बनाए रखना चाहिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. लघु वित्त बैंक (SFB) क्या है?

लघु वित्त बैंक (SFB) भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये स्थापित निजी संस्थाएँ हैं। ये छोटे किसानों, सूक्ष्म उद्योगों और अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यमों जैसे वंचित और कम सेवा प्राप्त समूहों को जमा और ऋण सहित बुनियादी बैंकिंग सुविधाएँ प्रदान करते हैं।

2. SFB की शुरुआत कब और किसकी सिफारिश पर हुई थी?

वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2014-15 के केंद्रीय बजट में घोषित, यह विचार वर्ष 2009 की रघुराम राजन समिति की "अ हंड्रेड स्माल स्टेप्स" रिपोर्ट से प्रेरित है।

3. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के 2024 दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसी SFB के यूनिवर्सल बैंक में रूपांतरण के लिये मुख्य पात्रता मानदंड क्या हैं?

SFB को सूचीबद्ध किया जाना चाहिये, इसकी न्यूनतम निवल संपत्ति ₹1,000 करोड़ होनी चाहिये, 5 वर्षों का लाभकारी ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिये और इसे दो लगातार वर्षों के लिये सकल NPA <3% और निवल NPA <1% बनाए रखना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. भारत में लघु वित्त बैंकों (एस.एफ.बी.) की स्थापना का उद्देश्य क्या है? (2017) 

  1. लघु व्यवसाय इकाइयों को ऋण प्रदान करना।  
  2.  लघु एवं सीमांत किसानों को ऋण उपलब्ध कराना। 
  3.  युवा उद्यमियों को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवसाय स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करना। 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)


रैपिड फायर

न्यायमूर्ति सूर्यकांत: भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश

स्रोत: द हिंदू

न्यायमूर्ति सूर्यकांत को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्त किया गया है, जिन्होंने न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण (B.R) गवई का स्थान लिया है।

  • नियुक्ति: यह अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 124(2) के तहत केंद्रीय विधि मंत्रालय के न्याय विभाग द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद जारी की गई थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश

  • नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, जिनमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं, की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 124(2) के तहत की जाती है।
    • निष्कासित CJI वरिष्ठतम सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सेवा की अवधि के आधार पर अगले CJI के रूप में अनुशंसा करते हैं (यह एक पारंपरिक प्रथा है, कानूनी आवश्यकता नहीं)।
  • योग्यता: CJI के रूप में योग्य होने के लिये, व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिये, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में 5 वर्षों तक सेवा की हो या 10 वर्षों तक अधिवक्ता के रूप में कार्य किया हो या राष्ट्रपति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद् होना चाहिये।
  • कार्यकाल: CJI का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है, जिसमें कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता, क्योंकि यह न्यायाधीश की नियुक्ति और सेवानिवृत्ति की तिथि पर निर्भर करता है।
    • मुख्य न्यायाधीश को केवल राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के पश्चात् ही हटाया जा सकता है।

और पढ़ें: भारत में न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली

रैपिड फायर

बायोसिमिलर

स्रोत: ET

अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने बायोसिमिलर दवाओं के विकास की लागत और समय को कम करने के उद्देश्य से नए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस कदम से उन भारतीय दवा कंपनियों को महत्त्वपूर्ण लाभ होने की उम्मीद है, जिन्होंने बायोसिमिलर विकास में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।

  • इससे तुलनात्मक प्रभावकारिता परीक्षणों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, जिससे प्रति परियोजना 20-25 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी तथा विकास की समयसीमा 5-7 वर्ष से घटकर 3-4 वर्ष रह जाएगी।

बायोसिमिलर

  • बायोसिमिलर एक ऐसी जैविक दवा होती है जो पहले से स्वीकृत संदर्भ जैविक उत्पाद के समान होती है।
    • हालाँकि, यह  जेनेरिक दवा नहीं है। जेनेरिक दवाएँ जहाँ सरल रासायनिक प्रतियाँ होती हैं, वहीं बायोसिमिलर जीवित कोशिकाओं से तैयार किए गए जटिल प्रोटीन होते हैं, जो मूल जैविक दवा से अत्यंत समान तो होते हैं, परंतु पूरी तरह समान नहीं।
  • संरचना: बायोसिमिलर और उनके संदर्भ बायोलॉजिक्स दोनों जीवित स्रोतों जैसे कोशिकाओं, ऊतकों, सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया या खमीर) या प्रोटीन और शर्करा जैसे प्राकृतिक पदार्थों के संयोजन से बने होते हैं।
  • लागत लाभ: बायोसिमिलर आमतौर पर मूल बायोलॉजिक्स की तुलना में कम लागत पर उपलब्ध होते हैं, जिससे मरीजों को किफायती उपचार तक पहुँच में सुधार होता है।
  • भारत की स्थिति: भारतीय फार्मा कंपनियों के पास 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक बायोसिमिलर बाज़ार का 5% से कम हिस्सा है, लेकिन वे राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन और तेलंगाना में जीनोम वैली विस्तार के माध्यम से विस्तार कर रहे हैं।
    • भारतीय बायोसिमिलर निर्यात, जिसका वर्तमान मूल्य 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, के वर्ष 2030 तक 5 गुना बढ़कर 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है, जो वैश्विक बाज़ार का 4% होगा तथा वर्ष 2047 तक 30-35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • अनुप्रयोग: बायोसिमिलर कैंसर, मधुमेह और स्वप्रतिरक्षी विकारों सहित विभिन्न दीर्घकालिक रोगों के उपचार के लिये सुरक्षित और प्रभावी हैं।

और पढ़ें: फार्मा उद्योग को आकार देने वाली प्रौद्योगिकियाँ

रैपिड फायर

चीनी दुर्लभ मृदा चुंबकों तक भारत की पहुँच

स्रोत: IE

भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और ऑटोमोबाइल उद्योगों को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि चीन द्वारा निर्यात प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के बाद भारतीय कंपनियों को रेयर अर्थ मैग्नेट (दुर्लभ मृदा चुंबक) आयात करने के लिये पहले सशर्त लाइसेंस जारी किये गए हैं।

  • निर्यात प्रतिबंध और इसका प्रभाव: इससे पहले अप्रैल 2025 में, चीन ने दुर्लभ मृदा चुंबकों और संबंधित सामग्रियों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे वैश्विक ऑटोमोटिव आपूर्ति शृंखला बाधित हो गई थी।
    • अमेरिका और चीन के बीच हुए एक व्यापार समझौते के तहत, बीजिंग ने इन निर्यात नियंत्रणों को एक वर्ष के लिये अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है, जिससे भारत जैसे देशों को चयनित रूप से निर्यात  की अनुमति मिल गई है।
    • इन प्रतिबंधों के कारण भारत के उभरते हुए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बाज़ार के समक्ष आपूर्ति की कमी, उत्पादन में देरी और लागत वृद्धि जैसी चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही थीं, क्योंकि यह बाज़ार नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट्स पर अत्यधिक निर्भर हैं।
      • NdFeB चुम्बक स्थायी चुंबकों का सबसे मज़बूत प्रकार हैं जो उच्च तापमान (150-200°C) पर कार्य करते हैं।
      • NdFeB चुम्बक ईवी मोटर, पावर स्टीयरिंग, ब्रेकिंग और वाइपर सिस्टम के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जिससे ये भारत की इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं।
  • लाइसेंस प्राप्त भारतीय कंपनियाँ: ये लाइसेंस सख्त निर्यात नियंत्रण शर्तों के साथ आते हैं, जो इनका उपयोग वाहन घटकों जैसे गैर-रक्षा अनुप्रयोगों तक सीमित रखते हैं।
  • नीतिगत निहितार्थ: वैश्विक दुर्लभ मृदा चुंबक आपूर्ति पर चीन का लगभग एकाधिकार है, जिससे आयात विविधीकरण भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिये एक रणनीतिक चिंता का विषय बन गया है।
    • यह स्थिति आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलों के अनुरूप, भारत में दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण और चुंबक निर्माण की घरेलू क्षमता विकसित करने की आवश्यकता को उजागर करती है।
    • वर्तमान में भारत वियतनाम और ब्राज़ील जैसे देशों से अल्पकालिक आयात की व्यवस्था कर रहा है, जबकि प्रोत्साहनों और वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से आने वाले 3–5 वर्षों में घरेलू उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य रखता है।

और पढ़ें:  रेयर अर्थ मैग्नेट (दुर्लभ मृदा चुंबक)


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