जैव विविधता और पर्यावरण
बढ़ते समुद्र स्तर के संकेतक के रूप में प्रवाल भित्तियाँ
- 03 Sep 2025
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प्रिलिम्स के लिये: प्रवाल भित्तियाँ, प्रवाल विरंजन, समुद्री उष्ण तरंगें, अल नीनो, शैवाल प्रस्फुटन, मैंग्रोव, प्रवाल माइक्रोएटोल्स (छोटे प्रवाल चट्टान समूह)
मेन्स के लिये: प्रवाल भित्तियों और प्रवाल विरंजन के बारे में, समुद्र स्तर में वृद्धि के प्राकृतिक रिकॉर्डर के रूप में प्रवाल सूक्ष्म-एटोल, समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण और प्रभाव, आगे की राह
चर्चा में क्यों?
मालदीव में प्रवाल माइक्रोएटोल्स पर किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि मध्य हिंद महासागर में समुद्र स्तर में वृद्धि तय समय-सीमा की तुलना में पहले शुरू हुई और अधिक तेज़ी से आगे बढ़ी। यह अध्ययन इस धारणा को चुनौती देता है कि समुद्र स्तर में महत्त्वपूर्ण वृद्धि 1990 के दशक में शुरू हुई थी। इससे जलवायु विज्ञान और तटीय नीतियों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
प्रवाल माइक्रोएटोल्स समुद्र स्तर में वृद्धि के प्राकृतिक अभिलेखक (रिकॉर्डर) कैसे हैं?
- प्राकृतिक अभिलेखक: प्रवाल माइक्रोएटोल्स डिस्क के आकार की प्रवाल कॉलोनियाँ होती हैं, जो ऊपर की ओर बढ़ना तब बंद कर देती हैं जब उनकी वृद्धि को न्यूनतम ज्वार स्तर (lowest tide levels) द्वारा सीमित कर दिया जाता है। इनकी ऊपरी सतह समुद्र स्तर में दीर्घकालिक परिवर्तनों को सीधे दर्शाती है, जिससे ये पिछले समुद्र स्तरों के प्राकृतिक अभिलेखक (रिकॉर्डर) बन जाती हैं।
- दीर्घकालिक स्थायित्व और सटीकता: प्रवाल माइक्रोएटोल्स दशकों या सदियों तक जीवित रह सकते हैं, जिससे वे समुद्र स्तर में होने वाले उतार-चढ़ाव का उच्च-रिज़ॉल्यूशन और निरंतर डेटा प्रदान कर सकते हैं।
- मालदीव के हुवाधू एटोल में माहुटीगाला रीफ पर किये गए अध्ययन में वर्ष 1930 से 2019 तक समुद्र के स्तर के परिवर्तनों को मापने के लिये पोरिटेस माइक्रोएटोल का अध्ययन किया गया।
- हिंद महासागर में समुद्र स्तर की गति में वृद्धि: एक शोध अध्ययन के अनुसार, पिछले लगभग 90 वर्षों में हिंद महासागर में समुद्र स्तर में लगभग 0.3 मीटर की वृद्धि दर्ज की गई है, जो समुद्र स्तर वृद्धि की दर में तेज़ी को दर्शाता है।
- वृद्धि की दरें:
- 1930–1959: 1–1.84 मिमी/वर्ष
- 1960–1992: 2.76–4.12 मिमी/वर्ष
- 1990–2019: 3.91–4.87 मिमी/वर्ष
- वृद्धि की दरें:
- प्रमुख निष्कर्ष: अनुसंधान से यह स्पष्ट हुआ है कि इस क्षेत्र में समुद्र स्तर में वृद्धि की शुरुआत 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में ही हो गई थी, जबकि पूर्व में यह अनुमान लगाया गया था कि यह वृद्धि वर्ष 1990 के आस-पास शुरू हुई थी।
- पिछले 50 वर्षों में मालदीव, लक्षद्वीप और चागोस में समुद्र के स्तर में 30-40 सेमी. की वृद्धि हुई है, जिससे बाढ़ और तटीय कटाव का खतरा बढ़ गया है।
- प्रवाल वृद्धि: प्रवाल माइक्रोएटोल्स पर्यावरणीय कारकों जैसे- एल नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) और 18.6-वर्षीय चंद्र चक्र से प्रभावित होते हैं।
- ये कारक प्रवाल (कोरल) के विकास के पैटर्न को प्रभावित कर सकते हैं, जो बदले में समुद्र स्तर में उतार-चढ़ाव के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं।
- प्रवाल माइक्रोएटोल्स में विकास की परतों (ग्रॉफ्थ बैंड्स) का अध्ययन करके, वैज्ञानिक समुद्र स्तर के इतिहास को पुनर्निर्मित कर सकते हैं, जिससे वे अतीत के उतार-चढ़ाव को ट्रैक कर पाते हैं और मालदीव तथा लक्षद्वीप जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में समुद्र स्तर वृद्धि की गति को समझ सकते हैं।
समुद्र-स्तर वृद्धि (SLR) क्या है और द्वीप राष्ट्रों पर इसका प्रभाव क्या है?
- समुद्र-स्तर वृद्धि (SLR) से तात्पर्य महासागर के स्तर में क्रमिक, दीर्घकालिक वृद्धि से है।
- जबकि वैश्विक औसत वृद्धि लगभग 3.2 मिमी. प्रतिवर्ष है, भारतीय महासागर में 3.3 मिमी. प्रतिवर्ष की तीव्र दर से वृद्धि हो रही है, जिससे मालदीव, लक्षद्वीप और चागोस द्वीपसमूह जैसे क्षेत्रों में प्रवाल विरंजन जैसी चुनौतियाँ और भी गंभीर हो रही हैं।
- समुद्र-स्तर वृद्धि के कारण:
- हिमनदों और बर्फ की चादरों का पिघलना
- ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने से महासागरों में मीठे पानी की महत्त्वपूर्ण मात्रा बढ़ जाती है। वर्ष 2005-2013 के बीच, पिघलते ग्लेशियरों ने समुद्र-स्तर की वृद्धि में तापीय विस्तार की तुलना में लगभग दोगुना योगदान दिया।
- विशेष रूप से, वर्ष 1992 से 2016 के बीच ग्रीनलैंड के हिमावरण की हानि सात गुना बढ़ गई और अंटार्कटिका में यह हानि लगभग चार गुना रही।
- समुद्री जल का तापीय प्रसार:
- जैसे-जैसे पृथ्वी की जलवायु उष्ण होती है, समुद्री जल ऊष्मा को अवशोषित करता है, जिससे उसका विस्तार होता है और महासागरों का कुल आयतन बढ़ जाता है। यह तापीय प्रसार (Thermal Expansion) समुद्र-स्तर वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- भूजल क्षय और स्थल जल परिवर्तन:
- भूजल का क्षय, साथ ही जलभृतों (Aquifers), नदियों, झीलों और मृदा की नमी में होने वाले परिवर्तन, अतिरिक्त जल को समुद्रों की ओर प्रवाहित करते हैं, जिससे समुद्र-स्तर वृद्धि और अधिक बढ़ जाती है।
- वर्ष 1880 से अब तक वैश्विक समुद्र-स्तर लगभग 21-24 सेमी. बढ़ चुका है, जबकि वर्ष 2023 में इसका स्तर वर्ष 1993 की तुलना में 101.4 मिमी. अधिक दर्ज किया गया।
- हिमनदों और बर्फ की चादरों का पिघलना
- द्वीपीय देशों पर SLR का प्रभाव:
- भूमि और आवास की हानि: बढ़ता समुद्र तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देता है, स्वच्छ जल का लवणीकरण करता है और आवास नष्ट करता है। उदाहरण: मालदीव और तुवालु अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं। कोरल ब्लीचिंग तथा मैंग्रोव के क्षय से प्राकृतिक सुरक्षा और कमज़ोर हो जाती है।
- जल और खाद्य असुरक्षा: लवणीय जल के अतिक्रमण से जलभृत दूषित होते हैं और कृषि को नुकसान पहुँचाती है, वहीं प्रवाल भित्तियों के क्षरण से मछली भंडार घट जाते हैं। उदाहरण: किरिबाती और मार्शल द्वीप गंभीर पेयजल संकट का सामना कर रहे हैं।
- चरम जलवायु घटनाएँ: तीव्र चक्रवात, तूफान और बाढ़ अवसंरचना व अर्थव्यवस्था को गंभीर क्षति पहुँचाते हैं। उदाहरण: वर्ष 2019 में आए हरिकेन डोरियन के कारण बहामास को 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की क्षति हुई।
- सामाजिक-आर्थिक व्यवधान: समुद्र तट का अपरदन और प्रवाल भित्तियों का विनाश पर्यटन आय को कम कर देता है, वहीं तूफानी क्षति से विकास कार्यों के लिये निर्धारित बजट प्रभावित हो जाता है। उदाहरण: बारबाडोस में पर्यटन निरंतर गिरावट का सामना कर रहा है। संपूर्ण समुदाय विस्थापित हो सकता है, जिससे जलवायु शरणार्थी उत्पन्न हो सकते हैं।
- स्वास्थ्य और सांस्कृतिक जोखिम: बढ़ते तापमान के कारण वेक्टर जनित रोग (डेंगू, चिकनगुनिया) फैलते हैं, जबकि जबरन पलायन के कारण सांस्कृतिक क्षरण और पहचान का ह्रास होता है।
निष्कर्ष
कोरल माइक्रोएटोल्स पर किये गए शोध से पता चलता है कि मध्य हिंद महासागर में समुद्र-स्तर की वृद्धि पहले ही शुरू हो गई थी और यह पहले की अपेक्षा अधिक तेज़ी से बढ़ी। मालदीव और लक्षद्वीप जैसे क्षेत्रों के लिये यह इस बात पर बल देता है कि वहाँ जलवायु-अनुकूल (climate-resilient) अवसंरचना, सतत् तटीय नीतियाँ, उत्सर्जन में कमी और परिष्कृत समुद्र-स्तर पूर्वानुमानों के आधार पर बेहतर अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित की जाएँ।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. कोरल माइक्रोएटोल जैसे प्राकृतिक रिकॉर्डर जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर में वृद्धि को समझने में आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों का पूरक कैसे बन सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- विश्व की सर्वाधिक प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय सागर जलों में मिलती हैं।
- विश्व की एक तिहाई से अधिक प्रवाल भित्तियाँ ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस के राज्य-क्षेत्रों में स्थित हैं।
- उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की अपेक्षा, प्रवाल भित्तियाँ कहीं अधिक संख्या में जंतु संघों का परपोषण करती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
- कच्छ की खाड़ी
- मन्नार की खाड़ी
- सुंदरबन
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019)
प्रश्न. जलवायु परिवर्तन और समुद्र स्तर में वृद्धि कई द्वीप देशों के अस्तित्व को कैसे प्रभावित कर रही है? उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2025)