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जैव विविधता और पर्यावरण

लक्षद्वीप के प्रवाल आवरण में कमी

  • 31 Jul 2025
  • 76 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवाल भित्तियाँ, प्रवाल विरंजन, समुद्री ऊष्मा तरंगें, अल नीनो, शैवाल प्रस्फुटन, जैव-रॉक प्रौद्योगिकी, मैंग्रोव, समुद्री घास, समुद्री संरक्षित क्षेत्र

मेन्स के लिये:

प्रवाल भित्तियाँ और प्रवाल विरंजन के बारे में, प्रवाल विरंजन के कारण और इसके प्रभाव, प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के लिए आवश्यक रणनीतियाँ।

स्रोत: TH  

चर्चा में क्यों?

तीन प्रमुख एटाॅल अगत्ती, कदमत और कवरत्ती में प्रवाल स्वास्थ्य पर नज़र रखने वाले एक अध्ययन से चिंताजनक निष्कर्ष सामने आए हैं, जिसमें लक्षद्वीप रीफ में प्रवाल आवरण में 50% की गिरावट देखी गई है, जो वर्ष 1998 में 37.24% से घटकर 2022 में 19.6% हो गया है।

प्रवाल भित्तियों पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • प्रवाल आवरण में भारी गिरावट: वर्ष 1998, 2010 और 2016 में अल नीनो घटनाओं के कारण बार-बार आने वाली समुद्री हीटवेव और जलवायु परिवर्तन प्रवाल क्षय के मुख्य कारण हैं।
    • इन तनावों के कारण प्रवाल की रिकवरी धीमी हो गई है तथा कोरल ब्लीचिंग के बिना लगातार छह वर्षों के बाद ही इसमें सुधार हुआ है।
  • विशिष्ट प्रवाल प्रतिक्रिया समूह: प्रवालों ने ऊष्मा तरंगों के प्रभाव, पुनर्प्राप्ति दर, गहराई और तरंग जोखिम के आधार पर छह अलग-अलग प्रतिक्रिया पैटर्न प्रदर्शित किये।
    • जबकि प्रवाल बागवानी जैसे स्थानीय प्रयास पुनर्स्थापना में सहायक होते हैं, केवल वैश्विक उत्सर्जन कटौती ही रीफ्स को जीवित रहने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण पुनर्प्राप्ति समय प्रदान कर सकती है।

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प्रवाल भित्तियों के क्षय के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • समुद्र का बढ़ता तापमान: समुद्री ऊष्मा तरंगें प्रवालों और शैवाल के बीच सहजीवी संबंध को प्रभावित करती हैं, जिससे प्रवाल विरंजन होता है। जलवायु परिवर्तन और अल नीनो घटनाएँ समुद्र के तापमान में वृद्धि कर रही हैं, जिससे विरंजन अधिक बार और गंभीर हो रहा है
    • अत्यधिक पराबैंगनी (UV) विकिरण और तापीय तनाव प्रवालों पर ऊष्मा का प्रभाव और अधिक बढ़ा देते हैं तथा उन्हें व्हाइट बैंड रोग जैसी संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील बना देते हैं, जिससे भविष्य में विरंजन का खतरा और भी बढ़ जाता है।
  • महासागरीय अम्लीकरण: महासागरों द्वारा CO₂ के अवशोषण में वृद्धि से pH स्तर कम हो जाता है , जो प्रवाल कंकालों को कमज़ोर कर देता है तथा उनकी वृद्धि को धीमा कर देता है। 
    • इससे प्रवालों की कैल्शियम कार्बोनेट संरचना बनाने की क्षमता बाधित होती है, जिससे वे विरंजन के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
  • प्रदूषण और अपवाह: कृषि और शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला अपवाह जिसमें उर्वरक और मलजल शामिल हैं, शैवालों के विकास को बढ़ावा देता है जिससे प्रवालों का विरंजन होता है। तटीय विकास से उत्पन्न अवसादन सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध कर देता है, जिससे प्रवालों को जीवित रहने के लिये आवश्यक ऊर्जा नहीं मिल पाती।
  • मानवीय गतिविधियाँ: डायनामाइट या सायनाइड जैसी विनाशकारी मत्स्य पालन की विधियाँ प्रत्यक्ष रूप से प्रवाल की मृत्यु का कारण बनती हैं, जबकि लंगर डालना और स्नॉर्कलिंग/गोताखोरी जैसी पर्यटन गतिविधियाँ भी प्रवाल को नुकसान पहुँचती हैं।

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प्रवाल क्षय के क्या निहितार्थ हैं?

  • समुद्री जैवविविधता की हानि: प्रवाल भित्तियाँ 25% समुद्री जीवन का पोषण करती हैं, लेकिन विरंजन से प्रेरित प्रवाल मृत्यु से पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है, जिससे मछलियों की संख्या में कमी , प्रजातियों का विलुप्त होना और समुद्री खाद्य जाल में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है।
  • आर्थिक परिणाम: प्रवाल की कमी से मत्स्य भंडार कम हो सकता है, जिससे प्रवाल मत्स्य उद्योग और वैश्विक समुद्री खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। 
    • विरंजन से पर्यटन को भी नुकसान पहुँचता है, जिससे रोजगार में कमी आती हैं तथा चट्टान आधारित गतिविधियों पर निर्भर तटीय समुदायों की आर्थिक स्थिति खराब होती है।
  • तटीय सुरक्षा में कमी: प्रवाल भित्तियाँ प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य करती हैं तथा तटीय रेखाओं को कटाव, तूफानी लहरों और बाढ़ से बचाती हैं। 
    • इनके बिना, तटीय समुदायों, विशेष रूप से लक्षद्वीप और मालदीव जैसे निचले क्षेत्रों में, तूफान, समुद्र-स्तर में वृद्धि और महंगी कृत्रिम सुरक्षा से अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है।
  • वैज्ञानिक खोजों में गिरावट: प्रवाल भित्तियाँ कैंसर और गठिया जैसी बीमारियों के लिये संभावित दवाइयाँ प्रदान करती हैं, लेकिन विरंजन से अज्ञात प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं, जिससे भविष्य में चिकित्सा संबंधी अनुसंधान सीमित हो सकता हैं।
  • जल गुणवत्ता और जलवायु विनियमन: प्रवाल भित्तियाँ प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती हैं, जिसमें स्पंज जैसे जीव विषाक्त पदार्थों को हटाते हैं तथा प्रकाश संश्लेषक पौधों को सहारा देते हैं, जो CO₂ को अवशोषित और ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। 
    • जब प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो जाती हैं, तो उनके द्वारा निभाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ भी समाप्त हो जाती हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है, शैवाल की अत्यधिक वृद्धि होती है तथा महासागर के कार्बन चक्रण की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।

प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये विभिन्न पहल क्या हैं?

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति पहल (ICRI): यह प्रवाल भित्तियों और संबंधित पारिस्थितिकी प्रणालियों के संरक्षण के लिये समर्पित राष्ट्रों और संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी है। 
  • ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स (GFCR): यह एक मिश्रित वित्त मंच है जो प्रवाल भित्तियों की रक्षा और पुनर्स्थापना तथा आश्रित समुदायों को समर्थन प्रदान करने हेतु अनुदान और निजी पूंजी जुटाता है। 
    • यह पारिस्थितिक, सामाजिक और आर्थिक समुत्थानशीलता को आगे बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, सरकारों, परोपकारी संस्थाओं, निवेशकों और अन्य लोगों को एक साथ लाता है ।
  • तकनीकी हस्तक्षेप:
    • बायोरॉक प्रौद्योगिकी: बायोरॉक प्रौद्योगिकी एक नवीन खनिज अभिवृद्धि विधि है जो पानी के नीचे प्राकृतिक भवन संरचनाएं बनाती है , तथा प्रवाल पुनर्स्थापन में सहायता करती है (उदाहरण के लिए, कच्छ की खाड़ी में )।
    • बायोरॉक तकनीक: बायोरॉक प्रौद्योगिकी एक नवाचारपूर्ण खनिज संचयन विधि है, जो पानी के भीतर प्राकृतिक निर्माण संरचनाएँ तैयार करती है। यह प्रवाल पुनर्स्थापन में सहायक होती है, जिसका उपयोग कच्छ की खाड़ी में किया गया है।
    • सुपर कोरल: इन्हें उच्च तापमान के प्रति प्रतिरोध बढ़ाने के लिये मानव-सहायता प्राप्त विकास का उपयोग करके बाह्य-स्थाने प्रजनन के माध्यम से विकसित किया जाता है।
  • फ्रोज़ेन प्रवाल: वैज्ञानिकों ने प्रवाल लार्वा को अधिक प्रभावी ढंग से जमाकर संरक्षित करने के लिये क्रायोमेश प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है, जिससे दीर्घकालिक संरक्षण के लिये -196°C पर भंडारण संभव हो गया है ।

प्रवाल भित्तियों की सुरक्षा के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • जलवायु परिवर्तन से निपटना: महासागरों के तापमान में वृद्धि और अम्लता को रोकना, पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित 1.5°C लक्ष्य के अनुरूप नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन को कम करना। 
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण (जैसे, ग्रीन क्लाइमेट फंड) सुनिश्चित करना तथा स्वच्छ प्रौद्योगिकी तक पहुँच का विस्तार करना; CO₂ को अवशोषित करने और प्रवाल भित्तियों की रक्षा हेतु मैंग्रोव, समुद्री घास और साल्ट मर्शेस जैसे नीले कार्बन पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा करना।
  • स्थानीय तनावों को कम करना: कृषि अपवाह को कम करके और अपशिष्ट जल उपचार में सुधार करके प्रदूषण पर अंकुश लगाना चाहिये, ताकि शैवाल प्रस्फुटन और संदूषण से भित्तियों की रक्षा की जा सके। 
    • विनाशकारी मत्स्य पालन पर प्रतिबंध लगाना, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों को सख्ती से लागू करना तथा तटीय विकास को (विशेष रूप से खुदाई (ड्रेजिंग) और तटीय खनन पर प्रतिबंध लगाकर) नियंत्रित करना।
    • सक्रिय प्रवाल पुनर्स्थापन (Active Reef Restoration): ऊष्ण-प्रतिरोधी प्रवालों को उगाना और प्रतिरोपित करना, रीफ बॉल्स या 3D-मुद्रित आवासों को समुद्र में स्थापित करना तथा बढ़ते तापमान के अनुकूल ‘सुपर-कोरल’ विकसित करना।
    • समुदाय-आधारित संरक्षण: स्थानीय गाइडों को प्रवाल-सुरक्षित स्नॉर्कलिंग/डाइविंग प्रथाओं में प्रशिक्षित कर इको-पर्यटन को बढ़ावा देना तथा प्रवाल-अनुकूल सनस्क्रीन के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
      • मत्स्यन दबाव को कम करने हेतु जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) और प्रवाल निगरानी जैसे वैकल्पिक आजीविकाओं को समर्थन प्रदान करना।

निष्कर्ष:

लक्षद्वीप में प्रवालों पर हुई अध्ययन रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु-जनित हीटवेव के कारण प्रवाल भित्तियों में 50% तक गिरावट आई है। यह स्थिति न केवल जैवविविधता और तटीय अर्थव्यवस्थाओं को, बल्कि जलवायु अनुकूलन को भी गंभीर खतरे में डालती है। इस संकट से निपटने के लिये वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती अत्यंत आवश्यक है, साथ ही स्थानीय स्तर पर प्रवाल पुनर्स्थापन प्रयासों को भी तीव्र करना होगा। समाधान स्वरूप समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas - MPAs), गर्मी-सहिष्णु ‘सुपर-कोरल’ का विकास तथा प्रदूषण नियंत्रण जैसे उपायों को बड़े पैमाने पर लागू करना होगा, अन्यथा प्रवालों के पूर्ण विनाश की आशंका है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन प्रवाल भित्तियों के पारिस्थितिकी तंत्र को किस प्रकार प्रभावित करता है? उपयुक्त शमन रणनीतियाँ सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. विश्व की सर्वाधिक प्रवाल भित्तियाँ उष्णकटिबंधीय सागर जलों में मिलती हैं।  
  2.  विश्व की एक तिहाई से अधिक प्रवाल भित्तियाँ ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस के राज्य-क्षेत्रों में स्थित हैं।  
  3.  उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की अपेक्षा, प्रवाल भित्तियाँ कहीं अधिक संख्या में जंतु संघों का परपोषण करती हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)

  1. अंडमान और नोकोबार द्वीप समूह  
  2.  कच्छ की खाड़ी  
  3.  मन्नार की खाड़ी  
  4.  सुंदरबन

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स 

प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019)

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