रैपिड फायर
बायोसिमिलर
- 31 Oct 2025
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अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने बायोसिमिलर दवाओं के विकास की लागत और समय को कम करने के उद्देश्य से नए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इस कदम से उन भारतीय दवा कंपनियों को महत्त्वपूर्ण लाभ होने की उम्मीद है, जिन्होंने बायोसिमिलर विकास में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।
- इससे तुलनात्मक प्रभावकारिता परीक्षणों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी, जिससे प्रति परियोजना 20-25 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होगी तथा विकास की समयसीमा 5-7 वर्ष से घटकर 3-4 वर्ष रह जाएगी।
बायोसिमिलर
- बायोसिमिलर एक ऐसी जैविक दवा होती है जो पहले से स्वीकृत संदर्भ जैविक उत्पाद के समान होती है।
- हालाँकि, यह जेनेरिक दवा नहीं है। जेनेरिक दवाएँ जहाँ सरल रासायनिक प्रतियाँ होती हैं, वहीं बायोसिमिलर जीवित कोशिकाओं से तैयार किए गए जटिल प्रोटीन होते हैं, जो मूल जैविक दवा से अत्यंत समान तो होते हैं, परंतु पूरी तरह समान नहीं।
 
- संरचना: बायोसिमिलर और उनके संदर्भ बायोलॉजिक्स दोनों जीवित स्रोतों जैसे कोशिकाओं, ऊतकों, सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया या खमीर) या प्रोटीन और शर्करा जैसे प्राकृतिक पदार्थों के संयोजन से बने होते हैं।
- लागत लाभ: बायोसिमिलर आमतौर पर मूल बायोलॉजिक्स की तुलना में कम लागत पर उपलब्ध होते हैं, जिससे मरीजों को किफायती उपचार तक पहुँच में सुधार होता है।
- भारत की स्थिति: भारतीय फार्मा कंपनियों के पास 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर के वैश्विक बायोसिमिलर बाज़ार का 5% से कम हिस्सा है, लेकिन वे राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन और तेलंगाना में जीनोम वैली विस्तार के माध्यम से विस्तार कर रहे हैं।
- भारतीय बायोसिमिलर निर्यात, जिसका वर्तमान मूल्य 0.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, के वर्ष 2030 तक 5 गुना बढ़कर 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है, जो वैश्विक बाज़ार का 4% होगा तथा वर्ष 2047 तक 30-35 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
 
- अनुप्रयोग: बायोसिमिलर कैंसर, मधुमेह और स्वप्रतिरक्षी विकारों सहित विभिन्न दीर्घकालिक रोगों के उपचार के लिये सुरक्षित और प्रभावी हैं।
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