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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 17 Jun, 2025
  • 15 min read
रैपिड फायर

भारत के प्रधानमंत्री की साइप्रस की ऐतिहासिक यात्रा

स्रोत: द हिंदू

भारत के प्रधानमंत्री की साइप्रस यात्रा — जो पिछले 23 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा है — द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस यात्रा में ऊर्जा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी सहयोग और भारत-यूरोपीय संघ के रणनीतिक समन्वय पर विशेष ध्यान दिया गया।

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परिचय: 

  • स्थान: साइप्रस एक यूरेशियाई द्वीपीय देश है, जो उत्तर-पूर्वी भूमध्य सागर में यूरोप, एशिया और अफ्रीका के चौराहे पर स्थित है।
    • यह सिसिली और सार्डिनिया के बाद भूमध्य सागर का तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: साइप्रस को वर्ष 1960 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन वर्ष 1974 के तुर्की आक्रमण के कारण इसका विभाजन तुर्की उत्तरी साइप्रस गणराज्य (जिसे केवल तुर्की द्वारा मान्यता प्राप्त है) और दक्षिण में साइप्रस गणराज्य में हो गया।
    • संयुक्त राष्ट्र ग्रीन लाइन की निगरानी करता है, जो विभाजित क्षेत्रों के बीच शांति बनाए रखने का कार्य करती है।
  • राजनीतिक विभाजन: साइप्रस का राजनीतिक रूप से विभाजन हुआ है—एक ओर है साइप्रस गणराज्य (जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है और यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य है) और दूसरी ओर तुर्की उत्तरी साइप्रस गणराज्य, जिसे केवल तुर्की द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • भूगोल: साइप्रस में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है, जिसमें गर्म और शुष्क ग्रीष्म ऋतु तथा आर्द्र शीत ऋतु होती है तथा वर्षा कृषि के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है।
  • भारत-साइप्रस संबंध: भारत और साइप्रस ने वर्ष 1962 में राजनयिक संबंध स्थापित किये। साइप्रस मुद्दे पर भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्तावों और अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुरूप द्वि-क्षेत्रीय, द्वि-सामुदायिक महासंघ का समर्थन करता है।
    • आर्कबिशप माकारियोज़ (साइप्रस के पहले राष्ट्रपति) और पंडित नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)  के अग्रदूत थे।
    • भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सदस्यता, NSG की सदस्यता तथा कश्मीर और आतंकवाद पर भारत के रुख का साइप्रस द्वारा लगातार समर्थन, तुर्की-पाकिस्तान के बढ़ते सैन्य संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भारत के लिये साइप्रस से जुड़ाव को एक रणनीतिक संतुलन प्रदान करता है।

और पढ़ें: टैक्स हेवेन के रूप में साइप्रस


रैपिड फायर

विश्व मगरमच्छ दिवस और मगरमच्छ संरक्षण परियोजना के 50 वर्ष

स्रोत: द हिंदू

विश्व मगरमच्छ दिवस (17 जून) पर, भारत अपने मगरमच्छ संरक्षण परियोजना (CCP) (1975-2025) के 50 वर्ष पूरे होने का स्मरण करता है, जिसमें ओडिशा इस अग्रणी पारिस्थितिक प्रयास का केंद्र बनकर उभरा है।

  • ओडिशा एकमात्र ऐसा भारतीय राज्य है. जहाँ सभी तीन देशी मगरमच्छ प्रजातियों घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस), मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पलुस्ट्रिस) तथा खारे पानी के मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पोरोसस)) की जंगली आबादी पाई जाती है।
  • मगरमच्छ संरक्षण परियोजना: भारत ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और खाद्य एवं कृषि संगठन के सहयोग से ओडिशा के है.तरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में मगरमच्छ संरक्षण परियोजना का शुभारंभ किया।
  • इसने "रियर एंड रिलीज़" पद्धति को अपनाया, भितरकनिका और सतकोसिया टाइगर रिज़र्व जैसे संरक्षित आवासों का निर्माण किया तथा बंदी प्रजनन और सामुदायिक जागरूकता को बढ़ावा दिया, जिससे यह मगरमच्छ संरक्षण के लिये एक राष्ट्रीय मॉडल बन गया है।
  • मगरमच्छ: ये सबसे बड़े जीवित सरीसृप हैं, जो मुख्य रूप से मीठे पानी के दलदलों, झीलों और नदियों में रहते हैं, जिनमें एक खारे पानी की प्रजाति भी शामिल है। 
    • वे रात्रिचर और पोइकिलोथर्मिक (बाह्यउष्मा या शीत-रक्त वाले जानवर भी कहलाते हैं तथा इनके शरीर का तापमान आसपास के वातावरण के साथ बदलता रहता है) होते हैं।
    • उनके अस्तित्व को आवास विनाश, अंडों का शिकार, अवैध शिकार, बाँध निर्माण तथा रेत खनन से खतरा है।
  • जनसंख्या: भारत में वैश्विक जंगली घड़ियाल आबादी का लगभग 80% हिस्सा रहता है, जिसमें राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य, कतर्नियाघाट और सोन घड़ियाल अभयारण्य जैसे स्थलों में लगभग 3,000 व्यक्ति हैं। 
    • खारे पानी के मगरमच्छों की आबादी बढ़कर लगभग 2,500 हो गई है, जो मुख्य रूप से भितरकनिका, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और सुंदरबन में हैं। 

और पढ़ें: विश्व मगरमच्छ दिवस


रैपिड फायर

शिपकी ला दर्रा

स्रोत: द हिंदू

भारत-चीन सीमा पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में शिपकी ला दर्रा (3,930 मीटर) को घरेलू पर्यटकों के लिये खोल दिया गया है, ताकि सीमावर्ती अर्थव्यवस्था, रणनीतिक संपर्क और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके।

शिपकी ला दर्रा

  • शिपकी ला एक मोटर वाहन योग्य पर्वतीय दर्रा है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक सीमा चौकी को चिह्नित करता है और यह भारत के सबसे ऊँचे मोटर वाहन योग्य दर्रों में से एक है।
  • सतलुज नदी (तिब्बत में लांगकेन ज़ांग्बो) इसी दर्रे से होकर भारत में प्रवेश करती है, जो ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता था।
  • इस दर्रे को पहले पेमा ला या साझा द्वार (Shared Gate) के नाम से जाना जाता था, जिसे वर्ष 1962 के बाद भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) ने शिपकी ला नाम दिया।
  • यह 5वीं शताब्दी से एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग रहा है, जो वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध, डोकलाम गतिरोध और कोविड-19 महामारी के बाद बंद हो गया।
  • शिपकी ला भारत और तिब्बत के बीच व्यापार का माध्यम था, जिसके अंतर्गत ऊन, पशुधन, याक उत्पाद, धार्मिक वस्तुएँ तथा खनिज जैसे आयात होते थे, जबकि अनाज, मसाले, तंबाकू, लकड़ी एवं धातु के औज़ार जैसे निर्यात किये जाते थे।

पहाड़ी दर्रे

  • दर्रे पर्वत शृंखलाओं में प्राकृतिक रूप से बने निम्न बिंदु या संकरे मार्ग होते हैं, जो सामान्यतः कठिन भू-भाग में लोगों, वस्तुओं और सेनाओं की आवाजाही को सुगम बनाते हैं।
  • ये दर्रे अपक्षय, हिमनदीकरण या टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण बनते हैं और दो घाटियों या क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य करते हैं। ऐतिहासिक रूप से इनका उपयोग व्यापार, प्रवास और सैन्य अभियानों में होता रहा है, जिससे इनका रणनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक महत्त्व स्थापित होता है।

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और पढ़ें: सीमा निर्धारण के लिये चीन और भूटान की बैठक 


रैपिड फायर

इलेक्ट्रिसिटी डेरिवेटिव्स

स्रोत: बीएल

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने विद्युत् मूल्य जोखिम प्रबंधन को बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा (RE) के एकीकरण का समर्थन करने के लिये मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर इलेक्ट्रिसिटी डेरिवेटिव्स के शुभारंभ को मंज़ूरी दे दी है।

  • बिजली डेरिवेटिव्स ऐसे वित्तीय उपकरण हैं, जो उत्पादन कंपनियों (Gencos), वितरण कंपनियों (Discoms) और बड़े औद्योगिक उपभोक्ताओं को विद्युत् की कीमतों में उतार-चढ़ाव से सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे वे भविष्य की विद्युत् आपूर्ति का व्यापार करके जोखिम को कम कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रिसिटी फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स, ऑप्शन्स, और स्वैप्स व्यक्तियों को जोखिमों से बचाने, आपूर्ति की निश्चितता सुनिश्चित करने और मांग पूर्वानुमान को सुधारने में सक्षम बनाएंगे—जो ऊर्जा संचयन प्रणालियों (ESS) की तैनाती के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • यह तरलता को बढ़ाएगा, हेजर्स, सट्टेबाजों, और निवेशकों की भागीदारी को सक्षम करेगा, तथा वित्तीय निपटान को भौतिक आपूर्ति से अलग करेगा—जिससे अल्पकालिक विद्युत बाज़ार अधिक मज़बूत होगा।
  • यह कदम भारत के व्यापक स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य को साधने में सहायक होगा—जिसके तहत वर्ष 2030 तक स्थापित क्षमता का 50% (500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन) नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करना और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करना है, जिसके लिये वर्ष 2047 तक प्रतिवर्ष 250 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।

डेरिवेटिव्स ऐसे अनुबंध होते हैं जिनका मूल्य किसी आधारभूत परिसंपत्ति या सूचकांक पर निर्भर करता है, जैसे मुद्राएँ, स्टॉक या कमोडिटीज़। इनमें फॉरवर्ड्स, फ्यूचर्स और ऑप्शन्स जैसे वित्तीय उपकरण शामिल होते हैं।

  • फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट एक कानूनी समझौता होता है जो खरीदार और विक्रेता को किसी निर्धारित भविष्य की तिथि पर एक पूर्वनिर्धारित मूल्य पर संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिये बाध्य करता है, चाहे समाप्ति पर बाज़ार मूल्य कुछ भी हो।
  • एक ऑप्शन धारक को एक निर्धारित मूल्य पर किसी निश्चित तिथि से पहले या उस तिथि पर किसी परिसंपत्ति को खरीदने (कॉल) या बेचने (पुट) का अधिकार प्रदान करता है, न कि दायित्व - जिसके बदले प्रीमियम का भुगतान किया जाता है।
  • स्वैप एक निजी समझौता होता है जिसमें निर्धारित अवधि में नकदी प्रवाह या वित्तीय साधनों का आदान-प्रदान किया जाता है। उदाहरण के लिये - ब्याज दर स्वैप, मुद्रा स्वैप, या कमोडिटी/विद्युत स्वैप

और पढ़ें: ऑप्शन राइटिंग


रैपिड फायर

NISHAD को ग्लोबल रिंडरपेस्ट होल्डिंग फैसिलिटी के रूप में नामित किया

स्रोत: पी.आई.बी

ICAR-NIHSAD, भोपाल को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) द्वारा कैटेगरी A रिंडरपेस्ट होल्डिंग फैसिलिटी के रूप में नामित किया गया है, जिससे भारत विश्व के उन 6 देशों में शामिल हो गया है जिन्हें रिंडरपेस्ट वायरस-संवाहित सामग्री (RVCM) को सुरक्षित रूप से रखने का दायित्व सौंपा गया है।

  • रिंडरपेस्ट: रिंडरपेस्ट (मवेशी प्लेग) एक अत्यधिक संक्रामक और घातक वायरल रोग था, जो मुख्य रूप से मवेशी, भैंस और कुछ जंगली जुगाली करने वाले जानवरों को प्रभावित करता था। यह रिंडरपेस्ट वायरस (जो खसरे से संबंधित मॉर्बिलीवायरस है) के कारण होता था।
    • यह रोग संक्रमित स्रावों या दूषित चारे/जल के संपर्क से फैलता था। इसके लक्षणों में तेज़ बुखार, मुँह में छाले, अतिसार और त्वरित मृत्यु शामिल थे।
    • इसके कारण अफ्रीका, एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर पशुधन की हानि हुई, जिससे आर्थिक पतन तथा खाद्य असुरक्षा उत्पन्न हुई।
  • इस रोग का वायरस अभी भी कुछ उच्च सुरक्षा प्रयोगशालाओं में संग्रहित है और किसी भी आकस्मिक या जानबूझकर जारी होने से इसका पुनः उभरना संभव है।  
    • इसीलिये FAO और WOAH रिंडरपेस्ट वायरस-संवाहित सामग्री (RVCM) के भंडारण तथा संचालन पर कड़ी निगरानी रखते हैं।

NIHSAD (राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान)

  • NIHSAD भारत की प्रमुख बायोसेफ्टी लेवल-3 (BSL-3) सुविधा है, जो विदेशी और उभरते पशु रोगजनकों पर अनुसंधान, रोगों की पहचान और उच्च-जोखिम वाले जीवों की जैव-नियंत्रण (बायो-कंटेनमेंट) हेतु उच्च-संरक्षण प्रयोगशाला के रूप में कार्य करती है।
    • इसे वर्ष 1984 में हाई सिक्योरिटी एनिमल डिज़ीज़ लैबोरेटरी (HSADL) के रूप में स्थापित किया गया था और बाद में इसका नाम बदलकर NIHSAD रखा गया। यह लैब बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लूएंज़ा), न्यूकैसल डिज़ीज़ और अन्य सीमा-पार एवं जूनोटिक (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाले) रोगों के लिये एक संदर्भ प्रयोगशाला के रूप में कार्य करती है, जो “वन हेल्थ” फ्रेमवर्क के अंतर्गत आता है।
  • यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ((ICAR, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

Cattle_Diseases

और पढ़ें: गाँठदार त्वचा रोग 


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