शासन व्यवस्था
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु
प्रिलिम्स के लिये: इच्छामृत्यु, अनुच्छेद 21, भारतीय न्याय संहिता
मेन्स के लिये: अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानपूर्वक मृत्यु का संवैधानिक अधिकार, चिकित्सा संबंधी निर्णय लेने में नैतिक सिद्धांत: स्वायत्तता, परोपकार, न्याय
चर्चा में क्यों?
यूके के हाउस ऑफ कॉमन्स ने जून 2025 में मरणासन्न रूप से बीमार वयस्कों के लिये "जीवन का अंत" विधेयक पारित किया, जो असाध्य रोग से पीड़ित ऐसे वयस्कों को सहायता प्राप्त मृत्यु का विकल्प चुनने की अनुमति प्रदान करता है, जिसने सम्मान के साथ मृत्यु के अधिकार पर वैश्विक बहस को पुनर्जीवित कर दिया है।
- भारत सर्वोच्च न्यायालय (SC) के फैसलों के माध्यम से निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता देता है, लेकिन इसका चुनौतीपूर्ण कार्यान्वयन मृत्यु में गरिमा के संवैधानिक अधिकार को बनाए रखने के लिये ढाँचे में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
इच्छामृत्यु क्या है?
- परिचय: इच्छामृत्यु या “दया मृत्यु” का अर्थ है किसी व्यक्ति की जानबूझकर समयपूर्व मृत्यु सुनिश्चित करना, ताकि उसे लाइलाज या घातक बीमारी के कारण अत्यधिक कष्ट से बचाया जा सके।
- इच्छामृत्यु के प्रकार: 
- सक्रिय इच्छामृत्यु: इसमें रोगी की मृत्यु के लिये सीधे तौर पर कदम उठाना शामिल होता है, जैसे घातक इंजेक्शन देना।
- सक्रिय इच्छामृत्यु के प्रकार:
- स्वैच्छिक: रोगी स्वयं सचेत रूप से मृत्यु का निर्णय करता है।
- गैर-स्वैच्छिक: अक्षम या असहाय रोगी के लिए किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिया गया निर्णय।
- अनैच्छिक: रोगी की सहमति के बिना की गई मृत्यु।
 
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु: यह उस स्थिति को दर्शाता है जब रोगी असाध्य रूप से बीमार हो और ठीक होने की कोई वास्तविक संभावना न हो, तब जीवन-रक्षक उपकरण या चिकित्सा उपचार को रोकना या वापस लेना, जिससे मृत्यु स्वाभाविक रूप से होती है।
- इसका उद्देश्य है सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार सुनिश्चित करना तथा अपरिवर्तनीय चिकित्सा परिस्थितियों में लंबी एवं निरर्थक पीड़ा को रोकना।
 
 
- भारत में कानूनी स्थिति:
- सक्रिय इच्छामृत्यु: भारत में यह अवैध है। भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत जानबूझकर मृत्यु पहुँचाने के इरादे से किये गए कृत्यों को धारा 100 और 101 के तहत इरादतन हत्या (culpable homicide) या हत्या (murder) माना गया है।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु: अरुणा शानबॉग बनाम भारत संघ (2011) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह मान्यता दी कि जीवन-सहायता उपचार को कानूनी रूप से रोका या वापस लिया जा सकता है। यह निर्णय उन व्यक्तियों पर भी लागू होता है जिनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है।
- कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार (Right to Die with Dignity) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और एडवांस मेडिकल डायरेक्टिव्स या “लिविंग विले” (जिनमें यह निर्दिष्ट होता है कि किन परिस्थितियों में उपचार रोका जा सकता है) के उपयोग को वैध ठहराया।
 
 
- इच्छामृत्यु पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश: सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2023 में 2018 के इच्छामृत्यु दिशा-निर्देशों में संशोधन किया ताकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) प्रदान करने की प्रक्रिया को सरल और सुगम बनाया जा सके।
- लिविंग विल/अग्रिम निर्देश: कोई भी स्वस्थ मानसिक अवस्था वाला वयस्क व्यक्ति लिविंग विल तैयार कर सकता है। इस दस्तावेज़ पर उसे दो गवाहों की उपस्थिति में हस्ताक्षर करना आवश्यक है।
- इन हस्ताक्षरों को नोटरी या राजपत्रित अधिकारी द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है।
- मेडिकल बोर्ड की मंज़ूरी: अस्पताल को दो अलग-अलग मेडिकल बोर्ड गठित करने होते हैं, जिन्हें 48 घंटे के भीतर अपनी अनुशंसा प्रस्तुत करनी होती है।
- उच्च न्यायालय की निगरानी: यदि अस्पताल के मेडिकल बोर्ड इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं देते, तो मरीज़ के परिजन उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं। न्यायालय इसके बाद मामले की समीक्षा हेतु एक नया मेडिकल बोर्ड गठित करता है।
 
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य: कई देशों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता प्राप्त है। नीदरलैंड और बेल्जियम जैसे देशों ने कड़े सुरक्षा उपायों के तहत सक्रिय इच्छामृत्यु को वैध कर दिया है।
क्या आप जानते हैं?
- इच्छामृत्यु (Euthanasia) और सहायक आत्महत्या (Assisted Suicide) एक जैसी प्रक्रियाएँ नहीं हैं।
 इच्छामृत्यु में किसी अन्य व्यक्ति, आमतौर पर डॉक्टर, द्वारा रोगी के जीवन का प्रत्यक्ष रूप से अंत किया जाता है। जबकि सहायक आत्महत्या में किसी व्यक्ति को उसकी स्वयं की मृत्यु के लिये आवश्यक साधन या जानकारी उपलब्ध कराई जाती है।- आत्महत्या पर्यटन या इच्छामृत्यु पर्यटन उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई रोगी ऐसे देशों की यात्रा करता है जहाँ इच्छामृत्यु या सहायक आत्महत्या कानूनी रूप से स्वीकृत है।
 स्विट्ज़रलैंड इस मामले में प्रमुख देश है, जहाँ मुख्यतः ब्रिटेन, जर्मनी और फ्राँस के मरीज उपचार हेतु आते हैं।
 
- आत्महत्या पर्यटन या इच्छामृत्यु पर्यटन उस स्थिति को दर्शाता है जब कोई रोगी ऐसे देशों की यात्रा करता है जहाँ इच्छामृत्यु या सहायक आत्महत्या कानूनी रूप से स्वीकृत है।
इच्छामृत्यु के नैतिक परिप्रेक्ष्य क्या हैं?
- स्वायत्तता (आत्मनिर्णय का अधिकार): रोगियों को अपने जीवन और मृत्यु से संबंधित निर्णय स्वयं लेने का अधिकार होना चाहिये।
- यह सिद्धांत निष्क्रिय इच्छामृत्यु का समर्थन करता है, क्योंकि यह गंभीर रूप से बीमार मरीजों को जीवन-विस्तारक उपचार को अस्वीकार करने की अनुमति प्रदान करता है।
 
- उपकार (रोगी के कल्याण के लिये कार्य करना): चिकित्सा उपचार का उद्देश्य पीड़ा को कम करना और रोगी के सर्वोत्तम हित में कार्य करना होना चाहिये।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु इस सिद्धांत के अनुरूप है, क्योंकि यह निरर्थक और व्यर्थ उपचार को समाप्त करने की अनुमति देता है।
- न्याय (समानता और निष्पक्षता): प्रत्येक व्यक्ति को उपशामक देखभाल और कानूनी सुरक्षा तक समान अवसर मिलना चाहिये।
- कमज़ोर या आर्थिक रूप से निर्भर रोगियों पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाला जाना चाहिये कि वे सक्रिय या निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अपनाएँ।
 
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
- नौकरशाही विलंब: संशोधित 2018 इच्छामृत्यु दिशा-निर्देशों का उद्देश्य निष्क्रिय इच्छामृत्यु को तेज़ी से आगे बढ़ाना है, लेकिन अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण, बहु-स्तरीय अनुमोदन वाली वर्तमान प्रक्रियाएँ अभी भी गंभीर रूप से बीमार रोगियों हेतु देरी का कारण बनती हैं, जिससे पीड़ा बढ़ती है और मृत्यु में गरिमा के संवैधानिक वादे को कमज़ोर किया जाता है।
- व्यावहारिक अनुपलब्धता: परिवार और डॉक्टर अक्सर कानूनी प्रक्रियाओं की जटिलता के कारण उन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे निर्णय अनौपचारिक हो जाते हैं तथा चिकित्सा पेशेवरों को संभावित कानूनी उत्तरदायित्व का सामना करना पड़ता है।
- कम जागरूकता: कई रोगी, परिवार और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर, लिविंग विल और अग्रिम निर्देशों जैसे कानूनी प्रावधानों से अनभिज्ञ हैं, जो निष्क्रिय इच्छामृत्यु के व्यावहारिक उपयोग को सीमित करते हैं।
- सामाजिक और सांस्कृतिक चिंताएँ: भारत में, जीवन की पवित्रता में विश्वास के कारण इच्छामृत्यु को अक्सर नैतिक विरोध की दृष्टि से देखा जाता है, साथ ही धार्मिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से इसे हत्या के समान माना जाता है।
- खंडित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली: असमान अस्पताल अवसंरचना, प्रशिक्षित कर्मियों की कमी तथा अस्पताल स्तर पर नैतिकता समितियों का अभाव निष्क्रिय इच्छामृत्यु के समय पर निष्पक्ष और मानवीय कार्यान्वयन को रोकता है।
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिये क्या सुधार आवश्यक हैं?
- अग्रिम निर्देशों का डिजिटलीकरण: राष्ट्रीय इच्छामृत्यु पोर्टल बनाया जाए, जिसे आधार से जोड़ा जाए, ताकि व्यक्ति अपनी लिविंग विल (Living Will) को पंजीकृत (Register), अद्यतन (Update) या रद्द (Revoke) कर सकें।
- डॉक्टरों को मानसिक क्षमता का सत्यापन ऑनलाइन करने की अनुमति देना, जिससे कागज़ी कार्रवाई और देरी कम हो जाएगी।
 
- अस्पताल-स्तरीय नैतिकता समितियाँ: वरिष्ठ चिकित्सकों, उपशामक देखभाल विशेषज्ञों और एक स्वतंत्र सदस्य सहित समितियों की स्थापना करना।
- उन्हें 48 घंटे के भीतर जीवन रक्षक प्रणाली हटाने का अधिकार देने का अधिकार दिया जाएगा, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण होगा।
 
- पारदर्शी निगरानी: मामलों की निगरानी के लिये एकल-राज्य लोकपाल मॉडल के स्थान पर डिजिटल डैशबोर्ड या राज्य-स्तरीय स्वास्थ्य आयुक्तों को स्थापित किया जाए।
- विश्वास बनाने और दुरुपयोग को रोकने के लिये आवधिक ऑडिट और सार्वजनिक रिपोर्टिंग का संचालन करना।
 
- अनिवार्य सुरक्षा उपाय: उपचार बंद करने की मंज़ूरी देने से पहले 7 दिन की शांत अवधि, मनोवैज्ञानिक परामर्श और उपशामक देखभाल समीक्षा शामिल करना।
- कमज़ोर आबादी (वरिष्ठ, विकलांग, आर्थिक रूप से आश्रित) को ज़बरदस्ती से बचाया जाए।
 
- क्षमता निर्माण एवं जागरूकता: चिकित्सा एवं नर्सिंग पाठ्यक्रम में जीवन के अंतिम चरण की नैतिकता एवं कानूनी प्रशिक्षण को एकीकृत करना।
- लिविंग विल, अग्रिम देखभाल योजना और उपशामक देखभाल विकल्पों को सामान्य बनाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाना।
 
- सुव्यवस्थित प्रक्रियाएँ: नौकरशाही संबंधी देरी को कम करने और गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिये समय पर राहत सुनिश्चित करने हेतु सुरक्षा उपायों को बनाए रखते हुए अनुमोदन को सरल बनाया जाए।
निष्कर्ष
निष्क्रिय इच्छामृत्यु में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि कानून को व्यावहारिक, नैतिक तथा भारत के संविधान द्वारा दिये गए "गरिमापूर्ण मृत्यु" के संकल्प के अनुरूप बनाया जा सके। इससे कानूनी मान्यता और व्यावहारिक पहुँच के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी।
| दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु से जुड़ी नैतिक और कानूनी चुनौतियों की जाँच कीजिये तथा गरिमापूर्ण मृत्यु के संवैधानिक वादे को सुनिश्चित करने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये। | 
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. निष्क्रिय इच्छामृत्यु क्या है?
निष्क्रिय इच्छामृत्यु में गंभीर रूप से बीमार रोगियों से जीवन-सहायक उपकरण या चिकित्सा उपचार वापस ले लिया जाता है, जिससे गरिमापूर्ण मृत्यु के अधिकार की रक्षा करते हुए स्वाभाविक मृत्यु की अनुमति मिल जाती है।
2. क्या भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु कानूनी है?
नहीं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत सक्रिय इच्छामृत्यु अवैध है, क्योंकि इसे गैर- इरादतन हत्या माना जाता है।
3. सर्वोच्च न्यायालय के किन मामलों ने भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को मान्यता दी? 
अरुणा शानबाग बनाम भारत संघ (2011) और कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018) ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु और लिविंग विल को कानूनी मान्यता प्रदान की।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)
(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42वें संशोधन के अधीन उपबंध।
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिये राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत।
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ।
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44वें संशोधन के अधीन उपबंध।
उत्तर: (C)
मेन्स:
प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में विशेषकर जरा चिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2020)
प्रारंभिक परीक्षा
फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 2025
चर्चा में क्यों?
स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट में नोबेल असेंबली ने फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में वर्ष 2025 का नोबेल पुरस्कार मेरी ई. ब्रंकोव्ह (अमेरिका), फ्रेड रॅम्सडेल (अमेरिका) और शिमोन साकागुची (जापान) को दिया है।
- यह पुरस्कार इन्हें पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस, विशेष रूप से रेगुलेटरी टी सेल्स (Tregs) और FOXP3 (फोर्कहेड बॉक्स प्रोटीन P3) जीन के संबंध में इनकी खोजों के लिये दिया गया है।
फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता: वर्ष 1968 में भारत के हर गोबिंद खुराना को फिजियोलॉजी या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, साथ ही अमेरिका के मार्शल निरेनबर्ग और रॉबर्ट हॉली को भी आनुवंशिक कोड की व्याख्या तथा प्रोटीन संश्लेषण में इसके कार्य के लिये सम्मानित किया गया था।
फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में वर्ष 2025 के नोबेल पुरस्कार विजेताओं की प्रमुख खोज क्या हैं?
- शिमोन साकागुची (जापान): वर्ष 1995 में रेगुलेटरी टी-सेल्स (Regulatory T Cells) की पहचान की, जिन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली के सुरक्षा प्रहरी कहा जाता है। ये टी-सेल्स सुनिश्चित करते हैं कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली संतुलित रहे और अपने ही अंगों पर आक्रमण न करे।
- मेरी ई. ब्रंकोव्ह (अमेरिका) और फ्रेड रॅम्सडेल (अमेरिका): ने वर्ष 2001 में, पहचाना कि FOXP3 जीन में उत्परिवर्तन मनुष्यों में एक दुर्लभ स्व-प्रतिरक्षी रोग (IPEX) और चूहों में इसी तरह की प्रतिरक्षा संबंधी समस्याओं का कारण बनता है।
- संयुक्त योगदान: साकागुची ने बाद में पता लगाया कि FOXP3 जीन रेगुलेट्री T सेल्स के विकास को नियंत्रित करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस कैसे बनाए रखती है।
खोज का महत्त्व
- कैंसर चिकित्सा (Cancer therapy): यह खोज बताती है कि ट्यूमर के आसपास टी-रेग्स (Regulatory T Cells) को लक्षित करने से कैंसर सेल्स पर प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक प्रभावी रूप से कार्य कर सकती है।
- स्व-प्रतिरक्षी रोग (Autoimmune diseases): पर्याप्त मात्रा में टी-रेग्स की सक्रियता बढ़ाने से प्रतिरक्षा प्रणाली को अपने ही शरीर पर हमला करने से रोका जा सकता है।
- प्रत्यारोपण (Transplantation): टी-सेल का बेहतर नियमन अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति (Organ Rejection) को कम करता है।
मानव प्रतिरक्षा प्रणाली के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की रक्षा प्रणाली है जो रोगजनकों (वायरस, बैक्टीरिया, कवक, परजीवी) जैसे हानिकारक रोगजनकों के साथ-साथ कैंसर सेल्स जैसी असामान्य सेल्स के विरुद्ध भी कार्य करती है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली को व्यापक रूप से दो भागों- इननेट इम्युनिटी और एडैप्टिव इम्युनिटी में विभाजित किया जा सकता है।
 
- इननेट इम्युनिटी (गैर-विशिष्ट प्रतिरक्षा): यह भौतिक अवरोधों (त्वचा, श्लेष्म झिल्ली), फागोसाइट्स (मैक्रोफेज, न्यूट्रोफिल) एवं इन्फ्लेशन (जो रोगजनकों को अलग करने तथा नष्ट करने में मदद करती है) के माध्यम से रोगजनकों के विरुद्ध एक तीव्र एवं सामान्यीकृत प्रतिक्रिया प्रदान करती है।
- एडैप्टिव इम्युनिटी (विशिष्ट प्रतिरक्षा): यह रोगजनकों (Pathogens) के विरुद्ध एक अधिक लक्षित और विशिष्ट प्रतिक्रिया प्रदान करती है। इसमें "स्मृति" (Pemory) होती है, जिससे यदि वही रोगजनक पुनः शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर पहले से भी अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया कर सकता है।
- प्रमुख तत्त्वों में शामिल हैं:
- टी-सेल: एडैप्टिव इम्युनिटी प्रतिक्रिया का हिस्सा, टी-सेल एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएँ हैं जो संक्रमित सेल्स को पहचानने और नष्ट करने में सहायक होती हैं।
- बी-सेल: ये सेल एंटीबॉडी (प्रोटीन) उत्पन्न करते हैं जो विशेष रूप से विदेशज एंटीजन (रोगजनकों जैसे- वायरस या बैक्टीरिया) को लक्षित करती हैं और उन्हें निष्क्रिय कर देती हैं।
 
 
- प्रमुख तत्त्वों में शामिल हैं:
- इम्यून टॉलरेंस: प्रतिरक्षा प्रणाली को रोगजनकों और शरीर के अपने सेल्स के मध्य अंतर करने का कार्य करना होता है ताकि वह स्वयं से सेल्स पर हमला न करे। इस संतुलन को सेल्फ टॉलरेंस कहा जाता है, जो स्व-प्रतिरक्षी रोगों (Autoimmune Diseases) — जहाँ शरीर अपनी ही ऊतकों पर हमला करता है — से बचाव करता है।
- सेंट्रल टॉलरेंस: यह प्राथमिक लसीका अंगों जैसे अस्थि मज्जा और थाइमस में होता है, जहाँ स्व-प्रतिक्रियाशील प्रतिरक्षा सेल्स (सेल्स जो शरीर के अपने ऊतकों पर हमला कर सकते हैं) समाप्त हो जाते हैं या निष्क्रिय हो जाते हैं।
- पेरिफेरल टॉलरेंस: इसमें शरीर के ऊतकों में ऐसी क्रियाविधि शामिल होती है जो शेष बची स्व-प्रतिक्रियाशील सेल्स को सक्रिय होने से रोकती है।
- रेगुलेटरी टी-सेल (Tregs) पेरिफेरल टॉलरेंस (Peripheral Tolerance) बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सुनिश्चित करते हैं कि प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) शरीर के अपने ऊतकों (Tissues) पर हमला न करे।
 
- रेगुलेटरी टी-सेल (Tregs) की भूमिका: रेगुलेटरी टी-सेल, टी-सेल का एक विशेष प्रकार (Specialized Subset) होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली के "शांतिदूत" (Peacekeepers) के रूप में कार्य करते हैं। ये प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं (Immune Responses) को प्रभावित करते हैं और इम्यून टॉलरेंस बनाए रखने में मदद करते हैं।
- ये स्व-प्रतिरक्षी रोगों की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये सेल्स अत्यधिक इन्फ्लेशन और ऊतक क्षति से बचने के लिये प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं तथा रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज एवं मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसे स्व-प्रतिरक्षी रोगों की रोकथाम में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
 
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. 2025 का फिजियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार किसे मिला?
मैरी ई. ब्रंकाउ, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन सकागुची को यह पुरस्कार रेगुलेटरी टी-सेल्स (Regulatory T cells – Tregs) और FOXP3 जीन, जो इम्यून टॉलरेंस (Immune Tolerance) में शामिल है, की खोज के लिये दिया गया।
2. रेगुलेटरी टी-सेल्स (Tregs) की भूमिका क्या है?
रेगुलेटरी टी-सेल्स प्रतिरक्षा प्रणाली के “शांतिदूत” हैं। ये स्व-सहिष्णुता सुनिश्चित करके आटोइम्यून प्रतिक्रियाओं को रोकते हैं।
3. पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस क्या है?
यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली स्व-प्रतिक्रियाशील सेल्स को शरीर के अपने ऊतकों पर हमला करने से रोकता है, जिससे प्रतिरक्षा संतुलन बना रहता है।
4. फिजियोलॉजी या चिकित्सा में भारत के एकमात्र नोबेल पुरस्कार विजेता कौन हैं?
हर गोबिंद खुराना जिन्हें वर्ष 1968 में जेनेटिक कोड की व्याख्या और प्रोटीन संश्लेषण में उसके कार्य के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक जेम्स डी. वाटसन किस क्षेत्र में अपने काम के लिये जाने जाते हैं? (2008)
(a) धातु विज्ञान
(b) मौसम विज्ञान
(c) पर्यावरण संरक्षण
(d) आनुवंशिकी
उत्तर: (d)
प्रारंभिक परीक्षा
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार 2025
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने वर्ष 2025 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस को उनके विद्युत परिपथों में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और ऊर्जा क्वांटाइजेशन की खोज के लिये प्रदान किया है।
- उनके अनुसंधान ने सुपरकंडक्टिंग सर्किटों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है, जो भविष्य में व्यावहारिक क्वांटम कंप्यूटरों और सेंसरों की नींव बन सकते हैं तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध हो सकते हैं।
वर्ष 2025 के भौतिकी में नोबेल पुरस्कार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग: पुरस्कार विजेताओं ने क्वांटम टनलिंग की अवधारणा को सूक्ष्म (Microscopic) स्तर से आगे बढ़ाते हुए इसे बड़े पैमाने (Macroscopic Systems) पर लागू किया। उनके कार्य से यह सिद्ध हुआ कि बड़े और दृश्यमान तंत्र, जैसे सुपरकंडक्टिंग सर्किट, भी टनलिंग और ऊर्जा क्वांटीकरण जैसे विशिष्ट क्वांटम गुण प्रदर्शित कर सकते हैं।
- इन्होंने अतिचालक (Superconducting) पदार्थों का उपयोग करके जोसेफसन जंक्शन नामक एक अतिचालक प्रणाली का निर्माण किया, जिसमें अरबों कूपर युग्म (Cooper pairs) एक एकल सामूहिक क्वांटम इकाई के रूप में कार्य करते थे।
- जब इस प्रणाली को लगभग परम शून्य तापमान तक ठंडा किया गया, तो यह देखा गया कि इसकी विद्युत अवस्था ऊर्जा अवरोधों के माध्यम से “टनल” बना सकती है तथा अचानक परिवर्तन प्रदर्शित करती है — जो क्लासिकल प्रकृति के विपरीत स्पष्ट रूप से क्वांटम प्रकृति की पुष्टि करता है।
 
 
- इन्होंने अतिचालक (Superconducting) पदार्थों का उपयोग करके जोसेफसन जंक्शन नामक एक अतिचालक प्रणाली का निर्माण किया, जिसमें अरबों कूपर युग्म (Cooper pairs) एक एकल सामूहिक क्वांटम इकाई के रूप में कार्य करते थे।
- महत्त्व:
- क्वांटम कंप्यूटिंग: इसने सुपरकंडक्टिंग क्यूबिट्स के विकास को संभव बनाया तथा क्वांटम सेंसिंग एवं सिमुलेशन में प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया।
- क्रिप्टोग्राफी पर प्रभाव: क्वांटम कंप्यूटर पारंपरिक गणनात्मक सीमाओं पर आधारित एन्क्रिप्शन प्रणालियों को भेदने की क्षमता रखते हैं।
- वैश्विक प्रासंगिकता: भारत सहित कई देश क्वांटम प्रौद्योगिकी में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं, भारत का राष्ट्रीय क्वांटम कंप्यूटिंग मिशन वर्ष 2031 तक कार्यात्मक क्वांटम कंप्यूटर विकसित करने का लक्ष्य रखता है।
 
क्वांटम टनलिंग क्या है?
- परिचय: क्वांटम टनलिंग (Quantum Tunnelling), क्वांटम यांत्रिकी की एक घटना है जिसमें एक कण (जैसे इलेक्ट्रॉन) एक ऊर्जा अवरोध (Energy Barrier) को पार कर सकता है, भले ही क्लासिकल फिज़िक्स के अनुसार उसके पास उसे पार करने के लिये पर्याप्त ऊर्जा न हो।
- यह घटना तरंग-कण द्वैतता के कारण होती है जिसमे कणों को केवल कणों के रूप में नहीं, बल्कि तरंगों (Waves) के रूप में भी माना जाता है। जब एक कण ऊर्जा अवरोध से टकराता है, तो उसकी तरंग फलन (Wave Function) अवरोध के अंदर तुरंत शून्य नहीं होती है, बल्कि अवरोध के पार भी थोड़ी दूर तक फैलती है। इस फैलाव के कारण, अवरोध के दूसरी ओर कण के पाए जाने की एक छोटी सी संभावना होती है, भले ही उसके पास उसे पार करने की पर्याप्त ऊर्जा न हो।
 
- क्वांटम टनलिंग के अनुप्रयोग:
- स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप (STM): यह उपकरण क्वांटम टनलिंग सिद्धांत का उपयोग करके परमाणुओं का मानचित्र तैयार करता है।
- फ्लैश मेमोरी: यह USB ड्राइव और SSD जैसे उपकरणों में पाई जाती है। इसमें डेटा फ्लोटिंग-गेट ट्रांजिस्टरों में संग्रहीत होता है, जहाँ इलेक्ट्रॉन टनलिंग प्रक्रिया के माध्यम से गेट पर प्रवेश करते या उससे बाहर निकलते हैं।
- जोसेफसन जंक्शन: एक बहुत पतला विद्युतरोधी (Insulator) अवरोध है जो दो पृथक अतिचालकों से बना होता है। इसमें इलेक्ट्रॉन कूपर पेयर्स (Cooper Pairs) में चलते हैं (इलेक्ट्रॉनों के जोड़े)। ये जोड़े बिना किसी प्रतिरोध के प्रवाहित होते हैं।
- जोसेफसन जंक्शनों का उपयोग अति-संवेदनशील मापन के लिये सुपरकंडक्टिंग क्वांटम कंप्यूटरों और सुपरकंडक्टिंग क्वांटम इंटरफेरेंस डिवाइसेस (SQUID) में किया जाता है।
 
- क्वांटम कंप्यूटिंग: क्वांटम टनलिंग क्वांटम बिट्स (क्यूबिट्स) को एक साथ कई अवस्थाओं में बने रहने और उनके बीच सहजता से संक्रमण करने की क्षमता प्रदान करती है। यही गुण क्वांटम एल्गोरिदम को जटिल गणनाओं को अत्यधिक गति और दक्षता के साथ हल करने में सक्षम बनाता है, जिससे वे कई मामलों में पारंपरिक कंप्यूटरों से कहीं अधिक शक्तिशाली साबित होते हैं।
- नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion): तारों और प्रायोगिक रिएक्टरों में क्वांटम टनलिंग की प्रक्रिया परमाणु नाभिकों को उनके बीच मौजूद तीव्र विद्युत प्रतिकर्षी बलों को पार करने में सक्षम बनाती है। इस प्रक्रिया में हल्के नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं और अत्यधिक ऊर्जा का उत्सर्जन करते हैं।
 
क्वांटम टनलिंग को समझना
कल्पना करें कि आप एक गेंद को पहाड़ी पर ऊपर की ओर लुढ़का रहे हैं:
 क्लासिकल फिजिक्स (Classical Physics) के अनुसार, यदि गेंद के पास पर्याप्त ऊर्जा नहीं है, तो वह ऊपर तक नहीं पहुँच पाएगी और वापस नीचे लुढ़क जाएगी।
 लेकिन क्वांटम भौतिकी (Quantum Physics) में, कणों के तरंग-जैसे व्यवहार (wave-like behavior) के कारण यह संभव है कि गेंद के पास पर्याप्त ऊर्जा न होते हुए भी, वह अचानक पहाड़ी के दूसरी ओर दिखाई दे — जैसे उसने उस बाधा (barrier) के आर-पार “टनल” बना ली हो।
 इसी घटना को क्वांटम टनलिंग (Quantum Tunneling) कहा जाता है।
असल में होता क्या है?
क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) में, इलेक्ट्रॉन जैसे कण एक साथ कण (particle) और तरंग (wave) — दोनों की तरह व्यवहार करते हैं।
जब कोई तरंग किसी अवरोध से टकराती है, तो यदि वह अवरोध पर्याप्त रूप से पतला या कम ऊर्जा वाला हो, तो तरंग का एक सूक्ष्म हिस्सा उस अवरोध को पार करते हुए “रिस” (leak) सकता है।
इस तरह, यह संभावना बनती है कि कण को बाधा के दूसरी ओर पाया जा सकता है, भले ही उसने कभी वास्तव में उस बाधा को “पार” नहीं किया हो।
| और पढ़ें: फिजियोलॉजी या चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 2025 | 
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. मैक्रोस्कोपिक क्वांटम टनलिंग क्या है?
यह क्वांटम टनलिंग (Quantum Tunnelling) का बड़े प्रणालियों तक विस्तार है, जहाँ अतिचालक परिपथों (Superconducting circuits) में सामूहिक कण ऊर्जा अवरोधों के पार टनलिंग जैसी क्वांटम प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं।
2. वर्ष 2025 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार किसने और किस खोज के लिये जीता?
जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस (अमेरिका) ने विद्युत परिपथों में मैक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग और ऊर्जा क्वांटीकरण की खोज के लिये जीता।
3. जोसेफसन जंक्शन क्या है?
यह दो अतिचालकों से बना एक उपकरण है, जो एक पतले इंसुलेटर द्वारा पृथक् किये जाते हैं, जहाँ इलेक्ट्रॉन सुरंग बनाकर अतिचालक क्यूबिट और क्वांटम सेंसर का आधार बनाते हैं।
4. क्वांटम टनलिंग क्वांटम कंप्यूटिंग को कैसे सक्षम बनाती है?
टनलिंग, क्वाबिट्स को सुपरपोज़िशन में रहने और क्वांटम अवस्थाओं के बीच संक्रमण करने की अनुमति देती है, जिससे क्लासिकल सीमाओं से परे शक्तिशाली गणना संभव होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा वह संदर्भ हैं, जिसमें "क्यूबिट" शब्द का उल्लेख किया गया है? (2022)
(a) क्लाउड सेवाएँ
(b) क्वांटम कंप्यूटिंग
(c) दृश्यमान प्रकाश संचार प्रौद्योगिकी
(d) वायरलेस संचार प्रौद्योगिकी 
उत्तर: (b)
रैपिड फायर
अफगानिस्तान पर 7वीं मॉस्को फॉर्मेट वार्ता
अफगानिस्तान पर 7वें मास्को फॉर्मेट परामर्श में भारत ने अफगानिस्तान में बगराम एयर बेस पर नियंत्रण करने की ट्रंप की योजना का विरोध करने के लिये तालिबान, पाकिस्तान, चीन और रूस के साथ गठबंधन किया है।
- बगराम, अफगानिस्तान का सबसे बड़ा वायुसेना अड्डा, बड़े सैन्य विमानों और हथियार वाहक विमानों के उतरने के लिये उपयुक्त है। इसे वर्ष 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी से पहले खाली कर दिया गया था।
मॉस्को फॉर्मेट परामर्श (अफगानिस्तान पर):
- परिचय: यह एक क्षेत्रीय राजनयिक मंच है जिसे रूस ने वर्ष 2017 में शुरू किया था। इसका उद्देश्य अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों और अन्य प्रमुख हितधारकों के बीच संवाद को बढ़ावा देना है।
- उद्देश्य: यह अफगानिस्तान में बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से शांति, स्थिरता और विकास को प्रोत्साहित करता है। यह पहल वर्ष 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान पर नियंत्रण से पहले शुरू किये गए संवाद तंत्रों का हिस्सा है।
- सदस्यता: इसके प्रारंभिक सदस्य रूस, भारत, अफगानिस्तान, ईरान, चीन और पाकिस्तान थे। बाद में इसकी कूटनीतिक पहुँच बढ़ाने के लिये पाँच मध्य एशियाई देश भी इससे जुड़ गए।
| और पढ़ें: बगराम एयर बेस | 
रैपिड फायर
नैटपोलरेक्स
भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने चेन्नई तट पर 10वें राष्ट्रीय स्तर के प्रदूषण प्रतिक्रिया अभ्यास (नैटपोलरेक्स-अभ्यास) का सफलतापूर्वक आयोजन किया।
नैटपोलरेक्स-अभ्यास
- परिचय: नैटपोलरेक्स-अभ्यास एक द्विवार्षिक अभ्यास है और भारत के समुद्री पर्यावरण संरक्षण ढाँचे का एक प्रमुख घटक है।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य राष्ट्रीय तेल रिसाव आपदा आकस्मिकता योजना (NOSDCP) के तहत राष्ट्रीय तैयारी, अंतर-एजेंसी समन्वय और समुद्री तेल रिसाव के प्रति प्रतिक्रिया को मज़बूत करना है।
- तटरेखा ड्रिल: 10वें संस्करण का मुख्य आकर्षण मरीना बीच पर पहली बार तटरेखा सफाई ड्रिल था, जिसमें एक नकली घटना में कई राज्य एजेंसियों को शामिल किया गया था।
- महत्त्व: यह समुद्री प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है, मेक इन इंडिया पहल को प्रदर्शित करता है तथा बहुस्तरीय प्रदूषण प्रतिक्रिया तंत्र को मज़बूत करता है।
ICG और समुद्री पर्यावरण संरक्षण में इसकी भूमिका
- केंद्रीय समन्वय प्राधिकरण: भारतीय तटरक्षक बल (ICG) मार्च 1986 से भारत में तेल रिसाव प्रतिक्रिया के लिये केंद्रीय समन्वय प्राधिकरण के रूप में कार्य कर रहा है।
- राष्ट्रीय नीति ढाँचा: ICG द्वारा तैयार और वर्ष 1993 में अनुमोदित NOSDCP, राष्ट्रीय तेल रिसाव की तैयारी और प्रतिक्रिया के लिये आधारभूत ढाँचा प्रदान करता है।
- भारत की 75% से अधिक ऊर्जा समुद्री तेल से आती है, इसलिये समुद्री मार्गों और बंदरगाहों को तेल रिसाव से बचाना रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
 
- परिचालन अवसंरचना: NOSDCP को लागू करने के लिये ICG ने मुंबई, चेन्नई, पोर्ट ब्लेयर और वाडिनार में चार प्रदूषण प्रतिक्रिया केंद्र स्थापित किये हैं।
| और पढ़ें: तेल का रिसाव | 
रैपिड फायर
वेरि लार्ज गैस कैरियर (VLGC) शिवालिक
भारत ने विशाखापत्तनम बंदरगाह पर भारतीय ध्वज के तहत भारत के पहले विशाल गैस वाहक (वेरि लार्ज गैस कैरियर- VLGC) ‘शिवालिक’ के आगमन पर उसका औपचारिक स्वागत किया, जो समुद्री आत्मनिर्भरता और ऊर्जा सुरक्षा में एक मील का पत्थर है।
- शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SCI) द्वारा शिवालिक का संचालन भारत में शिपिंग क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है तथा देश की ऊर्जा व्यापार कनेक्टिविटी को मज़बूत करता है।
- आकार और क्षमता: VLGC शिवालिक की लंबाई 225 मीटर तथा इसकी क्षमता 82,000 क्यूबिक मीटर (CBM) है। इसे बड़े पैमाने पर तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG), जैसे प्रोपेन और ब्यूटेन के परिवहन के लिये तैयार किया गया है।
- इंजीनियरिंग: इसमें अलग-अलग टैंक्स, उन्नत तापमान नियंत्रण प्रणाली और वैश्विक सुरक्षा एवं दक्षता मानकों के अनुरूप तकनीक शामिल है।
- सामरिक महत्त्व: दक्षिण कोरिया में भारतीय ध्वज के तहत निर्मित शिवालिक, ऊर्जा आयात के लिये विदेशी ध्वज वाले जहाज़ों पर भारत की निर्भरता को कम करता है तथा अरब की खाड़ी के साथ भारत की ऊर्जा सुरक्षा तथा कनेक्टिविटी को मज़बूत करता है।
- समुद्री आत्मनिर्भरता: यह भारत की नौवहन क्षेत्र में बढ़ती आत्मनिर्भरता का प्रतीक है और वर्ष 2047 तक देश को शीर्ष पाँच समुद्री राष्ट्रों में शामिल करने के लक्ष्य में योगदान प्रदान करता है।
- भारत का लक्ष्य निर्माण, स्वामित्व, मरम्मत और पुनर्चक्रण के साथ एक संपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है, जिससे निर्यात-आयात (EXIM) दक्षता में वृद्धि होगी तथा विकसित भारत 2047 में योगदान मिलेगा।
 
- घरेलू जहाज़ निर्माण को बढ़ावा: जहाज़ निर्माण वित्तीय सहायता योजना (SBFAS), समुद्री विकास निधि (MDF) और जहाज़ निर्माण विकास योजना जैसी नीतियाँ स्थानीय जहाज़ निर्माण, मरम्मत तथा पुनर्चक्रण को बढ़ावा देती हैं।
 
            







 
     
                  
                 
  