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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 02 Jul, 2025
  • 10 min read
रैपिड फायर

खराई ऊँट

स्रोत: डाउन टू अर्थ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के बार-बार हस्तक्षेप के बावजूद, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मैंग्रोव वनों का व्यापक विनाश जारी है, जिससे दुर्लभ तैराक खराई ऊँट के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है।

  • खराई ऊँट: यह कच्छ क्षेत्र की देशज प्रजाति है, जो लंबी दूरी तक तैरने और मैंग्रोव वनों में चरने की अपनी दुर्लभ क्षमता के लिये जाना जाता है।
    • 'खराई' शब्द 'खार' से आया है, जिसका अर्थ है खारा (लवणीय), जो इस ऊँट की तटीय लवणीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहने की क्षमता को दर्शाता है। यह ऊँट सीमित चरागाहों में नहीं बल्कि खारे पानी और मुहाना पारिस्थितिकी तंत्र में फलता-फूलता है।
    • खराई ऊँट के पैरों में तैरने के लिये झिल्ली होती है और इनका पाचन तंत्र खारी वनस्पतियों को सहन करने में सक्षम होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने खराई ऊँट को संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया है।
  • पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक महत्त्व: खराई ऊँट मालधारी समुदाय के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, यह पारंपरिक ऊँटपालक समुदाय इन्हें अपने चरागाही विरासत का अभिन्न हिस्सा मानता हैं।
    • खराई ऊँट को एक आनुवंशिक रूप से विशिष्ट नस्ल के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा संकटग्रस्त पशु के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • खतरे: तटीय विनियमन क्षेत्र- I में नमक के खेतों, सीमेंट कारखानों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों के तेज़ी से विस्तार के कारण मैंग्रोव वनों का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ है।
    • जनसंख्या में भारी गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण आवास का क्षरण और भोजन तक पहुँच की कमी है।

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इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट ऑटोमैटिक ब्रांच एक्सचेंज

स्रोत: द हिंदू

आज के तीव्र गति वाले कॉर्पोरेट परिवेश में दक्ष और एकीकृत संचार उत्पादकता के लिये अत्यंत आवश्यक है तथा इलेक्ट्रॉनिक प्राइवेट ऑटोमैटिक ब्रांच एक्सचेंज (EPABX) प्रणाली कार्यालयों में सुगम आंतरिक एवं बाह्य संपर्क सुनिश्चित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण अवसंरचना के रूप में कार्य करती है।

  • परिचय: EPABX एक टेलीफोन स्विचिंग प्रणाली है, जिसका उपयोग व्यवसायों में आंतरिक और बाह्य संचार को प्रबंधित करने के लिये किया जाता है। यह प्रणाली कार्यालय के कई टेलीफोन उपकरणों को एक साझा बाह्य ट्रंक लाइन के माध्यम से जोड़ने की सुविधा देती है, जिससे प्रत्येक उपयोगकर्त्ता के लिये अलग-अलग लाइन की आवश्यकता नहीं होती।
    • EPABX का मूल आधार उसका स्विचिंग तंत्र है, जो कॉल्स को आंतरिक और बाह्य लाइनों के बीच सटीक रूप से निर्देशित करता है।

EPABX प्रौद्योगिकी का विकास:

  • इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले (1970– 1980 के दशक): इनमें यांत्रिक स्विच और विद्युत चुंबकों (इलेक्ट्रोमैग्नेट्स) का उपयोग कर टेलीफोन लाइनों को जोड़ा जाता था।
  • डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियाँ: 1980 के दशक के अंत तक कंप्यूटर एवं माइक्रोप्रोसेसर आधारित डिजिटल स्विचिंग प्रौद्योगिकी ने कॉल प्रबंधन को बेहतर बनाया और पल्स कोड मॉडुलेशन (PCM) तथा टाइम डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग (TDM) को अपनाया गया।
    • PCM : एनालॉग वॉयस सिग्नल को बाइनरी डेटा में बदलकर डिजिटल संचार को कुशल बनाता है।
    • TDM: एक ही चैनल पर कई सिग्नलों को अलग-अलग समय स्लॉट देकर भेजने की सुविधा देता है, जिससे बिना हस्तक्षेप के एक साथ डेटा संचरण संभव होता है।
  • आधुनिक प्रणालियाँ: अब EPABX में VoIP (वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल) का एकीकरण हो चुका है, जिससे वॉइस डेटा को इंटरनेट के माध्यम से भेजा जा सकता है। इससे संचार स्केलेबल और लागत प्रभावी बन गया है।

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रैपिड फायर

लेजर सुरक्षा के लिये सागौन के पत्ते

स्रोत: पी. आई. बी. 

भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि सागौन के पत्तों के अर्क का उपयोग प्राकृतिक, पर्यावरण-अनुकूल ऑप्टिकल लिमिटर के रूप में किया जा सकता है, जो आँखों और संवेदनशील सेंसरों को उच्च-तीव्रता वाले लेज़र विकिरण से बचाता है।

  • सागौन के पत्तों में एंथोसायनिन, गैर-रेखीय ऑप्टिकल (NLO) गुणों वाले प्राकृतिक रंगद्रव्य होते हैं, जो उन्हें लेज़र सुरक्षा चश्मे, ऑप्टिकल शील्ड और लेज़र प्रतिरोधी कोटिंग्स जैसे ऑप्टिकल पावर-सीमित अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त बनाते हैं ।

सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस)

  • परिचय: सागौन (सागवान) एक नम पर्णपाती वृक्ष है, जिसे इसकी स्थायित्व, शक्ति और कीटों, पानी और क्षय के प्रतिरोध के लिये "किंग ऑफ टिंबर/इमारती लकड़ी का राजा" के रूप में जाना जाता है, जो इसे जहाज़ निर्माण, प्रीमियम फर्नीचर, फर्श, बाहरी निर्माण, नक्काशी, टर्निंग और संगीत वाद्ययंत्र के लिये आदर्श बनाता है।
    • भारत में विश्व के 35% सागौन वन हैं, जबकि एशिया में वैश्विक सागौन संसाधनों का 95% हिस्सा है। 
  • भौगोलिक वितरण: इसका मूल स्थान दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया है, जिसमें भारत, म्याँमार, थाईलैंड, लाओस और इंडोनेशिया शामिल हैं।
  • भारत में यह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, असम और पूर्वोत्तर में अच्छी जल निकासी वाली मृदा और पूर्ण सूर्य के प्रकाश में पनपता है।
  • वानस्पतिक विशेषताएँ: सागौन एक बड़ा पर्णपाती वृक्ष है, जिसमें सीधा बेलनाकार तना (1-1.5 मीटर व्यास), विपरीत जोड़ों में आयताकार गहरे हरे रंग की पत्तियाँ और गुच्छों में छोटे, सुगंधित सफेद/क्रीम फूल होते हैं।
  • विनियामक स्थिति: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के तहत सरकारी वनों में हरे पेड़ों की कटाई प्रतिबंधित है, जिससे घरेलू और निर्यात मांगों को पूरा करने के लिये निजी सागौन बागान आवश्यक हो गए हैं।

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रैपिड फायर

पृथ्वी की सबसे प्राचीन ज्ञात चट्टानें

स्रोत: द हिंदू

क्यूबेक (कनाडा) के नुव्वुआगिट्टुक ग्रीनस्टोन बेल्ट में एक ज्वालामुखी चट्टान बेल्ट है, जो 4.16 अरब वर्ष पुरानी है । इसकी पहचान पृथ्वी पर सबसे प्राचीन ज्ञात चट्टान के रूप में की गई है,, जिसकी उत्पत्ति हेडियन एऑन (4.5-4.03 अरब वर्ष पूर्व) से हुई है, जब पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हुआ था।

  • ये चट्टानें ज्वालामुखी बेसाल्ट का रूपांतरण हैं, जो भूमिगत मैग्मा के जमने से बनी थीं तथा पृथ्वी की प्रारंभिक भूपर्पटी, आदिकालीन महासागरों और उस वातावरण से संबंधित संकेत प्रदान करती हैं, जहाँ जीवन की शुरुआत हुई होगी।
  • दो रेडियोधर्मी काल-निर्धारण विधियों (समैरियम-नियोडिमियम क्षय) ने इनकी आयु की पुष्टि की, जिससे ये सबसे प्राचीन ज्ञात अक्षुण्ण चट्टानें बन गईं।
  • ऑस्ट्रेलिया के जिरकोन क्रिस्टल (4.4 अरब वर्ष पुराने) सबसे पुराने खनिज टुकड़े बने हुए हैं, लेकिन क्यूबेक चट्टानें सबसे प्राचीन भूवैज्ञानिक संरचनाएँ हैं।
  • हेडियन एऑन ( 4.5-4.03 अरब वर्ष पूर्व ) को पहले पिघला हुआ नरक (जीवन के लिये अत्यंत कठोर, प्रतिकूल या खतरनाक) माना जाता था, लेकिन साक्ष्य एक ठंडी पपड़ी, उथले महासागर और एक प्रारंभिक वायुमंडल का सुझाव देते हैं।

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