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खराई ऊँट

  • 02 Jul 2025
  • 2 min read

स्रोत: डाउन टू अर्थ

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के बार-बार हस्तक्षेप के बावजूद, गुजरात के कच्छ क्षेत्र में मैंग्रोव वनों का व्यापक विनाश जारी है, जिससे दुर्लभ तैराक खराई ऊँट के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है।

  • खराई ऊँट: यह कच्छ क्षेत्र की देशज प्रजाति है, जो लंबी दूरी तक तैरने और मैंग्रोव वनों में चरने की अपनी दुर्लभ क्षमता के लिये जाना जाता है।
    • 'खराई' शब्द 'खार' से आया है, जिसका अर्थ है खारा (लवणीय), जो इस ऊँट की तटीय लवणीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहने की क्षमता को दर्शाता है। यह ऊँट सीमित चरागाहों में नहीं बल्कि खारे पानी और मुहाना पारिस्थितिकी तंत्र में फलता-फूलता है।
    • खराई ऊँट के पैरों में तैरने के लिये झिल्ली होती है और इनका पाचन तंत्र खारी वनस्पतियों को सहन करने में सक्षम होता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने खराई ऊँट को संकटग्रस्त श्रेणी में वर्गीकृत किया है।
  • पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक महत्त्व: खराई ऊँट मालधारी समुदाय के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, यह पारंपरिक ऊँटपालक समुदाय इन्हें अपने चरागाही विरासत का अभिन्न हिस्सा मानता हैं।
    • खराई ऊँट को एक आनुवंशिक रूप से विशिष्ट नस्ल के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा संकटग्रस्त पशु के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
  • खतरे: तटीय विनियमन क्षेत्र- I में नमक के खेतों, सीमेंट कारखानों और अन्य औद्योगिक गतिविधियों के तेज़ी से विस्तार के कारण मैंग्रोव वनों का बड़े पैमाने पर क्षरण हुआ है।
    • जनसंख्या में भारी गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण आवास का क्षरण और भोजन तक पहुँच की कमी है।

Kharai_Camel

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