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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

गहन आर्थिक आत्मनिर्भरता हेतु भारत के प्रयास

यह एडिटोरियल 13/11/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित Real message of Trump-Xi G2: India must focus on atmanirbharta पर आधारित है। Trump-Xi G2 समिट इस बात का संकेत है कि भारत अब अटूट अमेरिकी समर्थन की अपेक्षा नहीं कर सकता और उसे बदलती वैश्विक व्यवस्था में अपने हितों की रक्षा के लिये आर्थिक आत्मनिर्भरता एवं मज़बूत राष्ट्रीय शक्ति पर आधारित एक व्यावहारिक बहु-संरेखित रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।

प्रिलिम्स के लिये: उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन, प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (PMASBY), औषधि उद्योग सुदृढ़ीकरण योजना (SPI), वंदे भारत ट्रेन

मेन्स के लिये: भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता की गति को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक, संरचनात्मक बाधाएँ आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा में बाधा बनी हुई हैं, मेक इन इंडिया पहल की अपने पहले दस वर्षों में प्रमुख उपलब्धियाँ

वर्ष 2025 में भारत अपनी विदेश नीति के एक परिवर्तनकारी दौर से गुज़र रहा है क्योंकि वैश्विक व्यवस्था अभूतपूर्व रूप से बदल रही है जिसमें Trump-Xi ज़िनपिंग G2 समिट में देखे गए अमेरिका-चीन संबंधों में हाल ही में आई गर्मजोशी भी शामिल है। मज़बूत अमेरिकी समर्थन की पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती देते हुए, भारत को आर्थिक निर्भरताओं, क्षेत्रीय तनावों और विकसित होते वैश्विक गठबंधनों से चिह्नित एक बहुध्रुवीय विश्व में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। यह नया परिदृश्य आर्थिक आत्मनिर्भरता, तकनीकी नवाचार एवं विस्तारित सामरिक साझेदारी पर आधारित बहु-संरेखित, व्यावहारिक दृष्टिकोण की मांग करता है ताकि राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सके और भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका को सुनिश्चित किया जा सके।

भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता की गति को कौन-से प्रमुख कारक बढ़ावा दे रहे हैं?

  • विनिर्माण और औद्योगिक विकास: ₹1.97 लाख करोड़ के परिव्यय वाली उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, चिकित्सा उपकरण, दूरसंचार, ऑटोमोबाइल, विशेष इस्पात, ड्रोन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे 14 महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करती है।
    • PLI योजना घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करती है, निवेश आकर्षित करती है, निर्यात को बढ़ावा देती है, रोज़गार सृजन करती है और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण को बढ़ावा देती है।
    • केंद्रीय बजट (2025-26) में शुरू किया गया राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM), प्राथमिक क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता के विस्तार तथा प्रौद्योगिकी अंगीकरण हेतु आवश्यक सहयोग प्रदान करता है।
  • कृषि में प्रगति में तेज़ी: दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन (वर्ष 2025-2031) का उद्देश्य घरेलू दलहन उत्पादन को बढ़ाकर, आयात पर निर्भरता को कम करके और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करके आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। सरकार NAFED के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीद सुनिश्चित करती है।
    • कृषि अवसंरचना कोष (₹1 लाख करोड़) किसानों को सशक्त बनाने एवं बाज़ार संपर्कों को बेहतर बनाने के लिये फार्म-गेट अवसंरचना, एकत्रीकरण केंद्रों और आपूर्ति शृंखलाओं को वित्तपोषित करता है।
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और संबद्ध योजनाएँ प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करती हैं, जबकि उर्वरक आत्मनिर्भरता पर बल आयात की भेद्यता को कम करता है।
  • स्वास्थ्य सेवा और महामारी की तैयारी: ₹64,180 करोड़ के परिव्यय वाली प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना (PMASBY) ग्रामीण स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों, सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन निगरानी और प्रयोगशाला नेटवर्क सहित स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना को सुदृढ़ करती है।
    • ₹500 करोड़ के बजट और PLI योजनाओं के साथ फार्मास्युटिकल उद्योग को सुदृढ़ बनाने वाली फार्मास्युटिकल उद्योग सुदृढ़ीकरण योजना (SPI) के माध्यम से फार्मास्युटिकल उद्योग को मज़बूत बनाने का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण फार्मास्युटिकल अवयवों एवं उपकरणों पर आयात निर्भरता को कम करना है।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल सॉवरेनिटी: भारत वर्ष 2025 के अंत तक मेड इन इंडिया सेमीकंडक्टर चिप्स को बाज़ार में प्रस्तुत करने की योजना बना रहा है, जिससे उसके सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूती मिलेगी।
    • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) प्रतिदिन 650 मिलियन से अधिक लेन-देन संसाधित करता है, जिससे वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलता है।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), साइबर सुरक्षा और डिजिटल अवसंरचना में निवेश तकनीकी स्वायत्तता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • ऊर्जा और संसाधन सुरक्षा: महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के कारण भारत वर्ष 2025 तक अपनी स्वच्छ ऊर्जा क्षमता का 50% पार कर गया है।
    • महत्त्वपूर्ण खनिजों की खोज और गहन जल संसाधनों पर केंद्रित मिशन ऊर्जा स्वतंत्रता एवं औद्योगिक कच्चे माल की सुरक्षा का समर्थन करते हैं।
  • रक्षा क्षेत्र की स्वायत्तता: भारत ने रक्षा निर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी है, जिससे स्वदेशी उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है तथा आयात पर निर्भरता कम हुई है।
    • स्वदेशी जेट इंजन विकास और स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं पर इसका ध्यान रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाता है।
  • MSME और व्यवसाय सशक्तीकरण: उपायों में ₹3 लाख करोड़ तक के संपार्श्विक-मुक्त स्वचालित ऋण, MSME इक्विटी सहायता के लिये कॉर्पस फंड और संकटग्रस्त इकाइयों को पुनर्जीवित करने के लिये अधीनस्थ ऋण योजनाएँ शामिल हैं।
    • नए लागू किये गए सरलीकृत MSME वर्गीकरण से लाभ के लिये पात्र इकाइयों की संख्या में वृद्धि हुई है।
      • कर कटौती, जैसे कि कम TDS एवं TCS दरें, चलनिधि और व्यापार-सुगमता में सुधार करती हैं।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में निजीकरण नीति सुधारों का उद्देश्य रणनीतिक क्षेत्रों को बनाए रखते हुए प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाना है।
  • रोज़गार सृजन को बढ़ावा: आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना औपचारिक क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करती है।
    • MGNREGA के लिये विस्तारित धनराशि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हुए ग्रामीण गरीबों की आजीविका सुरक्षा का समर्थन करती है।
    • कौशल भारत मिशन उद्योग कौशल की माँगों को पूरा करने के लिये प्रतिवर्ष लाखों लोगों को प्रशिक्षित करता है।
    • स्टार्टअप इंडिया उद्यमिता को बढ़ावा देता है, रोज़गार और नवाचार का सृजन करता है।
    • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) स्वरोज़गार को बढ़ावा देने वाले सूक्ष्म उद्यमों का समर्थन करता है।

आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा में कौन-सी संरचनात्मक बाधाएँ बाधा बन रही हैं?

  • श्रम बाज़ार की कठोरता और कम कार्यबल सहभागिता: भारत की कार्यबल सहभागिता दर 24% (वर्ष 2024) से घटकर 19% (वर्ष 2025) हो गई, जो वैश्विक स्तर पर सबसे तीव्र गिरावट है।
    • श्रम बाज़ार कठोर बना हुआ है, जहाँ जटिल श्रम कानून, 80% अनौपचारिक कार्यबल, सीमित सामाजिक सुरक्षा एवं कमज़ोर कौशल विकास है। कम सहभागिता उत्पादकता और औपचारिक रोज़गार सृजन को कम करती है।
    • ऑन-साइट कर्मचारी हाइब्रिड (19%) और रिमोट (8%) कर्मचारियों की तुलना में अधिक सहभागिता (21%) दिखाते हैं; युवा सहभागिता (18-26 वर्ष) सबसे कम 15% है।
  • कौशल बेमेल और शिक्षा-रोज़गार अंतर: केवल 8.25% स्नातक अपनी योग्यता के अनुरूप भूमिकाओं में काम करते हैं; कई कम-कुशल नौकरियाँ करते हैं।
    • AI जैसी उभरती तकनीक में 51% प्रतिभा अंतर मौजूद है। भारत में युवा बेरोज़गारी (10.2%) बहुत अधिक है, जबकि शहरी क्षेत्रों में महिला बेरोज़गारी दर 20.1% है। यह असंतुलन उन्नत विनिर्माण के अंगीकरण की गति को धीमा करता है तथा उत्पादकता को कम करता है।
  • जटिल भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाएँ: विधिक जटिलताएँ और सामुदायिक प्रतिरोध औद्योगिक और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में विलंब करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, ओडिशा में POSCO स्टील प्लांट परियोजना, जो कभी सबसे बड़ी प्रस्तावित FDI परियोजनाओं में से एक थी, भूमि अधिग्रहण के मुद्दों और स्थानीय प्रतिरोध के कारण वर्षों तक रुकी रही, जिसके परिणामस्वरूप अंततः कंपनी को इससे पीछे हटना पड़ा।
    • ये विलंब परियोजना लागत बढ़ाती है, निवेशकों को हतोत्साहित करती है और विनिर्माण विस्तार में बाधा डालती है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण हिस्सेदारी का प्रतिशत स्थिर रहता है, जो प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में कम है।
  • अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और उच्च रसद लागत: बिजली, परिवहन, भंडारण और बंदरगाहों में लगातार अक्षमताएँ भारत की रसद लागत में योगदान करती हैं (सत्र 2023-24 के लिये सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 7.97%, जो पहले के 13-14% के अनुमान से उल्लेखनीय सुधार है)।
    • प्रगति के बावजूद, रेल परिवहन में परिचालन संबंधी अड़चनें, सड़क वस्तु परिवहन में अनियंत्रित मूल्य निर्धारण और क्षेत्रीय हवाई अड्डों पर अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • उच्च लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करती है और आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करती है, जिससे निर्यात वृद्धि धीमी हो जाती है।
  • जटिल नियामक वातावरण और संरक्षणवाद: उच्च टैरिफ दरें और जटिल नियम भारत के वैश्विक मूल्य शृंखला एकीकरण को बाधित करते हैं।
    • भारत का वैश्विक व्यापार हिस्सा 1.8% पर कम बना हुआ है। संरक्षणवाद पर अत्यधिक निर्भरता नवाचार और बाज़ार विविधीकरण को बाधित कर सकती है।
    • सुधारों के बावजूद, सकल घरेलू उत्पाद में 30% का योगदान देने वाले MSME, उच्च उधार लागत और संपार्श्विक आवश्यकताओं के कारण किफायती, दीर्घकालिक ऋण प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • राजनीतिक हिचकिचाहट और सामाजिक प्रतिरोध के कारण श्रम, भूमि और पूंजी बाज़ार में सुधार धीमे हैं।
    • खंडित राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन एक एकीकृत, व्यापार-अनुकूल वातावरण को कमज़ोर करता है, जिससे विनिर्माण विकास एवं निवेश की गति धीमी हो जाती है।
  • वैश्विक भू-राजनीतिक अस्थिरता और आपूर्ति शृंखला जोखिम: भारत की बाह्य आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के लिये, इसे वैश्विक आघात के प्रति संवेदनशील बनाती है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत को API (एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स) के आयात में गंभीर व्यवधानों का सामना करना पड़ा, जिसका 70% आयात चीन से हुआ।
    • आवश्यक प्रौद्योगिकियों, रक्षा हार्डवेयर और सेमीकंडक्टरों के लिये कुछ देशों पर अत्यधिक निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर करती है।
      • भारत अपनी 90% से अधिक सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं का आयात करता है, जिससे घरेलू चिप निर्माण एक रणनीतिक अनिवार्यता बन जाती है।
    • भारत अपने कच्चे तेल का 85% से अधिक और प्राकृतिक गैस का 50% से अधिक आयात करता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा वैश्विक मूल्य में उतार-चढ़ाव एवं भू-राजनीतिक संकटों के प्रति सुभेद्य हो जाती है।

मेक इन इंडिया पहल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • वैश्विक टीकाकरण नेतृत्व: स्वदेशी वैक्सीन उत्पादन की क्षमता के बल पर भारत ने देश-व्यापी कोविड-19 टीकाकरण को तीव्र गति से संपन्न किया और वैश्विक स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता के रूप में उभरा। भारत विश्व की कुल वैक्सीनों का लगभग 60 प्रतिशत उत्पादन करता है अर्थात् वैश्विक स्तर पर उपयोग की जाने वाली प्रत्येक दूसरी वैक्सीन भारत में निर्मित होती है। 
  • वंदे भारत ट्रेनें: भारत की पहली स्वदेशी सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनें उन्नत घरेलू इंजीनियरिंग का उदाहरण हैं।
    • 102 वंदे भारत सेवाएँ (51 ट्रेनें) चालू हैं, जो आधुनिक रेल प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती क्षमता को दर्शाती हैं।
  • रक्षा आत्मनिर्भरता: भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत, INS विक्रांत का जलावतरण, रक्षा विनिर्माण में एक बड़ी उपलब्धि है।
    • सत्र 2023-24 में रक्षा उत्पादन ₹1.27 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जिसका निर्यात 90 से अधिक देशों को हुआ।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में वृद्धि: भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग वित्त वर्ष 2023 में 155 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, और वित्त वर्ष 2017 की तुलना में उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है।
    • मोबाइल फोन निर्माण अब कुल उत्पादन में 43% का योगदान देता है, जिसमें 99% स्मार्टफोन घरेलू स्तर पर उत्पादित होते हैं, जिससे भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता बन गया है।
  • रिकॉर्ड व्यापारिक निर्यात: भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 437.06 बिलियन डॉलर का व्यापारिक निर्यात दर्ज किया, जिससे वैश्विक व्यापार में इसकी स्थिति मज़बूत हुई।
  • बढ़ता साइकिल निर्यात: यूके, जर्मनी और नीदरलैंड जैसे देशों में भारतीय साइकिलों की भारी माँग है, जो भारतीय इंजीनियरिंग में दृढ़ वैश्विक विश्वास को दर्शाता है।
  • वैश्विक रक्षा सहायक उपकरण बाज़ार: 'मेड इन बिहार' बूट अब रूसी सेना द्वारा उपयोग किये जाते हैं, जो रक्षा-संबंधी विनिर्माण में भारत के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
  • कश्मीर विलो बैट: कश्मीर विलो क्रिकेट बैट ने वैश्विक लोकप्रियता अर्जित की है, जो भारत के शिल्प कौशल और सांस्कृतिक प्रभाव का प्रतीक है।
  • अमूल का वैश्विक विस्तार: अमूल ने अमेरिकी बाज़ार में अपने डेयरी उत्पाद लॉन्च किये हैं, जो भारतीय ब्रांड और स्वाद की अंतर्राष्ट्रीय अपील को प्रदर्शित करते हैं।
  • वस्त्र उद्योग में व्यापक रोज़गार सृजन: भारत के वस्त्र उद्योग ने 14.5 करोड़ रोज़गार सृजित किये हैं, जो रोज़गार और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • खिलौना निर्माण में वृद्धि: भारत अब सालाना 40 करोड़ खिलौनों का उत्पादन करता है और हर सेकंड 10 नए खिलौने बनते हैं, जो घरेलू खिलौना निर्माण में तेज़ी से हो रहे विस्तार को दर्शाता है।

आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर भारत के मार्ग को सुदृढ़ करने के लिये किन प्रमुख उपायों की आवश्यकता है?

  • श्रम बाज़ार सुधार और कौशल विकास: भारत को श्रमिक शक्ति की अनुकूलनशीलता को बढ़ाने तथा औपचारिक रोज़गार का विस्तार करने हेतु अपने श्रम कानूनों का आधुनिकीकरण करना चाहिये। इस संदर्भ में जर्मनी के ‘द्वैध व्यावसायिक प्रशिक्षण’ मॉडल से सीख ली जा सकती है, जो शिक्षा को प्रशिक्षुता के साथ संयोजित करता है।
    • सरकार को स्किल इंडिया मिशन के तहत लक्षित कौशल विकास को बढ़ावा देना चाहिये और उद्योग-संस्थान संबंधों को बढ़ाना चाहिये ताकि गंभीर कौशल असंतुलन को समाप्त किया जा सके, जहाँ केवल लगभग 8.25% स्नातक ही उपयुक्त नौकरियों में काम करते हैं।
    • 22% महिला सहभागिता दर और 20.1% महिला युवा बेरोज़गारी को देखते हुए, सुरक्षित कार्य वातावरण, मातृत्व लाभ एवं लचीले कार्य विकल्पों के माध्यम से महिला श्रम भागीदारी को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
  • भूमि अधिग्रहण और बुनियादी अवसंरचना में वृद्धि: दक्षिण कोरिया के भूमि विकास मॉडल के समान, एक एकीकृत राष्ट्रीय अधिनियम और डिजिटल भूमि रिकॉर्ड के माध्यम से भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करने से परियोजना में विलंब एवं निवेश अनिश्चितता कम होगी।
    • केंद्रीय बजट (2025) का राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन और PM गतिशक्ति महत्त्वपूर्ण कदम हैं; भारत की लॉजिस्टिक्स लागतों पर नियंत्रण रखने, दक्षता में सुधार लाने तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये इनमें तेज़ी लानी होगी।
  • नियामक वातावरण और व्यापार सुविधा का सरलीकरण: टैरिफ को युक्तिसंगत बनाना, सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाना और विश्व व्यापार संगठन की सर्वोत्तम प्रथाओं का अंगीकरण भारत के वैश्विक व्यापार हिस्से (1.8%) को बढ़ाएगा।
    • सरकार को एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड और डिजिटल इंडिया पहलों का विस्तार करना चाहिये जो अनुपालन बोझ को कम करते हैं, उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करते हैं तथा NITI आयोग एवं आर्थिक सर्वेक्षण जैसी समितियों की सिफारिशों के अनुरूप स्थानीय उत्पादकों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करते हैं।
  • MSME के लिये वित्त और पूंजी बाज़ार को गहन करना: क्रेडिट गारंटी फंड योजना के तहत, संपार्श्विक-मुक्त ऋणों के साथ संस्थागत ऋण का विस्तार करना और किफायती ऋण प्रदान करने के लिये फिनटेक समाधान पेश करना MSME विकास (जीडीपी में लगभग 30% योगदान) को गति दे सकता है।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) MSME के लिये अनुकूलित नवीन वित्तपोषण मॉडल का समर्थन कर सकती है, जो उच्च पूंजीगत लागतों को कम करती है जो वर्तमान में प्रौद्योगिकी अंगीकरण और विस्तार को प्रतिबंधित करती हैं।
  • शिक्षा और प्रशिक्षण की गुणवत्ता और प्रासंगिकता बढ़ाना: उभरते क्षेत्र के कौशल के साथ पाठ्यक्रम को संरेखित करना और STEM शिक्षा का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है।
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण और डिजिटल साक्षरता में सुधार के लिये नई शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन को त्वरित किया जाना चाहिये, ताकि इलेक्ट्रॉनिक्स एवं बायोटेक जैसी PLI योजनाओं के तहत प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिये कार्यबल तैयार किया जा सके।
    • वैश्विक विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय मानक एवं नवीन शिक्षाशास्त्र का विकास होगा।
  • स्वदेशी नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना: रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) व इलेक्ट्रॉनिक्स घटक योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास तथा स्टार्टअप में निवेश से सेमीकंडक्टर और AI सहित अत्याधुनिक तकनीकों को बढ़ावा मिलता है।
    • भारत को एक सुदृढ़ बौद्धिक संपदा व्यवस्था को बढ़ावा देना चाहिये और जापान जैसे देशों के औद्योगिक समूहों से प्रेरणा लेते हुए विनिर्माण क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अंगीकरण को आसान बनाना चाहिये, जो आपूर्तिकर्त्ताओं एवं नवाचार केंद्रों को एकीकृत करते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा और समावेशी विकास के उपायों का विस्तार: एक बड़े अनौपचारिक कार्यबल के साथ, भारत को सामाजिक सुरक्षा जाल को बढ़ाना चाहिये, जिसमें प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना के तहत परिकल्पित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज भी शामिल है और अधिक स्थिर आजीविका के लिये गिग वर्कर्स एवं अनुबंधित श्रमिकों के औपचारिकीकरण को बढ़ावा देना होगा।
    • ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना एवं डिजिटल कनेक्टिविटी में निवेश से शहरी-ग्रामीण असमानताएँ कम होंगी और समावेशी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष:

भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता एक समृद्ध भविष्य के निर्माण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आत्मनिर्भरता समय की आवश्यकता है। आत्मनिर्भरता एक विकसित भारत के निर्माण की आधारशिला है।” 

इस दृष्टिकोण को साकार करने के लिये, भारत को श्रम सुधारों को आगे बढ़ाने, भूमि अधिग्रहण को सुव्यवस्थित करने, नियमों को सरल बनाने, MSME वित्तपोषण को सुदृढ़ करने, शिक्षा को उद्योग के साथ जोड़ने, स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देने और समावेशी सामाजिक कल्याण का विस्तार करने की आवश्यकता है। यह एकीकृत दृष्टिकोण भारत को वर्ष 2047 तक एक सतत्, विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी और विकसित राष्ट्र बनने के लिये सशक्त बनाएगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. “वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हुए भारत के लिये आत्मनिर्भरता एक रणनीतिक अनिवार्यता बन गयी है।” इस परिवर्तन को अवरुद्ध करने वाली प्रमुख संरचनात्मक और शासन-संबद्ध बाधाएँ कौन-सी हैं?

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1. उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, निर्यात को बढ़ावा देना और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करना है।

प्रश्न 2. स्वास्थ्य सेवा स्वायत्तता के लिये प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना का क्या महत्त्व है?
यह सार्वजनिक स्वास्थ्य तैयारियों का विस्तार करती है, ग्रामीण एवं परीक्षण बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करती है और आयातित चिकित्सा प्रणालियों पर निर्भरता कम करती है।

प्रश्न 3. आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की प्रगति में कौन-सी संरचनात्मक बाधाएँ हैं?
प्रमुख बाधाओं में श्रम कठोरता, कौशल बेमेल, भूमि अधिग्रहण में विलंब, उच्च रसद लागत, नियामक जटिलता, MSME ऋण की कमज़ोर अभिगम्यता और भू-राजनीतिक आपूर्ति-शृंखला की कमज़ोरियाँ शामिल हैं।

प्रश्न 4. मेक इन इंडिया पहल ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं को किस प्रकार सुदृढ़ किया है?
इस पहल ने टीके, रेलवे, रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़ा, खिलौने जैसे क्षेत्रों में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया और व्यापक वैश्विक निर्यात फूटप्रिंटों को सक्षम किया।

प्रश्न 5. भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाने के लिये कौन-से नीतिगत उपाय महत्त्वपूर्ण हैं?
श्रम, भूमि, रसद, MSME ऋण, शिक्षा-कौशल संरेखण, नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और समावेशी सामाजिक सुरक्षा में सुधार दीर्घकालिक समुत्थानशीलता प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है?  (2015) 

(a) कोयला उत्पादन

(b) विद्युत् उत्पादन

(c) उर्वरक उत्पादन

(d) इस्पात उत्पादन 

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न 1. “सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।” कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किए गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं ? (2017)

प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं ? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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