ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 31 Jan, 2022
  • 57 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-लिथुआनिया तनाव

प्रिलिम्स के लिये:

लिथुआनिया की अवस्थिति, चीन का ‘16+1’ सहयोग मंच

मेन्स के लिये:

चीन-लिथुआनिया तनाव और भारत के हित, ताइवान पर भारत की नीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संघ ने लिथुआनिया को निशाना बनाने और आर्थिक प्रतिबंध लगाने हेतु ‘विश्व व्यापार संगठन’ (WTO) में चीन के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है।

Lithuania

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • नवंबर 2021 में लिथुआनिया में एक ताइवानी प्रतिनिधि कार्यालय खोला गया था। उल्लेखनीय है कि यह पहली बार है जब ताइवान को यूरोपीय संघ के भीतर एक कार्यालय खोलने के लिये अपने नाम का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी।
    • इसके पश्चात् चीन ने लिथुआनिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों को डाउनग्रेड करते हुए इसे ‘वन चाइना पॉलिसी’ का उल्लंघन बताया था। चीन ने लिथुआनिया के उत्पादों का अनौपचारिक रूप से बहिष्कार भी किया है, चाहे वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश से प्राप्त किया गया हो।
      • चीन का आरोप है कि लिथुआनिया ताइवान का उपयोग करके और चीन एवं यूरोप के बीच कलह फैलाने हेतु अमेरिकी के साथ मिलकर काम कर रहा है।
      • 'वन चाइना पॉलिसी' का अर्थ है कि चीनी जनवादी गणराज्य (मेनलैंड चाइना) के साथ राजनयिक संबंध चाहने वाले देशों को चीनी गणराज्य (ताइवान) के साथ आधिकारिक संबंध तोड़ना चाहिये।
  • विश्व व्यापार संगठन में कार्रवाई:
    • विश्व व्यापार संगठन में जाकर यूरोपीय संघ ने लिथुआनिया के व्यापारिक प्रतिनिधियों और अधिकारियों के आरोपों का समर्थन किया है, जिनके मुताबिक, चीन ने लिथुआनिया से आयात को अवरुद्ध कर दिया है और अन्य आर्थिक प्रतिबंध लागू किये हैं।
      • गौरतलब है कि लिथुआनिया के आयात पर चीन की कार्रवाई अन्य यूरोपीय देशों को भी प्रभावित करती है।
      • इसके अलावा चीन ने फ्राँस, जर्मनी और स्वीडन जैसे देशों से माल के आयात पर भी व्यापार प्रतिबंध लगाया है, क्योंकि ये भी लिथुआनिया की आपूर्ति शृंखला का हिस्सा हैं।
      • यूरोपीय संघ वर्तमान में चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और लिथुआनिया के निर्यात का लगभग 80-90% शेष यूरोपीय संघ के साथ विनिर्माण अनुबंधों पर आधारित है।
    • विवाद को एक पैनल के समक्ष ले जाने से पहले दोनों पक्षों के बीच समाधान के लिये 60 दिन की अवधि निर्धारित की गई थी।
  • लिथुआनिया द्वारा चीन का प्रतिरोध करने के कारण:
    • घरेलू कारण:
      • कुछ हद तक चीन के खिलाफ लिथुआनिया के वर्तमान विरोध को वर्ष 2020 में सरकार के परिवर्तन के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
      • लिथुआनिया की नई सरकार लोकतंत्र और स्वतंत्रता की "मूल्य-आधारित" विदेश नीति का समर्थन करती है जिसने स्पष्ट रूप से वर्ष 2020 में ही ताइवान के लिये अपना समर्थन प्रदान किया।
    • भू-राजनीतिक कारण:
      • यह यूरोपीय संघ पर पूर्वी यूरोप में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और लिथुआनिया के प्रतिकूल पड़ोसियों, रूस व बेलारूस के साथ नाटो के पतन का कारण भी है।
        • लिथुआनिया सोवियत संघ से एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बाहर होने वाला प्रथम राज्य है। इसका चीन के विरुद्ध खड़े होने के लिये इसका अपना ऐतिहासिक संदर्भ और वैचारिक तर्क है।
      • पश्चिम के खिलाफ बढ़ती चीन-रूस साझेदारी ने भी लिथुआनिया को चीन के प्रति सतर्क कर दिया है।
    • अन्य कारण:
      • शिनजियांग और हॉन्गकॉन्ग के मुद्दों पर लिथुआनिया यूरोपीय संघ के देशों में चीन के सबसे बड़े आलोचकों में से एक रहा है।
      • लिथुआनिया ने कोविड -19 महामारी के मद्देनजर चीन के विरोध के बावजूद वर्ष 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन में पर्यवेक्षक बनने के लिये ताइवान का समर्थन किया।
      • इसके अलावा लिथुआनिया का तर्क है कि आर्थिक संबंध केवल लोकतांत्रिक शासन के साथ ही टिकाऊ हो सकते हैं, जिस कारण लिथुआनिया एवं चीन के बीच तनाव और बढ़ गया है।
        • मई 2021 में लिथुआनिया ने मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ चीन के 17+1 सहयोग मंच को "विभाजनकारी" कहकर स्वयं को इससे अलग कर लिया जिस कारण यह अब 16+1 देशों का ही समूह है।
        • लिथुआनिया इस समूह का पहला देश है जिसने इससे अलग होने का कारण चीन की आर्थिक गैर-पारस्परिकता व यूरोप की अखंडता के लिये खतरा बताया है।
      • सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए लिथुआनिया ने अपने देश के लोगों को चीन में बने स्मार्टफोन खरीदने से बचने की सलाह दी है और चीन को अपने क्लेपेडा बंदरगाह में नियंत्रण हिस्सेदारी तथा अपनी 5G अवसंरचना बोलियों (5G Infrastructure Bids) से भी दूर रखा है।
  • भू-राजनीतिक नतीजा:
    • ताइवान ने चीन के दबाव के कारण लिथुआनियाई अर्थव्यवस्था की भरपाई के प्रयास किये हैं।
      • लिथुआनियाई रम की लगभग 20,000 बोतलें जो चीन के लिये बाध्य थीं, ताइवान द्वारा समर्थन के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में खरीदी गई
      • लिथुआनिया के आर्थिक नुकसान की भरपाई में मदद के लिये ताइवान 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर की निवेश योजना लेकर आया है।
      • विशेष रूप से वर्तमान अर्द्धचालक आपूर्ति की कमी को देखते हुए यह भी माना जाता है कि यूरोपीय संघ के बाज़ार तक पहुँचने हेतु लिथुआनिया को ताइवान का प्रवेश द्वार बनाया गया है।
      • ताइवान लिथुआनियाई व्यवसायों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का क्रेडिट कार्यक्रम शुरू करने की भी योजना बना रहा है।
    • अमेरिका ने लिथुआनिया के साथ एकजुटता व्यक्त करने वाले जर्मनी जैसे यूरोपीय संघ के देशों के साथ-साथ ताइवान पर लिथुआनिया को मजबूर करने के चीन के प्रयासों के बारे में चिंता व्यक्त की है।

आगे की राह

  • लिथुआनिया-चीन तनाव से परे भारत के लिये विशेष रूप से यह ज़रूरी है कि यूरोपीय संघ एक प्रमुख शक्ति के रूप में चीन के साथ संबंधों को कैसे आगे बढ़ाएगा क्योंकि यह समान रूप से तेज़ी से बढ़ते व्यापारिक संबंधों के खिलाफ रणनीतिक विचारों को प्रदर्शित करता है।
    • चीन द्वारा व्यापार का अनुचित उपयोग, जो संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता की 50वीं वर्षगाँठ पर इसकी घोषणा के बिल्कुल विपरीत है तथा इसके साथ ही एक और चिंता का विषय यह है कि वह "सत्ता की राजनीति" और "आधिपत्य" से बचता है।
    • लिथुआनिया के साथ चीन का व्यापार अधिशेष एक अपवाद है तथा चीन के बाज़ार तक पहुँचने के लिये किसी प्रकार के दबाव की आवश्यकता नहीं है।
  • भारत, ताइवान के मुद्दे पर चीन के मुकाबले लाभों और लागतों का आकलन करने के लिये यूरोपीय संघ के कदम पर करीब से नज़र रखेगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र– चरण-II में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने की योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजीगत सामान, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, मुक्त व्यापार समझौता।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का महत्त्व, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

भारी उद्योग मंत्रालय ने भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र– चरण-II में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने की योजना की अधिसूचना जारी कर दी है, ताकि सामान्य प्रौद्योगिकी विकास और सेवा अवसंरचना को सहायता प्रदान की जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने वाली इस योजना के दूसरे चरण का उद्देश्‍य पहले चरण की प्रायोगिक योजना के प्रभाव को विस्तार देना और उसे आगे बढ़ाना है। इस तरह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा योग्य पूंजीगत वस्तु क्षेत्र की मज़बूत रचना करके उसमें तेज़ी लाई जाएगी। उल्लेखनीय है कि यह क्षेत्र निर्माण क्षेत्र में कम से कम 25 प्रतिशत का योगदान करता है।
      • प्रौद्योगिकी विकास और बुनियादी ढाँचे के निर्माण को प्रोत्साहित करने हेतु नवंबर 2014 में 'भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि' योजना को अधिसूचित किया गया था।
  • वित्तीय परिव्यय:
    • इस योजना में 975 करोड़ रुपए के बजटीय समर्थन और 232 करोड़ रुपए के उद्योग योगदान के साथ 1207 करोड़ रुपए का वित्तीय परिव्यय शामिल है।
  • घटक:
    • प्रौद्योगिकी नवाचार पोर्टल के माध्यम से प्रौद्योगिकियों की पहचान।
    • चार नए ‘उन्नत उत्कृष्टता केंद्रों’ की स्थापना और मौजूदा उत्कृष्टता केंद्रों का विस्तार।
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देना-कौशल स्तर 6 और उससे ऊपर के लिये योग्यता पैकेज बनाना।
    • चार ‘कॉमन इंजीनियरिंग फैसिलिटी सेंटर्स’ (CEFCs) की स्थापना और मौजूदा CEFCs का संवर्द्धन।
    • मौजूदा परीक्षण और प्रमाणन केंद्रों का विस्तार।
    • दस ‘इंडस्ट्री एक्सेलरेटर्स फॉर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट’ की स्थापना करना।

भारतीय पूंजीगत वस्तु क्षेत्र:

  • पूंजीगत वस्तुएँ:
    • पूंजीगत वस्तुएँ (Capital Goods) भौतिक संपत्तियांँ हैं जिन्हें एक कंपनी उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादों और सेवाओं के निर्माण हेतु उपयोग करती है तथा जिनका बाद में उपभोक्ताओं द्वारा  उपयोग किया जाता है।
    • पूंजीगत वस्तुओं में भवन, मशीनरी, उपकरण, वाहन और उपकरण शामिल हैं।
    • पूंजीगत वस्तुएंँ तैयार माल नहीं होतीं बल्कि उनका उपयोग माल को निर्मित करने के लिये किया जाता है।
    • पूंजीगत वस्तु क्षेत्र का गुणक प्रभाव होता है और उपयोगकर्त्ता उद्योगों के विकास पर इसका असर पड़ता है क्योंकि यह विनिर्माण गतिविधि के अंतर्गत आने वाले शेष क्षेत्रों को महत्त्वपूर्ण  इनपुट, यानी मशीनरी और उपकरण प्रदान करता है। 
  • परिदृश्य:
    • पूंजीगत वस्तु उद्योग का कुल विनिर्माण गतिविधि में 12% का योगदान है जो सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8% है।
    • यह लगभग 1.4 मिलियन प्रत्यक्ष और 7 मिलियन अप्रत्यक्ष रोज़गार प्रदान करता है।.
  • संबंधित नीतियांँ:
    • इस क्षेत्र के लिये किसी औद्योगिक लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती है।
    • स्वत: मार्ग (RBI के माध्यम से) पर 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है।
    • विदेशी सहयोगी को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, डिज़ाइन और ड्राइंग, रॉयल्टी आदि के लिये भुगतान की मात्रा की कोई सीमा नहीं है।
    • आमतौर पर अधिकतम मूल सीमा शुल्क दर ( maximum basic customs duty rate) 7.5-10% है।
    • भारत ने कई मुक्त व्यापार समझौते (FTA) दर्ज किये हैं, जिसमें शुल्क की दरें और भी कम हैं तथा परियोजना आयात सुविधा के तहत कम शुल्क दरें भी उपलब्ध हैं।
    • विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT), वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कच्चे माल, उपभोग्य सामग्रियों एवं घटकों के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देकर निर्यात को बढ़ावा दिया जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves)

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार और उसके घटक।

मेन्स के लिये:

विदेशी मुद्रा भंडार रखने के उद्देश्य और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के हालिया आंँकड़ों के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange- Forex)  21, जनवरी 2022 को समाप्त सप्ताह के दौरान 678 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की गिरावट के साथ 634.287 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुंँच गया।

  • भंडार में गिरावट विदेशी मुद्रा आस्तियों (Foreign Currency Assets- FCA) में गिरावट के कारण थी जो समग्र भंडार का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। समीक्षाधीन सप्ताह में FCA 1.155 अरब डॉलर घटकर 569.582 अरब डॉलर रह गया।
  • रिपोर्ट किये गए सप्ताह में सोने का भंडार 567 मिलियन अमरीकी डॉलर बढ़कर 40.337 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ विशेष आहरण अधिकार (SDR) 68 मिलियन अमेरिकी डाॅलर से  गिरकर 19.152 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया।

प्रमुख बिंदु 

  • विदेशी मुद्रा भंडार:
    • विदेशी मुद्रा भंडार का आशय केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा में आरक्षित संपत्ति से होता है, जिसमें बाॅण्ड, ट्रेज़री बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियाँ शामिल होती हैं।
      • गौरतलब है कि अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आरक्षित किये जाते हैं।
    • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
  • विदेशी मुद्रा भंडार का उद्देश्य:
    • मौद्रिक और विनिमय दर प्रबंधन हेतु निर्मित नीतियों के प्रति समर्थन व विश्वास बनाए रखना।
    • यह राष्ट्रीय या संघ मुद्रा के समर्थन में हस्तक्षेप करने की क्षमता प्रदान करता है।
    • संकट के समय या जब उधार लेने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है, तो संकट के समाधान के लिये विदेशी मुद्रा तरलता को बनाए रखते हुए बाहरी प्रभाव को सीमित करता है।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का महत्त्व:
    • सरकार के लिये बेहतर स्थिति: विदेशी मुद्रा भंडार में हो रही बढ़ोतरी भारत के बाहरी और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में सरकार तथा रिज़र्व बैंक को बेहतर स्थिति प्रदान करता है।
    • संकट प्रबंधन: यह आर्थिक मोर्चे पर भुगतान संतुलन (BoP) संकट की स्थिति से निपटने में मदद करता है।
    • रुपया मूल्यह्रास (Rupee Appreciation): बढ़ते भंडार ने डॉलर के मुकाबले रुपए को मज़बूत करने में मदद की है।
    • बाज़ार में विश्वास: भंडार बाज़ारों और निवेशकों को विश्वास का एक स्तर प्रदान करेगा जिससे एक देश अपने बाहरी दायित्वों को पूरा कर सकता है।

विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCA):

  • FCA ऐसी संपत्तियाँ हैं जिनका मूल्यांकन देश की स्वयं की मुद्रा के अलावा किसी अन्य मुद्रा के आधार पर किया जाता है।
  • FCA  विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है। इसे डॉलर के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • FCA  में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्रा की कीमतों में उतार-चढ़ाव या मूल्यह्रास का प्रभाव पड़ता है।

विशेष आहरण अधिकार (SDRs):

  • विशेष आहरण अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) द्वारा 1969 में अपने सदस्य देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया गया था।
  • SDR न तो एक मुद्रा है और न ही IMF पर इसका दावा किया जा सकता है। बल्कि यह IMF के सदस्यों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने योग्य मुद्राओं पर एक संभावित दावा है। इन मुद्राओं के लिये SDR का आदान-प्रदान किया जा सकता है।
  • SDR के मूल्य की गणना ‘बास्केट ऑफ करेंसी’ में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर की जाती है। इस बास्केट में पाँच देशों की मुद्राएँ शामिल हैं- अमेरिकी डॉलर, यूरोप का यूरो, चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी, जापानी येन और ब्रिटेन का पाउंड।
  • SDRs या SDRi पर ब्याज दर सदस्यों को उनके SDR होल्डिंग्स पर दिया जाने वाला ब्याज है।
  • हाल ही में IMF ने भारत को SDR 12.57 बिलियन (लगभग 17.86 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर) का आवंटन किया है। अब भारत की कुल होल्डिंग्स 13.66 बिलियन SDR है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में आरक्षित स्थिति:

  • एक की रिज़र्व ट्रेन्च स्थिति का तात्पर्य मुद्रा के आवश्यक कोटे के एक हिस्से से है जो प्रत्येक सदस्य देश को आईएमएफ को प्रदान करना चाहिये, जिसका उपयोग अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिये किया जा सकता है।
  • रिज़र्व ट्रेन्च वह मुद्रा होती है जिसे प्रत्येक सदस्य देश द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) को प्रदान किया जाता है और जिसका उपयोग वे देश अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिये कर सकते हैं। इस मुद्रा का प्रयोग सामान्यतः आपातकाल की स्थिति में किया जाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

बजट का निर्माण

प्रिलिम्स के लिये:

बजट और संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

बजट के घटक, बजट के उद्देश्य और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव, वित्तीय नीति, FRBM।

चर्चा में क्यों?

01 फरवरी, 2022 को वित्त मंत्री द्वारा संसद में पेश किया जाने वाला केंद्रीय बजट ‘विकास, मुद्रास्फीति और व्यय’ से संबंधित चिंताओं को संबोधित करेगा।

  • बजट, सरकार के ‘व्यय’, कर लगाने की योजना है और अन्य लेनदेनों, जो अर्थव्यवस्था और नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं, का ब्लूप्रिंट होता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार, एक किसी विशिष्ट वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट को वार्षिक वित्तीय विवरण (AFS) कहा जाता है।
  • वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग का ‘बजट प्रभाग’ बजट तैयार करने हेतु उत्तरदायी नोडल निकाय है।

प्रमुख बिंदु

  • बजट के घटक: केंद्रीय बजट के मुख्यतः तीन प्रमुख घटक होते हैं- व्यय, प्राप्तियाँ और घाटा। परिभाषा के आधार पर व्यय, प्राप्तियों और घाटे के कई वर्गीकरण और संकेतक हो सकते हैं।
  • व्यय:
  • संपत्ति और देनदारियों पर उनके प्रभाव के आधार पर:
  • पूंजीगत व्यय एक टिकाऊ प्रकृति की संपत्ति का निर्माण करने या आवर्ती देनदारियों को कम करने के उद्देश्य से किया जाता है।
    • इसके तहत नए स्कूलों या नए अस्पतालों के निर्माण हेतु किया गया व्यय शामिल होता है। इन सभी को पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है क्योंकि वे नई संपत्ति के निर्माण की ओर ले जाते हैं।
  • राजस्व व्यय में कोई भी ऐसा व्यय शामिल होता है, जो संपत्ति के निर्माण या देनदारियों को कम नहीं करता है।
    • मज़दूरी और वेतन, सब्सिडी या ब्याज़ भुगतान पर व्यय को आमतौर पर राजस्व व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करने के आधार पर:

  • व्यय को (i) सामान्य सेवाओं (ii) आर्थिक सेवाओं, (iii) सामाजिक सेवाओं और (iv) सहायता अनुदान एवं योगदान में वर्गीकृत किया गया है।
  • आर्थिक और सामाजिक सेवाओं पर व्यय के योग से विकास व्यय का निर्माण होता है।
    • आर्थिक सेवाओं में परिवहन, संचार, ग्रामीण विकास, कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों पर व्यय शामिल होता है।
    • शिक्षा या स्वास्थ्य सहित सामाजिक क्षेत्र पर व्यय को सामाजिक सेवाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • इसी प्रकार परिसंपत्ति निर्माण या देयता में कमी पर इसके प्रभाव के आधार पर विकास व्यय को आगे राजस्व और पूंजीगत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • प्राप्तियाँ:
    • सरकार की प्राप्तियों के तीन घटक होते हैं- राजस्व प्राप्तियाँ, गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ और ऋण-सृजन पूंजी प्राप्तियाँ।
    • राजस्व प्राप्तियों में ऐसी रसीदें शामिल होती हैं जो देनदारियों में वृद्धि से जुड़ी नहीं होती हैं और इसमें करों व गैर-कर स्रोतों से राजस्व भी शामिल होता है।
    • गैर-ऋण प्राप्तियांँ (Non-debt receipts) पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा हैं जो अतिरिक्त देनदारियांँ उत्पन्न नहीं करती हैं। ऋण की वसूली और विनिवेश से प्राप्त आय को भी गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ माना जाएगा क्योंकि इन स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करने से देनदारियों या भविष्य की भुगतान प्रतिबद्धताओं में सीधे वृद्धि नहीं होती है।
    • ऋण-सृजन पूंजी प्राप्तियाँ (Debt-creating capital receipts) वे हैं जिनमें सरकार की उच्च देनदारियांँ और भविष्य की भुगतान प्रतिबद्धताएंँ शामिल होती हैं।
  • राजकोषीय घाटा:
    • परिभाषित रूप में राजकोषीय घाटा कुल व्यय, राजस्व प्राप्तियों और गैर-ऋण प्राप्तियों के योग के बीच का अंतर है। यह दर्शाता है कि सरकार शुद्ध रूप में कितना खर्च कर रही है।
    • चूंँकि सकारात्मक राजकोषीय घाटा राजस्व और गैर-ऋण प्राप्तियों से अधिक व्यय की मात्रा को दर्शाता है, इसलिये इसे ऋण-सृजन पूंजी प्राप्ति द्वारा वित्तपोषित करने की आवश्यकता होती है।
    • प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटे और ब्याज भुगतान के बीच का अंतर है।
    • राजस्व घाटा राजकोषीय घाटे से पूंजीगत व्यय घटाकर निकाला जाता है।
  • अर्थव्यवस्था पर बजट के प्रभाव/निहितार्थ:
    • सभी सरकारी व्यय अर्थव्यवस्था में कुल मांग को उत्पन्न करते हैं क्योंकि इसमें सरकारी क्षेत्र द्वारा निजी वस्तुओं और सेवाओं की खरीद शामिल होती है।
    • सभी कर और गैर-कर राजस्व निजी क्षेत्र की शुद्ध आय को कम करते हैं एवं  इससे निजी और कुल मांग में कमी आती है। 
    • लेकिन असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर सकल घरेलू उत्पाद, राजस्व प्राप्ति और व्यय में सामान्यत: समय के साथ वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जाती है।
    • इस प्रकार व्यय और प्राप्तियों के निरपेक्ष मूल्य की प्रवृत्ति का बजट के सार्थक विश्लेषण हेतु बहुत कम उपयोग होता है।
      • व्यय और राजस्व की प्रवृत्ति का विश्लेषण या तो सकल घरेलू उत्पाद द्वारा किया जाता है या फिर मुद्रास्फीति दर के लिये लेखांकन के बाद विकास दर के रूप में किया जाता है।
      • व्यय जीडीपी अनुपात (Expenditure GDP Ratio) में कमी या राजस्व प्राप्ति-जीडीपी अनुपात (Revenue Receipt-GDP Ratio) में वृद्धि सकल मांग को कम करने के लिये सरकार की नीति को इंगित करती है
      • इसी प्रकार राजकोषीय घाटा-जीडीपी अनुपात (Fiscal Deficit-GDP Ratio) और प्राथमिक घाटा-जीडीपी अनुपात (Primary Deficit-GDP Ratios) में कमी और वृद्धि सरकार की मांग को कम करने की नीति को इंगित करती है।
    • चूंँकि व्यय और राजस्व के विभिन्न घटकों का विभिन्न वर्गों व सामाजिक समूहों की आय पर अलग-अलग प्रभाव हो सकता है। बजट का आय वितरण पर भी प्रभाव पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये रोज़गार गारंटी योजनाओं या खाद्य सब्सिडी जैसे राजस्व व्यय सीधे गरीबों की आय को बढ़ा सकते हैं। कॉर्पोरेट टैक्स में छूट कॉर्पोरेट आय को सीधे एवं सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।

राजकोषीय नियम और नीति पर इसका प्रभाव

  • अर्थ: राजकोषीय नियम विशिष्ट नीति लक्ष्य प्रदान करते हैं जिनके आधार पर राजकोषीय नीति बनाई जाती है।
    • विभिन्न नीतिगत साधनों का उपयोग करके नीतिगत लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। ऐसा कोई विशिष्ट वित्तीय नियम मौजूद नहीं है जो सभी देशों पर लागू हो। बल्कि नीति के लक्ष्य आर्थिक सिद्धांत की प्रकृति के प्रति संवेदनशील होते हैं और एक अर्थव्यवस्था की विशिष्टता पर निर्भर करते हैं।
    • राजकोषीय नीति का तात्पर्य आर्थिक स्थितियों विशेष रूप से व्यापक आर्थिक स्थितियों को प्रभावित करने के लिये सरकारी खर्च और कर नीतियों के उपयोग से है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कुल मांग, रोज़गार, मुद्रास्फीति तथा आर्थिक विकास शामिल होते हैं।
  • भारत का मामला: इसका वर्तमान वित्तीय नियम एन.के. सिंह समिति की रिपोर्ट (2016 में स्थापित) द्वारा निर्देशित है
    • असाधारण अवधि के तहत कुछ विचलन की अनुमति के साथ इसके तीन नीति लक्ष्य हैं - ऋण-जीडीपी अनुपात (स्टॉक लक्ष्य), राजकोषीय घाटा-जीडीपी अनुपात (प्रवाह लक्ष्य) और राजस्व घाटा-जीडीपी अनुपात (संरचना लक्ष्य) का एक विशिष्ट स्तर बनाए रखना।
    • यद्यपि व्यय और राजस्व प्राप्तियाँ दोनों संभावित रूप से राजकोषीय नियमों के विशिष्ट समूह को पूरा करने के लिये नीतिगत साधनों के रूप में कार्य कर सकते हैं, मौजूदा नीति ढाँचे के भीतर कर-दरें अर्थव्यवस्था की व्यय आवश्यकता से स्वतंत्र निर्धारित की जाती है।
    • संस्थागत ढाँचे में यह मुख्य रूप से वह व्यय है जिसे दिये गए कर-अनुपातों पर राजकोषीय नियमों को पूरा करने हेतु समायोजित किया जाता है।
  • निहितार्थ: इस तरह के समायोजन तंत्र में राजकोषीय नीति के लिये कम-से-कम दो संबंधित, लेकिन विश्लेषणात्मक रूप से अलग निहितार्थ हैं।
    • सबसे पहले अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने या श्रम आय को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक व्यय की सीमा से स्वतंत्र, मौजूदा वित्तीय नियम तीन नीतिगत लक्ष्यों को लागू करके व्यय पर एक सीमा प्रदान करते हैं।
    • दूसरा, किसी भी स्थिति में जब ऋण-अनुपात या घाटा अनुपात लक्षित स्तर से अधिक होता है, तो नीतिगत लक्ष्यों को पूरा करने के लिये व्यय को समायोजित किया जाता है।
      • निहितार्थ से अर्थव्यवस्था की स्थिति और विस्तारवादी राजकोषीय नीति की आवश्यकता से स्वतंत्र, मौजूदा नीतिगत लक्ष्य सरकार को व्यय कम करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं।
    • बेरोज़गारी और कम उत्पादन वृद्धि दर की समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिये राजकोषीय नीति की अपर्याप्तता के बीच भारत में राजकोषीय नियमों की प्रकृति और उद्देश्य की फिर से जाँच करनी होगी।

एन.के. सिंह समिति की सिफारिशें:

  • ऋण-जीडीपी अनुपात:
    • वित्त वर्ष 2022-23 तक केंद्र सरकार के लिये ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात 38.7% तथा राज्य सरकारों के लिये 20% होना चाहिये।
  • राजकोषीय घाटा-जीडीपी अनुपात:
    • सरकार को 31 मार्च 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद के 3% के राजकोषीय घाटे को लक्षित करना चाहिये, इसे वर्ष 2020-21 में 2.8% और 2023 तक 2.5% तक कम करना चाहिये।
  • राजस्व घाटा-जीडीपी अनुपात:
    • राजस्व घाटा- GDP अनुपात (Revenue deficit to GDP ratio) में प्रतिवर्ष 0.25% अंकों तक कमी की जाए एवं वर्ष 2023 में इसे 0.8% तक लाया जाए।
  • मौजूदा वित्तीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम को निरस्त करने तथा एक वित्तीय परिषद बनाने के बाद एक नया ऋण व वित्तीय उत्तरदायित्व अधिनियम बनाने की सिफारिश करना।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और ओमान

प्रिलिम्स के लिये:

खाड़ी सहयोग परिषद, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), रक्षा अभ्यास, पोर्ट ऑफ डुकम, हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत-ओमान संबंध, भारत के लिये ओमान का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

 ओमान सल्तनत के रक्षा मंत्रालय महासचिव भारत के दौरे पर हैं।

  • वह दिल्ली में भारत के रक्षा सचिव के साथ संयुक्त सैन्य सहयोग समिति (JMCC) की सह-अध्यक्षता करेंगे।

Oman

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • अरब सागर के दोनों देश एक-दूसरे से भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़े हुए हैं तथा दोनों के बीच सकारात्मक एवं सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जिसका श्रेय ऐतिहासिक समुद्री व्यापार संबंधों को दिया जाता है।
    • भारत और ओमान के बीच संबंधों के बारे में जानकारी यहाँ के लोगों के मध्य 5000 वर्षों के संपर्क के आधार पर प्राप्त जा सकती है, दोनों देशों के बीच वर्ष 1955 में राजनयिक संबंध स्थापित किये गए थे और वर्ष 2008 में इस संबंध को रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया गया था। ओमान, भारत की पश्चिम एशिया नीति का एक प्रमुख स्तंभ रहा है।
    • गांधी शांति पुरस्कार 2019 स्वर्गीय एचएम सुल्तान काबूस को भारत और ओमान के बीच संबंधों को मज़बूत करने तथा खाड़ी क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों को मान्यता देने हेतु किया गया था।
  • रक्षा संबंध:
    •  संयुक्त सैन्य सहयोग समिति:
      • JMCC रक्षा के क्षेत्र में भारत और ओमान के बीच जुड़ाव का सर्वोच्च मंच है।
      • JMCC की बैठक प्रतिवर्ष आयोजित होने की उम्मीद होती है, लेकिन वर्ष 2018 में ओमान में आयोजित JMCC की 9वीं बैठक के बाद से इसका आयोजन नहीं किया जा सका।
        • 10वीं JMCC के आयोजन से जारी रक्षा आदान-प्रदान का व्यापक मूल्यांकन करने तथा आने वाले वर्षों में रक्षा संबंधों को और अधिक मज़बूत करने के लिये एक रोडमैप प्रदान करने की उम्मीद है।
    • सैन्य अभ्यास:
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
    • ओमान के साथ भारत अपने आर्थिक और वाणिज्यिक संबंधों के विस्तार को उच्च प्राथमिकता देता है। संयुक्त आयोग की बैठक (JCM) तथा संयुक्त व्यापार परिषद (JBC) जैसे संस्थागत तंत्र भारत और ओमान के बीच आर्थिक सहयोग को मज़बूती प्रदान करते हैं।
    • भारत, ओमान के शीर्ष व्यापारिक भागीदारों में से एक है।
      • भारत, ओमान के लिये आयात का  तीसरा सबसे बड़ा (UAE और चीन के बाद) स्रोत और वर्ष 2019 में इसके गैर-तेल निर्यात के लिये तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार (UAE और सऊदी अरब के बाद) था।
    • प्रमुख भारतीय वित्तीय संस्थानों की ओमान में उपस्थिति है। भारतीय कंपनियों ने ओमान में लोहा और इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, कपड़ा आदि क्षेत्रों में निवेश किया है।
    • भारत-ओमान संयुक्त निवेश कोष (OIJIF), भारतीय स्टेट बैंक और ओमान के स्टेट जनरल रिज़र्व फंड (SGRF) के बीच एक संयुक्त उपक्रम है तथा भारत में निवेश करने के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन है, का संचालन किया गया है।
  • ओमान में भारतीय समुदाय:
    • ओमान में करीब 6.2 लाख भारतीय रहते हैं, जिनमें से करीब 4.8 लाख कर्मचारी और पेशेवर हैं। ओमान में 150-200 से अधिक वर्षों से भारतीय परिवार रह रहे हैं।
    • यहाँ कई ऐसे भारतीय स्कूल हैं जो लगभग 45,000 भारतीय बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सीबीएसई (CBSE) पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।

भारत के लिये ओमान का सामरिक महत्त्व:

  • परिचय:
    • ओमान, खाड़ी क्षेत्र में भारत का सबसे करीबी रक्षा साझेदार है और भारत के रक्षा एवं सामरिक हितों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
      • ओमान होर्मुज जलडमरूमध्य के प्रवेश द्वार पर है, जिसके माध्यम से भारत अपने तेल आयात का पाँचवाँ हिस्सा आयात करता है।
    • भारत-ओमान रणनीतिक साझेदारी की मज़बूती के लिये रक्षा सहयोग एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है। दोनों देशों के बीच रक्षा आदान-प्रदान एक ‘समझौता ज्ञापन’ फ्रेमवर्क द्वारा निर्देशित होते हैं जिसे हाल ही में वर्ष 2021 में नवीनीकृत किया गया था।
    • ओमान खाड़ी क्षेत्र का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ भारतीय सशस्त्र बलों की तीनों सेवाएँ नियमित रूप से द्विपक्षीय अभ्यास और स्टाफ वार्ता आयोजित करती हैं, जिससे पेशेवर स्तर पर घनिष्ठ सहयोग और विश्वास को बल मिलता है।
    • ओमान समुद्री डकैती रोधी अभियानों के लिये अरब सागर में भारतीय नौसेना की तैनाती को महत्त्वपूर्ण परिचालन सहायता भी प्रदान करता है।
    • दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय प्रशिक्षण सहयोग भी काफी मज़बूत है, क्योंकि ओमान की सेना नियमित रूप से भारत में पेशेवर और साथ ही उच्च कमान स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों में हिस्सा लेता है। भारतीय सशस्त्र बल भी ओमान में आयोजित स्टाफ और कमांड कार्यक्रमों में हिस्सा लेती है।
    • ओमान ‘हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी’ (IONS) में भी सक्रिय रूप से भाग लेता है।
    • भारत ने ओमान को राइफलों की आपूर्ति की है। साथ ही भारत ओमान में एक रक्षा उत्पादन इकाई स्थापित करने पर विचार कर रहा है।
  • दुकम बंदरगाह:
    • हिंद महासागर क्षेत्र में विस्तार करने हेतु एक रणनीतिक कदम के तौर पर भारत ने सैन्य उपयोग और सैन्य समर्थन के लिये ओमान में दुकम के प्रमुख बंदरगाह तक पहुँच प्राप्त कर ली है। यह खाड़ी क्षेत्र में चीन के प्रभाव और गतिविधियों का मुकाबला करने के लिये भारत की समुद्री रणनीति का हिस्सा है।
    • दुकम बंदरगाह ओमान के दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट पर स्थित है।
    • यह रणनीतिक रूप से ईरान में चाबहार बंदरगाह के निकट स्थित है। मॉरीशस में सेशेल्स और अगालेगा में विकसित किये जा रहे अनुमान द्वीप के साथ दुकम भारत के सक्रिय समुद्री सुरक्षा रोडमैप में सही बैठता है।
    • दुकम बंदरगाह में एक विशेष आर्थिक क्षेत्र भी है जहाँ कुछ भारतीय कंपनियों द्वारा लगभग 1.8 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का निवेश किया जा रहा है।

आगे की राह

  • भारत के पास अपनी वर्तमान या भविष्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त ऊर्जा संसाधन नहीं हैं। तेज़ी से बढ़ती ऊर्जा मांग ने ओमान जैसे देशों की दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी की आवश्यकता में योगदान दिया है।
  • ओमान का दुकम पोर्ट पूर्व में पश्चिम एशिया के साथ जुड़ने वाला अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन के मध्य में स्थित है।
  • भारत को दुकम पोर्ट औद्योगिक शहर के उपयोग के लिये ओमान के साथ जुड़ने और पहल करने की आवश्यकता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान डिजिटल मंत्रियों की दूसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान देश, ADGMIN, भारत-आसियान डिजिटल कार्य योजना 2022, आसियान क्षेत्रीय मंच, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

भारत-आसियान डिजिटल कार्य योजना 2022, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तथा इसका महत्त्व, आसियान के साथ भारत के संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के साथ आसियान देशों के डिजिटल मंत्रियों (ADGMIN) की दूसरी बैठक आयोजित की गई तथा इस दौरान क्षेत्र में भविष्य के सहयोग के लिये भारत-आसियान डिजिटल कार्य योजना वर्ष 2022 को अंतिम रूप दिया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • ADGMIN, आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) के 10 देशों और संवाद साझेदार देशों-ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया गणराज्य, न्यूजीलैंड, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के दूरसंचार मंत्रियों की एक वार्षिक बैठक है। .
      • आसियान देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
  •  भारत-आसियान डिजिटल कार्य योजना 2022:
    • भारत और आसियान देशों ने संयुक्त रूप से एक कार्य योजना को मंज़ूरी दी है जिसके तहत वे चोरी और नकली मोबाइल हैंडसेट के उपयोग से निपटने के लिये एक प्रणाली विकसित करेंगे।
    • सहयोग के अन्य क्षेत्रों में राष्ट्रव्यापी सार्वजनिक इंटरनेट के लिये वाईफाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस शामिल है।
    • इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), 5G, उन्नत उपग्रह संचार, साइबर फोरेंसिक जैसे सूचना एवं  संचार प्रौद्योगिकियों के उभरते क्षेत्र में क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने पर भी ज़ोर दिया जाएगा।
  • ICT का महत्त्व:
    • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) नागरिकों और राज्य के बीच बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रणालियों व संस्थानों को सक्षम एवं मज़बूत करती है।
    • ICT का उपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकारों और सूचना के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देने के अलावा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने के लिये नागरिकों को  अवसर प्रदान करता है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है।
    • प्रौद्योगिकी कोविड -19 महामारी के प्रभाव को कम करने के लिये एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरी है जो न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिये एक चुनौती है बल्कि देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
  • भारत द्वारा उठाए गए संबंधित कदम:
    • दूरसंचार मंत्रालय ने दिसंबर 2019 में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लोगों की मदद करने और उनके चोरी या खोए हुए मोबाइल फोन का पता लगाने के लिये एक पोर्टल लॉन्च किया था।
      • यह परियोजना केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर (CEIR) प्रणाली द्वारा समर्थित है, जिसे दूरसंचार विभाग द्वारा सुरक्षा, चोरी और मोबाइल हैंडसेट की पुन: प्रोग्रामिंग सहित अन्य चिंताओं को दूर करने के लिये शुरू किया गया था।

अन्य संबंधित समूह

  • आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) प्लस:
    • यह 10 आसियान देशों और आठ संवाद भागीदार देशों के रक्षा मंत्रियों की वार्षिक बैठक है।
    • एडीएमएम-प्लस देशों में दस आसियान सदस्य राज्य और आठ अन्य देश शामिल हैं- ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • आसियान क्षेत्रीय मंच:
    • वर्ष 1994 में स्थापित आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ) इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा वार्ता के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच है।
    • इसमें 27 सदस्य शामिल हैं: 10 आसियान सदस्य देश, 10 आसियान संवाद भागीदार (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका); बांग्लादेश, डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मंगोलिया, पाकिस्तान, श्रीलंका व तिमोर-लेस्ते एवं एक आसियान पर्यवेक्षक (पापुआ न्यू गिनी)।
  • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS):
    • वर्ष 2005 में स्थापित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) भारत-प्रशांत क्षेत्र के समक्ष उत्पन्न होने वाली प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत एवं सहयोग हेतु 18 क्षेत्रीय नेताओं (देशों) का एक मंच है।
    • इसमें आसियान के दस सदस्य देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार,फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ 8 अन्य देश- ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन

प्रिलिम्स के लिये:

बाल्टिक सागर और उसके आसपास के देश।

मेन्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संकट, नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने कहा है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो वह नॉर्ड स्ट्रीम योजना को रोक देगा।

  • हालाँकि जर्मनी के नेतृत्त्व में यूरोपीय देश, नॉर्ड स्ट्रीम पर इसके महत्त्व के कारण प्रतिबंध लगाने हेतु शुरू में अनिच्छुक लग रहे थे, लेकिन अब कहा गया है कि यह प्रतिबंध तालिका से बाहर नहीं है।
  • नॉर्ड स्ट्रीम,  समुद्र के नीचे सबसे लंबी एक निर्यात गैस पाइपलाइन है जो बाल्टिक सागर के रास्ते होकर रूस से यूरोप तक गैस ले जाती है।

Nord-Stream

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • नॉर्ड स्ट्रीम में दो पाइपलाइन हैं, जिनमें से प्रत्येक में दो लाइनें हैं।
      • नॉर्ड स्ट्रीम-1 का कार्य वर्ष 2011 में पूरा हुआ था जो लेनिनग्राद (रूस) में वायबोर्ग से जर्मनी के ग्रिफ़्सवाल्ड के पास लुबमिन तक पहुँचती है।
      • नॉर्ड स्ट्रीम-2 जो लेनिनग्राद में उस्त-लुगा से होकर लुबमिन तक पहुँचती है, यह सितंबर 2021 में पूरी हुई और इसके चालू होने के बाद इसमें प्रतिवर्ष 55 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस को ले जाने की क्षमता है।
    • दोनों पाइपलाइन एक साथ कम-से-कम 50 वर्षों के लिये कुल 110 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) गैस को यूरोप तक पहुँचा सकती हैं।
    • नॉर्ड स्ट्रीम रूस, फिनलैंड, स्वीडन, डेनमार्क और जर्मनी सहित कई देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) एवं रूस, डेनमार्क एवं जर्मनी के क्षेत्रीय जल से होकर गुज़रती है।
    • यह पाइपलाइन जर्मनी में OPAL (बाल्टिक सागर पाइपलाइन) और NEL (उत्तरी यूरोपीय पाइपलाइन) से जुड़ती है जो आगे यूरोपीय ग्रिड से जुड़ती है।
  • पाइपलाइन पर आपत्ति:
    • जर्मनी द्वारा:
      • पर्यावरणविदों के अनुसार, यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कटौती और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के जर्मन प्रयासों के अनुकूल नहीं है।
      • नॉर्ड स्ट्रीम 2 ने अभी तक संचालन शुरू नहीं किया है क्योंकि जर्मनी का कहना है कि यह जर्मन कानून का पालन नहीं करती है और इसकी मंज़ूरी को निलंबित कर दिया है। इस परियोजना को यूरोपीय आयोग की मंज़ूरी का भी इंतजार है।
    • सामरिक आपत्ति:
      • विशेष रूप से यू.एस. की रणनीतिक आपत्ति यह है कि यह यूरोप को रूस पर भी निर्भर बना देगा, जिससे यूरोप में रूस का प्रभाव बढ़ जाएगा।
        • इसके अलावा चिंता यह भी है कि रूस इसे भू-राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
      • यूक्रेन ने आपत्ति की है कि पाइपलाइन के चालू होने के बाद उसे पारगमन शुल्क में लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा. 
        • इसके अलावा जब तक रूस में उत्पादित गैस यूक्रेन के माध्यम से पारगमन करती है, रूस के हस्तक्षेप करने और यूक्रेन में अस्थिरता पैदा करने की संभावना नहीं है और यूरोप इसकी सुरक्षा में व्यस्त रहेगा।
      • पोलैंड और बेलारूस जैसे देश भी पारगमन शुल्क से वंचित हो सकते हैं और इसलिये पाइपलाइन का विरोध करते हैं क्योंकि यह उनके माध्यम से चलने वाली मौजूदा पाइपलाइनों को बाईपास कर देगा।
  • यूरोप और रूस के लिये महत्त्व:
    • यूरोप:
      • यूरोप को प्रतिवर्ष 100 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) से अधिक प्राकृतिक गैस की आवश्यकता होती है और इसकी लगभग 40% गैस रूस से आती है।
      • पिछले कुछ वर्षों में घरेलू गैस उत्पादन में कमी के कारण यूरोप गैस के आयात पर और अधिक निर्भर हो गया है। रूसी गैस पर निर्भरता कम करना मुश्किल है, क्योंकि यूरोप के पास इसका कोई प्रतिस्थापन उपलब्ध नहीं है।
      • कई यूरोपीय व्यवसायों का ‘नॉर्ड स्ट्रीम-2’ में काफी बड़ा निवेश है और इन व्यवसायों से सरकारों पर काफी दबाव है। अंत में, रूस से गैस में कमी पहले से ही उच्च गैस की कीमतों में और अधिक वृद्धि करेगी तथा यह घरेलू स्तर पर काफी प्रतिकूल हो सकता है।
    • रूस:
      • रूस, जिसके पास दुनिया में सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस भंडार मौजूद है, की कुल बजट प्राप्ति का लगभग 40% हिस्सा गैस एवं तेल की बिक्री से आता है।
      • इस लिहाज़ से ‘नॉर्ड स्ट्रीम-2’ काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह पारगमन देशों के माध्यम से गैस भेजने से संबंधित जोखिमों को समाप्त करता है, पारगमन शुल्क को हटाकर परिचालन लागत में कटौती करता है और अपने सबसे महत्त्वपूर्ण यूरोपीय ग्राहक, जर्मनी तक सीधी पहुँच प्रदान करता है।
      • यह विश्वसनीयता का निर्माण करके रूस पर यूरोप की निर्भरता को और अधिक बढ़ाता है।

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow