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बिहार स्टेट पी.सी.एस.

  • 11 Jul 2025
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बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण

चर्चा में क्यों?

भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने नवंबर, 2025 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया है।

प्रमुख बिंदु

  • संवैधानिक अधिदेश:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने तथा संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों के संचालन पर अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का दायित्व सौंपता है।
    • अनुच्छेद 326 भारत के प्रत्येक नागरिक को, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम न हो, वोट देने का अधिकार प्रदान करता है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अंतर्गत कानूनी ढाँचा
    • धारा 16 विदेशी नागरिकों को निर्वाचन सूची में नामांकन से अयोग्य घोषित करती है।
    • धारा 19 यह अनिवार्य करती है कि व्यक्ति की आयु निर्धारित तिथि को कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिये तथा वह निर्वाचन क्षेत्र का सामान्य निवासी होना चाहिये।
    • धारा 20 में “सामान्य निवासी” (ordinarily resident) की परिभाषा दी गई है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि सिर्फ किसी क्षेत्र में संपत्ति का स्वामित्व होना वहाँ का निवासी होने के लिये पर्याप्त नहीं है।
      • हालाँकि, यदि कोई व्यक्ति स्थायी रूप से अपने निवास स्थान से अनुपस्थित है, तो भी उसे सामान्य निवासी माना जाएगा।
    • धारा 21 चुनाव आयोग को यह अधिकार देती है कि वह निर्वाचन सूची का विशेष पुनरीक्षण किसी भी समय कर सकता है, यदि वह कारणों को लिखित रूप में दर्ज करता है।

  • SIR शुरू करने के कारण:
    • पिछले दो दशकों में व्यापक शहरीकरण और आंतरिक प्रवास के कारण चुनावी सूचियों में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, ऐसा भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने अवलोकन किया है।
    • डुप्लीकेट और अपात्र मतदाता प्रविष्टियों को लेकर उठी चिंताओं के चलते ECI ने राष्ट्रीय स्तर पर विशेष पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया है, जिसकी शुरुआत बिहार से की गई है।
    • बिहार में पिछली बार विशेष पुनरीक्षण 2003 में हुआ था और अब इसे नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इस अभ्यास के लिये प्राथमिकता दी गई है।
    • वर्तमान पुनरीक्षण के लिये निर्धारित तिथि 1 जुलाई, 2025 रखी गई है।
  • SIR के लिये संशोधित प्रक्रिया:
    • वर्ष 2003 से पहले नामांकित मतदाताओं को केवल वर्ष 2003 की सूची का एक अंश प्रस्तुत करना होगा।
    • वर्ष 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं को अपनी और अपने माता-पिता की जन्मतिथि और स्थान को प्रमाणित करने वाले अतिरिक्त दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।

  • सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां और निर्देश:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मतदाता सत्यापन के लिये स्वीकार्य 11 दस्तावेज़ों की भारत निर्वाचन आयोग की सूची संपूर्ण नहीं है।
    • न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग को सलाह दी कि वह चालू SIR में मतदाता पंजीकरण के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड, निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (EPIP) और राशन कार्ड पर विचार करे।
  • ECI का क्षेत्राधिकार प्राधिकरण:
    • नागरिकता के प्रश्नों का निर्धारण करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के पास संवैधानिक या वैधानिक अधिकार का अभाव है।
    • नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार गृह मंत्रालय के पास है।
    • लाल बाबू हुसैन बनाम निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि मतदाता सूची में पहले से सूचीबद्ध व्यक्तियों से उनकी नागरिकता पुनः साबित करने के लिये नहीं कहा जा सकता।
  • SIR से संबंधित चुनौतियाँ:
    • विशेष पुनरीक्षण (SIR) के दिशा-निर्देशों के अनुसार अब आधार मौजूद होने पर भी अतिरिक्त दस्तावेजों की आवश्यकता होती है, जिससे कई पात्र नागरिकों के बाहर होने की आशंका है।
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RPA) के अनुसार, केवल वही व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल हो सकते हैं जो उस क्षेत्र में सामान्य निवासी (ordinarily resident) हों।
    • जो प्रवासी काम या शिक्षा के लिये स्थायी रूप से किसी नए स्थान पर स्थानांतरित हो गए हैं, वे अपने वर्तमान निवास स्थान पर मतदाता के रूप में पंजीकरण करा सकते हैं।
    • हालाँकि, SIR प्रक्रिया में नागरिकों पर ही अपने पात्र होने का पूरा प्रमाण देने की ज़िम्मेदारी डाली गई है।
    • बिहार सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जहाँ 87% लोगों के पास आधार कार्ड है, वहीं केवल 14% के पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र तथा सिर्फ 2% के पास पासपोर्ट है।
    • मान्य दस्तावेज़ों की सूची से आधार को बाहर करने का निर्णय गरीब और हाशिये पर मौजूद समुदायों को असमान रूप से प्रभावित कर सकता है।

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