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डेली न्यूज़

  • 24 Jul, 2021
  • 57 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में निवेश संवर्द्धन

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, आत्मनिर्भर अभियान, इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड,  ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग, नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड, इन्वेस्ट इंडिया 

मेन्स के लिये:

भारत में निवेश संबंधी मुद्दे और उसके संवर्द्धन हेतु उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग ने '2021 इन्वेस्टमेंट क्लाइमेट स्टेटमेंट्स: इंडिया' (2021 Investment Climate Statements: India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट में आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र भारत सरकार द्वारा किये गए संरचनात्मक आर्थिक सुधारों की सराहना की गई है।

  • हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत व्यापार करने के लिये एक चुनौतीपूर्ण स्थान बना हुआ है।
  • इससे पहले यूके इंडिया बिज़नेस काउंसिल (UKIBC) ने ज़ोर देकर कहा था कि आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के तहत कुछ सुधारों के परिणाम यूके और सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये नकारात्मक हो सकते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • निजीकरण: फरवरी 2021 में भारत सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी निजीकरण कार्यक्रम के माध्यम से 2.4 बिलियन डॉलर जुटाने की योजना की घोषणा की, जो अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को नाटकीय रूप से कम कर देगी।
  • हाल के आर्थिक सुधार:
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) उदारीकरण: अगस्त 2019 में सरकार ने उदारीकरण उपायों के एक नए पैकेज की घोषणा की और कोयला खनन तथा अनुबंध निर्माण सहित कई क्षेत्रों को स्वचालित मार्ग के तहत लाया गया।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान: कोविड-19 से संबंधित आर्थिक मंदी का मुकाबला करने के लिये भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान शुरू किया।
    • इस कार्यक्रम में व्यापक सामाजिक कल्याण और आर्थिक प्रोत्साहन कार्यक्रमों तथा बुनियादी ढाँचे एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च में वृद्धि की परिकल्पना की गई है।
    • इसके अलावा इसका उद्देश्य वैश्विक बाज़ार में हिस्सेदारी हासिल करने के लिये सुरक्षा अनुपालन और सामानों की गुणवत्ता में सुधार करते हुए प्रतिस्थापन पर ध्यान केंद्रित कर आयात निर्भरता को कम करना है।
  • उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना: सरकार ने फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों को भी अपनाया।
  • इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड: वर्ष 2016 में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की शुरुआत और कार्यान्वयन ने इनसॉल्वेंसी संबंधित मौजूदा ढाँचे को बदल दिया तथा अधिक आवश्यक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया।
  • मध्यस्थता के वैश्विक मानकों का मिलान: भारत सरकार ने मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2021 पारित किया।
    • अधिनियम में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिये प्रावधान तथा सुलह की कार्यवाही संचालित करने हेतु कानून को परिभाषित किया गया है।
  • सॉवरेन वेल्थ फंड: वर्ष 2016 में भारत सरकार ने नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड (NIIF) की स्थापना की, जिसे इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देने के लिये भारत का पहला सॉवरेन वेल्थ फंड माना जाता है।
    • सरकार ने फंड में 3 अरब डॉलर का योगदान देने पर सहमति जताई, जबकि अतिरिक्त 3 अरब डॉलर निजी क्षेत्र से  जुटाए जाएंगे।
  • श्रम संहिता: बजट 2021 में सरकार ने घोषणा की कि 1 अप्रैल, 2021 से भारत में चार श्रम संहिताओं को लागू किया जाएगा।
    • इन श्रम संहिताओं में देश के पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और श्रमिकों के लाभों से समझौता किये बिना आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने की परिकल्पना की गई है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार के लिये अन्य उपाय: 
    • इन्वेस्ट इंडिया : यह आधिकारिक निवेश संवर्द्धन एवं सुविधा प्रदाता एजेंसी है, जो निवेशकों के साथ उनके निवेश जीवनचक्र के माध्यम से बाज़ार प्रवेश रणनीतियों, उद्योग विश्लेषण, भागीदारी खोज और आवश्यकता के अनुसार नीति की वकालत करने के साथ-साथ सहायता प्रदान करने के लिये काम करती है।
    • प्रगति पहल: विशेष रूप से प्रमुख परियोजनाओं के मामले में अनुमोदन प्रक्रिया को तीव्र गति प्रदान करने के लिये भारत सरकार ने सक्रिय शासन और सामयिक कार्यान्वयन (PRAGATI - Pro-Active Governance and Timely Implementation) पहल शुरू की।
      • यह सरकार की अनुमोदन प्रक्रिया को गति देने के लिये एक डिजिटल, बहु-उद्देश्यीय मंच है।

विदेशी निवेशकों के लिये चिंतनीय आर्थिक नीतियाँ: 

  • विवादास्पद निर्णय: हाल ही में सरकार ने दो विवादास्पद निर्णय लिये अर्थात् जम्मू और कश्मीर राज्य (J&K) से विशेष संवैधानिक दर्जा हटाना तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 पारित करना।
    • हालाँकि भारत का कहना है कि CAA और अनुच्छेद 370 को समाप्त करना उसका आंतरिक मामला था तथा "किसी भी विदेशी पार्टी को भारत की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को उठाने का कोई अधिकार नहीं है।"
  • नए संरक्षणवादी उपाय: अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों ने विदेशी पूंजी के साथ-साथ प्रबंधन और नियंत्रण प्रतिबंधों के लिये इक्विटी सीमाएँ बरकरार रखी हैं, जो निवेश को अवरुद्ध करते हैं।
    • उदाहरण : वर्ष 2016 में भारत ने घरेलू एयरलाइनों में 100% तक एफडीआई की अनुमति दी थी, लेकिन पर्याप्त स्वामित्व और प्रभावी नियंत्रण (SOEC) नियमों का मुद्दा, जो कि भारतीय नागरिकों द्वारा बहुमत नियंत्रण को अनिवार्य करता है, को अभी तक स्पष्ट नहीं किया गया है।
  • द्विपक्षीय निवेश समझौते और कराधान संधियाँ : भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता कार्यवाही में  निवेश परिस्थितियों के अनुकूल निर्णयों के पश्चात् दिसंबर 2015 में एक नए  मॉडल  द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty-BIT) को अपनाया।
    • नया मॉडल बीआईटी विदेशी निवेशकों को निवेशक-राज्य विवाद निपटान विधियों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देता है और इसके बजाय विदेशी निवेशकों को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता में भाग लेने से पूर्व सभी स्थानीय न्यायिक एवं प्रशासनिक उपायों को समाप्त करने की आवश्यकता होती है।
  • खरीद नियम शामिल हैं जो प्रतिस्पर्द्धी विकल्पों को सीमित करते हैं: सरकारी खरीद के लिये प्रेफरेंशियल मार्केट एक्सेस (PMA) ने भारत में कार्यरत विदेशी फर्मों के लिये काफी चुनौतियाँ उत्पन्न कर दी हैं।
    • राज्य के स्वामित्व वाले "सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम" और सरकार द्वारा 50% से अधिक स्थानीय सामग्री का उपयोग करने वाले विक्रेताओं को 20% मूल्य वरीयता दी जाती है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार: कमज़ोर बौद्धिक संपदा (IP) के संरक्षण और प्रवर्तन को लेकर चिंताओं के कारण भारत को वर्ष 2020 की स्पेशल 301 नामक रिपोर्ट में प्राथमिकता निगरानी सूची (PWL) में रखा गया।
  • भ्रष्टाचार:  ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (CPI) 2020 में भारत 40 अंकों के साथ 180 देशों में 86वें स्थान पर है।
  • अन्य मुद्दे: ऐसे अन्य मुद्दे हैं जो द्विपक्षीय व्यापार में विस्तार को प्रतिबंधित करते हैं जैसे- स्वच्छता और पादप स्वच्छता (Phytosanitary) मानक एवं भारतीय-विशिष्ट मानक, अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं।

आगे की राह 

  • भारत सरकार को निवेश और व्यवसायों के लिये नौकरशाही बाधाओं को कम करके एक आकर्षक एवं विश्वसनीय निवेश वातावरण को बढ़ावा देना चाहिये।
  • भारत और अन्य देशों की सरकारों को मानकों, व्यापार सुविधा, प्रतिस्पर्द्धी एवं डंपिंग रोधी जैसे क्षेत्रों में सहयोग करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

स्पेशलिटी स्टील हेतु पीएलआई योजना

प्रिलिम्स के लिये:

स्पेशलिटी स्टील, उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये:

भारत में स्पेशलिटी स्टील को पीएलआई योजना के अंतर्गत लाने का कारण एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2023-24 से पाँच वर्षों की अवधि में 6,322 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ स्पेशलिटी स्टील (SS) के निर्माण हेतु उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना (केंद्रीय क्षेत्र योजना) को मंज़ूरी दी है।

स्पेशलिटी स्टील:

  • यह मूल्यवर्द्धित स्टील है, जो सामान्य रूप से तैयार स्टील को संसाधित करके बनाया जाता है।
  • इसे सामान्य रूप से तैयार स्टील को कोटिंग, प्लेटिंग और हीट ट्रीटिंग के माध्यम से उच्च मूल्यवर्द्धित स्टील में परिवर्तित करके निर्मित किया जाता है।
  • ऑटोमोबाइल क्षेत्र और विशेष पूंजीगत वस्तुओं के अलावा उनका उपयोग विभिन्न रणनीतिक अनुप्रयोगों जैसे- रक्षा, अंतरिक्ष, बिजली आदि में किया जा सकता है।
  • SS को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। जैसे- लेपित/प्लेटेड स्टील उत्पाद, उच्च शक्ति सहन क्षमता प्रतिरोधी स्टील, विशेष रेल, मिश्र धातु इस्पात उत्पाद और स्टील के तार, विद्युत स्टील आदि।

प्रमुख बिंदु:

PLI योजना:

  • घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात बिलों में कटौती करने के लिये केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में एक PLI योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित उत्पादों से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
  • यह योजना विदेशी कंपनियों को भारत में इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आमंत्रित करती है, हालाँकि इसका उद्देश्य स्थानीय कंपनियों को मौजूदा विनिर्माण इकाइयों की स्थापना या विस्तार के लिये प्रोत्साहित करना है।
  • इस योजना को ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स, आईटी हार्डवेयर जैसे- लैपटॉप, मोबाइल फोन और दूरसंचार उपकरण, बड़े इलेक्ट्रिकल सामान, रासायनिक सेल, खाद्य प्रसंस्करण तथा वस्त्र आदि क्षेत्रों के लिये भी अनुमोदित किया गया है।

Incentive-work

स्पेशलिटी स्टील के लिये PLI:

  • उद्देश्य: भारत के SS उत्पादन को वर्तमान के 18 MT से बढ़ाकर 2026-27 तक 42 मिलियन टन (MT) तक पहुँचाने में सहायता करना।
  • श्रेणियाँ: स्पेशलिटी स्टील की पाँच श्रेणियाँ हैं जिन्हें PLI योजना में चुना गया है:
    • कोटेड/प्लेटेड स्टील उत्पाद।
    • उच्च शक्ति सहन क्षमता प्रतिरोधी स्टील।
    • स्पेशल रेल।
    • मिश्र धातु इस्पात उत्पाद और स्टील के तार।
    • विद्युत स्टील।
  • स्लैब: PLI प्रोत्साहन के तीन स्लैब हैं, सबसे कम 4% और उच्चतम 12% है।
  • लाभार्थी: एकीकृत इस्पात संयंत्र और द्वितीयक इस्पात संयत्र।
    • भारत में पंजीकृत कोई भी कंपनी जो चिह्नित 'स्पेशलिटी स्टील' ग्रेड के निर्माण में संलग्न हो, योजना में भाग लेने के लिये पात्र होगी।

स्पेशलिटी स्टील चुनने का कारण:

  • उत्पादन बढ़ाने के लिये:
    • SS को सरकार द्वारा लक्ष्य सेग्मेंट (Speciality Segment) के रूप में चुना गया है क्योंकि वर्ष 2020-21 में 102 मिलियन टन स्टील के उत्पादन में से देश में केवल 18 मिलियन टन मूल्यवर्द्धित स्टील / स्पेशलिटी स्टील का उत्पादन किया गया था।
  • आयात कम करने के लिये:
    • भारत में अधिकांश आयात मूल्यवर्द्धित और लक्ष्य सेग्मेंट (Speciality Segment)  आधारित होता है। PLI  योजना इस खंड में भारतीय मिलों की विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा देगी तथा  MSMEs सीधे ही उनसे कच्चा माल प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
      • वर्ष 2020-21 में 6.7 मिलियन टन के आयात में से करीब 4 मिलियन टन आयात स्पेशलिटी स्टील का था, जिसके परिणामस्वरूप करीब 30,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) व्यय हुई।
  • इस्पात क्षेत्र में उर्ध्वमुखी प्रवृत्ति:
    • इस्पात क्षेत्र में तेज़ी का रुख है और प्रमुख एकीकृत उत्पादकों ने प्रमुख विस्तार योजनाएंँ तैयार की हैं।

महत्त्व:

  • स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देना:
    • यह सुनिश्चित करेगा कि तैयार इस्पात केवल भारत में ही निर्मित किया जाए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यह योजना देश के भीतर अंतिम छोर तक विनिर्माण (End-to-End Manufacturing) को बढ़ावा देती है।
    • यह भारत को वैश्विक विनिर्माण विजेता बनाने में मदद करेगा तथा देश को दक्षिण कोरिया और जापान जैसी वैश्विक स्टील बनाने वाली बड़ी कंपनियों के बराबर लाएगा।
  • रोज़गार सृजन:
    • इससे लगभग 5 लाख लोगों हेतु रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे, जिसमें 68,000 लोगों को प्रत्यक्ष रोज़गार प्राप्त होगा।

अपेक्षित परिणाम:

  • इससे देश में लगभग 40,000 करोड़ रुपए का निवेश आने की उम्मीद है और इसके परिणामस्वरूप स्पेशलिटी स्टील की क्षमता में 25 मिलियन टन की  वृद्धि होगी।
  • SS का निर्यात मौजूदा 1.7 मीट्रिक टन से बढ़कर लगभग 5.5 मीट्रिक टन हो जाएगा, जिससे 33,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा  की कमाई होगी।

इस्पात से संबंधित पहलें:

  • मिशन पूर्वोदय: इसे वर्ष 2020 में कोलकाता, पश्चिम बंगाल में एक एकीकृत इस्पात केंद्र की स्थापना के माध्यम से पूर्वी भारत के त्वरित विकास हेतु लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017: इसे 2017 में निजी निर्माताओं,  MSME इस्पात उत्पादकों को नीतिगत समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करके इस्पात उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु लॉन्च किया गया था।
  • चौथी औद्योगिक क्रांति (उद्योग 4.0) को अपनाना: इससे  विनिर्माण प्रक्रियाओं, ऊर्जा दक्षता, संयंत्र और श्रमिक उत्पादकता, आपूर्ति शृंखला और उत्पाद जीवन-चक्र में सुधार होगा।
  • भारतीय इस्पात अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मिशन: यह वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), प्रयोगशालाओं और शैक्षणिक संस्थानों सहित विभिन्न संस्थानों को लौह और इस्पात क्षेत्र में अनुसंधान करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें कचरे का उपयोग, ऊर्जा दक्षता में सुधार, ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के  उत्सर्जन में कमी तथा पर्यावरणीय जैसे मुद्दे शामिल हैं। 

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

मेन्स के लिये

कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रबंधन हेतु उपाय और दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय के अनुरोध पर कार्रवाई करते हुए ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस’ (निमहांस) ने कैदियों और जेल कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

दिशा-निर्देश

  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी रोग की पहचान के लिये ‘गेटकीपर मॉडल’:
    • इस मॉडल के तहत आत्महत्या के जोखिम वाले कैदियों की पहचान करने हेतु विशेष रूप से प्रशिक्षित चयनित कैदी, अन्य कैदियों को उपचार एवं सहायक सेवा प्रदान करेंगे।
    • यह देश भर की जेलों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से प्रेरित आत्महत्याओं को रोकने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • जेल कैदियों में से लगभग 80% लोगों में मानसिक बीमारी और मादक पदार्थों के सेवन संबंधी विकार की व्यापकता देखी गई है।
  • मानसिक स्वास्थ्य उपचार के लिये:
    • मानसिक विकारों वाले कैदियों को आत्महत्या के जोखिम से बचाने के लिये उनका नियमित रूप से मूल्यांकन एवं पर्यवेक्षण करना आवश्यक होता है और नियमित रूप से दवा दी जानी भी महत्त्वपूर्ण होती है।
    • कैदियों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सुधार सुविधाओं में ‘ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम’ जैसे समुदाय आधारित पहलों के लिंक किया जाना चाहिये।
  • सामाजिक हस्तक्षेप के लिये ‘बडी सिस्टम’ (Buddy System):
    • यह प्रशिक्षित कैदियों के माध्यम से एक प्रकार का सामाजिक समर्थन कार्यक्रम है, जिसे ‘बडी’ या ‘श्रोता’ के रूप में जाना जाता है।
    • आत्महत्या की इच्छा से पीड़ित कैदियों के मानसिक स्वास्थ्य पर इस पहल का बेहतर प्रभाव पाया गया है। इसके अलावा मित्रों और परिवार के साथ समय-समय पर टेलीफोन पर बातचीत करना भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
      • ई-मुलाकात एक ऑनलाइन प्लेटफाॅर्म है, जो कैदियों के रिश्तेदारों/ दोस्तों/अधिवक्ताओं को राष्ट्रीय कारागार सूचना पोर्टल के माध्यम से कैदियों के साक्षात्कार हेतु बुकिंग करने में सक्षम बनाता है।

आवश्यकता: 

  • भारतीय जेलों में लंबे समय से चली आ रही तीन संरचनात्मक बाधाएँ:  भीड़भाड़, कर्मचारी एवं  धन की कमी तथा  हिंसक झड़पें।
  • वर्ष 2019 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा प्रकाशित प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2016, रिपोर्ट भारत की जेलों में बंद कैदियों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डालती है।
  • अंडर-ट्रायल पापुलेशन/जनसंख्या: भारत की अंडर-ट्रायल पापुलेशन विश्व में सर्वाधिक है। वर्ष 2016 के अंत में 4,33,033 लोग जेल में थे, जिनमें से 68% अंडर-ट्रायल थे। 
    • रिमांड की सुनवाई के दौरान गैर-ज़रूरी गिरफ्तारियों और अप्रभावी कानूनी सहायता का परिणाम समग्र रूप से जेलों में विचाराधीन कैदियों का उच्च अनुपात हो सकता है। 
    • कोविड-19 भी एक कारण है जिसने ट्रायल को स्थगित करने तथा अदालती सुनवाई में देरी को और अधिक बढ़ाया है।
  • निवारक निरोध के तहत रखे गए लोग: जम्मू और कश्मीर में प्रशासनिक (या 'रोकथाम') निरोध कानूनों के तहत पकड़े गए लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 2015 में जहाँ बंदियों की कुल संख्या 90 थी वहीँ वर्ष 2016 में 431 बंदियों के  चलते तुलनात्मक रुप से 300% की वृद्धि हुई है।
    • प्रशासनिक या 'निवारक' निरोध का उपयोग अधिकारियों द्वारा बिना किसी आरोप या मुकदमे के व्यक्तियों को हिरासत में लेने एवं नियमित आपराधिक न्याय प्रक्रियाओं को दरकिनार करने हेतु  किया जाता है।
    • सी.आर.पी.सी की धारा 436ए विचाराधीन कैदियों को व्यक्तिगत मुचलके पर रिहा करने की अनुमति देती है यदि वे दोषी पाए जाने पर उनके द्वारा झेली जाने वाली कारावास की अधिकतम अवधि का आधा हिस्सा पूरा कर  चुके हों।
  • जेल में अप्राकृतिक मौतें: जेलों में "अप्राकृतिक" मौतों की संख्या वर्ष 2015 और वर्ष 2016 के बीच बढ़कर 115 से 231 तक यानी दोगुनी हो गई है।
    • कैदियों के बीच आत्महत्या की दर में भी 28% की वृद्धि हुई। वर्ष 2015 में आत्महत्याओं के 77 मामले थे, वहीँ वर्ष 2016 में यह संख्या बढ़कर 102 हो गई।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने वर्ष 2014 में कहा था कि जेल से बाहर रहने वाले एक व्यक्ति की तुलना में जेल में आत्महत्या करने की संभावना डेढ़ गुना अधिक होती है। यह भारतीय जेलों के भीतर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं की भयावहता का एक संभावित संकेतक है।
  • मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी: वर्ष 2016 में प्रत्येक 21,650 कैदियों पर केवल एक मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ मौजूद था, वहीं केवल छह राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक मौजूद थे।
    • साथ ही NCRB ने कहा था कि वर्ष 2016 में मानसिक बीमारी से ग्रसित लगभग 6,013 व्यक्ति जेल में थे।
    • जेल अधिनियम, 1894 और कैदी अधिनियम, 1900 के अनुसार, प्रत्येक जेल में एक कल्याण अधिकारी तथा एक कानून अधिकारी होना चाहिये लेकिन इन अधिकारियों की भर्ती अभी भी लंबित है। यह पिछली शताब्दी के दौरान जेलों को मिली राज्य की कम राजनीतिक और बजटीय प्राथमिकता की व्याख्या करता है।

आगे की राह

  • जेल या पुलिस लॉक-अप में आत्महत्या को रोकना प्राथमिक रूप से एक चिकित्सा मामला नहीं है, बल्कि इसके लिये विभिन्न एजेंसियों के सहयोग और समन्वय की आवश्यकता है।
  • सभी पुलिसकर्मियों के लिये यह आवश्यक है कि वे हिरासत में आत्महत्या के व्यवहार को एक गंभीर मामले के रूप में तथा इसे रोके जा सकने वाले विकार के रूप में लें, जैसा कि किसी भी अन्य परिस्थिति में होता है। 
  • व्यक्तियों को जेल में रखने से पूर्व उनकी जाँच करना, नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग या मानसिक बीमारी जैसे महत्त्वपूर्ण जोखिम कारकों की पहचान करना  आवश्यक है तथा इस संबंध में उचित चिकित्सा सहायता प्राप्त करने से ऐसी घटनाओं की संख्या में काफी कमी आ सकती है।
  • इस तरह की घटनाएँ, जेल या पुलिस लॉक-अप के वातावरण पर ही निर्भर करती हैं  क्योंकि इनकी अनदेखी आत्महत्या के जोखिम को बढ़ा सकता है। इसलिये जेल के वातावरण में क्रमिक परिवर्तन व्यक्ति को स्थिति के अनुकूल होने और समस्याओं से निपटने के लिये सीखने में मदद कर सकता है।

स्रोत :द हिंदू


भारतीय राजनीति

मत की गोपनीयता

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला 

मेन्स के लिये:

मत की गोपनीयता से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि किसी भी चुनाव में, चाहे वह संसदीय हो या राज्य विधानमंडल का, मतदान की गोपनीयता बनाए रखना अनिवार्य है।

  • इसने ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ मामले में अपने वर्ष 2013 के फैसले को दोहराया।

प्रमुख बिंदु:

नवीनतम निर्णय की मुख्य विशेषताएँ:

  • मौलिक अधिकार का भाग: गोपनीयता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का ही एक भाग है।
  • किसी की पसंद की गोपनीयता से ही लोकतंत्र मज़बूत होता है।
  • आधारभूत ढाँचे का हिस्सा: लोकतंत्र और स्वतंत्र चुनाव संविधान के आधारभूत ढाँचे का हिस्सा हैं।
  • बूथ कैप्चरिंग पर: बूथ कैप्चरिंग और/या फर्जी वोटिंग को लोहे के हाथों से निपटा जाना चाहिये, क्योंकि यह अंततः कानून और लोकतंत्र के शासन को प्रभावित करता है।
    • किसी को भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार को कमज़ोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
  • गैर-कानूनी सभा पर: एक बार जब गैर-कानूनी सभा सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में स्थापित हो जाती है, तो गैर-कानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य दंगा करने के अपराध का दोषी होता है।
    • बल का उपयोग: भले ही यह विधानसभा के किसी एक सदस्य द्वारा किया गया मामूली सा व्यवहार हो, परंतु यदि इसे एक बार गैर-कानूनी कार्य के रूप में स्थापित कर दिया गया तो इसे दंगों की परिभाषा में शामिल किया जाता है।
    • यह आवश्यक नहीं है कि गैर-कानूनी बल या हिंसा सभी के द्वारा हो, लेकिन यह दायित्व विधानसभा के सभी सदस्यों के लिये है।
    • भारतीय कानून के अनुसार, 'गैर-कानूनी सभा' ​​की परिभाषा भारतीय दंड संहिता की धारा 141 में निर्धारित की गई है।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ केस, 2013 में निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से जो दो मुख्य बातें सामने आईं, वे इस प्रकार हैं:
    • वोट के अधिकार में वोट न देने का अधिकार अर्थात् अस्वीकार करने का अधिकार भी शामिल है।
    • गोपनीयता का अधिकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का एक अभिन्न अंग है।
  • अस्वीकार करने का अधिकार: इसका तात्पर्य है कि मतदान करते समय एक मतदाता को चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का भी पूर्ण अधिकार है।
    • इस तरह के अधिकार का तात्पर्य तटस्थ रहने के विकल्प से है। यह वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से उद्भूत हुआ है।
    • मतदान के समय 'उपरोक्त में से कोई नहीं' (‘None of the Above’- NOTA) बटन का विकल्प शामिल करने से चुनावी प्रक्रिया में जनता की भागीदारी बढ़ सकती है।
  • गोपनीयता का अधिकार:
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार प्रतिशोध, दबाव या ज़बरदस्ती के डर के बिना मतदान करना मतदाता का केंद्रीय अधिकार है।
      • अतः निर्वाचक की पहचान की सुरक्षा करना और उसे गोपनीयता प्रदान करना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का अभिन्न हिस्सा है।
    • मतदान करने वाले मतदाताओं और मतदान न करने वाले मतदाताओं के बीच अंतर करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-19(1)(A) तथा अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।
    • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का अनुच्छेद 21(3) और ‘इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकस राईट’ का अनुच्छेद-25(B) ‘गोपनीयता के अधिकार’ से संबंधित हैं।

अन्य संबंधित निर्णय:

  • इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया था कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है और इसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 की धारा 94 के तहत संदर्भित किया गया है।
    • यह धारा मतदाताओं के वोट की पसंद के बारे में गोपनीयता बनाए रखने के विशेषाधिकार को बरकरार रखती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

चंद्र शेखर आज़ाद

प्रिलिम्स के लिये:

चंद्रशेखर आज़ाद, असहयोग आंदोलन, काकोरी षडयंत्र

मेन्स के लिये: 

चन्द्रशेखर आज़ाद का स्वतंत्रता आंदोलनन में योगदान

चर्चा में क्यों? 

23 जुलाई को भारत ने स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।Chandra-Shekhar-Azad

प्रमुख बिंदु

  • जन्म: आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर ज़िले में हुआ था।
  • प्रारंभिक जीवन: चंद्रशेखर, जो कि उस समय 15 वर्षीय छात्र थे, दिसंबर 1921 में एक असहयोग आंदोलन में शामिल हुए थे जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
    • मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने पर उन्होंने अपना नाम "आज़ाद" (द फ्री) तथा अपने पिता का नाम "स्वतंत्रता" (स्वतंत्रता) और अपना निवास स्थान "जेल" बताया था।
    • इसलिये उन्हें चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से जाना जाने लगा।

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान:

  • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन: गांधी द्वारा 1922 में असहयोग आंदोलन के निलंबन के बाद आज़ाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Republican Association- HRA) में शामिल हो गए।
    • HRA भारत का एक क्रांतिकारी संगठन था जिसकी स्थापना वर्ष 1924 में पूर्वी बंगाल में शचींद्र नाथ सान्याल, नरेंद्र मोहन सेन और प्रतुल गांगुली ने अनुशीलन समिति की शाखा के रूप में की थी।
    • सदस्य: भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी।
  • काकोरी षडयंत्र: क्रांतिकारी गतिविधियों के लिये अधिकांश धन संग्रह सरकारी संपत्ति की लूट के माध्यम से किया जाता था। उसी के अनुरूप वर्ष 1925 में HRA द्वारा काकोरी (लखनऊ) के पास काकोरी ट्रेन डकैती की गई थी।
    • इस योजना को चंद्रशेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और मनमथनाथ गुप्ता ने अंजाम दिया था।
  • हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन: HRA को बाद में ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) के रूप में पुनर्गठित किया गया था।
    • इसकी स्थापना 1928 में नई दिल्ली के फिरोज शाह कोटला में चंद्रशेखर आज़ाद, अशफाकउल्ला खान, भगत सिंह, सुखदेव थापर और जोगेश चंद्र चटर्जी ने की थी।
    • HSRA ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिये वर्ष 1928 में लाहौर में एक ब्रिटिश पुलिसकर्मी जे.पी. सॉन्डर्स को गोली मारने की योजना बनाई।

मृत्यु: 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के आज़ाद पार्क में उनका निधन हो गया।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

विशेष आर्थिक क्षेत्र

चर्चा में क्यों?

विगत तीन वर्षों में निर्यात, निवेश और रोज़गार में प्रदर्शन के मामले में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones- SEZ) ने नई ऊँचाइयों को छुआ है।

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • SEZ किसी देश के भीतर ऐसे क्षेत्र हैं जो प्रायः शुल्क मुक्त (राजकोषीय रियायत) होते हैं और यहाँ मुख्य रूप से निवेश को प्रोत्साहित करने तथा रोज़गार पैदा करने के लिये अलग-अलग व्यापार और वाणिज्यिक कानून होते हैं।
  • SEZ इन क्षेत्रों को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिये भी बनाए गए हैं, जिससे व्यापार करने में आसानी होती है।

भारत में SEZ:

  • एशिया का पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (Export Processing Zones- EPZ) वर्ष 1965 में कांडला, गुजरात में स्थापित किया गया था।
  • इन EPZs की संरचना SEZ के समान थी, सरकार ने वर्ष 2000 में EPZ की सफलता को सीमित करने वाली ढाँचागत और नौकरशाही चुनौतियों के निवारण के लिये विदेश व्यापार नीति के तहत SEZ की स्थापना शुरू की।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम वर्ष 2005 में पारित किया गया और वर्ष 2006 में SEZ नियमों के साथ लागू हुआ।
  • हालाँकि SEZ की स्थापना का कार्य वर्ष 2000 से 2006 तक (विदेश व्यापार नीति के तहत) भारत में चालू था।
  • भारत के SEZ को चीन के सफल मॉडल के साथ मिलकर संरचित किया गया था।
  • वर्तमान में 379 SEZs अधिसूचित हैं, जिनमें से 265 चालू हैं। लगभग 64% SEZ पाँच राज्यों - तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं।
  • अनुमोदन बोर्ड सर्वोच्च निकाय है और इसका नेतृत्व वाणिज्य विभाग (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के सचिव द्वारा किया जाता है।
  • भारत की मौजूदा SEZ नीति का अध्ययन करने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा बाबा कल्याणी के नेतृत्व वाली समिति का गठन किया गया था और नवंबर 2018 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
    • इसे विश्व व्यापार संगठन (WTO) को अनुकूल बनाने और अधिकतम क्षमता का उपयोग करने तथा SEZs के संभावित उत्पादन को अधिकतम करने हेतु वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने की दिशा में SEZ नीति का मूल्यांकन करने के व्यापक उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया था।

SEZ अधिनियम के उद्देश्य:

  • अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों के लिये।
  • वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।
  • रोज़गार पैदा करने के लिये।
  • घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।
  • बुनियादी सुविधाओं का विकास करना।

SEZ के लिये उपलब्ध प्रमुख प्रोत्साहन और सुविधाएँ:

  • SEZ इकाइयों के विकास, संचालन और रखरखाव के लिये शुल्क मुक्त आयात/माल की घरेलू खरीद।
  • आयकर, न्यूनतम वैकल्पिक कर आदि जैसे विभिन्न करों से छूट।
  • मान्यता प्राप्त बैंकिंग के माध्यम से बिना किसी परिपक्वता प्रतिबंध के SEZ इकाइयों द्वारा एक वर्ष में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक की बाहरी वाणिज्यिक उधारी।
  • केंद्र और राज्य स्तर पर अनुमोदन के लिये एकल खिड़की मंज़ूरी।

अब तक का प्रदर्शन:

  • निर्यात: यह 22,840 करोड़ रुपए (2005-06) से बढ़कर 7,59,524 करोड़ रुपए (2020-21) हो गया है।
  • निवेश: यह 4,035.51 करोड़ रुपए (2005-06) से बढ़कर 6,17,499 करोड़ रुपए (2020-21) हो गया है।
  • रोज़गार: कुल रोज़गार 1,34,704 (2005-06) से बढ़कर 23,58,136 (2020-21) हो गया है।

चुनौतियाँ :

  • SEZ  में अप्रयुक्त भूमि:
    • SEZ क्षेत्रों की मांग में कमी और महामारी के कारण उत्पन्न हुए व्यवधान के परिणामस्वरूप SEZ के रूप में मौजूद अप्रयुक्त भूमि।
  • बहु-मॉडलों का अस्तित्व:
    • आर्थिक क्षेत्रों या प्रक्रम के अनेक मॉडल हैं जैसे- SEZ, तटीय आर्थिक क्षेत्र, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा, राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र, फूड पार्क तथा टेक्सटाइल पार्क जो विभिन्न मॉडलों को एकीकृत करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
  • आसियान देशों से प्रतिस्पर्द्धा:
    • पिछले कुछ वर्षों में कई आसियान देशों ने अपने SEZ में निवेश करने के लिये वैश्विक निवेशकों या भागीदारों को आकर्षित करने हेतु नीतियों में परिवर्तन किया है तथा अपने कौशल अभियानों के विकासात्मक स्तर पर भी कार्य किया है।
    • परिणामस्वरूप भारतीय SEZ ने वैश्विक स्तर पर अपने कुछ प्रतिस्पर्द्धी हितधारकों को खो दिया है, जिसके कारण उन्हें नई नीतियों की आवश्यकता पड़ी।

आगे की राह

  • SEZ पर बाबा कल्याणी समिति की सिफारिशों केअनुसार, SEZ में MSME योजनाओं को जोड़कर तथा वैकल्पिक क्षेत्रों को क्षेत्र-विशिष्ट SEZ में निवेश करने की अनुमति देकर MSME निवेश को बढ़ावा देना है।
  • इसके अतिरिक्त सक्षम और प्रक्रियात्मक छूट के साथ-साथ SEZ को अवसंरचनात्मक स्थिति प्रदान करने हेतु वित्त तक उनकी पहुँच में सुधार करके तथा  दीर्घकालिक ऋण को सक्षम करने के लिये भी अग्रगामी कदम उठाए गए।

स्रोत : पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

रोगाणुरोधी प्रतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

AMR के प्रसार के कारण

चर्चा में क्यों?    

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु विभिन्न उपायों पर प्रकाश डाला।

प्रमुख बिंदु

रोगाणुरोधी प्रतिरोध:

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
  • परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।

AMR के प्रसार का कारण:

  • रोगाणुरोधी दवा का दुरुपयोग और कृषि में अनुचित उपयोग।
  • दवा निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण शामिल हैं, जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते है।

भारत में AMR:

  • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर (Over-the-Counter) पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती है। 
  • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से  उभरा है।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
  • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से प्रत्येक वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती है जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।

AMR को संबोधित करने के लिये किये गए उपाय:

  • AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
  • AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: यह स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
  • AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत और प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
  • AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाओं को विकसित करने की पहल की है।
    • ICMR ने नॉर्वे की रिसर्च काउंसिल (RCN) के साथ मिलकर वर्ष 2017 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध में अनुसंधान हेतु एक संयुक्त आह्वान शुरू किया।
    • ICMR ने संघीय शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय (BMBF), जर्मनी के साथ AMR पर शोध के लिये एक संयुक्त भारत-जर्मन सहयोग किया है।
  • एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: ICMR ने अस्पताल के वार्डों और आईसीयू में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम शुरू किया है।
    • DCGI ने अनुपयुक्त पाए गए 40 फिक्स डोज़ कॉम्बिनेशन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • AMR के लिये एकीकृत स्वास्थ्य निगरानी नेटवर्क: एकीकृत AMR निगरानी नेटवर्क में हिस्सा लेने के लिये भारतीय पशु चिकित्सा प्रयोगशालाओं की तैयारी का आकलन करना।
    • ICMR ने जानवरों और मनुष्यों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध पैटर्न की तुलना के लिये एक पशु चिकित्सा मानक संचालन प्रक्रिया (Vet-SOPs) भी विकसित की है।
  • अन्य
    • भारत ने कम टीकाकरण कवरेज को संबोधित करने के लिये मिशन इंद्रधनुष जैसी कई गतिविधियाँ शुरू की हैं, साथ ही निगरानी एवं जवाबदेही में सुधार के लिये सूक्ष्म योजना और अन्य अतिरिक्त तंत्रों को मज़बूत किया गया है।
    • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ अपने सहयोगात्मक कार्य के लिये AMR को शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में से एक के रूप में पहचाना है।

AMR पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का पक्ष

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने AMR को वैश्विक स्वास्थ्य के लिये शीर्ष दस खतरों में से एक के रूप में पहचाना है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुशंसा की है कि देशों को वित्तपोषण और क्षमता निर्माण प्रयासों को बढ़ाने के लिये अपनी राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, मज़बूत नियामक प्रणाली स्थापित करनी चाहिये तथा मनुष्यों, जानवरों एवं पौधों के स्वास्थ्य में पेशेवरों द्वारा एंटीमाइक्रोबियल के उत्तरदायी एवं विवेकपूर्ण उपयोग के लिये जागरूकता कार्यक्रमों का समर्थन करना चाहिये।
  • साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसे कई उपाय सुझाए हैं जो प्रभाव को कम करने और इस प्रतिरोध के प्रसार को सीमित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर प्रयोग किये जा सकते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

पटाखों पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिका खारिज

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय हरित अधिकरण, वायु गुणवत्ता सूचकांक, जीवन का अधिकार, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 21, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

मेन्स के लिये 

जीवन के अधिकार और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के बीच संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) के आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों को खारिज़ कर दिया है, जिसके अंतर्गत NCR और भारत के अन्य शहरों में कोविड-19 महामारी के दौरान सभी पटाखों की बिक्री एवं उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था।

प्रमुख बिंदु 

पृष्ठभूमि

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में दायर एक याचिका के आधार पर दिवाली, क्रिसमस आदि उत्सवों के दौरान हानिकारक पटाखों के उपयोग और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।
    • न्यायालय ने कहा था कि विभिन्न कारकों, विशेषकर पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण ने दिल्ली को गैस चैंबर बना दिया है।
    • याचिककर्त्ताओं ने अपने जीवन के अधिकार (Right to Life) की सुरक्षा के लिये गुहार लगाई थी।
  • न्यायालय ने इस तर्क को खारिज़ कर दिया कि दिवाली जैसे धार्मिक त्योहारों के दौरान पटाखे फोड़ना मौलिक अधिकार तथा आवश्यक प्रथा है।
    • न्यायालय ने माना कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25) जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के अधीन है।
    • यदि कोई विशेष धार्मिक प्रथा लोगों के स्वास्थ्य और जीवन के लिये खतरा है तो ऐसी प्रथा अनुच्छेद 25 के अंतर्गत सुरक्षा की हकदार नहीं है।

NGT के आदेश:

  •  दिसंबर 2020 के NGT के आदेशानुसार क्रिसमस और नए वर्ष पर केवल हरित पटाखे (जो कम प्रदूषणकारी कच्चे माल का उपयोग करते हैं) की अनुमति उन क्षेत्रों में होगी जहाँ परिवेशी वायु गुणवत्ता का स्तर मध्यम या उससे नीचे की श्रेणियों में होगा। 
    • हालाँकि कोविड -19 महामारी के कारण NGT ने पुनः  पटाखों की बिक्री एवं उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • पटाखा कंपनियों ने तर्क दिया कि यह प्रतिबंध उनकी आजीविका के मार्ग में एक बाधक था।
  • इसके प्रत्युत्तर में ट्रिब्यूनल ने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 19 (1) (g) के अनुसार ‘राइट टू बिज़नेस’ आत्यंतिक नहीं है तथा वायु गुणवत्ता एवं ध्वनि प्रदूषण स्तर के मानदंडों का उल्लंघन करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है।

पटाखों के हानिकारक प्रभाव: 

  • पटाखों में कैडमियम, लेड, क्रोमियम, एल्युमिनियम, मैग्नीशियम, नाइट्रेट्स, कार्बन मोनोऑक्साइड, कॉपर, पोटैशियम, सोडियम, जिंक ऑक्साइड, मैंगनीज़ डाइऑक्साइड आदि भारी धातुएँ और ज़हरीले रसायन होते हैं।
  • ये रसायन हृदय रोग, श्वसन या तंत्रिका तंत्र विकार के रूप में लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
  • इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण बेचैनी, अस्थायी या स्थायी श्रवण हानि, उच्च रक्तचाप, नींद में खलल और बच्चों में भी खराब संज्ञानात्मक विकास का कारण बनता है।

स्रोत: द हिंदू


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