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भारतीय अर्थव्यवस्था

रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा में वृद्धि

  • 11 Sep 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,  

मेन्स के लिये:

भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में निजी कंपनियों और विदेशी निवेश की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रक्षा क्षेत्र के लिये एक नई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति को मंज़ूरी दी है, इस नीति में ऑटोमैटिक रूट के तहत रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु: 

  • नई नीति के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 74% करने के साथ इसमें ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की शर्त को भी जोड़ा गया है। 
  • इस शर्त के अनुसार, रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के आधार पर जाँच के अधीन होगा साथ ही सरकार के पास रक्षा क्षेत्र में किसी भी ऐसे विदेशी निवेश की समीक्षा करने का अधिकार सुरक्षित होगा जो राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
    • गौरतलब है कि मौजूदा नीति में रक्षा क्षेत्र से जुड़े उद्योगों में ऑटोमैटिक रूट के तहत 49% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को अनुमति दी गई है, जबकि इससे अधिक के निवेश के लिये सरकार की अनुमति लेनी आवश्यक होती है। 
  • नई नीति के तहत ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की यह शर्त रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये पहले से मौजूद चार शर्तों (जिसमें सुरक्षा मंज़ूरी और रक्षा मंत्रालय के कुछ दिशा निर्देश शामिल हैं) से अलग होगी। 

उद्देश्य:

  • पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में देश की स्थानीय विनिर्माण क्षमता को बढ़ावा देने के लिये कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गए हैं।
  • रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की शर्तों में छूट देकर केंद्र सरकार का लक्ष्य विदेशी मूल उपकरण निर्माता कंपनियों को भारत में विनिर्माण इकाइयों की स्थापना के लिये प्रोत्साहित करना और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना है।
  • केंद्र सरकार द्वारा देश के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के लिये वर्ष 2025 तक 1.75 लाख करोड़ रुपए के कारोबार के साथ 35,000 करोड़ रुपए के निर्यात का लक्ष्य रखा गया है।

भारतीय रक्षा क्षेत्र: 

  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 तक एयरोस्पेस और जहाज़ निर्माण उद्योग के साथ रक्षा उद्योग का कारोबार लगभग 80,000 करोड़ रुपए का बताया गया था।  
  • हालाँकि इसमें लगभग 80% (63,000 करोड़ रुपए) हिस्सेदारी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (Public Sector Undertaking- PSU) की है।    

सरकार के प्रयास:

  • हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत’ नामक एक ऑनलाइन सेमिनार को संबोधित करते हुए रक्षा क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने, नवीन स्वदेशी तकनीकी विकसित करने और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दोहराया था।
  • सरकार द्वारा रक्षा उत्पादों की खरीद के संदर्भ में एक नकारात्मक आयात सूची (Negative Imports List) जारी करने के साथ घरेलू उद्योग से पूंजी अधिग्रहण के लिये एक समर्पित बजट घोषणा की गई थी।
  • सरकार द्वारा अगस्त 2020 में जारी ‘रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (Defence Production & Export Promotion Policy- DPEPP) 2020’ का मसौदा जारी किया गया था।
    • इस मसौदे में विदेशी कंपनियों को रक्षा विनिर्माण क्षेत्र से जुड़ने के लिये प्रोत्साहित करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका को मज़बूत करने के लिये रक्षा क्षेत्र में FDI शर्तों को आसान बनाने की बात कही गई थी।

निष्कर्ष:

हाल के वर्षों में भारतीय रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिली है, परंतु आज भी देश के रक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक कंपनियों का ही एकाधिकार रहा है। वर्तमान में वैश्विक बाज़ार में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने के लिये रक्षा क्षेत्र में उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ नवोन्मेष को बढ़ावा देना बहुत ही आवश्यक है। रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित कर इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हो सकती है, हालाँकि वर्तमान में COVID-19 के कारण देश के आर्थिक क्षेत्र में आई गिरावट के बीच बड़े निवेश का लक्ष्य आसान नहीं होगा।

स्रोत:  द इंडियन एक्सप्रेस

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