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निजी कोचिंग की अवधारणा

  • 10 Sep 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नई शिक्षा नीति, राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO)

मेन्स के लिये:

निजी कोचिंग से संबंधित प्रमुख मुद्दे, निजी कोचिंग के प्रति रुझान में वृद्धि के कारण 

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पाँच में से एक छात्र निजी कोचिंग के साथ स्कूली शिक्षा को पूर्ण करता है। जून 2017 और जुलाई 2018 के बीच आयोजित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 75वें दौर में परिवारों द्वारा शिक्षा से संबंधित उपभोग पर खर्च को लेकर सर्वेक्षण किया गया था।

रिपोर्ट के प्रमुख  बिंदु      

  • पूर्व-प्राथमिक और उससे ऊपर के स्तर पर लगभग 20% छात्र/छात्राएँ (21% छात्र और 19% छात्राएँ) निजी कोचिंग ले रहे थे।  
  • माध्यमिक स्तर पर निजी कोचिंग लेने वालों की संख्या अधिकतम (छात्रों का 31% और छात्राओं का 29%) थी।   
  • निजी कोचिंग की फीस माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा की कुल लागत का लगभग 20% है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में छात्र-छात्राएँ वास्तव में अपने नियमित स्कूल की तुलना में निजी कोचिंग पर अधिक खर्च करते हैं।

निजी कोचिंग से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • स्कूली शिक्षा के साथ निजी कोचिंग शिक्षा पर लागत में वृद्धि कर देती है। माध्यमिक स्कूल के विद्यार्थियों का शिक्षा पर औसत वार्षिक व्यय 9,013 है, जिनमें से 4,078 नियमित स्कूल फीस के रूप में खर्च होता है। लगभग 1,632 रूपए या 18% से अधिक निजी कोचिंग में खर्च हो जाता है। 
  • निजी कोचिंग में ग्रामीण-शहरी तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर पर अंतर देखने को मिलता है। माध्यमिक विद्यालय स्तर पर शहरी और उच्च जातियों के बच्चे निजी कोचिंग का अधिक उपयोग करते हैं। अनुसूचित जनजाति समुदायों के सिर्फ 13.7% ग्रामीण लड़के और लड़कियों की तुलना में शहरी उच्च जाति के 52% से अधिक बच्चे निजी कोचिंग लेते हैं।
  • छात्रों को पहले से ही स्कूल से प्रत्येक विषय के लिये होमवर्क मिल जाता है और अगर उन्हें कोचिंग कक्षाओं से भी होमवर्क मिलता है, तो वे अतिरिक्त होमवर्क के कारण बोझ महसूस करते हैं।
  • कोचिंग संस्थान द्वारा प्रत्येक छात्र के लिये एक व्यक्तिगत अध्ययन पैटर्न का पालन करने और स्कूल द्वारा प्रत्येक कक्षा के लिये एक सामान्य पैटर्न का पालन करने से बच्चे दुविधा में रहते हैं।
  • कोचिंग संस्थानों में बोर्ड परीक्षा, प्रवेश परीक्षा और प्रतियोगी परीक्षा के लिये छात्रों को तैयार कर परस्पर प्रतिस्पर्द्धा कराने से बच्चों में चिंता और परीक्षा के प्रति तनाव उत्पन्न होता है।
  • कोचिंग संस्थान में विभिन्न स्कूलों या शिक्षा बोर्ड्स के बच्चे सम्मिलित होते हैं। सभी स्कूलों या बोर्ड्स का शिक्षा पैटर्न एक जैसा नहीं है। प्रत्येक छात्र की अवधारणात्मक समझ को लेकर अपनी समस्याएँ होती हैं। 

निजी कोचिंग के प्रति रुझान में वृद्धि के कारण 

  • स्कूली शिक्षा की निम्न गुणवत्ता के कारण अधिक संख्या में छात्र निजी कोचिंग और ट्यूशन पर निर्भर हो रहे हैं। 
  • माता-पिता द्वारा, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, अपनी सहायक शिक्षक की भूमिका को विभिन्न कारणों से नहीं निभा पाने के कारण वे अपने बच्चों को निजी कोचिंग/ट्यूशन पर भेजना प्रारंभ कर देते हैं। 
  • सूचना-केंद्रित पाठ्यक्रम और रटने की प्रवत्ति निजी कोचिंग को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारण हैं। 
  • शहरी क्षेत्रों में माता-पिता शैक्षिक और आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में होते हैं, जिसके कारण वे निजी कोचिंग की लागत वहन करने की स्थिति में होते हैं।   
  • सामाजिक प्रतिष्ठा जैसे- मुद्दों के कारण मध्यम वर्ग के माता-पिता पर सामाजिक दवाब और अपने बच्चों की उपेक्षा के मामले में अपराध की भावना के कारण भी निजी कोचिंग को बढ़ावा मिलता है।  
  • एकल परिवार और दोहरी आय की परिघटना में वृद्धि के कारण आय में एवं बचत में वृद्धि ने बच्चों को ट्यूशन केंद्रों पर भेजने के लिये प्रेरित किया है। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की कमज़ोर आर्थिक स्थिति, माता-पिता की शिक्षा और आकांक्षाओं का निम्न स्तर तथा निजी कोचिंग केंद्रों की सीमित संख्या ऐसे क्षेत्रों में निजी कोचिंग के कम अनुपात के कुछ प्रमुख कारण हैं। 
  • इस प्रकार निजी कोचिंग्स की बढ़ती प्रवृत्ति सामाजिक-आर्थिक विकास की प्रवृत्ति से मेल खाती है। केरल जहाँ ग्रामीण और शहरी क्षेत्र सामाजिक विकास के समान स्तर पर हैं, वहाँ निजी कोचिंग प्राप्त करने में कोई भौगोलिक असमानता नहीं दिखाई देती है।

नई शिक्षा नीति एवं निजी कोचिंग्स 

  • कोचिंग संस्कृति को प्रोत्साहित करने की बजाय नियमित रूप से मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित कर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 स्कूली बच्चों को निजी ट्यूशन और कोचिंग कक्षाओं से दूर रखना चाहती है।
  • नई शिक्षा नीति में CBSE बोर्ड परीक्षाओं को और अधिक लचीला बनाने का प्रावधान किया गया है, जो एक बच्चे की आधारभूत क्षमताओं/दक्षताओं का परीक्षण करेगी। 
  • अगर नई शिक्षा नीति का ठीक से क्रियान्वयन होता है तो केवल वे ही संस्थान सफल होंगे जो अपने शिक्षकों को नए पाठ्यक्रमों और दृष्टिकोण में प्रशिक्षित करेंगे। अभी अधिकतर कोचिंग संस्थान विज्ञान और गणित तथा परीक्षा में अंक वृद्धि पर ही अधिक केंद्रित हैं।

आगे की राह

  • कोचिंग संस्थानों की कार्यप्रणाली को नियंत्रित करने हेतु कोचिंग संस्थानों के संचालन के लिये न्यूनतम मानक प्रदान करने वाले नियमों/योजना को लागू करके सरकार को विनियमन पर ज़ोर देने की आवश्यकता है। वर्तमान में कोचिंग उद्योग बहुत वृद्धि कर चुका है और स्कूल शिक्षा प्रणाली के लिये एक चुनौती बन चुका है। 

स्रोत: द हिन्दु

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