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डेली न्यूज़

  • 24 Jul, 2019
  • 63 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

आभासी मुद्रा पर अंतर-मंत्रालयी समिति की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त सचिव सुभाष गर्ग की अध्यक्षता में क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर गठित अंतर-मंत्रालयी समिति ने वित्त मंत्रालय के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

समिति का कार्य

  • समिति का कार्य क्रिप्टोकरेंसी प्रतिबंध एवं आधिकारिक डिज़िटल मुद्रा नियमन विधेयक, 2019 (Banning of Cryptocurrency & Regulation of Official Digital Currency Bill) के मसौदे पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

Crypto currency

समिति की सिफारिशें

  • समिति के अनुसार निजी क्रिप्टोकरेंसी में कोई अंतर्निहित मूल्य नहीं है। इनका कोई निर्धारित मूल्य नहीं है। निजी क्रिप्टोकरेंसी न तो मूल्य के भंडार के रूप में कार्य करती है और न ही यह विनिमय का माध्यम है।
  • समिति के अनुसार शुरुआती समय से ही निजी क्रिप्टोकरेंसी की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है।
  • विधेयक के मसौदे के अनुसार जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से क्रिप्टोकरेंसी को ढालता है, इसे बनाता है, रखता है, बेचता है, इसका कारोबार करता है, हस्तांतरण करता है, निपटारा करता है या जारी करता है, उस पर ज़ुर्माना लगाया जाएगा या उसे एक साल से दस साल तक की कैद या दोनों हो सकती हैं।
  • समिति ने सिफारिश की है कि आधिकारिक डिज़िटल करेंसी पर विचार करने के लिये सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया जाना चाहिये। इसमें RBI, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय तथा वित्तीय सेवा विभाग के प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सकता है। यदि सरकार द्वारा आधिकारिक डिज़िटल करेंसी को लाने का निर्णय किया जाता है तो इसके नियमन का अधिकार आर.बी.आई. के पास होना चाहिये।
  • डी.एल.टी. के मुद्दे पर समिति ने सिफारिश की है कि वित्त मंत्रालय और आर.बी.आई., सेबी, IRDF, PFRDA को DLT के इस्तेमाल की पहचान करनी चाहिये। इसके लिये इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय और GST नेटवर्क द्वारा प्रौद्योगिकी सहायक की भूमिका निभाई जानी चाहिये।
  • समिति ने वित्त और इससे जुड़े क्षेत्रों में DLT के प्रयोग के नियमन और इसे बढ़ावा देने के लिये विधेयक के मसौदे में एक विशेष कानून बनाने का भी प्रस्ताव पेश किया है।
  • समिति के अनुसार क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) के लिये उपयोग में लाई जाने वाली तकनीक डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (Distributed Ledger Technology-DLT) देश में वित्तीय लेन-देन, के.वाई.सी. (Know Your Customer) लागत में कमी लाने, क्रेडिट एसेट (Credit Asset) में सुधार करने के साथ-साथ अन्य वित्तीय तथा गैर-वित्तीय क्षेत्रों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकती है।
  • समिति के अनुसार डेटा को स्थानीय स्तर पर संरक्षित रखने के लिये डेटा संरक्षण कानून में प्रस्तावित आवश्यकताओं को सावधानी से लागू किया जाना चाहिये ताकि भारतीय कंपनियों और उपभोक्ताओं पर इसका प्रतिकूल असर न पड़े। समिति ने सेबी को निर्गम जारी करने की मौजूदा व्यवस्था के विकल्प के रूप में IPO और FPO के लिये DLT के इस्तेमाल पर विचार करने का सुझाव दिया है।

डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी क्या है?

  • डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी में ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए लेन-देन और डाटा एक स्वतंत्र कंप्यूटर में रिकार्ड या स्टोर किया जाता है, जबकि परंपरागत लेजर में डाटा एक जगह केंद्रीयकृत रूप से स्टोर किया जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) क्या है?

  • यह एक डिज़िटल या क्रिप्टोकरेंसी है जिसमें सुरक्षा के लिये क्रिप्टोग्राफी तकनीक उपयोग में लाई जाती है। इसकी सुरक्षा वैशिष्ट्य के कारण इसका जाली रूप बनाना मुश्किल है।
  • इसे किसी केंद्रीय या सरकारी प्राधिकरण द्वारा जारी नहीं किया जाता है। अतः सैद्धांतिक रूप से यह सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त है।
  • वर्ष 2009 में किसी समूह या व्यक्ति ने सतोशी नाकामोतो के छद्म नाम से ‘बिटकॉइन’ के नाम से पहली क्रिप्टोकरेंसी बनाई।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के विकास दर में 0.3% की कटौती

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक को अपडेट किया है तथा इस अपडेट में भारत की विकास दर में 0.3% अंकों की कटौती की है।

World economic outlook

प्रमुख बिंदु

  • अप्रैल 2019 में IMF ने भारत की विकास दर 7.3% रहने का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन अब इसने वर्ष 2019- 20 में भारत की विकास दर 7% रहने का अनुमान व्यक्त किया है। IMF के अनुसार, भारत के विकास दर अनुमान को कम करने का प्रमुख कारण मांग की ख़राब स्थिति है।
  • इसके अलावा वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (World Economic Outlook) की जुलाई में आई रिपोर्ट में वर्ष 2020-21 के लिये भी भारत के विकास दर अनुमान को पूर्व में जारी अनुमान 7.5% से घटाकर 7.2% कर दिया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था में 7% की दर से वृद्धि होगी जो वर्ष 2020 में 7.2% तक पहुँच सकती है।
  • दोनों वर्षों के लिये 0.3% अंकों की गिरावट अपेक्षित परिणाम से कम घरेलू मांग को दर्शाता है।
  • अप्रैल 2019 में IMF ने वर्ष 2019-20 के लिये भारत के विकास दर के अनुमान को कम कर 7.3% कर दिया था जो कि इसी वर्ष जनवरी में जारी किये गए अनुमान की तुलना में 0.2 प्रतिशत अंक कम था, जबकि जनवरी, 2019 में जारी अनुमान अक्तूबर 2018 में जारी किये गए अनुमानों की तुलना में 0.1% कम था।
  • वर्ष 2020-21 के लिये 7.2% की वृद्धि का अनुमान अक्तूबर, 2018 और जनवरी 2019 में किये गए पूर्वानुमान की तुलना में 0.5 प्रतिशत कम है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2019-20 के लिये 7% की दर से विकास का पूर्वानुमान भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI), मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Adviser) तथा एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank-ADB) द्वारा जारी अनुमानों के समान ही है।
  • इसके अलावा IMF ने विश्व के GDP विकास के अनुमान में भी 0.1% की कटौती की है वर्ष 2019 तथा 2020 के लिये नए अनुमान क्रमशः 3.2% तथा 3.5% हैं।
  • उभरते बाजारों एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के विकास अनुमान में भी वर्ष 2019 के लिये 0.3 % तथा वर्ष 2020 के लिये 0.1 % की कमी की गई है इन दोनों वर्षों के लिये संशोधित अनुमान क्रमशः 4.1% तथा 4.7% हैं।

वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक

(World Economic Outlook-WEO)

  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक एक सर्वेक्षण है जिसका आयोजन तथा प्रकाशन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) द्वारा किया जाता है।
  • यह भविष्य के चार वर्षों तक के अनुमानों के साथ निकट और मध्यम संदर्भ में वैश्विक अर्थव्यवस्था को चित्रित करता है।
  • WEO पूर्वानुमान में सकल घरेलू उत्पाद, मुद्रास्फीति, चालू खाता और दुनिया भर के 180 से अधिक देशों के वित्तीय संतुलन जैसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक संकेतक शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

(International Monetary Fund- IMF)

  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का कार्य करती है।
  • यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने तथा आर्थिक विकास को सुगम बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।
  • IMF का मुख्यालय वाशिंगटन डी.सी. संयुक्त राज्य अमेरिका में है।
  • IMF की विशेष मुद्रा SDR (Special Drawing Rights) कहलाती है।
  • IMF का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना, आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना, गरीबी को कम करना, रोज़गार के नए अवसरों का सृजन करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।

Fast fact IMF

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 [Right to Information (Amendment) Bill, 2019] पारित किया। इस विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।

संशोधन के प्रमुख बिंदु:

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, परंतु संशोधन के तहत इसे परिवर्तित करने का प्रावधान गया है। प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • नए विधेयक के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते तथा अन्य रोज़गार की शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा ही तय की जाएंगी।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 यह प्रावधान करता है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होते समय उम्मीदवार किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि को उसके वेतन से घटा दिया जाएगा, लेकिन इस नए संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

RTI Act

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

  • सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।

प्रमुख प्रावधान:

  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
  • प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
  • इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्तों की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।
  • यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर (यहाँ जम्मू और कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम प्रभावी है) को छोड़कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है।
  • इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं।

ऐसे कौन से मामले है जिनमें सूचना देने से इनकार किया जा सकता है?

  • राष्ट्र की संप्रभुता, एकता-अखण्डता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ प्रकट करने की बाध्यता से मुक्ति प्रदान की गई है।

सूचना के अधिकार के समक्ष चुनौतियाँ

  • सूचना के अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने से सबसे बड़ा खतरा RTI कार्यकर्त्ताओं को है। इन्हें कई तरीकों से उत्पीड़ित एवं प्रताडि़त किया जाता है।
  • औपनिवेशिक हितों के अनुरूप निर्मित वर्ष 1923 का सरकारी गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) RTI की राह में प्रमुख बाधा है, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Second Administrative Reform Commission) ने इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश की है जिस पर पारदर्शिता के लिहाज से अमल करना आवश्यक है।
  • इसके अलावा कुछ अन्य चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं, जैसे-
    • नौकरशाही में अभिलेखों के रखने व उनके संरक्षण की व्यवस्था बहुत कमज़ोर है।
    • सूचना आयोगों को चलाने के लिये पर्याप्त अवसंरचना और कर्मियों/स्टाफ का अभाव है।
    • सूचना का अधिकार कानून के पूरक कानूनों, जैसे- ‘व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम’ (Whistle Blowers Protection Act) का कुशल क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) की संरचना

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अध्याय-3 में केंद्रीय सूचना आयोग तथा अध्याय-4 में राज्य सूचना आयोगों (State Information Commissions- SICs) के गठन का प्रावधान है।
  • इस कानून की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन, धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवा शर्ते तथा धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्तों का प्रावधान है और इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति की अनुशंसा पर की जाती है, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री बतौर सदस्य होते हैं।

DoPT है इसका नोडल मंत्रालय

  • कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of personnel & training-DoPT) सूचना का अधिकार और केंद्रीय सूचना आयोग का नोडल विभाग हैi।
  • अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों और प्राधिकरणों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है।
  • केंद्र सरकार के 2200 सरकारी कार्यालयों और उपक्रमों में ऑनलाइन RTI दाखिल करने और उसका जवाब देने की व्यवस्था है। ऐसा इन संस्थानों के कामकाज में अधिकतम पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
  • आधुनिक तकनीक के उपयोग से RTI दाखिल करने के लिये अब एक पोर्टल और एप्लीकेशन भी उपलब्ध है, जिसकी सहायता से कोई भी नागरिक अपने मोबाइल फोन से किसी भी समय, किसी भी स्थान से RTI के लिये आवेदन कर सकता है।
  • राज्य सरकारों को भी RTI पोर्टल शुरू करने की व्यावहारिकता पर विचार करने को कहा गया है।
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) को ऑनलाइन RTI पोर्टल बनाने में राज्य सरकारों की सहायता करने को कहा गया है।

स्रोत: पी.आई.बी. एवं पी.आर.एस.


जैव विविधता और पर्यावरण

हिमाचल प्रदेश में बंदर हिंसक जानवर घोषित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में बंदरों को एक वर्ष के लिये हिंसक जानवर (Vermin) घोषित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय की घोषणा के बाद शिमला के स्थानीय अधिकारियों को गैर-वनीय क्षेत्रों में बंदरों को मारने के लिये एक वर्ष का समय दिया गया है।
  • इस फैसले का पशु अधिकारों के लिये कार्य करने वाले संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा है। इनका तर्क है कि फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले वन्य जीवों को मारना समस्या का समाधान नहीं है।
  • सरकार के इस निर्णय से वन्यजीवों के अवैध व्यापार में वृद्धि भी हो सकती है। अतः संबंधित मामले में विचार-विमर्श एवं विश्लेषण के बाद ही कोई कठोर कदम उठाया जाना चाहिये।

फैसले के पीछे कारण

  • हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में रीसस मकाक प्रजाति के बंदरों की संख्या में वृद्धि होने तथा उनके द्वारा बड़े पैमाने पर फसलों, लोगों के जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुँचाए जाने के संबंध में केंद्र सरकार को सूचित किया था, इस सूचना के आधार पर ही यह घोषणा की गई है।
  • इससे पहले भी हिमाचल प्रदेश में (वर्ष 2007 में) सैकड़ों रीसस मकाक (Rhesus Macaque) को मार दिया गया, उसके बाद लगभग 96,000 मकाक का बंध्याकरण किया गया हालाँकि इसके बाद भी समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है।

जानवरों को हिंसक घोषित करने के प्रावधान

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 [Wildlife (Protection) Act]] के तहत इन प्रजातियों को I से V अनुसूचियों में वर्गीकृत किया जाता है।
    • अनुसूची I के अंतर्गत शामिल प्रजातियों को सबसे ज़्यादा संरक्षण प्रदान किया जाता है। इनका शिकार करने वालों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत कड़ी सजा दिये जाने का प्रावधान है।
    • अनुसूची II और III के अंतर्गत जंगली सूअर, नीलगाय एवं रीसस मकाक बंदर को शामिल किया गया है जो संरक्षित तो हैं लेकिन विशिष्ट परिस्थितियों में इनका शिकार किया जा सकता है।
    • अनुसूची V के तहत रहने वाली प्रजातियों को हिंसक की श्रेणी में शामिल किया गया है जिसके तहत कौआ और फ्रूट बैट आते हैं।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 11 (1) के अनुसार, किसी भी ऐसे जंगली जानवर जिसके द्वारा गंभीर समस्या उत्पन्न की जा रही हो तथा उस जानवर को शांत या स्थानांतरित नहीं किया जा सके, ऐसी स्थिति में अधिकृत अधिकारी उसके शिकार की अनुमति देने के लिये अधिकृत है।
  • अनुसूची II, III एवं IV में शामिल जंगली जानवरों से होने वाले मानव एवं संपत्ति के नुकसान को देखते हुए अधिकृत अधिकारी निर्दिष्ट क्षेत्र में जंगली जानवर के शिकार की अनुमति दे सकता है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की धारा 62 के अंतर्गत प्रावधान है कि केंद्र सरकार अनुसूची I, II के अतिरिक्त अन्य जंगली जानवरों को निर्दिष्ट क्षेत्र एवं अवधि के लिये हिंसक जानवर घोषित कर सकता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष की परिभाषा

  • वन्यजीवों और मनुष्यों में इस तरह की घटनाओं की बढ़ती संख्या को जैव-विविधता से जोड़ते हुए विशेषज्ञ निरंतर चेतावनी देते हैं कि मानव के इस अतिक्रामक व्यवहार से पृथ्वी पर जैव असंतुलन बढ़ रहा है। विज्ञान तथा तकनीकी के विकास से वन्य जीवों की हिंसा से उत्पन्न होने वाले भय तथा नुकसान से मनुष्य निश्चित रूप से लगभग मुक्त हो चुका है।
  • वन्यजीव अपने प्राकृतिक पर्यावास की तरफ स्वयं रुख करते हैं, लेकिन एक जंगल से दूसरे जंगल तक पलायन के दौरान वन्यजीवों का आबादी क्षेत्रों में पहुँचना स्वाभाविक है। मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष का यही मूल कारण है। मानव तथा वन्यजीवों के बीच होने वाले किसी भी तरह के संपर्क की वज़ह से मनुष्यों, वन्यजीवों, समाज, आर्थिक क्षेत्र, सांस्कृतिक जीवन, वन्यजीव संरक्षण या पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव मानव-वन्यजीव संघर्ष की श्रेणी में आता है।

मनुष्य-पशु संघर्ष के कारण

  • पर्यावास का विनाश: विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये मानव ने बड़े पैमाने पर ऐसे वनों/जंगलों को नष्ट कर दिया है, जहाँ पर ये जानवर निवास तथा अपने भोजन के लिये शिकार करते थे। अतः भोजन एवं आवास की तलाश में ये जानवर खेतों एवं मानव आवासों तक पहुँच रहे हैं।
  • बाघों एवं तेंदुओं जैसे परभक्षी जानवरों की जनसंख्या में गिरावट से नीलगाय, हिरन आदि शाकाहारी जीवों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ जैसे- सूखा, बाढ़ आदि के कारण भी जंगली जानवर खेतों एवं मानवीय आवासों में प्रवेश कर जाते हैं।
  • वर्तमान समय में पर्यटकों द्वारा जानवरों को खाना खिलाने का प्रचलन बढ़ रहा है, इसके कारण भी जानवर पर्यटकों का पीछा करते हुए मानव आबादी में प्रवेश कर जाते हैं।

उपाय

  • जंगली जानवरों के आवासों को नष्ट होने से बचाया जाए ताकि वे अपने आवासों में ही रहें।
  • वन्यजीवों से होने वाली क्षति से सरकार द्वारा क्षतिपूर्ति प्रदान की जानी चाहिये।
  • बाड़ जैसे प्राकृतिक रूपों से खेतों की घेराबंदी की जानी चाहिये।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


आंतरिक सुरक्षा

अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्तर पर अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (Crime & Criminals Tracking Network and Systems-CCTNS) की सुविधा को देश के सभी थानों में लागू किया है। इस प्रकार के तंत्र के तहत सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के पुलिस थानें; अपराध और अपराधियों से संबंधित सूचनाओं के एकत्रीकरण, सूचना साझाकरण एवं रिपोर्ट दर्ज करने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर के पोर्टल का प्रयोग करेंगे।

CCTNS क्या है?

  • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (Crime & Criminals Tracking Network and Systems-CCTNS) वर्ष 2009 मे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान के तहत स्थापित एक मिशन मोड प्रोजेक्ट है।
  • CCTNS प्रोजेक्ट के तहत नेटवर्क कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिये वर्ष 2011 में NCRB और BSNL के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।

CCTNS का उद्देश्य:

  • CCTNS का उद्देश्य ई-गवर्नेंस के सिद्धांतों को अपनाते हुए एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली का निर्माण करना है। इसके माध्यम से पुलिस सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये अपराधियों एवं अपराधों की एक राष्ट्रव्यापी आधारभूत नेटवर्क संरचना तैयार की जाएगी।

CCTNS द्वारा निम्नलिखित सेवाएँ प्रदान की जाएंगी:

  • पुलिस स्टेशनों और अन्य पुलिस कार्यालयों की कार्यवाहियों को नागरिक अनुकूल, पारदर्शी, जवाबदेह, कुशल और प्रभावी बनाया जाएगा।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाओं के वितरण में सुधार किया जाएगा।
  • अपराध और अपराधियों की सटीक एवं तीव्र जाँच के लिये जाँच अधिकारियों को अद्यतित उपकरण, तकनीक और जानकारियाँ प्रदान की जाएगी।
  • कानून और व्यवस्था, यातायात प्रबंधन एवं संसाधन प्रबंधन जैसे अन्य क्षेत्रों में पुलिस कार्यप्रणाली में सुधार किया जाएगा।
  • विभिन्न पुलिस थानों, ज़िला तथा राज्य मुख्यालयों और अन्य एजेंसियों को राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के संग्रहण, भंडारण, पुनर्प्राप्ति, विश्लेषण, हस्तांतरण एवं साझाकरण की सुविधा प्रदान की जाएगी। इससे अपराधियों से संबंधित सूचनाओं के एकत्रीकरण और उनको ट्रैक करने में आसानी होगी।
  • वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पुलिस बलों के बेहतर प्रयोग और प्रबंधन में सहायता मिलेगी।
  • न्यायालयों में अपराधों की जाँच और अभियोजन मामलों की प्रगति को भी ट्रैक किया जा सकेगा।
  • इससे कागज़ी कार्यवाहियों में कमी आएगी और डिजिटलीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

CCTNS काम कैसे करेगा?

  • राज्य के किसी थानें में यदि कोई भी मामला दर्ज किया जाएगा तो उससे संबंधित सूचनाएँ राष्ट्रीय स्तर के तंत्र पर भी अपडेट हो जायेंगी। राष्ट्रीय स्तर पर सूचना के अपडेट होने से यह सूचनाएँ संबंधित राज्य के अन्य थानों के साथ दूसरे राज्यों में भी अपडेट होंगी; इससे उस मामले के समाधान में आसानी होगी।
  • उदाहरणस्वरुप, यदि दिल्ली का कोई 10 वर्ष का बच्चा भटककर राजस्थान पहुँच जाता है, तो उस बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दिल्ली के किसी थानें में दर्ज कराई जाएगी। यदि यह बच्चा राजस्थान पुलिस को मिलता है तो पुलिस उस बच्चे के नाम को CCTNS पोर्टल पर सर्च कर उसके विषय में जानकारी प्राप्त कर सकती है (इसके लिये ज़रुरी है कि दिल्ली पुलिस द्वारा संबंधित जानकारी को पोर्टल पर अपडेट किया गया हो)।

CCTNS और नागरिक केंद्रित सेवाएँ:

  • CCTNS के तहत डिजिटल पुलिस पोर्टल की सुविधा प्रदान की जा रही है।
  • इस पोर्टल के माध्यम से नागरिक अपराध से संबंधित शिकायतें ऑनलाइन दर्ज करा सकेंगे। साथ ही घरेलू कर्मचारियों (ड्राइवर, माली, गार्ड) और किरायेदारों का पुलिस सत्यापन भी करा सकेंगे।
  • नागरिक अपने पूर्वजों के प्रमाणीकरण से संबंधित पहले से दर्ज किसी डेटा की भी मांग भी कर सकेंगे।
  • इसके तहत एक मोटर वाहन समन्वय प्रणाली स्थापित की जाएगी जिसमें वाहनों की खरीद, पुनः पंजीकरण आदि की सूचनाएँ निहित होंगी। यह प्रणाली सार्वजनिक इकाइयों, आरटीओ, बीमा एजेंसियों और आम लोगों के लिये मददगार साबित होगी।
  • कुछ क्षेत्रों में इस प्रणाली के तहत आवासीय सोसाएटी की सुरक्षा भी CCTV कैमरों के माध्यम से की जा रही है।

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (नेटग्रिड)

(National Intelligence Grid-NATGRID)

  • NATGRID आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये एक कार्यक्रम है।
  • भारत में 26/11 के आतंकवादी हमले के दौरान सूचनाओं के संग्रहण के अभाव की बात सामने आई। इस हमले का मास्टरमाइंड डेविड हेडली वर्ष 2006 से 2009 के बीच हमले की योजनाओं को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु कई बार भारत आया लेकिन उसके आवागमन की किसी भी सूचना का विश्लेषण नहीं किया जा सका और परिणामस्वरूप 26/11 जैसा वीभत्स आतंकवादी हमला हुआ।
  • 26/11 के बाद इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर NATGRID की स्थापना की गई।
  • यह संदिग्ध आतंकवादियों को ट्रैक करने और आतंकवादी हमलों को रोकने में विभिन्न खुफिया एवं प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता करता है।
  • NATGRID बिग डेटा और एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करते हुए डेटा की बड़ी मात्रा का अध्ययन एवं विश्लेषण करता है।

यह विभिन्न चरणों में डेटा प्रदान करने वाले संगठनों और उपयोगकर्त्ताओं के समन्वय के साथ ही एक कानूनी संरचना विकसित करता है, इन सूचनाओं के माध्यम से कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ संदिग्ध गतिविधियों की जाँच करती हैं।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में मध्यस्थता के बेहतर प्रबंधन हेतु एक स्वायत्त और स्वतंत्र संस्था स्थापित करने के उद्देश्य से लोकसभा में नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (New Delhi International Arbitration Centre) विधेयक, 2019 पेश किया गया। विधेयक के प्रावधान 2 मार्च, 2019 से प्रभावी होंगे।

विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (NDIAC): इस विधेयक के माध्यम से NDIAC को मध्यस्थता (Arbitration), बीच-बचाव(Mediation) और सुलह कार्यवाही की शक्तियाँ प्रदान की जाएगी।
    • यह विधेयक NDIAC को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान भी घोषित करता है।
  • वैकल्पिक विवाद के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र संकल्प (International Centre for Alternative Dispute Resolution-ICADR): ICADR एक पंजीकृत सोसायटी है, जो वैकल्पिक विवाद समाधान (जैसे मध्यस्थता और बीच-बचाव) आदि के संकल्पों को बढ़ावा देता है।
    • यह विधेयक मौजूदा ICADR को केंद्र सरकार को स्थानांतरित करता है। केंद्र सरकार की अधिसूचना पर ICADR के सभी अधिकार, शीर्षक और रूझान NDIAC को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।
  • संरचना (Composition): विधेयक के तहत NDIAC सात सदस्यों से मिलकर बना होगा। इसकी अध्यक्षता उच्चतम या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश करेगा जिसके पास मध्यस्थता से संबंधित विशेष ज्ञान और अनुभव होना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त मध्यस्थता से संबंधित पैनल में मध्यस्थता का विशेष ज्ञान रखने वाले दो सदस्य, तीन नामित सदस्य (जिसमें से एक सदस्य वित्त मंत्रालय से होगा और NDIAC की देख-रेख करने वाला मुख्य कार्यकारी अधिकारी शामिल होगा) और उद्योग और वाणिज्य विभाग का एक अंशकालिक सदस्य होगा।
  • अवधि और सेवानिवृति: NDIAC के सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा। साथ ही ये पुनर्नियुक्ति के पात्र भी होंगे।
    • अध्यक्ष के लिये सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष की होगी जबकि अन्य सदस्यों की सेवानिवृत्ति आयु 67 वर्ष होगी।
  • NDIAC के उद्देश्य और कार्य: NDIAC का मुख्य उद्देश्य अनुसंधान को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण प्रदान करना, वैकल्पिक विवाद समाधान के मामले के लिये सम्मेलनों तथा सेमिनारों का आयोजन करना, मध्यस्थता तथा सुलह की कार्यवाही हेतु संचालन सुविधा प्रदान करना आदि है।
    • NDIAC का प्रमुख कार्य मध्यस्थता को लागत प्रभावी और पेशेवर तरीके से सुगम बनाना है।
  • वित्त और लेखा परीक्षा (Audit): NDIAC के तहत एक फंड बनाया जाएगा। इसमें केंद्र से प्राप्त अनुदान, NDIAC गतिविधियों से एकत्र की गई फीस और अन्य स्रोतों से प्राप्त धन को एकत्र किया जाएगा।
  • संस्थागत समर्थन: विधेयक यह स्पष्ट करता है कि NDIAC एक चैंबर की स्थापना करेगा चैम्बर मध्यस्थता से संबंधित उपरोक्त पैनल की देख-रेख करेगा।
    • भविष्य में NDIAC मध्यस्थता में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये एक अकादमी की भी स्थापना करेगा। NDIAC अपने कार्यों का प्रबंधन करने के लिये अन्य समितियों का गठन भी कर सकती है।

स्रोत: PRS


भूगोल

जल संकट की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही के वर्षों में भारत के साथ ही वैश्विक परिदृश्यों पर भी जल संकट की समस्याएँ सामने आ रही है।

जल संकट क्या है?

  • एक क्षेत्र के अंतर्गत जल उपयोग की मांगों को पूरा करने हेतु उपलब्ध जल संसाधनों की कमी को ही ‘जल संकट’ कहते हैं।
  • विश्व के सभी महाद्वीप में रहने वाले लगभग 2.8 बिलियन लोग प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक महीने जल संकट से प्रभावित होते हैं। लगभग 1.2 बिलियन से अधिक लोगों के पास पीने हेतु स्वच्छ जल की सुविधा उपलब्धता नहीं होती है।

जल संकट का वैश्विक परिदृश्य

  • जल संसाधनों की बढ़ती मांग, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या विस्फोट के कारण जल की उपलब्धता में कमी देखी जा रही है।
  • एक अनुमान के अनुसार एशिया का मध्य-पूर्व (Middle-East) क्षेत्र , उत्तरी अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र, पाकिस्तान, तुर्की, अफगानिस्तान और स्पेन आदि देशों में वर्ष 2040 तक अत्यधिक जल तनाव (Water Stress) की स्थिति होने की संभावना है।
  • इसके साथ ही भारत, चीन, दक्षिणी अफ्रीका, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई अन्य देशों को भी उच्च जल तनाव का सामना करना पड़ सकता है।

water Stress

भारत में जल संकट की स्थिति:

  • भारत में लगातार दो वर्षों के कमज़ोर मानसून के कारण 330 मिलियन लोग या देश की लगभग एक चौथाई जनसंख्या गंभीर सूखे से प्रभावित हैं। भारत के लगभग 50% क्षेत्र सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं, विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में जल संकट की गंभीर स्थिति बनी हुई है।
  • नीति आयोग द्वारा 2018 में जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index) रिपोर्ट के अनुसार, देश के 21 प्रमुख शहर (दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद) और इन शहरों में निवासरत लगभग 100 मिलियन लोग जल संकट की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। भारत की 12% जनसंख्या पहले से ही 'डे ज़ीरो' की परिस्थितियों में रह रही हैं।

डे ज़ीरो: केपटाउन शहर में पानी के उपभोग को सीमित और प्रबंधित करने हेतु सभी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिये डे ज़ीरो के विचार को पेश किया गया था ताकि जल के उपयोग को सीमित करने संबंधी प्रबंधन और जागरूकता को बढ़ाया जा सके।

भारत में जल संकट का कारण:

  • भारत में जल संकट की समस्याओं को मुख्यता दक्षिणी और उत्तर-पश्चिमी भागों में इंगित किया गया है, इन क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ पर कम वर्षा होती है, चेन्नई तट पर दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा नहीं हो पाती है। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम में मानसून पहुँचते-पहुँचते कमज़ोर हो जाता है, जिससे वर्षा की मात्रा भी घट जाती है।
  • भारत में मानसून की अस्थिरता भी जल संकट का बड़ा कारण है। हाल ही के वर्षों में एल-नीनो के प्रभाव के कारण वर्षा कम हुई, जिसके कारण जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • भारत की कृषि पारिस्थितिकी ऐसी फसलों के अनुकूल है, जिसके उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है, जैसे- चावल, गेहूँ, गन्ना, जूट और कपास इत्यादि। इन फसलों वाले कृषि क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है। हरियाणा और पंजाब में कृषि गहनता से ही जल संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है।
  • भारतीय शहरों में जल संसाधन के पुर्नप्रयोग के गंभीर प्रयास नहीं किये जाते हैं, यही कारण है कि शहरी क्षेत्रों में जल संकट की समस्या चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है। शहरों में ज़्यादातर जल के पुर्नप्रयोग के बजाय उन्हें सीधे किसी नदी में प्रवाहित करा दिया जाता है।
  • लोगों के बीच जल संरक्षण को लेकर जागरूकता का अभाव है। जल का दुरुपयोग लगातार बढ़ता जा रहा हैं; लॉन, गाड़ी की धुलाई, पानी के उपयोग के समय टोंटी खुला छोड़ देना इत्यादि।

जल संरक्षण हेतु प्रयास:

सतत् विकास लक्ष्य 6 के तहत वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिये पानी की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना है, इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये जल संरक्षण के निम्नलिखित प्रयास किये जा रहे हैं:

  • वर्तमान समय में कृषि गहनता के कारण जल के अत्यधिक प्रयोग को कम करने हेतु कम पानी वाली फसलों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • द्वितीय हरित क्रांति में कम जल गहनता वाली फसलों पर ज़ोर दिया जा रहा है।
  • बांधो के माध्यम से जल को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार द्वारा बांध मरम्मत और पुनर्निर्माण के लिये विश्व बैंक से भी सहयोग लिया जा रहा है।
  • सरकार द्वारा शहरों में भवन निर्माण के दौरान ही जल संभरण कार्यक्रम के तहत पानी के टैंकों के निर्माण के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
  • नीति आयोग ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जल के प्रभावी प्रयोग को प्रेरित करने के लिये समग्र जल प्रबंधन सूचकांक जारी किया है।

आगे की राह:

  • ज़्यादा पानी वाली फसलों जैसे गेहूँ, चावल आदि को मोटे अनाजों से स्थानांतरित किया जाना चाहिये; क्योंकि इन फसलों के प्रयोग से लगभग एक तिहाई पानी को सुरक्षित किया जा सकेगा। साथ ही मोटे अनाजों का पोषण स्तर भी उच्च होता है।
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी वाली फसलों के उपयोग को बढ़ाया जाना चाहिये। हाल ही के वर्षों में तमिलनाडु सरकार द्वारा ऐसे प्रयास किये गए हैं।
  • जल उपभोग दक्षता को बढ़ाया जाना चाहिये, क्योंकि अभी तक सर्वश्रेष्ठ मामलों में यह 30% से भी कम है।
  • जल संरक्षण हेतु जन जागरूकता अतिआवश्यक है, क्योंकि भारत जैसे देशों की अपेक्षा कम जल उपलब्धता वाले अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में अभी तक जल संकट की कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुई है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ एवं इंडिया टुडे


भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी संप्रभु बॉण्ड

संदर्भ

2019-20 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने विदेशी संप्रभु बॉण्ड (Foreign sovereign bond) का जिक्र किया। इस बॉण्ड के माध्यम से सरकार द्वारा अपने सकल उधारियों का एक हिस्सा विदेशी बाज़ारों से प्राप्त करने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

बॉण्ड क्या है?

  • संप्रभु बॉण्ड सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ (Securities) होती है जिनके द्वारा सरकार राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) के वित्तीयन तथा अस्थायी नकदी बेमेल (Temporary Cash Mismatch) का प्रबंधन करती है।
  • यह रुपए अथवा विदेशी मुद्रा (डॉलर, आदि) में भी जारी किया जा सकता है। भारत में अभी तक सरकार ने केवल घरेलू बाज़ार में स्थानीय मुद्रा (रुपया आधारित) में ही संप्रभु बॉण्ड जारी किये है। हालाँकि अब भारत सरकार द्वारा विदेशी संप्रभु बॉण्ड विदेशी मुद्रा (डॉलर) में भी जारी किये जाएंगे।
  • ऐसे निवेशकों के लिये मुद्रा स्थिरता महत्त्वपूर्ण होती है जो रुपए आधारित सरकारी बॉण्ड में निवेश करने का जोखिम उठाते हैं। ऐसी स्थिति में विदेशी संप्रभु बॉण्ड एक बड़ा अंतर उत्पन्न करते हैं। विदेशी मुद्रा (अधिकतर अमेरिकी डॉलर में) में जारी सरकारी बॉण्ड में मुद्रा जोखिम निवेशक से जारीकर्त्ता (सरकार) की ओर स्थानांतरित हो जाता है। इस तरह के बॉण्ड के लेन-देन का निपटारा यूरोक्लियर (Euroclear) पर किया जा सकता है, यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिभूति निपटान प्रणाली है जो निवेश को विदेशी निवेशकों के लिये आसान बनाती है।

लाभ:

  • अन्य उभरते बाज़ारों की तुलना में वैश्विक ऋण बाज़ार सूचकांकों (Global Debt Indices) में भारत का प्रतिनिधित्व काफी कम है। यह वैश्विक ऋण सूचकांकों में भारत के सरकारी बॉण्ड को शामिल करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे भारत में अधिक विदेशी धन की आवक हो सकेगी।
  • भारतीय संप्रभु बॉण्ड के वैश्विक बेंचमार्क (Global Benchmarks) में शामिल होने से रुपए आधारित संप्रभु बॉण्ड (Rupee Denominated Sovereign Bonds) भी खरीदारों को आकर्षित कर सकेंगे।
  • जिस दर पर सरकार विदेशों से संप्रभु बॉण्ड (Foreign Sovereign Bond) द्वारा उधार लेगी, वह अन्य कॉर्पोरेट बॉण्ड के मूल्य निर्धारण के लिये एक मानदंड (Yardstick) के रूप में कार्य करेगा, जिससे भारत इंक को विदेशों से धन जुटाने में मदद मिलेगी।

हानियाँ:

  • भारत द्वारा बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त होने वाले विदेशी धन से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी, इससे डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए का अधिमूल्यन होगा जो आयात को प्रोत्साहित (जबकि सरकार आयात को नियंत्रित करना चाहती है) करेगा जबकि निर्यात को हतोत्साहित (जबकि सरकार इसे प्रोत्साहित करना चाहती है) करेगा।
  • डॉलर आधारित संप्रभु बॉण्ड वैश्विक ब्याज दरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते है। ऐसे में यह भारतीय अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते है। वर्तमान में भारतीय ऋण में विदेशी निवेशकों की भागीदारी कम है, यह सरकारी प्रतिभूति का मात्र 3.6% है, जबकि इंडोनेशिया में यह 38% और मलेशिया में 24% है। इस संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आवश्यक प्रयास किये जा रहे हैं ताकि विदेशी निवेशकों के लिये निवेश की स्थिति को और आसान बनाया जा सकें।

घरेलू बाज़ार पर प्रभाव:

  • इस प्रकार का कदम घरेलू बाज़ार में सरकारी बॉण्ड के प्रतिफल (Bond Yield) को कम कर सकता है जिससे घरेलू, बचत, डाकघर जमाओं के ब्याज दरों में कमी आ सकती है।

यूरोक्लियर (Euroclear)

यूरोक्लियर एक बेल्ज़ियम-आधारित वित्तीय सेवा कंपनी (Financial Services Company) है जो प्रतिभूतियों के लेन-देन के निपटान (Settlement of Securities Transactions) के साथ-साथ इन प्रतिभूतियों की सुरक्षित और परिसंपत्ति सेवाओं (Asset Servicing) में विशेषज्ञता रखती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

भारत में पलायन की समस्या

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश एवं बिहार से पलायन करने वालों की संख्या देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है।

पलायन के संदर्भ में जनगणना के प्रमुख बिंदु:

  • 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार से लगभग 20.9 मिलियन लोग पलायन कर अन्य राज्यों में चले गए थे। 20.9 मिलियन का यह आँकड़ा देश में होने वाले कुल अंतर-राज्यीय पलायन (Inter-State Migration) का 37 प्रतिशत है।
  • इसी अवधि में यह भी पाया गया कि देश के दो बड़े महानगरों दिल्ली और मुंबई की ओर पलायन करने वालों की कुल संख्या 9.9 मिलियन थी जोकि वहाँ की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा था।
  • आँकड़ों के अनुसार, देश की हिंदी पट्टी (Hindi Belt) पलायन का प्रमुख केंद्र थी।

हिंदी पट्टी उत्तर-मध्य भारत का वह क्षेत्र है जहाँ बोलचाल के लिये व्यापक तौर पर हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है।

  • हिंदी पट्टी के चार प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में देश के कुल अंतर-राज्यीय पलायन का 50 प्रतिशत हिस्सा देखने को मिला।
  • वर्ष 2001 से 2011 के मध्य बाहरी राज्यों की तुलना में स्वयं के राज्य में ही पलायन करने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई, जिसे अंतर-ज़िला पलायन (Inter-District Migration) के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जहाँ एक ओर वर्ष 2001 की जनगणना में अंतर-ज़िला पलायन 30 प्रतिशत था वहीं दूसरी ओर वर्ष 2011 की जनगणना में यह बढ़कर 58 प्रतिशत हो गया था।

Migration

क्या होता है पलायन?

पलायन एक स्थान से दूसरे स्थान तक लोगों की आवाजाही है। यह एक छोटी या लंबी दूरी के लिये अल्पकालिक या स्थायी, स्वैच्छिक या मजबूरी वश, अंतर्देशीय या अंतर्राष्ट्रीय हो सकता है।

लोग पलायन क्यों करते हैं?

  • ग्रामीण इलाकों का कृषि आधार वहाँ रहने वाले सभी लोगों को रोज़गार प्रदान नहीं करता है। क्षेत्रीय विकास में असमानता लोगों को ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरित होने के लिये विवश करती है।
  • शैक्षणिक सुविधाओं की कमी के कारण भी ग्रामीण लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं।
  • राजनीतिक अस्थिरता और अंतर-जातीय संघर्ष के कारण भी लोग अपने घरों से दूर चले जाते हैं।
  • गरीबी और रोज़गार के अवसरों की कमी लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिये प्रेरित करती है।
  • बेहतर स्वास्थ्य और वित्तीय सेवाओं का लाभ उठाने के लिये लोग बेहतर चिकित्सा सुविधाओं की तलाश में अल्पावधि के आधार पर भी पलायन करते हैं।
  • भोजन की कमी, जलवायु परिवर्तन, धार्मिक उत्पीड़न, गृहयुद्ध जैसे अन्य कारक भी लोगों को आंतरिक पलायन की ओर अग्रसर करते हैं।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (24 July)

  • संसद ने मानव अधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। इस संशोधन से भारत के मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया जा सकेगा, जो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रहा हो। आयोग के सदस्यों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन की जाएगी, जिनमें एक महिला होगी। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष और दिव्यांगजनों संबंधी मुख्य आयुक्त को आयोग के सदस्यों के रूप में शामिल किया जा सकेगा। आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पाँच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जाएगा और वे पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होंगे। मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष की चयन समिति में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपसभापति एवं दोनों सदनों के विपक्ष के नेता शामिल किये गए हैं। भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन 12 अक्तूबर, 1993 को हुआ था। इस आयोग का गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसंबर, 1993 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसे मंज़ूरी दी गई थी।
  • आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष गर्ग की अध्यक्षता वाली एक अंतर-मंत्रालयी समिति ने देश में निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की है। समिति का कहना है कि निजी क्रिप्टोकरेंसी में कोई अंतर्निहित आंतरिक मूल्य नहीं है, इसलिये सरकार द्वारा जारी क्रिप्टोकरेंसी के अलावा इस तरह की सभी मुद्राओं पर प्रतिबंध लगना चाहिये। समिति ने क्रिप्टोकरेंसी के किसी भी तरह के इस्तेमाल पर एक से दस साल तक की सज़ा का प्रस्ताव किया है तथा इसके अलावा 50 करोड़ रुपए तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है। हालांकि सरकार अत्याधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए आधिकारिक तौर पर डिजिटल रुपया जारी कर सकती है जो लेन-देन के लिए पूरी तरह वैध होगा। यदि सरकार डिजिटल मुद्रा लाती है तो इसका नियमन रिज़र्व बैंक करेगा। समिति ने क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने के लिये 'बैनिंग क्रिप्टोकरेंसी एंड रेग्युलेशन ऑफ ऑफिशियल डिजिटल करेंसी बिल, 2019' शीर्षक से विधेयक का एक मसौदा भी तैयार किया है। ज्ञातव्य है कि सरकार ने 2 नवंबर, 2017 को आर्थिक मामलों के सचिव की अगुवाई में यह अंतर-मंत्रालयी समिति गठित की थी। इस समिति को डिजिटल करेंसी से संबंधित मुद्दों पर अध्ययन करने और इसके लिये कार्रवाई पर सुझाव देने का काम दिया गया था।
  • नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने 34,422 करोड़ रुपए की पीएम-कुसुम योजना को शुरू करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जो किसानों को अपने खेतों में सौर ऊर्जा पैदा करने और डीज़ल पंपों के स्थान पर स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेंगे। प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना के तहत वर्ष 2022 तक 25,750 मेगावाट की सौर क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसमें कुल केंद्रीय वित्तीय सहायता 34,422 करोड़ रुपए की होगी। इस योजना के तीन कंपोनेंट हैं- कंपोनेंट-ए में विकेंद्रीकृत ज़मीन/स्टिल्ट-माउंटेड ग्रिड-कनेक्टेड सौर या अन्य नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित 10,000 मेगावाट क्षमता के बिजली संयंत्रों की स्थापना की जानी है। कंपोनेंट-बी में 17.50 लाख एकल सौर कृषि पंपों की स्थापना का प्रावधान है, जबकि कंपोनेंट-सी में 10 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से संचालित किये जाने की परिकल्पना की गई है। ये दिशा-निर्देश इस योजना को व्यापक कार्यान्वयन संरचना प्रदान करने के लिये तैयार किये गए हैं।
  • दुनियाभर में एड्स से होने वाली मौतों की संख्या में कमी आ रही है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2010 की तुलना में अब एड्स से होने वाली मौतों की संख्या 33 प्रतिशत कम हुई है। यूएनएड्स की इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में एड्स के मामलों में 16 प्रतिशत की कमी आई है। यह रिपोर्ट दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका पर आधारित है, जहाँ इस कमी की वज़ह वहाँ हुई प्रगति को माना गया है। एड्स से जुड़ी मौतों में कमी की एक बड़ी वज़ह उपचार में हो रहे सुधार को माना गया है। यूएनएड्स का पूरा नाम यूनाइटेड नेशंस प्रोग्राम ऑन एचआईवी/एड्स है और भारत में वर्ष 1999 से इसकी मौजूदगी है। यूएनएड्स एक ऐसी भागीदारी है, जो एचआईवी से बचाव, उपचार, सेवा और समर्थन को सर्वसुलभ कराने में दुनिया को नेतृत्‍व और प्रेरणा देती है।
  • ब्रेक्ज़िट की पृष्ठभूमि में बोरिस जॉनसन को ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री चुना गया है। वह प्रधानमंत्री थेरेसा मे का स्थान लेंगे। लंदन के मेयर रह चुके बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ में जेरमी हंट को पीछे छोड़ा। गौरतलब है कि ब्रिटेन की यूरोपियन यूनियन के साथ बेक्ज़िट डील कराने में विफल रहने के बाद 7 जून को थेरेसा मे ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उनकी कंज़र्वेटिव पार्टी ने बोरिस जॉनसन और जेरेमी हंट में से किसी एक को प्रधानमंत्री चुनने के लिये पार्टी कार्यकर्त्ताओं का मत जानना चाहा था। इसमें पार्टी के 1.60 लाख कार्यकर्ताओं से बैलेट वोटिंग कराई गई। बोरिस जॉनसन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ब्रेक्ज़िट विवाद को हल करने की होगी। ब्रिटेन को इस साल 31 अक्तूबर तक यूरोपीय संघ से अलग होने की प्रक्रिया पूरी करनी है। थेरेसा मे ने बतौर प्रधानमंत्री 23 जुलाई को अपनी आखिरी कैबिनेट मीटिंग में हिस्सा लिया तथा अपना इस्तीफा महारानी एलिजाबेथ को सौंप दिया। इसके बाद ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री के नाम का ऐलान किया गया।

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