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डेली न्यूज़

  • 25 Jul, 2019
  • 48 min read
सामाजिक न्याय

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक , 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019 (Amendments in the Protection of Children from Sexual Offences-POCSO) को मंज़ूरी प्रदान की है।

प्रमुख बिंदु

  • यह विधेयक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 में संशोधन करता है। यह अधिनियम यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से बच्चों के संरक्षण का प्रयास करता है।
  • इस विधेयक का उद्देश्य बाल यौन शोषण के बढ़ते मामलों की जाँच कर उचित एवं कड़ी सज़ा की व्यवस्था करना है।

POCSO अधिनियम, 2012

  • POCSO, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) का संक्षिप्त नाम है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और बच्‍चे का शारीरिक, भावनात्‍मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज़्यादा महत्त्व देते हुए बच्‍चे के श्रेष्‍ठ हितों तथा कल्‍याण का सम्‍मान करता है।
  • इस अधिनियम की एक विशेषता यह है कि इसमें लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं किया गया है।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019

  • पेनेट्रेटिव यौन हमला (Penetrative sexual assault):
    • ऐसे अपराधों के लिये सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है। विधेयक में सात से दस वर्ष तक की न्यूनतम सज़ा की व्यवस्था की गई है।
    • यदि कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु के बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला करता है तो उसे 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
  • गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमला (Aggravated penetrative sexual assault):
    • इसमें ऐसे मामले शामिल हैं जब पुलिस अधिकारी, सशस्त्र सेनाओं के सदस्य, या पब्लिक सर्वेंट बच्चे पर पेनेट्रेटिव यौन हमला करें।
    • विधेयक गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले की परिभाषा में दो आधार और जोड़ता है। इनमें (i) हमले के कारण बच्चे की मौत, और (ii) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला शामिल है।
    • वर्तमान में गंभीर पेनेट्रेटिव यौन हमले में 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा है और जुर्माने का प्रावधान है। विधेयक न्यूनतम सज़ा को दस वर्ष से 20 वर्ष और अधिकतम सज़ा को मृत्यु दंड करने का प्रावधान करता है।
  • गंभीर यौन हमला (Aggravated sexual assault):
    • विधेयक में गंभीर यौन हमले में दो स्थितियों को और शामिल किया गया है। इनमें (i) प्राकृतिक आपदा के दौरान किया गया हमला, और (ii) जल्दी यौन परिपक्वता लाने के लिये बच्चे को हारमोन या कोई दूसरा रासायनिक पदार्थ देना या दिलवाना शामिल है।
  • पोर्नोग्राफिक सामग्री का स्टोरेज (Storage of pornographic material):
    • विधेयक के अनुसार इस अपराध के लिये तीन से पाँच वर्ष तक की सज़ा या जुर्माना भरना पड़ सकता है या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त विधेयक में बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक सामग्री के स्टोरेज से जुड़े दो और अपराधों को जोड़ा गया है। इनमें (i) बच्चों से संबंधित पोर्नोग्राफिक सामग्री को नष्ट, डिलीट या रिपोर्ट करने में असफलता, और (ii) ऐसी किसी सामग्री को ट्रांसमिट, प्रचारित या प्रबंधित करना (ऐसा सिर्फ अथॉरिटीज़ को रिपोर्ट करने के उद्देश्य से किया जा सकता है) शामिल है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


शासन व्यवस्था

आतंकी वित्तपोषण

चर्चा में क्यों?

ओसाका में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन (28-29 जून,2019) की पृष्ठभूमि में संपन्न ब्रिक्स (BRICS) देशों की अनौपचारिक बैठक में भारत सहित ब्रिक्स के सभी सदस्य देशों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को पूर्ण रूप से आतंकवाद के वित्तपोषण के विरुद्ध बनाने पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।

आतंकी वित्तपोषण (Terror financing) क्या है?

  • आतंकवादी वित्तपोषण आतंकवादी गतिविधि के लिये धन प्रदान करता है। इसमें वैध स्रोतों से प्राप्त धन जैसे कि व्यक्तिगत दान और व्यवसायों एवं धर्मार्थ संगठनों से लाभ आदि के साथ ही आपराधिक स्रोतों जैसे कि ड्रग व्यापार, हथियारों तथा अन्य सामानों की तस्करी, धोखाधड़ी, अपहरण और जबरन वसूली आदि शामिल हो सकते हैं।

भारत ने आतंकी वित्तपोषण से निपटने के लिये कई कदम उठाए है:

  • भारत सरकार द्वारा आतंक के वित्तपोषण को रोकने के लिये गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (Unlawful Activities (Prevention) Act) के प्रावधानों को सशक्त कर नकली भारतीय मुद्रा का प्रचलन करने, छापने, तस्करी करने को आतंकी कार्य घोषित किया गया है।
  • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency-NIA) में एक टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी (Terror Funding and Fake Currency Cell-TFFC) सेल का गठन किया गया है जो टेरर फंडिंग और नकली मुद्रा के मामलों की जाँच करती है।
  • आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के लिये राज्य पुलिस कर्मियों को नियमित रूप से प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  • भारत में ‘नकली भारतीय मुद्रा नोट नेटवर्क’ (Fake Indian Currency Notes network-FICN) आतंकी वित्तपोषण का एक मुख्य माध्यम है। इससे निपटने के लिये गृह मंत्रालय ने FICN सहयोग समूह (FICN Coordination Group-FCORD) का गठन किया है जो नकली मुद्रा के प्रचलन से संबंधित आसूचना/सूचना (Intelligence/ Information) को राज्यों/केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझा करता है।
  • आतंकी वित्तपोषण संबंधी गतिविधियों में शामिल तत्त्वों पर कड़ी नज़र रखने और कानूनी कार्रवाई करने के लिये केंद्र एवं राज्यों की खुफिया तथा सुरक्षा एजेंसियाँ साथ मिलकर काम कर रही हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी को रोकने के लिये निगरानी की नवीन प्रणाली (New surveillance technology) का प्रयोग, सुरक्षा बलों की गश्त में वृद्धि, सीमा पर बाड़ लगाने (Border Fencing) जैसे उपाय किये गए हैं।
  • भारत और बांग्लादेश के मध्य नकली भारतीय मुद्रा की तस्करी एवं उसके प्रचलन को रोकने के लिये समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding-MoU) पर हस्ताक्षर किये गये है। इसके साथ ही नेपाल और बांग्लादेश के पुलिस अधिकारियों को भारतीय मुद्रा की तस्करी/जालसाजी के संबंध में संवेदनशील बनाने के लिये समय-समय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी देश को जो धनशोधन रोधी (Anti-Money Laundering-AML) उपायों तथा आतंकवाद के वित्तपोषण (Combating of Financing of Terrorism-CFT) का मुकाबला करने में रणनीतिक रूप से कमज़ोर घोषित कर निगरानी सूची में डाल सकता है।
    • निगरानी सूची में डाले जाने के बावजूद यदि कोई देश कार्रवाई न करे तो उसे ‘खतरनाक देश’ घोषित कर सकता है। हाल ही में वित्तीय कार्रवाई कार्य-बल (Financial Action Task Force-FATF) ने पाकिस्तान और श्रीलंका सहित ऐसे 11 ऐसे देशों की पहचान की है।

G20 शिखर सम्मेलन, ओसाका

  • हाल ही में जापान के ओसाका शहर में G-20 का 14वाँ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में G-20 के सभी सदस्य राष्ट्रों ने हिस्सा लिया।
  • G-20 सम्मेलन में मौजूदा समय में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में उपस्थित चुनौतियों पर चिंतन किया गया। इस सम्मेलन में विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापार तनावों, जलवायु परिवर्तन, डेटा प्रवाह, आतंकवाद, भ्रष्टाचार तथा लैंगिक समानता जैसे मुद्दों पर विचार किया गया।
  • भारत ने इस सम्मलेन में 20 से अधिक बैठकों में हिस्सा लिया। इन बैठकों में भारत-अमेरिका-जापान, भारत-चीन-रूस तथा ब्रिक्स (BRICS) देशों के साथ बैठकें महत्त्वपूर्ण रही है।

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

(Financial Action Task Force-FATF)

  • वित्तीय कार्रवाई कार्य-बल वर्ष 1989 में जी-7 की पहल पर स्थापित एक अंतः सरकारी संस्था है। इसका उद्देश्य ‘टेरर फंडिंग’, ‘ड्रग्स तस्करी’ और ‘हवाला कारोबार’ पर नज़र रखना है। इसका मुख्यालय फ्राँस के पेरिस में है।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य-बल किसी देश को निगरानी सूची में डाल सकता है। निगरानी सूची में डाले जाने के बावजूद यदि कोई देश कार्रवाई न करे तो उसे ‘खतरनाक देश’ घोषित कर सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नई दिल्ली में जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक 2019 (Global Innovation Index 2019) में भारत को 52वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

थीम:

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2019 की थीम है: ‘Creating Healthy Lives – The Future of Medical Innovation’।

प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक नवाचार सूचकांक का यह 12वाँ संस्करण है।
  • इस सूचकांक में स्विट्ज़रलैंड को पहला स्थान प्राप्त हुआ है।
  • इस सूचकांक के अंतर्गत 129 देशों को शामिल किया गया है तथा 80 से अधिक संकेतकों के आधार पर देशों को रैंकिग प्रदान की गई है।
  • इन संकेतकों में राजनीति, पर्यावरण, शिक्षा, अवसंरचना एवं व्यापार सुगमता को शामिल किया गया है।

Global Innovation Index

  • आय समूह/इनकम ग्रुप्स के आधार पर शीर्ष 3 नवाचार अर्थव्यवस्थाएँ हैं, इनमें शामिल हैं:
    • हाई इनकम: स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन और अमेरिका
    • अपर मिडिल इनकम: चीन, मलेशिया और बुल्गारिया
    • लोअर मिडिल इनकम: वियतनाम, यूक्रेन और जॉर्जिया

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2019 में टॉप 20 देशों की सूची है:

रैंक देश रैंक देश
1. स्विट्ज़रलैंड 11. कोरिया गणराज्य
2. स्वीडन 12. आयरलैंड
3. अमेरिका 13. हांगकांग
4. नीदरलैंड 14. चीन
5. यूनाइटेड किंगडम 15. जापान
6. फिनलैंड 16. फ्राँस
7. डेनमार्क 17. कनाडा
8. सिंगापुर 18. लक्ज़म्बर्ग
9. जर्मनी 19. नॉर्वे
10. इज़राइल 20. आइसलैंड

भारत की स्थिति

  • वर्ष 2018 में भारत को 57वाँ स्थान प्राप्त हुआ था जबकि इस साल 2019 में इसे 52वाँ स्थान हासिल हुआ है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में भारत 81वें पायदान पर था।
  • लोअर मिडिल इनकम वाले देशों में भारत चौथे पायदान पर है। पिछले पाँच सालों में भारत की रैंकिंग में निरंतर सुधार हो रहा है।
  • भारत ने अपनी GDP प्रति व्यक्ति के सापेक्ष नवाचार में पिछले 9 सालों में लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।
  • इस सूचकांक के दो स्तंभों में भारत ऊपर की 50 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है जो निम्नलिखित हैं:
    • Market sophistication (33वाँ स्थान)
    • Knowledge and Technology Outputs (32वाँ स्थान)
  • इनोवेशन एग्रीमेंट की गुणवत्ता में भारत 26वीं अर्थव्यवस्था में शामिल है जबकि मध्य आय वाली अर्थव्यवस्था में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है।

Thriving with innovation 2019

वैश्विक नवाचार सूचकांक

Global Innovation Index

  • GII रैंकिंग का प्रकाशन प्रत्येक वर्ष कॉर्नेल यूनिवर्सिटी इन्सीड और संयुक्त राष्ट्र के विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (विपो) तथा GII के नॉलेज भागीदारों द्वारा किया जाता है।
  • इसके ज़रिये विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को नवाचार क्षमता और परिणामों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है।
  • इस सूचकांक को जारी करने का उद्देश्य:
    • नवाचार के बहुआयामी पहलुओं पर बल देना।
    • दीर्घकालिक उत्पादन में वृद्धि करने वाले उपकरण प्रदान करना।WIPO
    • बेहतर उत्पादकता और नीतियों में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये नीतियाँ तैयार करना।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन

World Intellectual Property Organization- WIPO

  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक है।
  • इसका गठन वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
  • इसके तहत वर्तमान में 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ आती हैं।
  • WIPO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।
  • अभी 191 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र के 188 सदस्य देशों के अलावा कुक द्वीपसमूह, होली सी और न्यूए (Niue) शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • फिलिस्तीन को इसमें स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है तथा लगभग 250 NGO और अंतर-सरकारी संगठन इसकी बैठकों में बतौर आधिकारिक पर्यवेक्षक शामिल होते हैं।
  • भारत वर्ष 1975 में WIPO का सदस्य बना था।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्लूमबर्ग का न्यू इकोनॉमी ग्लोबल सर्वे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी ब्लूमबर्ग के न्यू इकोनॉमी ग्लोबल सर्वे (New Economy Global Survey) के अनुसार, वर्ष 2035 तक भारत और चीन विश्व के तकनीकी नवाचार केंद्र के रूप में अमेरिका से आगे निकल जाएंगे।

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वे में भाग लेने वाले अधिकतर एशियाई लोगों का यह मानना है कि वर्ष 2035 तक एशिया में सेल्फ ड्राइविंग कार, व्यक्तिगत मोटरकार से भी सामान्य हो जाएगी।
  • सर्वे में भाग लेने वाले 39 प्रतिशत लोगों का मानना है कि चीन की राजधानी बीजिंग वर्ष 2035 तक तकनीक के मामले में सबसे शीर्ष पर होगी।
  • इसके अतिरिक्त सर्वे के अनुसार, विश्व के अधिकतर लोगों ने यह माना है कि यदि विश्व में आगे कोई भी विश्व युद्ध होता है तो वह साइबर युद्ध होगा।
  • भाग लेने वाले 52 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इसी अवधि में (वर्ष 2035 तक) विश्व की दस शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में नकद का प्रचलन पूर्णतः समाप्त हो जाएगा।
  • सर्वे से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार ‘सर्वे से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में कई बदलाव हो रहे हैं और विश्व का आर्थिक गुरुत्वाकर्षण पश्चिम से पूर्व की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर करवट ले रहा है।

न्यू इकोनॉमी ग्लोबल सर्वे

(New Economy Global Survey)

  • यह एक ऑनलाइन सर्वे है जिसे ब्लूमबर्ग नामक कंपनी द्वारा आयोजित किया गया था।
  • ब्लूमबर्ग द्वारा यह सर्वेक्षण 20 बाज़ारों के 2000 व्यावसायिक पेशेवरों के मध्य किया गया था।
  • इस सर्वे में उन लोगों को शामिल किया गया था जिनकी आयु 30 से 65 वर्षों के बीच है और जो पूर्णकालिक रोज़गार में कार्यरत हैं।
  • इस सर्वे के अंतर्गत लोगों से किसी एक विशिष्ट विषय पर उनकी सहमति या असहमति के बारे में पूछा गया था।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

आपातकालीन चीनी रिज़र्व बनाने का प्रस्ताव मंज़ूर

चर्चा मे क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs-CCEA) द्वारा 4 मिलियन टन के आपातकालीन चीनी रिज़र्व (Sugar Reserve) बनाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई है। साथ ही यह भी तय किया गया है कि चीनी मिलें गन्ना किसानों को 275 रुपए प्रति क्विन्टल का भुगतान करेंगी।

प्रमुख बिंदु:

  • एक वर्ष के लिये 40 लाख मीट्रिक टन (LMT) चीनी का सुरक्षित भंडार बनाना और इसके लिये अधिकतम 1674 करोड़ रुपए का अनुमानित खर्च करना।
    • खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा बाज़ार मूल्य एवं चीनी की उपलब्धता के आधार पर किसी भी समय वापसी/संशोधन के लिये इसकी समीक्षा की जा सकती है।
  • योजना के अंतर्गत चीनी मिलों को तिमाही आधार पर प्रतिपूर्ति की जाएगी जिसे चीनी मिलों की ओर से बकाया गन्ना मूल्य के भुगतान के लिये सीधे किसानों के खाते में डाल दिया जाएगा। यदि कोई पहले का भुगतान शेष होता है, तो उसे मील के खाते में जमा किया जाएगा।
  • चीनी मौसम (Sugar Season) 2017-18 (अक्तूबर-सितंबर) तथा चीनी मौसम 2018-19 के दौरान चीनी के उत्पादन, उद्योग में अधिक लाभ की स्थिति एवं तरलता में कमी को देखते हुए सरकार द्वारा ये निर्णय लिये गए हैं।
    • ऐसे निर्णय लेने के पीछे सरकार का उद्देश्य चीनी मिलों की तरलता में सुधार लाना, मीलों द्वारा किसानों के बकाया गन्ना मूल्यों का भुगतान सुनिश्चित करना तथा घरेलू बाज़ार में चीनी की कीमतों को स्थिर करना है।
  • सरकार द्वारा एक वर्ष के लिये (1 जुलाई, 2018 से 30 जून, 2019) 30 लाख मीट्रिक टन चीनी का सुरक्षित भंडार बनाने का निर्णय ऐसा ही एक प्रयास है।
  • चीनी उत्पादन मौसम 2017-2018 में घोषित सुरक्षित भंडार सब्सिडी योजना 30 जून, 2019 को समाप्त हो गई है। आगामी चीनी उत्पादन मौसम 2019-20 में मांग आपूर्ति संतुलन बनाए रखने तथा चीनी की कीमतें स्थिर रखने के लिये सरकार ने 1 अगस्त, 2019 से 31 जुलाई, 2020 तक एक वर्ष के लिये 40 लाख मीट्रिक टन चीनी का सुरक्षित भंडार बनाने का फैसला किया है।

लाभ:

  • चीनी मिलों की तरलता में सुधार होगा।
  • चीनी इंवेन्ट्री में कमी आएगी।
  • घरेलू चीनी बाज़ार में मूल्य भावना बढ़ाकर चीनी की कीमतें स्थिर की जा सकेंगी और परिणामस्वरूप किसानों के बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान समय से किया जा सकेगा।
  • चीनी मिलों के गन्ना मूल्य बकायों की मंज़ूरी से सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में चीनी मिलों को लाभ होगा।

पृष्ठभूमि:

  • गौरतलब है कि भारत विश्व में ब्राज़ील के बाद चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
  • देश की वार्षिक चीनी खपत का लगभग 90% हिस्सा वाणिज्यिक कार्यों जैसे कि पैकेज खाद्य पदार्थ आदि के लिये उपयोग किया जाता है।
  • चीनी मिलें जिस मूल्य पर किसानों से गन्ना खरीदती हैं उसे उचित और लाभप्रद मूल्य (Fair and Remunerative Price-FRP) कहा जाता है। इसका निर्धारण कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission on Agricultural Costs and Prices-CACP) की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है।

आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल समिति

(Cabinet Committee on Economic Affairs-CCEA)

  • यह एक अतिरिक्त संवैधानिक निकाय है जिसका उद्देश्य आर्थिक क्षेत्र में सरकारी गतिविधियों को दिशा-निर्देश देना एवं समन्वित करना।
  • इस समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
  • विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट इस समिति के सदस्य होते हैं।
  • इसके महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं :
    • आर्थिक रूझानों की समीक्षा करना और एकीकृत नीति ढाँचे को विकसित करना।
    • छोटे और सीमांत किसानों से संबंधित ग्रामीण विकास गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा करना।
    • विनिवेश से संबंधी मुद्दों पर विचार करना।

कृषि लागत और मूल्य आयोग

(Commission on Agricultural Costs and Prices-CACP)

  • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक संलग्न कार्यालय है। यह आयोग जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया।
  • यह आयोग कृषि उत्पादों के संतुलित एवं एकीकृत मूल्य संरचना तैयार करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सलाह देता है।
  • इस आयोग द्वारा 24 कृषि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किये जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त गन्ने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की जगह उचित एवं लाभकारी मूल्य की घोषणा की जाती है। गन्ने का मूल्य निर्धारण आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


भूगोल

असम में बाढ़ और इसका समाधान

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ दिनों से असम में बाढ़ की भीषण स्थिति बनी हुई है। इससे राज्य के 33 ज़िलों के 57 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। साथ ही बड़ी मात्रा में जान-माल की हानि भी हो रही है।

असम बाढ़:

असम में बाढ़ एक वार्षिक घटना जैसी हो गई है। राज्य में वर्ष 1988, 1998 और 2004 में आई बाढ़ को अभी तक की सबसे भयावह आपदा माना जाता था; लेकिन इस वर्ष आई बाढ़ अधिक विनाशक प्रतीत हो रही है। इस मानसून की यह पहली बाढ़ है, विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रकार की स्थिति अभी दो बार और हो सकती है।

असम में बाढ़ के कारण:

  • भौगोलिक स्थिति:
    • असम की भू-आकृति इसको अधिक बाढ़ प्रवण बनाती है। असम घाटी एक U आकर की घाटी है जिसकी औसतन चौड़ाई 80 से 90 किमी. है, वही इस घाटी के बीच से प्रवाहित होने वाली नदियों की चौड़ाई 8 से 10 किमी. है।
    • तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम आदि क्षेत्रों से भूमि ढलान असम की ओर है, इसलिये इन सभी क्षेत्रों से पानी की निकासी का मार्ग केवल असम की ओर होता है, जो असम में आने वाली बाढ़ का एक बड़ा कारण है।
    • असम हिमालय, हिमालय का अपेक्षाकृत नवीन भाग है, इसलिये अभी इसकी भूमि कम कठोर है। जब तिब्बत, भूटान, अरुणाचल और सिक्किम जैसे उच्च क्षेत्रों से पानी तीव्रता से असम की ओर प्रवाहित होता है तो भूमि के कम कठोर होने के कारण भूमि क्षरण तेज़ी से होता है। साथ ही पानी के प्रवाह की तीव्रता बाढ़ की प्रभाविता को और गंभीर बना देती है।
  • अपवाह तंत्र:
    • असम राज्य की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र है, जिसका अपवाह क्षेत्र चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान में लगभग 580,000 वर्ग किमी. का है।
    • असम विश्व की शीर्ष पाँच अवसाद प्रवाहित करने वाली नदियों में से एक है। इन अवसादों के जमाव से पानी के प्रवाह में रूकावट आती है।
    • ब्रह्मपुत्र में अवसादों की बड़ी मात्रा तिब्बत से प्रवाहित होकर आती है, तिब्बत के क्षेत्र की शुष्क, चट्टानी और वृक्षरहित परिस्थितियाँ अवसादों की अत्यधिक मात्रा हेतु ज़िम्मेदार है।
  • भूकंप:
    • नदियों का प्रवाह भूकंप प्रभावित क्षेत्रों से होने के कारण नदियों के मार्ग में परिवर्तन हो जाता है। साथ ही नदियों का स्वरूप भी प्रभावित होता है।
    • वर्ष 1950 में आए एक विनाशकारी भूकंप की वजह से डिब्रूगढ़ में ब्रह्मपुत्र नदी के जल स्तर में 2 मीटर की बढ़ोत्तरी देखी गई।
  • भू-क्षरण:
    • नदियों के किनारे के वृक्षों और झाड़ियों की कटाई से भूमि क्षरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। साथ ही ये झाड़ियाँ जल के प्रवाह को रोकने और रिहायशी इलाकों में प्रवेश को भी बाधित करती है।
  • शहरी नियोजन:
    • नदियों के किनारे लगातार बढ़ती मानव बस्तियाँ बाढ़ से सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है। बढ़ती बस्तियों से आर्द्रभूमियों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचा है। आर्द्रभूमि अतिरिक्त पानी की मात्रा को अवशोषित कर लेती थी, लेकिन इनकी कम होती संख्या ने बाढ़ की प्रभाविता को और बढ़ा दिया है।
  • बांध:
    • स्वतंत्रता के बाद असम में बाढ़ की समस्या के समाधान के लिये अस्थायी बांध बनाए गए, जिनकी कमज़ोर संरचना के कारण स्थिति और अधिक दयनीय हो गई।

बाढ़ के प्रभाव:

  • वर्तमान में असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का लगभग 95% हिस्सा बाढ़ से डूब चुका है। मालीगाँव स्थित पोबीतोरा राष्ट्रीय उद्यान भी 70% तक बाढ़ से प्रभावित है। इसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से वहाँ पाई जाने वाली जैव-विविधता पर पड़ता है, जोकि चिंता का विषय है।
  • जोरहट ज़िले में पड़ने वाला माजुली द्वीप पूरी तरह डूब गया है। बाढ़ से इस द्वीप की जैव-विविधता को भी नुकसान हुआ है।
  • बाढ़ से बड़ी मात्रा में भूमि कटाव हो रहा है, इससे भविष्य में कृषि क्षेत्रों का ह्रास होने की संभावना है।

आगे की राह:

  • बाढ़ की विभीषिका को रोकने वाली जल संरक्षण, प्रबंधन जैसी परियोजनाओं में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिये।
  • भौगोलिक स्थलाकृतियों को ध्यान में रखते हुए बांधों का निर्माण किया जाना चाहिये।
  • सरकार और संबंधित एजेंसियों को तटबंध बनाने की मौजूदा नीति की समीक्षा करने की ज़रूरत है। इस प्रकार की योजनाओं में स्थानीय लोगों को भी भागीदार बनाया जाना चाहिये।
  • निष्कर्षतः असम की बाढ़ एक दीर्घकालिक और बहुत ही जटिल समस्या रही है। इस संबंध में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहे है। इसलिये विशेष रूप से असम में आने वाली बाढ़ के कारणों की समीक्षा कराई जानी चाहिये। साथ ही बाढ़ के लिये नई योजनाओं में लोगों की सहभागिता, पर्याप्त वित्तीयन और तकनीकों के कुशल प्रयोग पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय खनिक स्वास्थ्य संस्थान के विलय को मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खनन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय खनिक स्वास्थ्य संस्थान (National Institute of Miners' Health-NIMH) को समाप्त करने का निर्णय लिया है। NIMH को समाप्त करके इसकी सभी संपत्तियों और देनदारियों के साथ इसका विलय/एकीकरण स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य संस्थान (Institute of Occupational Health-NIOH) के साथ किया जाएगा।

प्रभाव:

  • NIMH का NIOH में विलय/एकीकरण से दोनों संस्थानों को सार्वजनिक धन के सक्षम प्रबंधन के साथ-साथ व्यावसायिक क्षेत्र में विशेषज्ञता बढ़ाने का अवसर मिलेगा।
  • NIMH के अतिरिक्त अन्य समान उद्देश्यों वाले संगठनों के विलय पर भी विचार किया जा सकता है ताकि संचालन और लागत में कमी को प्रोत्साहित किया जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • मंत्रिमंडल ने NIMH के सभी कर्मचारियों को समान पद और समान वेतन पर NIOH में समाहित करने की बात कही है।
  • स्वशासी संस्थानों के कामकाज और कार्य प्रदर्शन की समीक्षा के संदर्भ में अन्य विषयों के साथ व्यय प्रबंधन आयोग ने सिफारिश की कि समान उद्देश्यों वाले संगठनों के विलय पर विचार किया जा सकता है और ताकि संचालन और लागत में कमी के कार्य को प्रोत्साहन मिले। इसी के अनुसार NIMH का NIOH के साथ विलय करने की सिफारिश की गई।

राष्ट्रीय खनिक स्वास्थ्य संस्थान

(National Institute of Miners' Health-NIMH)

  • भारत सरकार द्वारा वर्ष 1990 में NIMH की स्थापना की गई थी।
  • इसे कर्नाटक सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1960 के अंतर्गत सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
  • NIMH का पंजीकृत कार्यालय कोलार गोल्ड फील्ड, कर्नाटक और केंद्रीय प्रयोगशाला नागपुर में स्थित है।
  • संस्थान व्यावसायिक स्वास्थ्य और स्वच्छता में प्रायोगिक अनुसंधान करता है।
  • इसके अतिरिक्त यह अनुसंधान और विकास के माध्यम से खदानों की सुरक्षा एवं खनिकों के स्वास्थ्य की दिशा में भी प्रयास करता है।

राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य संस्थान

(Institute of Occupational Health-NIOH)

  • NIOH की स्थापना वर्ष 1966 में व्यावसायिक स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के रूप में की गई थी।
  • NIOH का कार्य-क्षेत्र मुख्यतः व्यावसायिक स्वास्थ्य से संबंधित है जिसमें व्यावसायिक औषधि और व्यावसायिक स्वच्छता भी शामिल है।
  • NIOH के प्रमुख उद्देश्य :
  • कार्यस्थल पर पर्यावरणीय तनावों के मूल्यांकन के लिये गहन शोध को बढ़ावा देना।
  • मौलिक अनुसंधान के माध्यम से व्यावसायिक स्वास्थ्य की उच्चतम गुणवत्ता को बढ़ावा देना।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आकाशगंगा की उत्पत्ति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में GAIA अंतरिक्ष वेधशाला के डेटा के आधार पर वैज्ञानिकों ने बताया कि हमारी आकाशगंगा (जिसमें सूर्य और अरबों अन्य तारें शामिल हैं) में लगभग 10 बिलियन वर्ष पहले एक विशाल ब्रह्मांडीय टक्कर से एक अन्य छोटी आकाशगंगा का विलय हो गया।

प्रमुख बिंदु:

  • GAIA अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा सूर्य से 6,500 प्रकाश वर्ष दूर स्थित तारों के सटीक मापन से आकाशगंगा के विलय से संबंधित जानकारी की पुष्टि हुई है।

GAIA (Global Astrometric Interferometer for Astrophysics) अंतरिक्ष वेधशाला:

  • GAIA हमारी आकाशगंगा का त्रिआयामी नक्शा बनाने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी मिशन है। इस मिशन के तहत आकाशगंगा की संरचना, गठन और विकास की प्रक्रिया का पता लगाया जाएगा।
  • इस मिशन को वर्ष 2013 में यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा लॉन्च किया गया था।
  • हमारी आकाशगंगा और बौनी आकाशगंगा के मिलन से हमारी आकाशगंगा के द्रव्यमान में लगभग एक चौथाई की वृद्धि हुई। साथ ही तारा निर्माण की 2 से 4 बिलियन वर्षों तक चलने वाले प्रक्रिया को भी गति मिली।
  • 13.8 बिलियन वर्ष पहले बिग-बैंग विस्फोट के तुरंत बाद सभी प्रकार की आकाशगंगाओं का निर्माण शुरू हुआ। वर्तमान समय की तुलना में पहले आकाशगंगाओं का क्षेत्रफल कम था और इनमें तीव्रता से तारों का निर्माण हो रहा था। आकाशगंगाओं के इस प्रकार के विलय से उनके प्रसार संबंधी अवधारणा की पुष्टि की जा रही है।
  • हमारी आकाशगंगा में मिलने वाली दूसरी बौनी आकाशगंगा में हाइड्रोजन और हीलियम के अलावा अन्य तत्वों से निर्मित कम द्रव्यमान कुछ तारों के होने की संभावना व्यक्त की गई है। विलय की यह घटना विनाशकारी न होकर निर्माणकारी थी। इससे हमारी आकाशगंगा को एक नवीन आकार मिला।

बिग-बैंग विस्फोट सिद्धांत (Big-Bang Theory):

  • यह आधुनिक समय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित सर्वमान्य सिद्धांत है।
  • इसे विस्तारित निहारिका परिकल्पना (Expanding Universe Hypothesis) भी कहते हैं।
  • इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। एडविन हब्बल (Edwin Habble) ने वर्ष 1920 में ब्रह्मांड के विस्तार संबंधी प्रमाण प्रस्तुत किये थे।
  • GAIA अंतरिक्ष वेधशाला द्वारा की गई आकाशगंगाओं के विलय की खोज, इस सिद्धांत के पक्ष में एक प्रमाण है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (25 July)

  • राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2018 को मंज़ूरी दे दी है। इस विधेयक द्वारा उत्तर प्रदेश के लिये दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 438 में संशोधन किया गया है। इसके लागू होने से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी अग्रिम ज़मानत का प्रावधान हो गया है। संशोधन के बाद अग्रिम ज़मानत पर सुनवाई के दौरान आरोपी का मौजूद रहना ज़रूरी नहीं होगा। साथ ही इसमें अग्रिम ज़मानत देने पर विचार करने से पहले अदालत द्वारा कुछ अनिवार्य शर्तें लगाए जाने का भी प्रावधान है। जैसे कि आरोपी को जब कभी पुलिस पूछताछ के लिये बुलाएगी, तो उसे पेश होना होगा। आरोपी मामले में शामिल किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से डरा-धमका नहीं सकता और अदालत की इज़ाजत के बिना देश नहीं छोड़ सकता। इसके अलावा गंभीर अपराधों के मामले में अग्रिम ज़मानत नहीं दी जाएगी। उन मामलों में भी अग्रिम ज़मानत नहीं मिलेगी जिनमें सज़ा फाँसी की हो। गैंगस्टर कानून के तहत आने वाले मामलों में भी अग्रिम ज़मानत नहीं दी जाएगी। अदालत को 30 दिनों के भीतर अग्रिम ज़मानत के लिये दिये गए आवेदन पर फैसला देना होगा। विदित हो कि राज्य सूचना आयोग ने भी वर्ष 2009 में इस संशोधित विधेयक को लाने की अनुशंसा की थी। वर्ष 2010 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस संबंध में एक विधेयक को मंजूरी दी थी और स्वीकृति के लिये उसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया था। केंद्र ने इसे यह कहकर वापस भेज दिया था कि इसमें अभी कुछ बदलावों की ज़रूरत है। अब इस नए विधेयक को मंज़ूरी दिये जाने से पहले वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्व की खामियों एवं अन्य राज्यों में प्रावधान के प्रयोग पर अध्ययन करने के लिये एक समिति गठित की थी। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर देश के अन्य सभी राज्यों में अग्रिम ज़मानत का प्रावधान है। वर्ष 1975 में आपातकाल के दैरान उत्तर प्रदेश में अग्रिम ज़मानत देने वाले इस कानून को हटा दिया गया था।
  • केंद्र सरकार ने हाल ही में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये हैं। इनमें मॉडल किरायेदारी अधिनियम को जल्‍द ही राज्‍यों के साथ साझा करना; स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के तहत 50-50 और शहरों को ODF+ (मौजूदा संख्‍या 377) एवं ODF++ (मौजूदा संख्‍या 167) करना; 50 और शहरों (मौजूदा संख्‍या 53) को ‘3-स्‍टार कचरा मुक्‍त सिटी’ में बदलना शामिल है। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के लाभार्थियों के लिये ‘अंगीकार’ अभियान शुरू करना; दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह की सभी पात्र महिला सदस्‍यों को ‘आयुष्‍मान भारत’ और ‘पोषण योजना’ से जोड़ने के लिये ‘स्‍वस्‍थ एसएचजी परिवार’ शुरू किया जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत ‘एक जैसे शहर, एक जैसे प्रभाव’ की परिकल्‍पना 100 स्‍मार्ट सिटीज़ में सकारात्‍मक असर वाली कम-से-कम एक ऐसी पहल करने के लिये की गई है जिसे 100 दिनों में पूरा किया जा सकता है। अटल कायाकल्‍प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत) के तहत 100 दिवसीय कार्ययोजना को भी लागू करने का निर्णय लिया गया है। देशभर में 100 सरकारी कॉलोनियों में स्‍वच्‍छता के टिकाऊ तौर-तरीकों को अपनाने, खाली पड़े क्षेत्रों को हरित बनाने, वर्षा जल के संचयन की सुविधाएँ स्‍थापित करने और ठोस अग्निशमन उपायों पर अमल की शुरुआत की गई है।
  • आयकर विभाग ने 24 जुलाई को आयकर दिवस का आयोजन किया। इस अवसर पर आयकर विभाग के क्षेत्रीय (फील्ड) कार्यालयों ने करदाताओं की मदद के लिये शिकायत निवारण पखवाड़े का आयोजन किया है। यह अभियान केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने तैयार किया है। आयकर विभाग ने इस मौके पर करदाता-ई-सहयोग अभियान भी शुरू किया। यह करदाताओं और अन्य हितधारकों को ई-रिटर्न फाइल करने और कर-संबंधी अन्य दायित्वों के निर्वहन में सक्षम बनाने में सहायता करेगा। 24 जुलाई को आयकर दिवस के रूप में इसलिये मनाया जाता है क्योंकि पहली बार जेम्स विल्सन की ओर से आयकर सबसे पहले 24 जुलाई, 1860 को लागू हुआ था। देश में केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 के अंतर्गत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड एक सांविधिक प्राधिकरण के तौर पर काम करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक युकिया अमानो का 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लंबे समय तक फ्राँस, अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड आदि देशों में जापान के राजनयिक रहे युकिया अमानो दिसंबर 2009 में IAEA के महानिदेशक बने थे। तब उन्होंने मिस्र के मोहम्मद अल बरदई का स्थान लिया था तथा IAEA के प्रमुख के तौर पर उनका तीसरा कार्यकाल नवंबर 2021 में समाप्त होना था। विदित हो कि उनकी ही देखरेख में ईरान और छह विश्व शक्तियों- ब्रिटेन, चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस और अमेरिका के बीच वर्ष 2015 में परमाणु समझौता हुआ था। इस करार के तहत ईरान प्रतिबंध हटाने के बदले अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिये राज़ी हो गया था, लेकिन अमेरिका ने मई 2018 में इस समझौते से खुद को अलग कर लिया था जिसके बाद से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतर्राष्ट्रीय तनाव चरम पर है। IAEA एक स्वायत्त वैश्विक संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व में परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है। यह परमाणु ऊर्जा के सैन्य उपयोग को किसी भी प्रकार रोकने में प्रयासरत रहती है। IAEA का गठन 29 जुलाई, 1957 को हुआ था।

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