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डेली न्यूज़

  • 21 May, 2022
  • 53 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

GST कानून बनाने की राज्यों की शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:

GST, GST परिषद, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

सहकारी संघवाद और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद, जीएसटी की चुनौतियांँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतंत्र की भलाई के लिये "सहकारी संघवाद" के महत्त्व का समर्थन करते हुए अपने एक निर्णय में कहा कि संघ एवं राज्य विधानसभाओं के पास माल और सेवा कर (GST) पर कानून बनाने के लिये " एक समान और अद्वितीय शक्तियांँ" हैं। तथा जीएसटी परिषद की सिफारिशें उन पर बाध्यकारी नहीं हैं।

  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय गुजरात उच्च न्यायालय के उस निर्णय की पुष्टि करते हुए आया जिसमें कहा गया था कि केंद्र भारतीय आयातकों पर समुद्री माल के लिये एकीकृत माल और सेवा कर (IGST) नहीं लगा सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि माल आयात के मामले में भुगतान किये गए समुद्री माल पर GST असंवैधानिक है।

SC का निर्णय: 

  • GST कानून बनाते समय केंद्र और राज्य "स्वायत्त, स्वतंत्र तथा यहाँ तक कि प्रतिस्पर्द्धी इकाइयाँ" हैं। संघीय इकाइयों के एकीकृत दृष्टिकोण के कारण सहकारी संघवाद को ‘कठोर संघवाद ’(Marble Cake) की तरह माना जाता है।
  • GST परिषद की सिफारिशें संघ और राज्यों को शामिल करते हुए एक सहयोगी संवाद का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ये सिफारिशें प्रकृति में अनुशंसात्मक होती हैं।
  • ये सिफारिशें केवल प्रेरक मूल्य की होती हैं अर्थात् संघ और राज्यों दोनों को GST पर कानून बनाने की समान शक्ति प्रदान की जाती है, अतः इन कानूनों को बाध्यकारी मानने से राजकोषीय संघवाद बाधित होगा।
  • इस बात पर ज़ोर दिया गया कि संविधान का अनुच्छेद 246A (जो राज्यों को GST के संबंध में कानून बनाने की शक्ति देता है) संघ और राज्यों को "समान इकाइयों" के रूप में मानता है।
    • यह GST पर कानून बनाने के लिये केंद्र और राज्यों को एक साथ शक्ति प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 279A, GST परिषद के गठन में यह बताता है कि न तो केंद्र और न ही राज्य वास्तव में दूसरे पर निर्भर हैं।
  • माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (जीएसटी अधिनियम) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं जो उन स्थितियों से निपट सके जहाँ केंद्र और राज्यों द्वारा बनाए गए कानूनों के बीच टकराव होने पर GST परिषद उन्हें उचित सलाह दे सके।

सहकारी और प्रतिस्पर्द्धी संघवाद:

  • सहकारी संघवाद: 
    • केंद्र और राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक जनहित में ‘सहयोग’ करते हैं।
    • यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को सक्षम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। 
    • संघ और राज्य संवैधानिक रूप से संविधान की अनुसूची- VII में निर्दिष्ट मामलों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिये बाध्य हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद:
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संबंध ऊर्ध्वाधर होते हैं, जबकि सभी राज्य सरकारों के बीच परस्पर संबंध क्षैतिज होते हैं।
      • 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों के बाद भारत में प्रतिस्पर्द्धी संघवाद के इस विचार को बल मिला। 
      • एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था में राज्यों की निधि, उपलब्ध संसाधन आधार और उनके तुलनात्मक लाभ सभी प्रतिस्पर्द्धा की भावना को बढ़ावा देते हैं। हालाँकि बढ़ते वैश्वीकरण ने राज्यों के बीच मौजूदा असमानताओं और असंतुलन को बढ़ा दिया है।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद में राज्यों को लाभ के लिये आपस में और केंद्र के साथ भी प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता होती है।
      • धन और निवेश को आकर्षित करने के लिये राज्य एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जो प्रशासनिक दक्षता में सुधार कर विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देता है।
    • प्रतिस्पर्द्धी संघवाद भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा नहीं, बल्कि यह कार्यकारिणी शक्तियों के निर्णयन परंपरा का हिस्सा है।

वस्तु एवं सेवा कर (GST):

  • GST एक व्यापक, बहु-चरणीय, गंतव्य-आधारित कर है जो प्रत्येक मूल्यवर्द्धन पर लगाया जाता है।
  • GST पूरे देश हेतु एक अप्रत्यक्ष कर है।
  • GST परिषद महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने वाली संस्था है जो GST के संबंध में सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेगी।

GST

आगे की राह 

  • निर्णय GST के तहत उन प्रावधानों के परिदृश्य को बदल सकता है जो न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं
  • जैसा कि न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि जीएसटी परिषद की सिफारिशों का केवल प्रेरक मूल्य है, प्रावधानों के लिये एक व्यावहारिक दृष्टिकोण का होना आवश्यक है। यह जीएसटी परिषद की सिफारिशों के आधार पर ऐसे प्रावधान, जो संवैधानिकता को चुनौती देते है, न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।

GST Concept-1 (Hindi) - Why was GST required? By : Dr. Vikas Divyakirti

विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. छिलका उतरा हुआ अनाज 
  2. मुर्गी के अंडे पकाए हुए 
  3. संसाधित और डिब्बाबंद मछली
  4. विज्ञापन सामग्री युक्त समाचार पत्र

उपर्युक्त मदों में से कौन सा/से जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

  • जनता को लाभ पहुंँचाने के लिये कुछ वस्तुओं को शून्य या 0% जीएसटी दर के तहत रखा जाता है। खाद्य सब्जियों, जड़ और कंद जैसी वस्तुओं पर कोई जीएसटी नहीं लगाया जाता है; अनाज; मछली ( संसाधित खाद्य पदार्थ; ताज़े फल और सब्जियांँ ( संसाधित खाद्य पदार्थ के अलावा); मांस (संसाधित खाद्य पदार्थ के अलावा और यूनिट कंटेनर में रखा गया); गन्ना गुड़ (गुड़); नारियल पानी; रेशमकीट  कोकून; कच्चा रेशम, रेशम अपशिष्ट; ऊन, कार्डेड; गांधी टोपी में प्रयुक्त कपास; खादी यार्न में प्रयुक्त कपास; नारियल, कॉयर फाइबर; जूट फाइबर कच्चा या संसाधित लेकिन काता हुआ नहीं; पूजा सामग्री; जीवित जानवर (घोड़ों को छोड़कर); के सभी सामान, बीज की गुणवत्ता; कॉफी बीन्स, भुना हुआ नहीं; असंसाधित हरी चाय की पत्तियाँ; ताज़ा अदरक, ताज़ी हल्दी (संसाधित रूप के अलावा); मानव रक्त और इसके घटक; सभी प्रकार के गर्भनिरोधक; जैविक खाद, ब्रांड नाम के अलावा; कुमकुम, बिंदी, सिंधूर, आल्ता; जलाऊ लकड़ी या ईंधन की लकड़ी; लकड़ी का कोयला; पान के पत्ते; न्यायिक, गैर-न्यायिक स्टाम्प पेपर, अदालती शुल्क टिकट जब सरकारी खजाने या अधिकृत विक्रेताओं द्वारा बेचे जाते हैं; डाक आइटम जैसे लिफाफा, पोस्ट कार्ड आदि सरकार द्वारा रुपया नोट रिज़र्व बैंक को बेचे हुएऔर चेक, मुद्रित पुस्तकें, जिसमें ब्रेल पुस्तकें, समाचार पत्र, मानचित्र शामिल हैं; मिट्टी के बर्तन और मिट्टी के दीये; चूड़ियाँ (कीमती धातुओं से बनी चूड़ियों को छोड़कर); मैन्युअल रूप से संचालित या पशु संचालित कृषि उपकरण; हाथ के औज़ार, जैसे- फावड़े; हथकरघा; अंतरिक्षयान; कान की मशीन।
  • दिये गए प्रश्न में संसाधित और डिब्बाबंद मछली को छोड़कर सभी उल्लिखित वस्तुओं को जीएसटी के तहत छूट में शामिल किया गया है। अतः विकल्प c सही है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

फोस्टेरिंग इफेक्टिव एनर्जी ट्रांज़ीशन 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व आर्थिक मंच, ऊर्जा संक्रमण।

मेन्स के लिये:

सुचारू ऊर्जा संक्रमण के लिये आगे की राह

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने फोस्टेरिंग इफेक्टिव एनर्जी ट्रांज़ीशन 2022’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की है, जो पर्यावरण की स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा न्याय तथा सामर्थ्य की चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक अनुकूलित ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों द्वारा त्वरित कार्रवाई का आह्वान करती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • ऊर्जा संक्रमण बढ़ते जलवायु परिवर्तन की परिस्थितियों के साथ अनुकूलन नहीं कर पा रहा है और यूक्रेन में युद्ध के परिणामस्वरूप ऊर्जा की मांग, ईंधन आपूर्ति बाधाओं, मुद्रास्फीति के दबावों एवं पुन: रूपांतरित ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं में महामारी के बाद हाल के जटिल व्यवधानों ने इस संक्रमण को और भी चुनौतिपूर्ण बना दिया है।
  • उच्च ऊर्जा की कीमतें, ऊर्जा आपूर्ति की कमी का जोखिम और जीवाश्म ईंधन की बढ़ती मांग एक साथ ऊर्जा सामर्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा एवं पहुँच तथा स्थिरता को चुनौती दे रही है।
  • किफायती ऊर्जा आपूर्ति तक पहुँच में कमी न्यायोचित परिवर्तन के लिये एक प्रमुख खतरे के रूप में उभरी है।
  • औद्योगिक गतिविधियाँ मानवजनित उत्सर्जन की तुलना में 30% अधिक उत्सर्जन करती हैं , फिर भी कई उद्योगों को कार्बनीकरण के लिये कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • ईंधन आयात: उन्नत अर्थव्यवस्था वाले 34 देशों में से 11 अपने ईंधन आयात के 70% से अधिक के लिये केवल तीन व्यापार भागीदारों पर निर्भर हैं।

अनुशंसाएँ: 

  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ और दीर्घकालिक दृष्टिकोण:
    • अधिक-से-अधिक देशों को बाध्यकारी जलवायु प्रतिबद्धताएँ अपनाने की आवश्यकता है, वहीं घरेलू और क्षेत्रीय ऊर्जा प्रणालियों के लिये दीर्घकालिक दृष्टिकोण का निर्माण करने, डीकार्बोनाइज़ेशन परियोजनाओं हेतु निजी क्षेत्र के निवेशकों को आकर्षित करने एवं उपभोक्ताओं और कार्यबल को समायोजित करने में सहयोग की आवश्यकता है।
  • संक्रमण की अनिवार्यता पर समग्र दृष्टिकोण:
    • इस चरण के माध्यम से संक्रमण की गति को बनाए रखने के लिये पर्याप्त सक्षम और समर्थन तंत्र का विकास करना महत्त्वपूर्ण है।
    • वर्तमान में पहले से कहीं ज़्यादा समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो तीन संक्रमण अनिवार्यताओं- ऊर्जा की वहनीयता, उपलब्धता और स्थिरता का त्वरित गति से समवर्ती रूप से वितरण करता हो।
  • कुशल उपभोग और व्यावहारिक हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करना:
    • उचित समर्थन उपायों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों की रक्षा के लिये कार्रवाई आवश्यक है, जिससे कुशल उपभोग को प्रोत्साहित किया जा सके।  
    • व्यावहारिक हस्तक्षेप और चौथी औद्योगिक क्रांति तकनीक घरेलू एवं व्यवसायिक दोनों स्तरों पर इसमें समान रूप से सहायता कर सकती हैं।
  • ऊर्जा विविधता और सुरक्षा:
    • दोहरा  विविधीकरण (आपूर्ति स्रोत और आपूर्ति मिश्रण) देशों की ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने का प्रमुख साधन है।
    • अल्पावधि में आयात भागीदारों के पारिस्थितिकी तंत्र में विविधता लाने और लंबी अवधि में कम कार्बन विकल्पों के साथ घरेलू ऊर्जा के पोर्टफोलियो में विविधता लाने से इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण लाभ मिल सकता है। 
  • आपूर्ति-पक्ष हस्तक्षेप और मांग-पक्ष क्षमताएँ : 
    • आपूर्ति-पक्ष हस्तक्षेपों को मांग-पक्ष क्षमता के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।  
    • वर्तमान ऊर्जा बाज़ार की अस्थिरता और सुरक्षा बाधाएँ स्वच्छ ऊर्जा की मांग को बढ़ाकर तथा औद्योगिक एवं अंतिम उपभोक्ताओं दोनों से अधिक कुशल ऊर्जा खपत को प्रोत्साहित कर संक्रमण को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती हैं।
  • नियामक ढाँचा:
    • आवश्यक कार्रवाइयों और निवेशों के लिये नियामक ढाँचे को मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • कानूनी रूप से बाध्यकारी ढाँचे में जलवायु प्रतिबद्धताओं को शामिल करने से न केवल यह सुनिश्चित होगा कि ये प्रतिबद्धताएँ राजनीतिक दबावों को सहन कर सकती हैं, बल्कि दीर्घकालिक कार्यान्वयन प्रयासों को विनियमित करने के लिये प्रवर्तन तंत्र भी प्रदान करती हैं।
  • स्वच्छ ऊर्जा की मांग:
    • स्वच्छ ऊर्जा की मांग कम उत्सर्जन वाले उद्योगों के विकास के लिये आवश्यक परियोजनाओं और निवेश को बढ़ावा देने वाला एक अनिवार्य कारक साबित हो सकता है।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम:

  • परिचय:
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) एक गैर-लाभकारी स्विस संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में हुई थी।
    • स्विस सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • मिशन:
    • WEF वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग जगत की परियोजनाओं को आकार देने हेतु व्यापार, राजनीतिक, शिक्षा क्षेत्र और समाज के अन्य प्रतिनिधियों को शामिल करके विश्व की स्थिति में सुधार के लिये प्रतिबद्ध है।
  • संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष:  क्लॉस  श्वाब (Klaus Schwab)।
  • WEF द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्टों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों की 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स' रैंकिंग ज़ारी करता है? (2017)

(A) विश्व आर्थिक मंच
(B) संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
(C) UN वुमैन
(D) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: A

  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, विश्व आर्थिक मंच ( World Economic Forum’s- WEF) द्वारा जारी की जाती है, यह स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरुषों के मध्य सापेक्ष अंतराल में हुई प्रगति का आकलन कर विश्व के देशों की रैंक जारी करता है। वार्षिक मानदंड के माध्यम से प्रत्येक देश के हितधारकों द्वारा विशिष्ट आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भ में अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित किया जा सकता है। 
  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2021 ने चार विषयगत आयामों में 156 देशों की लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति का आकलन किया: आर्थिक भागीदारी और अवसर; शिक्षा प्राप्ति, स्वास्थ्य व उत्तरजीविता तथा राजनीतिक अधिकारिता। इसके अलावा इस साल के संस्करण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित कौशल लिंग अंतराल का अध्ययन किया गया।
  • WEF वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट-2021 में भारत 140वें स्थान पर है। अतः विकल्प (A) सही है।

प्रश्न. 'ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स' में भारत की रैंकिंग कभी-कभी खबरों में देखने को मिलती है। निम्नलिखित में से किसने उस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016)

(a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD)
(b) विश्व आर्थिक मंच
(c) विश्व बैंक
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)

उत्तर: C

  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स उप-राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर 190 अर्थव्यवस्थाओं तथा चयनित शहरों में व्यापार नियमों व उनके प्रवर्तन के उद्देश्यपूर्ण उपाय प्रदान करता है। इसे विश्व बैंक द्वारा तैयार एवं जारी किया जाता है। अतःविकल्प (C) सही है
  • वर्ष 2002 में शुरू किया गया डूइंग बिज़नेस प्रोजेक्ट घरेलू सूक्ष्म और मध्यम आकार की कंपनियों को देखता है तथा उनके जीवन चक्र के माध्यम से उन पर लागू होने वाले नियमों का आकलन करता है।
  • नवीनतम डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट (DBR 2020) में भारत 63वें स्थान पर था।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड


कृषि

जीनोम एडिटेड पौधों के सुरक्षा आकलन हेतु दिशा-निर्देश, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, जीएमओ, जीनोम एडिटिंग, डीबीटी, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें

मेन्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों में अनुसंधान के लिये मानदंडों को आसान बनाने और फसलों के प्रोफाइल को बदलने के लिये विदेशी जीन का उपयोग करने की चुनौतियों से बचने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएंँ:

  • अनुमोदन प्राप्त करने से शोधकर्त्ताओं को छूट:
    • यह उन शोधकर्त्ताओं को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) से अनुमोदन प्राप्त करने से छूट देता है जो पौधे के जीनोम को संशोधित करने के लिए जीन-एडिटिंग तकनीक का उपयोग करते हैं,
    • GEAC जीएम पौधों में अनुसंधान का मूल्यांकन करता है और कृषि क्षेत्र में उनके उपयोग की सिफारिश करता है या अस्वीकृत करता है।
      • हालाँकि अंतिम निर्णय पर्यावरण मंत्री के साथ-साथ उन राज्यों द्वारा लिया जाता है जहाँ इस प्रकार की कृषि की जा सकती है। पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस छूट को मंज़ूरी दे दी है।
    • ये दिशा-निर्देश जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकियों के सतत् उपयोग के लिये एक रोडमैप प्रदान करते हैं और पौधों की जीनोम एडिटिंग संबंधी अनुसंधान एवं विकास व संचालन में लगे सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के अनुसंधान संस्थानों पर लागू होते हैं।
  • दिशा-निर्देशों से संबंधित मुद्दे: 
    • प्रायः GM पौधे जिनमें जीनोम एडिटिंग की गई हैं, में ट्रांसजेनिक तकनीक का उपयोग किया जाता है या किसी अन्य प्रजाति के जीन को उस पौधे में जोड़ा जाता है, जैसे कि बीटी-कॉटन, जिसमें पौधे को कीट के हमले से बचाने के लिये मिट्टी के जीवाणु जीन का उपयोग किया जाता है।
    • इस पद्धति के बारे में चिंता यह है कि ये जीन प्रभाव आस-पास के उन पौधों में भी फैल सकते हैं, जिनमें इस तरह के प्रभाव की आवश्यकता नहीं है और इसलिये ऐसे आवेदन विवादास्पद रहे हैं। 

जीनोम एडिटिंग:

  • परिचय: 
    • जीनोम एडिटिंग GM फसलों की तरह बाहरी जीनों को सम्मिलित किये बिना पौधों के स्वामित्व वाले जीन में संशोधन को सक्षम बनाता है।
    • जीनोम-संपादित किस्मों में कोई विदेशी DNA नहीं होता है और यह पारंपरिक पौधों के प्रजनन के तरीकों या प्राकृतिक रूप से होने वाले उत्परिवर्तन का उपयोग करके विकसित फसलों से अलग हैं।

Genom

  • जीनोम एडिटिंग की विधियाँ: 
    • जीनोम एडिटिंग के लिये कई दृष्टिकोण विकसित किये गए हैं। इसमें से एक मुख्य तकनीक को CRISPR-Cas9 कहा जाता है। 
      • CRISPR-Cas9 का विस्तृत नाम “क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीटस् एंड क्रिस्पर एसोटिएटिड प्रोटीन-9” है।
      • इस तकनीक ने पादप प्रजनन में विभिन्न संभावनाओं को खोल दिया है। इस तकनीक का उपयोग करके कृषि वैज्ञानिक अब जीन अनुक्रम में विशिष्ट लक्षणों को सम्मिलित करने हेतु जीनोम की एडिटिंग कर सकते हैं।
    • एडिटिंग की प्रकृति के आधार पर संपूर्ण प्रक्रिया को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- SDN1, SDN2 और SDN3।
      • साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज़ (SDN) 1 विदेशी आनुवंशिक सामग्री के प्रवेश के बिना ही छोटे सम्मिलन/विलोपन के माध्यम से मेज़बान जीनोम के DNA में परिवर्तन का का सूत्रपात करता है।
      • SDN2 के तहत एडिटिंग में विशिष्ट परिवर्तनों की उत्पत्ति हेतु एक छोटे DNA टेम्पलेट का उपयोग करना शामिल है। इन दोनों प्रक्रियाओं में विदेशी आनुवंशिक सामग्री शामिल नहीं होती है और अंतिम परिणाम पारंपरिक नस्ल वाली फसल की किस्मों के समरूप ही होता है।
      • SDN3 प्रक्रिया में बड़े DNA तत्त्व या विदेशी मूल के पूर्ण लंबाई वाले जीन शामिल होते हैं जो इसे आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) के विकास के समान बनाता है।
  • वैश्विक विकास: 
    • अधिकांश फसलों के पौधों में जीनोम एडिटिंग का उपयोग किया जा रहा है जिसके लिये आंशिक या पूर्ण जीनोम अनुक्रम उपलब्ध है और 25 देशों में लगभग 40 फसलों में इस तकनीक को लागू किया जा रहा है।
    • अमेरिका और चीन चावल, मक्का, सोयाबीन, कैनोला तथा टमाटर जैसी फसल किस्मों को विकसित करने के लिये इस तकनीक के उपयोग में अग्रणी हैं, जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली जैविक और अजैविक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

जीन एडिटिंग और जेनेटिकली मॉडिफाइंग में अंतर: 

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और जानवरों के निर्माण के लिये वैज्ञानिक आमतौर पर एक जीव से एक जीन को हटा देते हैं तथा इसे दूसरे जीव में यादृच्छिक रूप से जोड़ देते हैं।
    • एक प्रसिद्ध आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रकार की फसल बीटी मक्का और कपास है, जहाँ एक जीवाणु जीन जोड़ा गया था जो पौधे के उस हिस्से में कीटनाशक विषाक्त पदार्थ पैदा करता है, जहाँ कीट के उत्पन्न होने का खतरा रहता है, इसे खाने से कीट की मृत्यु हो जाती है। 
  • जीन एडिटिंग नए विदेशी जीन की शुरुआत के बजाय जीवित जीव के मौजूदा डीएनए में  छोटा, नियंत्रित परिवर्तन है। 
    • यह पता लगाना लगभग असंभव है कि किसी जीव के डीएनए को एडिटेड किया गया है या नहीं क्योंकि परिवर्तन स्वाभाविक रूप से होने वाले उत्परिवर्तन से अज्ञेय हैं।

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जीनोम तकनीक का महत्त्व: 

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार: 
    • इस प्रौद्योगिकी में काफी संभावनाएंँ हैं, यह तिलहन और दलहनी फसलों की किस्मों में सुधार लाने तथा बीमारियों, कीड़ों या कीटों के लिये प्रतिरोधी बनाने के साथ ही सूखे, लवणता एवं चरम गर्मी के प्रति सहनशीलता के गुण विकसित करेगी।
  • फसल किस्मों का विकास: 
    • पारंपरिक प्रजनन तकनीक को कृषि फसल की किस्मों को विकसित करने में 8 से 10 साल लगते हैं, जबकि जीनोम संपादन द्वारा इसे दो से तीन साल में किया जा सकता है।

जीनोम एडिटिंग तकनीक की समस्याएंँ:

  • विश्व भर में जीएम फसलें चर्चा का विषय रही हैं, कई पर्यावरणविदों ने जैव सुरक्षा और अपर्याप्त आंँकड़े के आधार पर इसका विरोध किया है। भारत में जीएम फसलों की शुरुआत श्रमसाध्य प्रक्रिया है जिसमें जांँच के कई स्तर शामिल हैं।
    • अब तक एकमात्र फसल जो नियामक लालफीताशाही की बाधाओं को पार कर चुकी है, वह है बीटी कपास।
  • भारत और दुनिया भर के वैज्ञानिकों द्वारा जीएम फसलों तथा जीनोम एडिटेड फसलों के बीच रेखा खींचने में तेज़ी देखी गई है। बाद में उन्होंने बताया कि उनमें कोई विदेशी आनुवंशिक सामग्री नहीं है जो उन्हें पारंपरिक संकरों से अप्रभेद्य बनाती है।
    • विश्व स्तर पर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने जीनोम-एडिटेड फसलों को जीएम फसलों के रूप में वर्गीकृत किया है। अर्जेंटीना, इज़रायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में जीनोम-एडिटेड फसलों के लिये उदार नियम हैं।
  • जीन एडिटिंग तकनीक जिसमें जीन के कार्य को बदलकर "बड़े और अनपेक्षित परिणाम" पैदा कर सकते हैं, पौधों की "विषाक्तता और एलर्जी" को भी बदल सकते हैं।

आगे की राह

  • जीनोम प्रौद्योगिकी के संबंध में इस तरह की नई प्रगति के समक्ष घरेलू और निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को मज़बूत करने के साथ-साथ तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है।. 
  • प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये और अनुसंधान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती के साथ पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता के साथ-साथ अवैध जीएम फसलों के प्रसार को रोकने के लिये कानूनों के प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये 

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में अक्सर चर्चा में रहने वाली 'जीनोम अनुक्रमण' की तकनीक को निकट भविष्य में किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है? (2017)

  1. जीनोम अनुक्रमण का उपयोग विभिन्न फसल पौधों में रोग प्रतिरोधक व सूखा प्रतिरोधी क्षमता के विकास के लिये एवं आनुवंशिक मार्करों की पहचान करने हेतु किया जा सकता है।
  2. यह तकनीक फसली-पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले समय को कम करने में सहायता करती है।
  3. इसका उपयोग फसलों में परपोषी-रोगजनक संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D 

व्याख्या:

  • चीन के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डिकोड किया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने चावल की बेहतर किस्मों जैसे- पूसा बासमती -1 और पूसा बासमती -1121 को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया, जो वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में काफी हद तक शामिल है। इसके अंतर्गत कई ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं, जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और विषाणु प्रतिरोधी पपीता भी शामिल है। अत: 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की छानबीन करते हैं और उन पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से अचानक उत्पन्न होते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर बहुत धीमी और अविश्वसनीय होती है तथा इसमें उत्परिवर्तन संबंधी लक्षणों की उत्पत्ति के लिये इन पौधों की देखभाल करनी पड़ती है। हालांकि जीनोम अनुक्रमण में कम समय लगता है, इस प्रकार यह अधिक बेहतर है। अत: कथन 2 सही है।
  • मेज़बान-रोगज़नक़ अंतःक्रिया को परिभाषित किया जाता है कि कैसे आणविक, सेलुलर, जीव या जनसंख्या स्तर पर रोगाणुओं या वायरस मेज़बान जीवों के भीतर खुद को बनाए रखते हैं। जीनोम अनुक्रमण फसल के संपूर्ण डीएनए अनुक्रम के अध्ययन को सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता करता है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (D) सही है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जलवायु परिवर्तन पर ब्रिक्स की उच्च स्तरीय बैठक

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने 13 मई, 2022 को वर्चुअल रूप से आयोजित ब्रिक्स की उच्च स्तरीय बैठक में हिस्सा लिया, जहाँ उन्होंने जलवायु परिवर्तन को संयुक्त रूप से संबोधित करने, निम्न कार्बन तथा अनुकूलन संक्रमण में तेज़ी लाने वाले दृष्टिकोणों की खोज और सतत् तथा विकास करने के लिये फोरम की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। 

  • बैठक की अध्यक्षता पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने की थी और इसमें ब्रिक्स देशों- ब्राज़ील, रूस, भारत तथा दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण मंत्रियों ने भाग लिया था।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • भारत ने अपने संबोधन में सावधानीपूर्वक खपत और अपशिष्ट में कमी पर आधारित स्थायी जीवनशैली को बढ़ावा देने सहित मज़बूत जलवायु कार्रवाई के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
  • भारत वर्तमान में अक्षय ऊर्जा, स्थायी वास, अतिरिक्त वन और वृक्ष आच्छादन के माध्यम से कार्बन सिंक निर्माण, सतत् परिवहन में परिवर्तन, ई-मोबिलिटी, जलवायु प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करने के लिये निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने आदि के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाकर उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। 
  • भारत ने उत्तरोत्तर ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से आर्थिक विकास को अलग करना जारी रखा है। 
  • विकासशील देशों का जलवायु कार्यों का महत्त्वाकांक्षी कार्यान्वयन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और पेरिस समझौते द्वारा अनिवार्य रूप से जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा अन्य कार्यान्वयन समर्थन के महत्त्वाकांक्षी एवं पर्याप्त वितरण पर निर्भर है।
  • ब्रिक्स देशों ने ग्लासगो निर्णय के अनुरूप जलवायु वित्त वितरण तथा COP 26 प्रेसीडेंसी द्वारा जारी जलवायु वित्त प्रदायगी योजना की दिशा में आगे बढ़ने आशा व्यक्त की है।
  • ब्रिक्स पर्यावरण मंत्रियों ने जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को सुदृढ़ बनाने और सहयोग की विषय वस्तुओं को व्यापक एवं गहरा बनाने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • इसके अतिरिक्त इन देशों ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में नीतिगत आदान-प्रदान तथा सहयोग जारी रखने पर भी सहमति जताई।

BRICS के बारे में:

  • ब्रिक्स विश्व की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
    • ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने 2001 में ब्राज़ील, रूस, भारत एवं चीन की चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिये BRIC शब्द का प्रयोग किया। 
    •  BRIC विदेश मंत्रियों की वर्ष 2006 में पहली बैठक के दौरान समूह को औपचारिक रूप दिया गया था।
    • दक्षिण अफ्रीका को दिसंबर 2010 में BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया था, जिसके बाद समूह ने BRICS का संक्षिप्त नाम अपनाया।
  • ब्रिक्स दुनिया के पांँच सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ लाता है, यह वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% और वैश्विक व्यापार का 16% का प्रतिनिधित्व करता है।
  • ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S क्रमानुसार सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता द्वारा की जाती है।
    • भारत 2021 के लिये अध्यक्ष था।
  • वर्ष 2014 में फोर्टालेजा (ब्राज़ील) में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB - शंघाई, चीन) की स्थापना के समझौते पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने सदस्यों को अल्पकालिक तरलता सहायता प्रदान करने के लिये ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था पर भी हस्ताक्षर किये।

विगत वर्ष के प्रश्न:

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. APEC द्वारा न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की गई है।
  2. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) को पहले ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक के रूप में जाना जाता था।
  • यह ब्रिक्स राज्यों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा स्थापित एक बहुपक्षीय विकास बैंक है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • बैंक का मुख्यालय शंघाई (चीन) में है। अत: कथन 2 सही है।
  • फोर्टालेजा (2014) में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स के बीच सहयोग को मज़बूत करने और वैश्विक विकास के लिये बहुपक्षीय व क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के प्रयासों के पूरक के लिये  फोर्टालेजा घोषणा द्वारा न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) की स्थापना की गई थी।
  • इसकी आरंभिक अधिकृत पूंजी 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जिसकी आरंभिक अभिदान पूंजी 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जिसे संस्थापक सदस्यों के बीच समान रूप से साझा किया गया था।

प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015) 

(a) आसियान
(b) ब्रिक्स
(c) ओईसीडी
(d) विश्व व्यापार संगठन

उत्तर: B

व्याख्या:

  • 2014 में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ‘फोर्टालेजा डिक्लेरेशन’ की घोषणा की गई थी। इसके अंतर्गत निम्नलिखित समझौते किये गए थे:
  • 100 अरब डॉलर के कोष के साथ न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना के लिये समझौता;  जो ब्रिक्स में बुनियादी ढाँचे और सतत् विकास परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने के उद्देश्य से सभी ब्रिक्स देशों के बीच समान रूप से धन का वितरण करेगा।
  • अल्पकालिक तरलता मांगों से निपटने के लिये 100 बिलियन डॉलर के प्रारंभिक राशि के साथ ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व (CRA) की व्यवस्था की गई है। अतः विकल्प (B) सही है। 

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘SCO क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS)' की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

SCO, RATS, RATS-SCO की परिषद

मेन्स के लिये:

SCO के साथ भारत के राजनयिक और आर्थिक संबंध, SCO सदस्य देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) के तहत SCO के सदस्य देशों के बीच बैठक हुई। रूस द्वारा यूक्रेन पर अतिक्रमण करने और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के अतिक्रमण के बाद यह भारत में इस तरह की पहली बैठक है।

  • SCO-RATS बैठक में विभिन्न वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने एवं सहयोग को बढ़ावा देने के एजेंडे पर चर्चा की गई है।
  • भारत SCO (RATS SCO) के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना की परिषद का अध्यक्ष है।

बैठक में चर्चा के प्रमुख बिंदु:

  • अफगानिस्तान की स्थिति और तालिबान के हाथों अफगानिस्तान के पतन के कारण उत्पन्न सुरक्षा चिंता इस बैठक का मुख्य एजेंडा था।  
  • भारत ने SCO और इसके क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना के साथ अपने सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने की तीव्र इच्छा व्यक्त की है, जो सुरक्षा एवं रक्षा मामलों पर ध्यान केंद्रित करता है।

क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (RATS):

  • RATS शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का एक स्थायी निकाय है। 
  • इसका उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच समन्वय तथा संवाद सुविधा प्रदान करना है। 
  • SCO-RATS का मुख्य कार्य समन्वय और सूचना साझा करना है।
  • एक सदस्य के रूप में भारत ने SCO-RATS की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
  • भारत की स्थायी सदस्यता इसे अपने परिप्रेक्ष्य के लिये सदस्यों के बीच अधिक समझ विकसित करने में सक्षम बनाएगी।

शंघाई सहयोग संगठन:

  • परिचय:  
    • SCO वर्ष 2001 में बनाया गया था 
    • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को विशाल यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थिरता बनाए रखने के लिये एक बहुपक्षीय संघ के रूप में स्थापित किया गया था।
    • यह उभरती चुनौतियों एवं खतरों का मुकाबला करने और व्यापार बढ़ाने के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा मानवीय सहयोग के लिये सेनाओं के शामिल होने की परिकल्पना करता है।
    • वर्ष 2001 में SCO की स्थापना से पूर्व कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के सदस्य थे।
      • वर्ष 1996 में ‘शंघाई-5’ का गठन विसैन्यीकरण वार्ता की शृंखलाओं के माध्यम से हुआ था, चीन के साथ ये वार्ताएँ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों द्वारा सीमाओं पर स्थिरता की स्थिति बनाए रखने के लिये की गई थी।
    • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में प्रवेश के बाद ‘शंघाई-5’ को SCO नाम दिया गया।
    • SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ। रूसी एवं चीनी SCO की आधिकारिक भाषाएँ हैं।
    • SCO के दो स्थायी निकाय हैं: 
      • बीजिंग में SCO सचिवालय
      • ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।
  • सदस्य देश: कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान
    • हाल ही में इस संगठन में ईरान को शामिल करने की मंज़ूरी दी गई है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

कंपनी अधिनियम में संशोधन

प्रिलिम्स के लिये:

कंपनी अधिनियम, 2013, कंपनी लॉ कमेटी (CLC)।

मेन्स के लिये:

कंपनी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन।

चर्चा में क्यों? 

कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में कंपनी अधिनियम में संशोधन प्रस्तावित करने पर   विचार किया जा रहा है।

  • मंत्रालय को कंपनी लॉ कमेटी द्वारा की गई इन सिफारिशों पर विशेषज्ञों तथा पेशेवरों से प्रतिक्रिया प्राप्त हुई है, जिसने अप्रैल 2022 में अपनी रिपोर्ट वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री को सौंपी थी।

प्रमुख प्रस्ताव:

  • इससे कॉरपोरेट गवर्नेंस पर प्रतिबंध बढ़ने की उम्मीद है, विशेष रूप से बोर्ड पदों के लिये भर्ती और लेखा परीक्षकों एवं शीर्ष अधिकारियों के इस्तीफे से संबंधित मामलों को संभालने के लिये।
  • इसके प्रमुख प्रस्तावों में यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि स्वतंत्र निदेशक वास्तव में स्वतंत्र हों और कंपनियाँ वैधानिक लेखा परीक्षकों द्वारा वित्तीय विवरणों पर प्रतिकूल टिप्पणी या योग्यता या यहाँ तक कि अपने लेखा-परीक्षा को छोड़ने के कारणों के बारे में अधिक पारदर्शी हों।
  • यह कुछ प्रकार की कंपनियों के लिये अनिवार्य संयुक्त ऑडिट सहित कानून में कई बदलाव करके वैधानिक लेखा परीक्षकों की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है।
  • कंपनी अधिनियम में प्रस्तावित परिवर्तनों का उद्देश्य सुशासन के पथ-प्रदर्शकों को मज़बूत करना है, स्वतंत्र निदेशकों और लेखा परीक्षकों ने कंपनी के मामलों में अधिक पारदर्शिता का संचार किया है तथा कंपनियों को व्यापार करने में सुगमता (Ease of Doing Business) में सुधार के प्रयासों के तहत आंशिक शेयर और रियायती शेयर जारी करने की अनुमति दी है।
    • कंपनी अधिनियम के तहत वर्तमान में प्रतिबंधित आंशिक शेयरों का मुद्दा खुदरा निवेशकों को उच्च मूल्य वाले शेयरों तक पहुंँचने में मदद करेगा, जबकि रियायती शेयर संकट में एक कंपनी को ऋण को इक्विटी में बदलने की अनुमति देगा।
  • कॉरपोरेट क्षेत्र में कुछ दिवालिया कंपनियाँ, विशेष रूप से बड़ी गैर-बैंक वित्तीय कंपनियाँ, जिन्होंने पिछले कुछ समय में गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना किया है, ने सरकार को इनमें से कुछ परिवर्तनों पर विचार करने के लिये प्रेरित किया है।

भारतीय कंपनी अधिनियम:  

  • भारतीय कंपनी अधिनियम संसद का एक अधिनियम है जिसे वर्ष 1956 में अधिनियमित किया गया था। यह कंपनियों को पंजीकरण द्वारा गठित करने में सक्षम बनाता है, कंपनियों, उनके कार्यकारी निदेशक और सचिवों की ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
  • वर्ष 2013 में सरकार ने भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 में संशोधन किया और एक नया अधिनियम जोड़ा जिसे भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 कहा गया।
    • कंपनी अधिनियम, 1956 को आंशिक रूप से भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
    • यह एक अधिनियम बन गया और अंततः यह सितंबर 2013 में लागू हुआ।
  • वर्ष 2020 में भारत की संसद ने कंपनी अधिनियम में और संशोधन करने तथा विभिन्न अपराधों को कम करने के साथ-साथ देश में व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा देने के लिये कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया।

कंपनी अधिनियम 2013 की विशेषताएंँ:

  • यह कंपनी के निगमन,  कंपनी की ज़िम्मेदारियों, निदेशकों और कंपनी के विघटन को नियंत्रित करता है।
  • इसे 29 अध्यायों में विभाजित किया गया है जिसमें पूर्व कंपनी अधिनियम, 1956 में 658 धाराओं की तुलना में 470 धाराएँ हैं और इसमें 7 अनुसूचियाँ हैं।
  • इसमें अधिकतम 200 सदस्य हैं, पहले निजी कंपनियों में सदस्यों की अधिकतम संख्या 50 थी।
  • इस अधिनियम में 'एक व्यक्ति कंपनी’ (One Person Company) नया शब्द शामिल किया गया है।

स्रोत: मिंट


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